सोमवार, 2 नवंबर 2015

इतिहासकार और चेतन भगत और बहुत कुछ


जाने क्यूं भाई लोग अचानक चेतन भगत पर बिगड़ पड़े हैं। लीजिए....अब आपको ये भी बताना पड़ेगा कि चेतन भगत कौन हैं, लिखाड़ी हैं भौत बड़े, कई तो किताबें लिख मारीं, ऐसी-ऐसी लिखी हैं कि किसी ने पढ़ी भी नीं होंगी जैसी इन्होने लिख दी हैं। दुनिया जहान् की अकल को घुटने के नीचे दबाए रहते हैं, जब जो भी मसला दुनिया के सामने दरपेश आया, झट घुटना थोड़ा सा उंचा करते हैं और एक ज्ञान की बात दुनिया के मत्थे पर मार देते हैं। अभी मार दी एक बात, बोले ये इतिहासकारों का काम क्या होता है, मेरी समझ में नहीं आता। ”हालांकि समझ इनके सबकुछ आता है, ये अंदर की बात है” कहने लगे कि इतिहासकार यूं करते हैं कि अंदाजा लगाते हैं, पहले ये हुआ होगा, फिर ये हुआ होगा, और बस इसी तरह दिन खत्म हो जाता होगा। कहने का मतलब ये इतिहासकार जो हैं, झक मारते हैं, और क्या करते हैं। बस भाई लोगों ने शोर मचा दिया, लोग-बाग जिन्हे इतिहास पसंद है, इतिहास, समाजशास्त्र, साहित्य आदि-आदि फालतू की चीजें पसंद हैं, उन्होने शोर मचा दिया। लेकिन सच कहूं तो चेतन भगत ने कुछ गलत नहीं कहा है। ये इतिहासकार आखिर करते क्या हैं, किसी को पता चला है कभी? हुंह, बनते हैं अपने को पता नहीं क्या....वैसे देखा जाए तो ये सभी लोग जो अपने को कवि, साहित्यकार, विचारक, चिंतक आदि-आदि कहते हैं, ये करते ही क्या हैं? पता नहीं क्यूं सब लोग इन्हे इतना सिर पर चढ़ा लेते हैं। 
लिखना कहते हैं हमारे चेतन भाई के काम को, मनोरंजन का मनोरंजन और काम का काम। इनका लिख ऐसा होता है जैसे एक के साथ दूसरा प्रॉडक्ट फ्री मिलता है, जैसे टाइम भी पास हो, और नींद भी आ जाए। हमारे चेतन भगत भाई ने जो लिखा है वो इतिहास नहीं है, लेकिन स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने वाली चीजें हैं, आप आज उसकी महत्ता नहीं समझ रहे हैं, क्योंकि आप सब बेवकूफ हैं, अभी उनके लिखे का सही मूल्यांकन नहीं हुआ है, मूल्यांकन होने दीजिए, उसे नोबेल मिलेगा, रेड क्रॉस मिलेगा, पद्मभूषण, परमवीर चक्र, भारत रत्म, सोवियतलैंड पुरस्कार, अकादमी अवार्ड, ग्लोडन ग्लोब......और वो क्या होता है, रेड कॉर्नर नोटिस आदि सबकुछ मिलेगा। अभी बस एक बार मूल्यांकन हो जाने दीजिए। अभी तो एक ही मिला है उन्हे अवार्ड, वो क्या है.....मेन्स वाला.....बुकर वाला....हां...अभी मूल्यांकन होने दीजिए बस।
भारत में क्या कहिए आज के हालात बहुत खराब हैं। लोग व्यक्तिगत विरोध को, नापसंदगी को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं। हुआ यूं कि, एक दिन ये सारे इतिहासकार, फिल्मकार, संस्कृतिकर्मी, साहित्यकार, पत्रकार, आदि मिले और इन्होने सोचा, ”मतलब ऐसे ही सोचा, क्योंकि काम तो इनको कोई होता नहीं है” कि नरेन्द्र मोदी से नफरत की जाए, ”आप पूछ सकते हैं, नरेन्द्र मोदी से ही क्यों? लेकिन कोई जवाब नहीं मिलेगा” अब इतना साफ-सुथरा, सीधा-सच्चा, ईमानदार, व्यक्ति, और उससे नफरत, पर ये सब बेकार के, बेकाम के, इतिहासकार, फिल्मकार, संस्कृतिकर्मी, साहित्यकार, पत्रकार, आदि होते ही ऐसे हैं। खैर, तो दूसरे दिन से इन्होने नरेन्द्र मोदी से नफरत करना शुरु कर दिया। सबने एक-एक करके अपने पुरस्कार, जो दया करके राज्य की तरफ से इन्हे दिए गए थे, वापस लौटाने शुरु कर दिए। ”सच कहूं तो राज्य जिसे भी पुरस्कार दे, उससे एक शपथपत्र भरवा लेना चाहिए, कि कभी राज्य या सरकार के बारे में कुछ उल्टा-सीधा नहीं बोलेगा।”  बताइए एक तो दया दिखाते हुए इन नालायकों को पुरस्कार दो, फिर इनकी झें-झें भी सुनो। कुछ समझदार लोग, जैसे अनुपम खेर, आदि इन पागलों से दूर ही रहे, इतिहास में अनुपम खेर जैसे समझदार बहुत कम हुए हैं, लेकिन जो भी हुए हैं, उन्होेने अपने वक्तों का बहुत फायदा उठाया है। अंग्रेजों के जमाने में जागीरदारी ले ली, सर का खिताब ले लिया, अब राज्यसभा की सीट कहीं नहीं जाती, बाकी काफी सारे पुरस्कार हैं ही, ऑनरेरी अवार्ड हैं, आदि-आदि हैं। सरकार की तरफ रहो, तो दूरदर्शन में, फिल्म बोर्ड में, सेंसर बोर्ड में, जगह मिल ही जाती है। अब गजेन्द्र चौहान का देख लो, है किसी करम का, लेकिन बस ठाठ कर रहा है बैठा हुआ, ये सरकार की तरफदारी का इनाम है। 
खैर, विषय पर वापस आते हुए, चेतन भगत ने कुछ गलत नहीं कहा है। बल्कि वही कहा है जो अरुण जेटली एंड कंपनी लगातार कह रही है। असल में ईमानदारी से देखा जाए तो राज्य को आखिर सोचने समझने वालों की जरूरत हो ही क्यूं। ऐसे लोग समाज में क्यूं हों, जो जनता को उसके अधिकारों के बारे में, उसकी आज़ादी के बारे में, और बाकी चीजों के बारे में बताए। एक बात बताइए ईमानदारी से, यानी सोच-समझकर, सरकार चलाने के लिए किन चीजों की जरूरत है। बताइए, एक तो चाहिए पैसा, क्योंकि पैसा चाहिए ही चाहिए, वो मिलता है पूंजीपतियों से, दूसरा चाहिए काम करने वाले, यानी मजदूरों, किसानों से, बाकी कुछ क्लर्क आदि भी चाहिएं, लेकिन ऐसे नहीं जो ऑफिस के अतिरिक्त कुछ सोचें। यानी  शासक हो, प्रशासक हों, व्यापारी हों, मजदूर हों, पुलिस हों, सेना हो और बस। इनके अलावा आप बता दीजिए किसी और की जरूरत हो तो? अगर मान लीजिए कुछ मजा-मनोरंजन करना हो तो ऐसे ही होने चाहिए भांड-चारण, जैसे चेतन भगत हैं या अनुपम खेर हैं। और किसी की जरूरत ही क्यों हों। इसीलिए सरकार तमाम संस्थानों को, और अन्य कार्यस्थलों को ऐसा बना रही है ताकि छात्र हों या शिक्षक, या कोई और यहां तक कि किसान, मजदूर, ठेकामजदूर, घरेलू कामगार, यानी सभी, मशीन हो जाएं, जो बिना सोचे-समझे काम करें, और कुछ ना करें। 
अभी तवलीन सिंह ने लिखा, लोग बेकार ही अभिव्यक्ति की आज़ादी का रोना रो रहे हैं। इतनी आज़ादी तो आज तक किसी भी पी एम के वक्त में नहीं मिली, अरुण जेटली ने दोहरा दिया। मैं सहमत हूं। असल में आप समझते हैं कि अभिव्यक्ति की आज़ादी तभी होगी जब आपको बोलने दिया जाएगा। मैं कहता हूं कि अभिव्यक्ति की आज़ादी नाम के साथ थोडे़ ही आती है कि भाई कपिल बोलेगा तभी होगी अभिव्यक्ति की आज़ादी, अब चेतन भगत बोल रहे हैं, अनुपम खेर, तवलीन सिंह, अरुण जेटली, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, साध्वी, रामदेव, साधु, तमाम लोग, बोल रहे हैं, जो मुंह में आ रहा है वो बोल दे रहे हैं, तो ये क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है। अब उनकी आज़ादी के रास्ते में आपके अधिकारों को, जैसे जीने के अधिकार को, रुकावट नहीं बनने दिया जा सकता, इसलिए आपको एक-एक करके मार दिया जा रहा है।  कुल मिलाकर आपको ये तकलीफ हो रही है कि इन लोगां को आज़ादी क्यों मिल रही है, हां......सारा मामला आपकी नापसंदगी का है, आपको ना जाने क्यूं नरेन्द्र मोदी पसंद नहीं है। तवलीन सिंह को, अरुण जेट ली को, गडकरी आदि को यही समझ नहीं आ रहा कि आप लोगों को आखिर नरेन्द्र मोदी पसंद क्यों नहीं हैं। 
खैर ऐसी की तैसी आपकी, आप पसंद करें, नरेन्द्र मोदी को या ना करें, चाहे जो भी करें, लेकिन ये ना करें। मेरा मतलब है, पढ़ना-लिखना बंद करें। अव्वल तो पढ़ने-लिखने की जरूरत नहीं है। रोज सैंकड़ों-हजारों की संख्या में किताबें छप रही हैं, उन्हे ही लोग पढ़ लें बहुत है। और रही ज्ञान की बात तो ज्ञान था सदियों पहले हमारे देश में, उसे किताबों में डाल दिया गया है। वेद, पुराण, मनुस्मृति और गीता-रामायण आदि हैं, जिनमें सारा, ज्ञान-विज्ञान-समाजशास्त्र-साहित्य-कला-संस्कृति-दर्शन, आदि समाया हुआ है, और अब और किसी की जरूरत नहीं है। ना तुम्हारी ना तुम्हारे लिखे की, इसलिए चेतन भगत ने लिखा कि उन्हे समझ नहीं आया कि इतिहास कार करते क्या हैं। धन्य हैं, चेतन भगत, जो चैन से रहते हैं, इतिहास, राजनीति की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखते और जब जैसा मौका होता है, वैसा बोल देते हैं, तवलीन सिंह हैं, जो दो ही टाइम में जीती हैं, इमरजेंसी या आज, बीच का सारा वक्त इन्होने सो कर गुज़ारा है, इसलिए जैसा दिखता है, उलटा-सीधा लिख मारती हैं। चाहे उसका कोई मतलब बने या ना बने। 
कुल मिलाकर दोस्तों बहुत हसीन वक्त है, अब देखना सिफ ये है कि ये लेखक-फेकक, कवि-फवि समझते हैं, चेतन भगत, तवलीन सिंह और अनुपम खेर की बात ये उन्हे अपने ”खास” संस्कृति कृमियों को भेज कर समझाना पड़ेगा””a

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