मंगलवार, 2 दिसंबर 2025

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल




 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रेशर में बिचारे महामानव से कुछ ना कुछ लफड़ा हो जाता है। काफी दिनों तक अच्छी चली, हमारे महामानव और परम मित्र डोलांड की, अच्छी ही कहेंगे, जब भी महामानव का मन तू तड़ाक से बात करने का करता था, महामानव अमरीका पहुंच जाते थे। पिछले चुनावों में अबकी बार टरम्प सरकार का नारा भी लगा आए थे।



आपने देखा होगा महामानव, अपने भाषणों को कितना भी असभ्य बना दें, कितना भी गालियां दें, कितने भी अपशब्द कहें, कभी तू-तड़ाक में बात नहीं करते। इस मामले में हमारे महामानव बहुत संस्कारी हैं। तू-तड़ाक से उनकी बातचीत सिर्फ डोलांड से थी। अब मामले कुछ ऐसे बन गए कि अब मिलना नहीं हो पा रहा है, पहले तो ऐसा था कि मन किया तो फोन उठाकर बात कर ली, अब सुना कि फोन पर भी बात नहीं होती। इसीलिए शायद महामानव का मूड भी कुछ उखड़ा-उखड़ा सा रहता है। अब यार अपने परम मित्र से बात ना हो पाए तो मूड तो खराब होना ही ठहरा। कुछ भी हो, दोस्त तो दोस्त होता है, और महामानव का तो वो डीयर फ्रेंड था, डोलांड। आप ये समझो कि दोस्त जो होता है, वो तो ऐवें ही होता है, उससे बड़ी कैटेगरी होती है फ्रेंड की, फिर उससे उपर होता है क्लोज़ फ्रेंड और फिर आता है तू-तड़ाक वाला फ्रेंड। ये जो सूक्ष्म अंतर है मित्रता में, यही समझने की ज़रूरत है। इसीलिए आजकल महामानव का मूड खराब रहता है, उधर डोलांड भी सुना है काफी चिड़चिड़ा सा हो गया है। इसी चिड़चिड़े मूड की वजह से उसने कई आयं-बायं-शायं फैसले कर डाले, जिसने उसकी कम अमेरिकियों की रातों की नींद हराम कर दी है, पूरी दुनिया के उसने कल्ले काट रखे हैं। 




महामानव और डोलांड की फ्रेंडशिप में ये दरार जो पड़ी वो असल में ऑपरेशन सिंदूर के रुकने से पड़ी, अगर आपको याद हो तो, ये वो समय था जब अपने परम मित्र के कहने पर महामानव ने ऑपरेशन सिंदूर को फौरन स्टॉप कर दिया था। अब भाजपा के अन्य मंत्री जो भी कहें, लेकिन दोस्तों हुआ तो यही था, वरना ये कैसे संभव था कि उधर डोलांड कहें कि भैये मैने वॉर रुकवा दी, और इधर पता चले कि सचुमुच में वॉर रुक गई।



बस इसके बाद जो भब्भड़ मचा इंडियन पॉलिटिक्स में, जनाब क्या ही रंग उड़ा था। मार बयान पे बयान पूरे विपक्ष ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, महामानव को कायर, यानी कॉवर्ड कहा गया, उन्हें डरपोक कहा गया, उनकी छाती के नाप पर फिकरे कसे गए, लेकिन मज़ाल है कि महामानव ने अपने होठों से उंगली को हटाया हो, मैं पहले भी कह चुका हूं, महामानव अपनी फ्रेंडशिप को लेकर बहुत सीरियस थे, उन्होने एक शब्द भी डीयर फ्रेंड डोलांड के खिलाफ नहीं कहा। 



अब ये जो सारे विपक्षी हैं, ये फें्रडशिप क्या जानें, इन्होने घेर-घार कर महामानव की फजीहत कर दी, इसी चक्कर में महामानव को भी थोड़ा सख्त होना पड़ा। इधर टम्प को लगा कि महामानव की फ्रेंडशिप में कुछ कमी आ गई है, याद रखिएगा दोस्तो, हैल हैथ नो फ्यूरी लाइक ए टम्प स्कॉर्न्ड, यानी डीयर फ्रेंड डोलांड ने अपने इसी गुस्से के चलते भारत पर टैरिफ पर टैरिफ लगाना शुरु कर दिया, साथ ही चेतावनी भी दे दी, कि बाज़ आ जाओ, इधर हमारे महामानव जानते थे कि एक बार वो डीयर फ्रेंड के सामने दोबारा पड़े तो कहीं लेने के देने ना पड़ जाएं। इसलिए उन्होने अपनी भरसक कोशिश की कि उनकी और डीयर फ्रेंड टम्प की मुलाकात ना हो सके। इस बच निकलने मे ंतो महामानव माहिर हैं, वैसे वो और कई कारनामों में माहिर हैं, लेकिन इसमें तो उनका जवाब नहीं है, वो जहां चाहते हैं, वहां से गायब हो जाते हैं, जैसे पूरे साल मणिपुर से गायब रहे, पुलवामा हमले के समय बहुत समय तक गायब रहे, इस बार के पहलगाम हमले के वक्त गायब रहे, जब विदेश से वापस आए तो भी सीधा बिहार गए, पहलगाम नहीं गए। तो अपनी इसी बच के निकल जाने की महारत के चलते उनकी डीयर फ्रेंड से मुलाकात ही ना हुई, और इस तरह महामानव ने देश को सीधे कन्फ्रंटेशन से बचा लिया। 

खैर डोलांड अपनी तरफ से महामानव को उकसाने की पूरी कोशिश करता रहा, उसने टैरिफ लगाए, पाकिस्तान से प्रेम की पींगे बढ़ाईं, और भी बहुत कुछ किया कि महामानव पलट कर कोई तो रिएक्शन दें, इधर महामानव चुप बैठे थे। दरअसल महामानव के बारे में एक बात जो अक्सर आप भूल जाते हैं वो ये कि वो अवतार होने यानी नॉन बायोलॉजिकल होने के चलते, समय से पहले ही उसे भांप जाते हैं। 



तो महामानव तो पहले से ही सबकुछ भांपे बैठे थे, उन्हें कोई चिंता नहीं थी। अपनी अजैविक ईश्वरीय क्षमता से वो पहले ही देख चुके थे कि आगे क्या होने वाला है, और इसलिए उन्हें कोई चिंता नहीं थी। इधर डोलांड ने अपना आखिरी दांव चला, और उसने कहा कि क्योंकि इंडिया पुतिन का तेल खरीद रहा है, इसलिए वो इंडिया से नाराज़ है, और अगर इंडिया पुतिन का तेल खरीदना बंद कर दे, तो फिर से फ्रेंडशिप का रास्ता खोला जा सकता है। बस महामानव को एक रास्ता मिल गया, वो रास्ता जिसकी उन्हें काफी समय से तलाश थी। इस एक रास्ते से महामानव को एक तीर से एक दर्जन शिकार करने का मौका मिल गया। 

एक तरफ वो अपने देश में तथाकथित प्रगतिशीलों को, वामियों को, कांगियों को जवाब दे सकते थे। साथ ही अमेरिका से व्यापार को दोबारा शुरु कर सकते थे, तीसरे अपने दोस्तों पर अमेरिका व अन्य देशों में चलने वाले फ्रॉड के केसों में हस्तक्षेप करके उन्हें बचा सकते थे, अपने दोस्तों को किसी और ज़रिए माली इमदाद दे सकते थे, और सबसे बड़ी बात, तेल की क़ीमतों में जो कमी उन्होने नहीं की, उसे जस्टीफाई भी कर सकते थे। हालांकि आप अगर गौर से देखें तो इससे भी ज्यादा कारण मिल सकते हैं, लेकिन महामानव जैसे चतुर-सुजान को इससे ज्यादा इशारा नहीं चाहिए था, और उन्होने इसे लपक लिया। फौरन लपक लिया। 



पिछले कुछ ही दिनों में पुतिन के तेल की आवक में सत्तर प्रतिशत की कमी आई है। यानी अब भारत में पुतिन का तेल नहीं आ रहा है, या बहुत कम आ रहा है। तेल का ये खेल महामानव की जर्बदस्त राजनीतिक दूरदृष्टि के चलते हुआ है, अब आप ये मत देखिए कि भारत में पुतिन का तेल नहीं आ रहा, जो कि भारतीय दलाल पूंजीपतियों को बहुत सस्ते में मिल रहा था, जिसे वो रिफाइन करके बहुत महंगे में बेच रहे थे। आप ऐसा इसलिए ना कीजिए क्योंकि पुतिन के इस सस्ते तेल का आपको यानी देश की जनता कोई फायदा नहीं मिल रहा था। इस सस्ते तेल का फायदा सिर्फ और सिर्फ महामानव के दलाल मित्रों को था, जो इधर का माल उधर करते थे और बीच में अपनी दलाली कमाते थे। 

खैर साहब अब मामला यूं है कि पुतिन से तो साहब की कोई मुरव्वत थी नहीं, वो तो उनके डीयर फ्रेंड से थोड़ी बतकही हो गई थी, तो महामानव ने सोचा कि चलो इस बतकही का भी फायदा उठाया जाए और अपने देसी दोस्तों को भी कुछ थोड़ा कमा-खाने दिया जाए। लेकिन याद रखिएगा ऐसी दोस्ती को फ्रेंडशिप पर कुर्बान करने में महामानव को एक सैंकिंड की हिचक नहीं होगी, यही महामानव का संदेश है। 

अब ये जो देसी दलाल हैं, इन्होने भी खूब चांदी काट ली है, और अब इन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अब वो पुतिन का तेल खरीद सकते हैं कि नहीं, देश को वैसे ही कोई फर्क नहीं पड़ता, आपको अब भी वहीं 100 रु. लीटर मिलने वाला है, और उसमें भी बीस प्रतिशत गन्ने का रस मिला हुआ होगा। तो आपको कोई फायदा या नुक्सासन नहीं होने वाला है, इसलिए आप इस पर अपना दिमाग खपाना बंद कीजिए। सिर्फ इस बात की खुशी मनाइए कि दुनिया के दो ऐसे लोग, जो खुद को ईश्वर का वरदान मानते हैं, फिर से फ्रेंडशिप के, क्लोज़ फ्रेंडशिप के रास्ते पर अग्रसर हो गए हैं, और वो दिन दूर नहीं, जब आपको एक बार फिर डोलांड और महामानव बगलगीर दिखेंगे और महामानव एक बार फिर कहेंगे


महामानव की ऐसी दोस्ती पर देश की प्रभुसत्ता को भी निछावर करना पड़े तो भी कोई चिंता नहीं होनी चाहिए दोस्तों, हम कहें महामानव से, देश गया भाड़ में आप तो अपनी ये क्लोज़ फ्रेंडशिप बचा के रखो, फिर देखी जाएगी जो होना होगा हो जाएगा।

बाकी चचा ग़ालिब को भी पुतिन का तेल कुछ खास पसंद नहीं था, पर मुश्किल ये है कि उस समय फॉसिल फ्यूल नाम की चीज़ भी नहीं थी, इसलिए थोड़ा कनफ्यूज़न में उन्होने एक शेर कहा है, जो आपकी नज़र है

पुतिन का तेल जो आए, कहीं फ्रेंडशिप की आड़ में
तो उसको मार लात, भेज दे वहीं से भाड़ में
तू अपने देश की इज्जत को भी सरका दे ज़रा सा
कहीं सच दिख ना जाए, ऐसी धका धक उघाड़ में

चचा कहना चाहते थे कि फ्रेंडशिप से बड़ी कोई चीज़ नहीं होती, और क्लोज़ फ्रेंडशिप तो ईश्वर से भी उपर की चीज़ होती है, तो दोस्तों, महामानव और उनके परम मित्र, यानी डीयर फ्रेंड डोलांड की दोस्ती जिंदाबाद, बाकी जो है सो हइये है।

फिर मिलते हैं, नमस्कार। 

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