शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

सत्यनारायण की कथा और भाजपा




मैं नास्तिक हूं। ये घोषणा सबसे पहले करने के पीछे वजह है, कहीं भाई लोग किसी एक धर्म विशेष से ना जोड़ दें। खैर, सत्यनारायण की कथा मुझे बुरी तरह याद है। कारण कि मैं जब भी अपने बच्चों को धर्म की बकवास के बारे में बताता हूं तो सत्यनारायण की कथा सबसे बढ़िया उदाहरण की तरह सामने आती है। पूरी कथा में कहीं कथा नहीं है। पंडित शुरु करता है, इसने कही, इसने सुनी, जिसने कही उसका भला, जिसने सुनी उसका भला। बढ़िया, अब पंडित जी कथा भी बताएंगे। राजा मकरध्वज से लेकर लीलावती-कलावती तक, हर जगह, इसने कही तो अच्छा हुआ, उसने सुनी तो अच्छा हुआ, इसने नहीं सुनी तो बुरा हुआ, उसने नहीं सुनी तो बुरा हुआ। एक बेचारे की तो नाव इसलिए डूब गई कि उसकी पत्नि ने प्रसाद नहीं खाया था। पूजा के साइड इफेक्टस्, लिटरली। कथा खत्म हो गई, पर सुसरी कथा ना मिली। पंडित पूरी कथा में ये बताता रहा कि प्रसाद कैसा हो, चरणामृत में क्या हो, पंडित को क्या मिलना चाहिए। नहीं बताता तो वो जिसके लिए बैठा है, यानी कथा। और सुनने वाले बैठे हैं, आंख मूंदे तल्लीनता से वही लगाई-बुझाई कथा के नाम पर सुनते रहते हैं। शायद हमारे भी दिन फिर जाएं, कथा सुन लो, या कथा के नाम पर जो भी सुनाया जा रहा है, सुन लो, पंडित जी अपनी अशुद्ध संस्कृत में जो भी श्लोक बोलें उन्हे श्रृद्धापूर्वक सुन लो, तुम्ही कौन विद्वान हो जो जानते होवोगे। और वो पंडित, क्रियाकर्म के श्लोक बांच कर भी चला जाए तो खुश हो जाओ कि जो भी हो, पंडित ने सत्यनारायण की कथा में भी संस्कृत के दो-चार श्लोक तो बोल ही मारे। अब ऐसे में मेरे जैसे किसी नास्तिक ने पंडित से सवाल कर लिया, कि पंडित जी, घंटा हो गया बैठे-बैठे, कथा नहीं सुनाई तुमने, तो पंडित समेत बाकी सब मेरे सिर पर जो भी मिले मारने को तैयार। तेरा कुछ हो नहीं सकता, तेरा बुरा होगा, और जो बुरा होगा उसका शब्द-चित्रों के साथ वर्णन......खैर। 
अब ये प्रसंग इसलिए कि भाजपा के कारनामें भी कुछ ऐसे ही हैं, बिल्कुल सत्यनारायण की कथा जैसे। बात विकास से शुरु हुई थी और विकास के अलावा और सबकुछ हो रहा है यहां। गाय का मांस, बी टी कपास, अमेरिका की दोस्ताना घुसपैठ, अडानी-अम्बानी पर भारत माता की असीम कृपादृष्टि, और भी ना जाने क्या-क्या। भारत माता की जय, राष्ट्रभक्ति-राष्ट्रविरोध, मेक इन इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया। सब कह रहे हैं, उसने नाम लिया, पूजा की, भक्ति की इसलिए उसे नौकरी मिल गई, वो इसलिए गर्वनर हो गया, क्योंकि उसने बड़ी आस्था से बिना कुछ आगा-पीछा सोचे भक्ति की, देवता के चरणों में श्रृद्धा-सुमन, और जो भी था, आचार-विचार-नीयत सब डाल दी, और देखो कहां से कहां पहुंच गया। 
उसने हैलीकॉप्टर दिए तो देखो आज राजा बना घूम रहा है, उसने पैसा दिया, तो देखो उसके दोनो हाथ घी में हैं। बाकी भक्त भी लगे हुए हैं, उसी श्रृद्धा भाव से, शायद भक्ति भाव से कथा सुनने की इस आस्था के फलस्वरूप उनके हाथ भी कुछ लग जाए। लेकिन असली कथा कहीं नहीं है, जो कथा सुनाने का वादा हुआ था, उसका कहीं कुछ पता नहीं, और जब उसके बारे में पूछो तो लोग सिर काटने को तैयार दिखाई देते हैं। 
चल रही है कथा, सारे पंडित लगे हुए हैं, सब अपने तरीके से कथा बांच रहे हैं, जो असल में असली कथा की ब्रांच लाइने हैं। इस कथा में मकरध्वज का प्रसंग भी है और लीलावती कलावती का प्रसंग भी है। जैसे ही कुछ गड़बड़ होती है कलावती फौरन जाकर प्रसाद ग्रहण करती है और उसकी डूबी हुई नैया वापस उपर आ जाती है। बाकी वो लोग भी हैं, जो इस कथा में विश्वास नहीं करते, वे असल में जेल जाते हैं, रास्तों पर पीटे जाते हैं, उन पर पत्थर चलाए जाते हैं, उन्हे राष्ट्रविरोधी करार दिया जाता है। वो लोग पूछते हैं, ”पंडित जी, कथा कहां हैं”, और पंडित जी कहते हैं, ”मूर्ख, आस्था पर प्रश्न नहीं किया करते। जो सुनाया जा रहा है उसे ही कथा मानों, चरणामृत लो और घर जाकर भगवान की कृपादृष्टि का इंतजार करो।”
अभी ये देश एक बहुत बड़ा कथामंडल हो गया है, हजारों लोग सत्यनाारायण की झूठी कथा बांच रहे हैं, लाखों लोग सुन रहे हैं, और भक्तिभाव से आंखे मूंदे भगवान की कृपा का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन कथा नहीं है, सिर्फ यही है कि उसे देखो, कथा सुनी थी, भक्ति की थी, बन गया, और उसे देखो, उसने कथा नहीं सुनी, प्रसाद ग्रहण नहीं किया, तो सी बी आई की रेड पड़ गई, बैंक खाता सील हो गया, बरबाद हो गया। अब पूरी जिंदगी मुकद्में झेलेगा। 
बहुत पहले की बात है, एक दिन रास्ते चलते एक आदमी ने बिना कुछ कहे-सुने मेरे हाथ में एक परचा थमा दिया था। परचे में लिखा था कि फलां गांव में एक आदमी को रात को सपने में एक सांप दिखा, जिसने उसे कहा कि वो एक हजार पर्चे छपवा कर बांटे तो उसका अच्छा होगा, आदमी ने उसे सपना समझ कर भुला दिया, तीसरे ही दिन उसका बेटा बीमार पड़ गया। तब आदमी को सपना याद आया, ”डॉक्टर नहीं” तब उस आदमी ने पर्चे छपवाकर बांटे तो उसका बेटा चंगा भी हो गया और उसकी नौकरी भी लग गई। अब उसके बाद और भी कथाएं थीं कि फलां ने बांटा तो अच्छा हुआ, ढिंका ने नहीं बांटा तो बुरा हुआ। लब्बोलुबाब ये कि तुम भी बांटों, नहीं बांटोगे तो बुरा होगा। मैने पर्चा पढ़ा और नाली में फेंक दिया। उसके तीस साल बाद मेरे पिता की मृत्यु हो गई, शायद पर्चा छपवा देता तो नहीं होती। करता है, भगवान कभी-कभी बदला लेने के लिए तीस साल का इंतजार भी करता है। 
खैर, कहना मैं ये चाहता हूं कि ये पर्चा असल में सत्यनारायण की कथा का संक्षिप्त संस्करण था और, देश में जो चल रहा है वो सत्यनारायण की कथा का वृहद-विस्तृत संस्करण है। सारा देश एक ऐसी कथा के इंतजार में है, जिसका वादा कथा के पहले किया गया था। अथ श्री फलां-फलां कथा.......और उसके बाद से लगातार यही चल रहा है कि यहां देखो अच्छा हुआ, क्योंकि प्रसाद ग्रहण किया था, यहां बुरा हुआ क्योंकि प्रसाद ग्रहण नहीं किया। 
कथा लंबी है, सत्यनारायण की कथा हमेशा इतनी ही उबाउ हुआ करती है। लेकिन देश की इस कथा में बीच-बीच में कुछ उत्तेजना भी हो जाया करती है, जैसे अभी पनामा पेपर्स मामले में हो गया है, थोड़ी बहुत उत्तेजना, जे एन यू, एच सी यू, जैसे मामले भी पैदा कर लेते हैं। इससे कथा में थोड़ी जीवंतता बनी रहती है, वरना सेल्फी विद डॉटर्स टाइप कथाओं से एक खास किस्म की नीरसता आ जाती है। 
सत्यनारायण की कथा में सबर सिर्फ इस बात का रहता था कि कथा के अंत में प्रसाद और चरणामृत टाइप मिलेगा, पर देश की वृहद कथा के अंत में तो उसका भी कोई भरोसा नहीं है। अभी तो सुन रहे हैं, कथा, मजबूरी में। 

सोमवार, 11 अप्रैल 2016

मर्ज़ी भगवान की.....कारस्तानी इंसान की


जब पुल टूटा तो उन्होने कहा कि ये भगवान की मर्जी है। चुनाव के दौर में वैसे भी जिससे मिल जाए मदद ले लेनी चाहिए......उनका कहना था कि भगवान भी यही चाहते हैं कि ममता बंगाल में हार जाए। ठीक भी है, हो सकता है कि भगवान यही चाहते हों, आखिर वो भगवान से सीधे बातें करते हैं। क्या बातें करते हैं वो ही जाने, उनके भक्त हमें लगातार यही विश्वास दिलाते रहे हैं कि 1. वो भगवान का प्रसाद हैं, 2. वो भगवान का अवतार हैं 3. वो खुद भगवान हैं। इस तर्क से देखा जाए तो ये सारा किया-धरा उन्हीं का है। ये मैने नहीं कहा, मैने तो सिफ दो जमा दो करके जवाब चार निकाला है। अभी कोलकाता में पुल गिरा, भगवान की मर्जी से ही सही, लेकिन केरल में खुद भगवान के घर में आग लग गई, इसमें भी सरासर भगवान की मर्जी रही होगी। अपना घर फूंक के तमाशा देखना और किसी और के बस में हो तो बताइए। आज भले ही प्रॉपर्टी के रेट डाउन हैं, लेकिन तो भी घर मिलना कितना मुश्किल है, ये आम आदमी ही बता सकता है। तो ऐसे में बस दो ही तरक के लोग हो सकते हैं जो अपना घर फूंक के तमाशा देखें, एक भगवान और दूसरे जो खुद को भगवान से भी दो-चार हाथ उपर समझते हैं। 
आप क्या समझे मुझे मालूम नहीं है। खैर, मेरा सवाल कुछ और था, आज के एक्सप्रेस में जहां केरल के मंदिर की आग पर विस्तार से रिपोर्ट थी वहीं कहीं एक छोटी सी खबर ये भी थी कि संसद भवन की एनेक्सी में आग लगी। अब जब हम पुल गिरने जैसी घटना के पीछे चुनाव में किसी एक पार्टी की हार जैसा तर्क दे रहे हैं तो भई संसद भवन की आग के पीछे भी तो कोई तर्क होगा। मेरी साधारण बुद्धि तो यही कहती है कि लगे हाथ उनसे पूछ लिया जाए कि, इस पर भी कोई ब्रहम् वाक्य बोल ही दीजिए। क्या है ना कि भक्तों को सुभीता हो जाता है। वो वैसे ही अपना दिमाग चलाने से बाज़ आए लोग हैं, आप कुछ ज्ञान ढीला करेंगे तो वे उसे ही लपेट लेंगे, सुभीता रहेगा। वैसे भी संसद भवन की आग में कोई हताहत नहीं हुआ है, लेकिन जैसे कोई एक हादसा भगवान की मर्जी से हुआ है वैसे ही दूसरा हादसा भी तो भगवान की मर्जी से हुआ होगा। तो अब बताइए, संसद भवन की आग से भगवान आखिर क्या संदेस देना चाहता होगा। आप काफी अक्लमंद हैं समझ जाएंगे। 
इधर मध्य प्रदेश में भी सुना है हादसा हुआ और काफी लोगों के मरने की खबर है। भगवान भी अजीब मजाक कर रहा है, बंगाल, केरल, आदि राज्यों में हादसों के पीछे भगवान की मंशा समझ में आती है कि भगवान वहां सरकार बदलना चाहता होगा, लेकिन इधर संसद भवन में भी भगवान आग लगा दे रहा है, उधर मध्य प्रदेश में भी हादसा करवा दे रहा है। मुझे लगता है कि अब तब भक्त लोग भगवान की फिरकी ले रहे थे, अब भगवान खुद भक्तों के प्रिय भगवान की फिरकी ले रहा है। बड़े तो बड़े छोटे भगवान ने भी संसद भवन की आग और मध्य प्रदेश के हादसे पर अपनी जुबान नहीं खोली। 
कहीं भी किसी भी हालत में हो, हादसे में कोई मरता है तो हमें दुख होता ही है, दुख की घड़ी में हम निक्कर पहनते हैं। और हादसे में फोटो खिंचवाने या बयान देने चले जाते हैं। वो अपने साथ डॉक्टरों की भीड़ लेकर गए थे, केरल में ताकि भगवान के घर की आग से जिस-जिस को नुक्सान हुआ हो, उसे इलाज मिल सके। लेकिन ठीक इसके पहले उन्हीं की पार्टी के लोग, भगवान के घर में आतिशबाजी की इजाज़त ना देने वाले मुस्लिम पदाधिकारियों के खिलाफ साम्प्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश कर रहे थे। अब वो क्या करेंगे, बल्कि बड़ी बात है कि अब भक्त लोग क्या ट्वीट करेंगे। अब ये लोग किसकी मां-बहन को गालियों से नवाजेंगे, अब किसके शरीर के अंग विशेष को निशाना बनाया जाएगा। इनकी तो मुसीबत हो गई, खैर हो कि स्वामी जल्दी से कोई ट्वीट करें, जिसमें सीरिया की किसी मस्जिद की आग को या वहां के किसी समारोह को भारत के किसी मस्जिद का फोटो बताया जाए और उसके ज़रिए अफवाह फैलाई जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ है तो देख लीजिएगा जरूर होगा। 
और सबसे बड़ी बात, अनुपम खेर कहां रह गए। या वो सिर्फ कैंपस मामलों के विशेषज्ञ हो गए हैं। जे एन यू चले गए, फिर श्रीनगर चले गए, खुद को राष्ट्रीय मामलों का विशेषज्ञ बनाने का उनका ये जो हालिया जुनून है, जरूर किसी बड़े षड्यंत्र का पुर्वाभास है। क्योंकि और किसी हादसे पर ना उनका ट्वीट चलता है और ना जुबान। खैर खेर की बात चली है तो दूर तलक जाएगी, मंदिर हो या मध्य प्रदेश उनसे किसी बयान की या कम से कम संवेदना वाले संदेश की भी उम्मीद मत कीजिएगा, उनकी संवेदना राष्ट्रीय और राष्ट्रविरोधियों तक ही सीमित है। 
चुनावी बेला चल रही है, जिन-जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, हो रहे हैं, और हो रहे हैं वे सब अपनी खैर मनाएं, अभी धरती वाले भगवान और उपर वाले भगवान जाने क्या-क्या कहर बरपा करने वाले हैं, भगवान ही जाने, या......आप खुद समझदार हैं। 

सोमवार, 4 अप्रैल 2016

जय हो भारत माता की.....



बहुत शोर मच रहा है यार.....चारों और भारत माता, भारत पिता, भारत चच्चा की जय का शोर मच रहा है। लोग लिखे दे रहे हैं, मार कागज काले कर दिए, कोई भारत का हिस्ट्री खंगाल दे रहा है, कोई माता के मायने समझा रहा है, कोई भारत की मां और मौसी के रिश्ते की फोरेंसिक जांच में पिला हुआ है। भले लोगों ने कई किताबें पढ़ डालीं, उधर कई लोग एक साथ कई मंचों पर चिल्ला रहे हैं, हाथ काटे जा रहे हैं, सिर काटने की घोषणाएं हो रही हैं। किसी को विधानसभा से निलंबित कर दिया, किसी का देश छोड़ने की धमकी दे दी। और कुछ नहीं चाहिए, बस्स्स्स.....चाहिए भारत माता की जय। जो बोले सो निहाल, जो ना बोले उसे भारत से बाहर निकाल। छोटे-छोटे बच्चे जिन्हे ना भारत से कोई मतलब ना भारत की मां से, गली-कूचों में जिसे मर्जी पकड़ ले रहे हैं, बोल बेट्टा जै भारत माता की.....नईं बोलेगा....ले बेट्टा.....और आस-पास से निकलने वाले टुकुर-टुकुर ताक रहे हैं, किसी को उन्हे रोकने की हिम्मत नहीं हो रही, कल को कहीं उनका नंबर ना आ जाए। यही लड़के अपनी इस गुंडागर्दी से जो हिम्मत जुटा रहे हैं, उसे कल लड़कियों को गली में घेरने में इस्तेमाल करेंगे, और जो लोग आज इस मामले में चुप रह जाने में अपनी भलाई समझ रहे हैं, ”मैं बच गया” से खुश हो रहे हैं, वो जो कायरता कमा रहे हैं, जो डर जमा कर रहे हैं, वो कल इन लड़कों की गुंडागर्दी के काम आएगा।
हम क्या करें, भारत माता के मायने समझाएं, अपने तौर पर ये समझाने की कोशिश करें कि ”यूं तो हमें भारत की या भारत माता की जय बोलने में कोई एतराज नहीं है, पर अभी यूं नहीं बोलेंगे कि तुम बोलने को कह रहे हो....” या फिर मान लो बोल ही दें, भारत माता की जय, बोलने में क्या जाता है और ना बोलने में भी क्या जाता है। ना पहले कभी जाता था और ना अब कोई फर्क पड़ता है। जो बोलते हैं असल में उन्हे भी कोई फर्क नहीं पड़ता, बोल कर भी वो वही सब कुकर्म या कर्म करेंगे जो ना बोल करते, या करते हैं। 
असल में भारत मां की जय बुलवाने की जर्बदस्ती, बलात्कार जैसी है। यहां कन्सेंट का कोई मतलब नहीं है। पूरा मामला सत्ता का है, पॉवर का है। बोलो.....वरना तुम्हारी ऐसी-तैसी फेर दी जाएगी। हाथ तोड़ दिया जाएगा, जिंदा जला दिया जाएगा, गर्दन काट ली जाएगी। बोलो बेट्टा......बड़ी बात ये है कि आज, इस वक्त, देश का हर तबका यही कर रहा है। गली में नुक्कड़ पर गुटका खाकर थूकते हुए हर लड़की को घूरने की अपनी रोज़मर्रा की आदत के सदके गुंडई को अपना पेशा बनाने का सपना देखने वाले चिरकुटों से लेकर, कॉलेज की राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान बनाने का सपना देखने वाले मूर्खों तक, और किसी तरह जोड़-जुगाड़, तलवाचाटू कार्यों के सहारे किसी पद तक पहुंचने वाले सभी.....
असल में मामला ये है ही नहीं कि भारत की ये माता कहां से आई, इंग्लैंड से आई या जर्मनी से आई, मामला ये भी नहीं है कि झंडा भगवा हो कि तिरंगा हो, मामला कुछ और ही है। मामला रोमन साम्राज्य के सीज़र की एक महान उक्ति से निकला हुआ है, मामला शरद जोशी द्वारा लिखित नाटक ”एक था गधा....” के नवाब के संवाद जैसा है। सीज़र ने रोमन साम्राज्य में खेलों की शुरुआत करते हुए कहा था,” जनता को ऐसे मुद्दों में उलझाए रहो जिनका सत्ता और राजनीति से कोई मतलब ना हो, जैसे उन्हे एक नकली राष्ट्र नायक दे दो, जिसके नाम पर वो एक-दूसरे का खून तक करने को तैयार हों, यानी उन्हे ग्लैडिएटर दे दो, जो खुद अपनी जान बचाने को लड़ते हों, और वही जनता के नायक बन जाएं। इसी तरह एक था गधा का नवाब कहता है, कि ”हुकूमत का पहला उसूल ये है कि आम आदमी को बेवकूफ बनाए रखो” बड़ा ही स्पष्ट दर्शन है। 
ये बेवकूफी और किसी तरीके से हो ही नहीं सकती, धर्म तो आप चला ही रहे हो, अब राष्ट्र का सिक्का भी लगे हाथों चला कर देख ही लो। क्या कहते हो। भारत माता की.....अरे ये तो मान लीजिए एक नारा है, ये ना होता तो कोई दूसरा नारा होता, और मान लीजिए ना होता। सवाल तो राष्ट्रप्रेम को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने का है। वो किसी भी प्रतीक से बन सकता है। मान लीजिए कि कल कोई नेता यही बयान दे दे कि जो रोज़ मिट्टी का तिलक अपने माथे नहीं लगाता वो देश द्रोही है। अब लगेंगे सारे ये खोजने कि मिट्टी से तिलक करने की परंपरा भारतीय है या नहीं, या कुछ लोग नकली गुस्से में चीखेंगे ”ताकी अखबार में उनका बयान आ जाए” कि वो मिट्टी से तिलक नहीं लगाएंगे और इसके लिए कोई उन्हे मजबूर नहीं कर सकता। अब जिन्होने तिलक लगाने की बात की, उन्हे भी पता है कि किसी को मजबूर नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसके लिए कोई कानून है ही नहीं, बन भी नहीं सकता। और जो मना कर रहे हैं, उन्हे भी पता है कि ऐसा नहीं होने वाला। लेकिन सवाल तो जनता का है, जो इस मुद्दे के सामने दाल की बढ़ती कीमत की बली चढ़ा देगी। तो मामला ये है कि ”......आम आदमी को बेवकूफ बनाए रखो” लेकिन हमारे देश के बुद्धिजीवी, आपको इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र और वो तमाम चीजें पढ़ाने लगेंगे कि मिट्टी से तिलक लगाना कोई परंपरा है या नहीं, भारतीय परंपरा है या नहीं, या ऐसे ही और लटके......
जब दाल की कीमतें नीचे आने का नाम ना लें, और छज्जे पर खड़ी टुकुर-टुकुर आम आदमी को ताकती रहें, जब पैट्रोल की कीमत में आग लगे और पैट्रोल खुद उसे बुझाने में लाचार दिखे, जब देश का ये बुरा हाल हो कि गरीब किसान, दलित छात्रों, को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़े, जब हर रोज़ किसी को मारे जाने की या किसी की आत्महत्या की खबर आ रही हो, तब भारत माता की जय का नारा लगाना खुद देश का अपमान करने के अलावा कुछ नहीं है। लेकिन सत्ता के लिए तब यही नारा, राष्ट्रवाद का नारा संकटमोचक साबित होता है। मेरी तो आपसे यही गुज़ारिश है कि इस चक्कर में ना पड़िए, जो भी कहे उसे कहिए कि भाई हालात ठीक होंगे तो लगा भी देंगे नारा, अभी तो दाल-रोटी का जुगाड़ होने दो। फिर देखेंगे कि भारत......माता है या किसी और जिंस की जय बोलनी है। 

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...