आसमां उदास है
रंग सियाह सा है
निगाह झुकी-झुकी सी है
यूँ लग रहा है रो देगा अभी
इसे भी तेरी कमी खल रही है शायद
हवा नाराज़ है
सनसनाती हुई चलती है
तीखी आवाज़ करती है
चुभती है, जैसे कोई छेड़ रहा हो
तेरे पास न होने की नाराज़गी है इसे भी
वक़्त भी अनमना सा है
कभी देर तक रुकता है
कभी तेज़ कदम चल देता है
मंज़िल की तलाश भी हो जैसे
और पहुचने की जल्दी भी न हो
दिन गुम है, रात अलसाई है
शाम कुछ जल्द आ गयी है आज
कुछ तो असर है, फ़िज़ां पर
तेरे न होने का
महसूस होता है, बयां नहीं होता