एक थीं.....जयललिता!!
चित्र गूगल साभार
पता नहीं क्यूं, जबसे ये खबर सुनी है, मन में एक फिल्म का अंतिम डॉयलॉग घूम रहा है। ”एक था......ज्यूलथीफ” ये कतई आकस्मिक था, बस खबर सुनी और मन में डायलॉग आ गया। जब मैं जयललिता को नहीं जानता था, तो सोचता था कि आम दक्षिणी भारतीय परंपरा के चलते वो भी फिल्मो से राजनीति में आ गईं और फिर जो भी हो, मने, तिकड़म करके मुख्यमंत्री बन बैठीं। जयललिता के बारे में बहुत बाद में विस्तार से पढ़ा कि कितनी मेधावी छात्रा थीं, और कितनी कुशल अभिनत्री थीं, आज के दौर के राजनीतिज्ञों की तुलना में काफी कुशल, रणनीतिकार और राजनीतिबाज़ भी साबित हुईं, और अंततः अच्छी भ्रष्टाचारी भी साबित हुईं। घोषित स्रोतों से अधिक आय का वो मामला जो अठ्ठारह सालों से चल रहा था, और जिस पर किसी की नज़र नहीं थी, उसका अंततः पटाक्षेप हुआ। जब जज ने जयललिता को सज़ा सुनाई तो उनके लिए ये वैसा ही आश्चर्य का क्षण था जैसा मोदी को पूर्ण बहुमत की सरकार का समाचार मिलने पर हुआ था। ना जयललिता को इसकी आशा थी ना मोदी को, लेकिन होनी को कौन टाल सकता है, भाजपा को सत्ता मिलने की घटना ”या दुर्घटना जैसा आप पढ़ना चाहें” में होनी का बहुत बड़ा हाथ है, वैसे ही जयललिता को, या जयललिता जैसे किसी भी राजनीतिज्ञ को सजा दिलवाना धरती के किसी प्राणीमात्र के साहस का काम नहीं हो सकता। ऐसे ही क्षणों में कभी-कभी ईश्वर के होने पर विश्वास हो उठता है, इसलिए नहीं कि इन्हे सजा मिल जाती है, इसलिए कि भारत जैसे देश में, इन्हे भी सजा मिल सकती है, ये आखिर कैसे संभव हो सकता है। राजीव गांधी से लेकर गडकरी तक सब पर अच्छे खासे सबूतों के साथ भ्रष्टाचार के मामले पड़े हैं, मजाल है कि किसी को सजा हो जाए, यहां तो हाल ये है कि कोई कैमरे में सरेआम रिश्वत लेता पकड़ा जाए, तो सजा नहीं होती, और रही घोषित स्रोतों से अधिक आय का मामला तो भैया ज़रा लिस्ट उठा कर देख लो, जितने एम एल ए, एम पी हैं, उन्होने अपने कार्यकाल में अपनी सम्पत्तियों में तीन-तीन सौ गुना का इजाफा किया है, अब कौन से घोषित स्रोतों से सम्पत्ति में इतना इजाफा हो सकता है, ये सबको पता है....लेकिन किया क्या जाए। और सज़ा.....अमां भूल जाओ मियां.....सज़ा....हुंह....
मज़ेदार बात ये है कि तामिलनाडू के नये मुख्यमंत्री, जो जयललिता के वफादार कहे जा रहे हैं, शपथ ग्रहण पर रो रहे थे। है ना कमाल, जयललिता को अठ्ठारह साल बाद किसी अदालत ने दोषी करार देते हुए सज़ा सुनाई, और एक राज्य का मुख्यमंत्री इसलिए रो रहा है कि किसी अपराधी का सज़ा हो गई। यानी....यानी कानून को अपना काम नहीं करना चाहिए, यानी अदालत को जयललिता को दोषी नहीं ठहराना चाहिए था, क्यों......क्योंकि वो मुख्यमंत्री थीं, क्योंकि वो आपकी अम्मा थीं, क्योंकि वो.....छोड़िए साहब....यहां किसी की आंख इसपर नहीं उठती.....शशिकला रोएं....और भी वो लोग रोएं जिनका जयललिता से निजी संबंध था और मुनाफे का रिश्ता था.....किसी राज्य का मुख्यमंत्री न्यायालय के आदेश पर कैसे रो सकता है। पर आजकल कौन-कहां संसदीय पवित्रता और मार्यादा जैसी दकियानूसी बातों का ख्याल रखता है। इसके अलावा जयललिता के भक्तों ने सुब्रमन्यम स्वामी के घर पर पत्थर फेंके.....कि क्यों उसने शिकायत दाखिल की....अबे शिकायत ही दाखिल करनी थी तो किसी गरीब-गुरबे की करते, 18 दिन में वो आदमी ऐसा अंदर होता कि कुछ कहने की हद नहीं.....और किसी को कुछ फर्क भी नहीं पड़ता। जैसे सोनी सोरी निर्दोष बंद रहीं, पुलिसिया जुल्म सहतीं रहीं, किसी ने आंसू नहीं बहाए, जीतन मरांडी बिचारा अब तक भुगतता रहा किसी को कोई परवाह नहीं......यहां तो लोगों को निर्दोष मार दिया जाता है, बाद में पता चलता है कि एनकांउटर झूठा था, तो भी किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता....पर मामला अगर अमित शाह जैसे इन्सान का हो तो यकीन मानिए कानून की बांहे छोटी पड़ जाती हैं.....और न्याय की देवी तो वैसे भी अंधी है, उपर से कहावत है चिराग तले अंधेरा....जो खुद चिराग के नीचे बैठा हो, उसे कौन कानून पकड़ने की हिम्मत करेगा भाई....
खैर यहां बात जयललिता की हो रही है.....जयललिता के लिए मेरे मन में थोड़ी बहुत हमदर्दी है.....वो इसलिए कि अगर बचपन से ही आपको किसी चीज़ की आदत लगा दी जाए तो वो स्वाद आपकी जुबान पर रहता है....हम भारतीयों को आदत सी हो गई है, ये नेता लोग रोज ही खबरों में रहते हैं कि फलां के पास इतने सौ करोड़ है, ढिमकां के पास इतने सौ करोड़ हैं......अदालत में मामले भी चलते हैं, लेकिन सज़ा किसी को नहीं होती....बल्कि पकड़े जाने के बाद, कुछ समय तक वो गायब रहते हैं फिर अचानक अमिताभ बच्चन मार्का एंट्री लेते हैं और वही आय से अधिक संपत्ति जोड़ने का पुनीत कार्य करने लगते हैं, लेकिन जयललिता को हो गई.....बस इसी बात से मुझे उससे हमदर्दी है....जो इंसान इतनी मेहनत करके मुख्यमंत्री बना, जिसने इतनी तिकड़म की, इतनी फंदेबाज़ी की....”बिना तिकड़म और फंदेबाज़ी के आज के दौर में कोेई मंत्री नहीं बना रह सकता, मुख्यमंत्री तो और बड़ी चीज़ है” उसे इतनी छूट तो मिलनी चाहिए थी कि वो कुछ सौ करोड़ का भ्रष्टचार कर ले....आप ज्यादा से ज्यादा इतना कर लेते कि मुकद्मा चला लेते.....लेकिन अंततः या तो सबूतों को गायब करके, या किसी तकनीकी पाइंट को आधार बनाकर उसे छोड़ देते.....ये क्या कि आपने उसे आम आदमी की तरह सज़ा दे दी। ये बहुत ही खतरनाक मिसाल आप ने खड़ी की है, अगर आप भ्रष्टाचारी मंत्रियों और नेताओं को सज़ा देने लगे तो ये समझ लीजिए कि संसद और विधानसभाओं में बैठे ज्यादातर लोग जेल में होंगे.....
इसीलिए संसद और विधानसभाओं की भविष्य की चिंता में डूबा हुआ मैं ये निवेदन करता हूं कि जयललिता को ना सिर्फ छोड़ दिया जाए, बल्कि उनके खिलाफ मुकद्मे को इस बिना पर खारिज़ कर दिया जाए कि ये बहुत देर तक चला है....
