बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

धरती की नाराज़गी

(सभी चित्र गूगल साभार)

लो जी, परधानमंत्री ने ये क्या कह दिया कि भूकम्प का मतलब ये है कि धरती माता नाराज़ हो गई है, लोगों ने आसमान सिर पर उठा लिया। हालांकि सिर पर फेसबुक उठाया है, लेकिन वो भी आजकल आसमान से कम थोड़े ही है। अब इसमें कोई गलत बात तो उन्होने कही नहीं, भई जब किसी बड़े पेड़ के गिरने से धरती हिल सकती है तो, धरती माता के नाराज़ होने से भूकम्प भी आ ही सकता है। परधानमंत्री ने इसके अलावा भी काफी बातें की हैं, लेकिन उन्हे विज्ञान से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता, ये हो सकता है कि वो कुछ बातें विज्ञान से और कुछ बातें पराविज्ञान से लेकर कहते हों, लेकिन ये उनके मन की बात है। मन की बात विज्ञान नहीं होता, विज्ञान तथ्यों और परीक्षणों के परिणामों पर आधारित होता है। 
ये तो आपको मानना पड़ेगा कि भौतिक समस्याओं का ऐसा पराभौतिक हल देने वाले ये देश के पहले परधानमंत्री नहीं हैं, और इनसे पहले ही इस मामले में दूसरे लोग बाज़ी ले जा चुके हैं। इसलिए ये कोई ऐसा महान जुमला नहीं है, और ठीक इसलिए भक्तों ने अब तक ऐसा नहीं कहा है कि, ”भूकम्प की ऐसी परावैज्ञानिक परिभाषा देने वाले ये देश के पहले परधान मंत्री हैं” ये बात इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि इससे पहले काफी काम पहली बार करने वाले ये देश के पहले परधानमंत्री बन चुके हैं। पर मामले को कहीं और ना ले जाते हुए, धरती माता की नाराज़गी की बात ही की जाए तो बेहतर होगा। जबसे मानव सभ्यता पैदा हुई है, मेरा मतलब जबसे हिन्दुओं ने जन्म लिया, ”हिन्दू अक्सर कमल के फूल से, मछली के पेट से, भालू के नाखून से या नाशपाती के बीज से जन्म लेते हैं, इसे अन्यथा ना लिया जाए, इसके काफी प्रमाण मौजूद हैं” तो खैर, जबसे हिन्दुओं ने जन्म लिया है, तभी से ये अटकलें लगाई जाती रही हैं कि धरती शेषनाग के फन पर टिकी है, या कछुए की पीठ पर टिकी है, या किसी के सींग पर टिकी है। योरोपिय विद्वानों का मत इससे भिन्न हो सकता है, मध्य एशिया के विद्वान भी इस थ्योरी से अलग अपनी थ्योरियां दे चुके हैं। तो सवाल है ये कि ये धरती माता किसी के फन पर या पीठ पर या सींग पर बैठेगी तो नाराज़ तो होगी ही। पता नहीं वहां कोई तकिया गद्दा भी है कि नहीं, यूं नाराज़ होने की और कई वजहें हो सकती हैं। लेकिन जिस तरफ परधानमंत्री का इशारा था, वो धरती माता के नाराज़ होने की वजह नहीं हो सकती। परधानमंत्री का इशारा कुछ यूं था कि मेरी या मेरे दोस्तों की, या मेरी पार्टी की, मेरे कामकाज की, बुराई करोगे, या मुझे पंगा लेने की कोशिश करोगे बचा, तो धरती माता नाराज़ हो सकती है, देख लो, अभी तो गुर्राई है, अब चिल्ला भी सकती है। 
परधानमंत्री से ये पूछना तो बनता है कि है कि धरती माता की नाराज़गी की ये कौनसी डिग्री थी। मेरा मतलब अगर ये छोटी नाराज़गी थी तो बड़ी नाराज़गी कैसी होगी। जैसे मान लीजिए कि थोड़ा पीछे जाकर देखें तो विसुवियस के फटने में भी धरती माता की नाराज़गी दिखाई देती है। इधर करीब में देखें तो गुजरात, महाराष्ट्र, नेपाल में भी धरती माता नाराज़ हुई होंगी। वो कुछ बड़ी नाराज़गी लगती है, क्योंकि भूकम्प बड़े थे। अच्छा ये जो उत्तराखंड में आपदा थी वो धरती माता की नाराज़गी थी या असमान चाचा का गुस्सा था जो उन्होने धरती माता पर उतारा। भई हिन्दुस्तानी जनता जानती है कि घर में गुस्सा किसी का भी हो, उतारा मां पर जाता है और उसके खतरे बच्चे झेलते हैं। तो हो सकता है कि सूरज भाई गुस्सा हों, या असमान चाचा, गुस्सा धरती माता पर उतरेगा और झेलना बच्चों को पड़ेगा। 
परधानमंत्री अगर जनता की कुछ मदद कर दें तो क्या जनता का कुछ भला नहीं हो सकता। जैसे वो यही बता दें कि कितने रिक्टर स्केल वाला भूकम्प कौन सी डिग्री वाले गुस्से पर आता है। जैसे 5 से 6 रिक्टर स्केल के भूकम्प में धरती माता सिर्फ डांट रही थीं, और 6 से 7 वाले रिक्टर स्केल में उन्होने चिल्लाया भी था, हो सकता है कि 7 से 8 वाले रिक्टर स्केल में वो कुछ और भी करें। इसके अलावा वो उन कामों की सूची भी निकाल सकते हैं, जिनसे धरती माता नाराज़ हो जाती है। जैसे हत्या, बलात्कार, दंगा, आदि में धरती माता नाराज़ नहीं होती, जाहिर है। परधानमंत्री या उनके दोस्त के किसी चुनाव में हालत पस्त होने पर होती हैं। परधानमंत्री की किसी भी तरह की आलोचना की जाए तो भी धरती माता नाराज़ होकर करवट बदलने लगती हैं। तो अगर ये साफ हो जाए कि कौन काम करने से धरती माता नाराज़ होती है। तो हम वो काम ना करें।
इसमें कोई आश्चर्य की बात है नहीं, धरती माता और परधानमंत्री का रिश्ता बहुत पुराना है। यूं परधानमंत्री और गाय माता का रिश्ता भी पुराना है। इससे इस बात की संभावना भी बनती है कि हो सकता है कि नाराज़ गाय माता होें, और उनके कहने पर बैल ने सिर हिला दिया हो और इससे उसके सींग पर बैठी धरती माता हिल गई हो। आखिर बैल और गाय का रिश्ता तो इंसान और चौपाये के रिश्ते से ज्यादा करीब का रिश्ता होगा ना। पर धरतीमाता और परधानमंत्री के पुराने रिश्ते से याद आता है वो समय जब ये वर्तमान परधानमंत्री परधानमंत्री नहीं थे, सिर्फ महान थे, हालांकि उनकी महानता का पता बाद में ही चला, जब कि वो घर से भाग चुके थे, उनके अपने भाई के कथनानुसार, ”जो कि अफवाह भी हो सकती है, चोरी करके भाग चुके थे” अक्सर महान लोग चोरी करते हैं, कुछ भाग जाते हैं, कुछ घर पर रहते हैं, लेकिन महान बन जाते हैं। लेकिन इस सिद्धांत से ये मतलब कतई नहीं लगाया जाना चाहिए कि हर चोर महान होता है, कुछ चोर जीवन भर चोर ही रहते हैं, कुछ महान बन जाते हैं, कुछ महान चोर बन जाते हैं, और कुछ जैसा कि आप जानते ही हैं......तो बात उस समय की है जब परधानमंत्री परधानमंत्री नहीं थे, सिर्फ महान थे और उनकी महानता इतनी ज्यादा भारी हो गई थी कि धरती माता उसका बोझ सह ना सकीं और उन्होने विनती की कि इस महानता को थोड़ा कम किया जाए, ताकि उनका कुछ बोझा कम हो सके। इसी महानता के बोझ को कम करने के चक्कर में कुछ ऐसे काम किए गए कि धरती माता का बोझा थोड़ा कम हो सके और यूं धरती माता से कुछ निकट के संबंध बने जो आज काम आ रहे हैं। मतलब आप परधानमंत्री की आलोचना कीजिए और धरती माता नाराज़ हो जाती है। धरती माता के नाराज़ होने के और भी कई तरीके हो सकते हैं, लेकिन ये तरीका निश्चित है, यानी इधर आपने परधानमंत्री की आलोचना की, और उधर धरती माता नाराज़। आपको याद होगा मितरों कि उत्तराखंड आपदा के दौरान परधानमंत्री ने अपने निजी हैलीकॉप्टर पर कुछ 30,000 लोगों को बचाया था, और आसमान में घूम-घूम कर धरती माता की नाराज़गी को शांत किया था, और ये भी ना भूलिए कि नेपाल भूकंप के वक्त भी इन्ही परधानमंत्री की कोशिशों से धरती माता की नाराज़गी कम हुई थी। हालांकि गुजरात भूकम्प के वक्त वो नाराज़गी कुछ ज्यादा थी, लेकिन हो सकता है कि वो धरती माता और परधानमंत्री का आपस का मसला हो, उसमें हमें नहीं पड़ना चाहिए। कुल मिलाकर बात का लब्बो-लुबाब ये है कि परधानमंत्री बहुत ही ज्ञानी और महान परधानमंत्री हैं, और इनकी महानता पर शक करने से धरती माता नाराज़ हो सकती हैं। इसलिए इनसे ज्ञान की बातें सुना जाए, उन पर अमल किया जाए। 
रही बात परधानमंत्री के ज्ञान की, तो वो अक्सर अपने ज्ञान की महान बातें, जनता से साझा करते रहते हैं। जैसे कुछ समय पहले उन्होने बताया था कि बारिश होने से गढों में पानी भर जाता है। इस बात को उनके वित्त मंत्री ने ज्यादा गंभीरता से ले लिया और देश भर में जितने भी गढ़ों में पानी भरा था, उन्हे तालाब बता कर बजट में उनकी गिनती करवा दी। इसी तरह उन्होने एक और महान ज्ञान दिया था कि चीनी जो है वो गन्ने से बनती है, हालांकि लातिन अमरीकी केले से भी चीनी बना लेते हैं, पर वो बात फिर कभी, तो जनता ने जाना कि चीनी गन्ने से बनती है। बीच में उन्होेने ज्ञान की बातें कहना कम कर दिया था, जो उनका निजी फैसला था, हालांकि इसका उन्हें बहुत दुख भी हुआ, उन्होने इसकी शिकायत भी की, कि मुझे बोलने नहीं दिया जा रहा है। लेकिन ज्ञान की हमेशा जीत होती है, चाहे चुनावों में धांधली करके हो, या दंगे करवा के हो, लेकिन जीत हमेशा ज्ञान की ही होती है। ये बहुत पुराना माना हुआ सिद्धांत है, जैसे आप एक ज्ञान की बात कह रहे हैं, और आपके सामने आपका विरोधी कुछ अज्ञानी बातें कर रहा है, ऐसे में आपका फर्ज बनता है कि आप वोट पोलराइजेशन करें, जैसे आप ये बयान दे दें कि मंदिर वहीं बनाएंगे, इशारा उसी जगह की तरफ हो, जो पिछले 30 सालों से चिन्हित है, बस वोट पक्के। या आप कहीं दंगे करवा सकते हैं, ना करवा सकें तो दंगों का डर दिखा सकते हैं, वो भी नहीं तो, पाकिस्तान से हमले का डर दिखा सकते हैं, इसी तरह के सौ डर हैं, जिनसे वोटों का धु्रवीकरण हो जाएगा और आपका ज्ञान बाजी मार ही ले जाएगा। अगर इससे काम ना बने तो सिर पे डंडा मारा जा सकता है, अगले को राष्ट्रद्रोही, या नक्सलियों का हमदर्द, या ऐसा ही कुछ बताया जा सकता है, भ्रष्टाचारी बताया जा सकता है, ये एक पुराना आरोप है, जिसे आधुनिक युग में नया जोश और सम्मान मिला है। कोई पुराना घाघ राजनेता टाइप हो तो उसे सी बी आई इन्क्वाइरी का डर दिखाया जा सकता है, और आम इंसान टाइप जीव हो सीधे सिर पर डंडा भी मारा जा सकता है। बात तो आपके ज्ञान की जीत की है, जो किसी भी तरह होनी चाहि। तो परधानमंत्री के इस महान ज्ञान को अज्ञानता की पराकाष्ठा बताने वाले खुद अज्ञानी साबित हो जाएंगे। परधानमंत्री का क्या है, वो तो मन की बातें करते हैं, ज्ञान की बातें करते हैं, और करते रहेंगे। धरती मां भी हैं और रहेंगी, कभी-कभी नाराज़ भी होंगी। जिसका जो मन करता है करे। 

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...