गुरुवार, 31 मार्च 2016

जुगाड़


बहुत सोचा, और सोचने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा कि जो लोग, मुझे पढ़ते हैं, चाहे कोई भी हों, उन्हे मेरे इन जुगाड़ों से भी रू-ब-रू होना चाहिए। हो सकता है आपको अच्छे लगें, हो सकता है आपको अच्छे ना लगें। लेकिन स्वाद तो देख ही लीजिए।
जिन लोगों के लिए लिखा है उनसे ये कहना है कि, अरे भाई औरों को भी पढ़ने दो।



1
कभी यूं ही, ज़रा सा, बेफिकर होकर, बता मुझको
रहे काबू में दिल, तो दिल की फिर बातें नहीं होती

रहेगा हां जमाना सामने अपने कयामत तक
जमाने की जोें सोचें तो अपनी बाते नहीं होती

सभी तो चुप रहे, और चुप जिए, और चुप रहा बाकी
तेरी चुप लाख चाहे, चुप से पर, बातें नहीं होती

वो बोले थे कि नज़रों की यां है जुबां कुछ और
तू मेरी मान, कि आंखों से पर बातें नहीं होती


2
हंसी झूठ, नज़र झूठ, कहा झूठ, सुना झूठ
अदा झूठ, वफा झूठ, तेरी बातों में बसा झूठ

छुपा झूठ को तू चाहे जिस भी पर्दे में
बनेगा पर नहीं वो सच, जो है असल में झूठ

खुदी में सोच, खुदी में बोल, खुदी से बहस भी कर ले
जो सबके सामने आएगा, तो होगा बस यही वो झूठ

कभी अपनी नज़र से देख, तू अपने ही फसाने को
तेरी हर बात नकली है, तेरा हर गाम है बस झूठ


3
रहे दुनिया, मिटे दुनिया हमें क्या फर्क पड़ता है
तू चाहे कुछ भी सोचे पर, हमें क्या फर्क पड़ता है।

सुनहरा हो कि काला हो, फिजां का रंग जैसा हो
ये तेरा रंग हो ना हो, हमें क्या फर्क पड़ता है।

कब किसके काम रुकते हैं, हमारे वां ना होने से
तेरा फिर कुछ भी हो यारा, हमें क्या फर्क पड़ता है।

ना तेरा है, ना मेरा है, किसी का फर्ज हो तो हो
तू अपना मान ले इसको, हमें क्या फर्क पड़ता है।

ये दुनिया यूं भी फानी है, ये दो पल की उम्र है ना
कभी भी छोड़ दें दुनिया, हमें क्या फर्क पड़ता है।

4
नींद क्यूं रात भर नहीं आती

रात की उम्र कटी
फिर से सिरहाने बैठे
उंगलियां फिराते रहे, पेशानी पे
चांद आखों से गुज़र गया यूंही

रौशनी के कतरों को समेटते हुए
दिन के पैबंद लगे हाथों पर
जबसे रखे हैं मैने
वक्त के चंद सिक्के
महाजन बन गई है जिंदगी जैसे
कर्ज पे यादों का व्यौपार चलता है

हर सांस चुकता हुआ उधार है कोई
ब्याज में जाता है
मूल बाकी है, 
जिंदगी का अभी तलक सिर पे
मौत का एक दिन मुअययन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती

5
जो आए थे, वो जाएंगे, ये दुनिया का दस्तूर है जी
तुम बैठे ठाले सोचते हो, रह जाते तो अच्छा होता।

माना कि तुम्हे उम्मीदें थी, पर उनकी भी इच्छाएं हैं
अपनी इच्छा को अपने तक, रख लेते तो अच्छा होता।

जीवन में कब, किसको बतला, दोनो मुकम्मल जहां मिले
दूजा छोड़ो, एक अपना ही रख लेते तो अच्छा होता।

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...