बुधवार, 15 जून 2016

हरामी


आसमान बादलों से भरा हुआ था, सुबह से लग रहा था कि बारिश होगी। उमस ऐसी गजब थी कि कमीज़ के बटन बंद करने से पहले वो पूरी भीग जाती थी। उसने एक बार पर्दा उठाकर खिड़क से बाहर झांका, और फिर पर्दा पूरा खोल दिया। हवा नहीं चल रही थी, फिर भी बंद कमरे से तो खुला कमरा अच्छा ही होता, चाहे कहने को ही सही.....
पिछले 7 साल से वो दिल्ली में था, और उसे खुद कभी इतनी गर्मी नहीं लगी थी जितनी इस साल लग रही थी। जाने मौसम को क्या हो गया था, मौसम विभाग लगातार बारिश की भविष्यवाणी कर रहा था और बारिश लगातार मौसम विभाग को और साथ-साथ लोगों को धोखा देती आ रही थी। पिछले एक हफ्ते से मौसम का ये हाल था कि कभी लगता था बारिश हुई कि हुई, और फिर ऐसी कड़क धूप होती थी कि तौबा भली.....और धूप ही हो, कम से कम हवा तो चले, बादल हो जाते थे तो हवा चलनी भी बंद हो जाती थी और पसीने के मारे बुरा हाल हो जाता था। 
आज तो उसे अपने कपड़ों का ज्यादा ध्यान रखना था, आज उसकी जिंदगी का एक बहुत महत्वपूर्ण फैसला होना था, आज वो मिताली के घर जा रहा था, उसके मां-पिता से मिलने। मिताली से वो तीन साल पहले मिला था, एक कॉन्फ्रेंस के सिलसिले में वो और मिताली साथ ही पूना गए थे, वहीं परिचय हुआ और चार दिन की कॉन्फ्रेंस में दोनो को ही समझ में आ गया कि दोनो एक दूसरे को पसंद करते हैं। वापस आकर लगा ही नहीं कि रिश्ता कायम करने के लिए कुछ खास करना होगा। दोनो ऐसे एक दूसरे से मिलने लगे जैसे बरसों से जानते हों। ऑफिस से निकलना, मिताली के साथ घूमना, छुट्टी के दिन मिताली के साथ घूमना, या फिर मिताली यहां आ जाती थी, उसके कमरे पर। जो अब थोड़ा-थोड़ा घर लगने लगा था। वो फितरत से ही थोड़ा लापरवाह था, कौन से कपड़े पहनने हैं, क्या खाना है, इसकी उसने कभी परवाह नहीं की। ना ज़रूरत थी ना सलाहियत, और जब सलाहियत हो गई तो आदत गहरी पैठ चुकी थी। 
छ साल का था जब उसकी मां की मौत हुई थी, उसे वो दिन वैसा का वैसा याद है। रोया नहीं था वो, उसे पता ही नहीं था कि मां की मौत से उसकी जिंदगी पर क्या फर्क पड़ने वाला है। घर में रिश्तेदारों और पड़ोसियों की भीड़ जमा था और उसकी मां नीचे एक लकड़ी की सीढ़ी पर सफेद चादर ओढ़ कर लेटी थी, हालांकि उसे पता था कि मां को चादर मुंह पर लेकर लेटना पसंद नहीं है, वो कहना भी चाहता था कि मुंह से चादर हटा दो, लेकिन आसपास इतने सारे बड़े लोग थे कि उसने चुप रहना ही ठीक समझा। लोग आते थे और बड़े अजीब तरीके से उसके सिर पर या गाल पर हाथ फेरते थे, फिर चले जाते थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसा क्या हो गया। उसने फिर नीचे देखा तो अपने पिता को सिर झुकाए बैठे देखा। 
बहुत गुस्से वाले थे पिता, सब जानते थे कि पिता को अगर गुस्सा आ गया तो वो किसी को नहीं बख्शते, उसने खुद कभी पिता को चिल्लाते या किसी को मारते नहीं देखा था, पर उसे उनसे बहुत डर लगता था। वो बहुत बड़े थे, बहुत बड़े, और उनका चेहरा भी बहुत कठोर था, जब वो आंख तरेर कर उसकी तरफ देखते थे तो उसके औसान ख़ता हो जाते थे। लेकिन ये भी सच है कि उसके पिता ने कभी उसे मारा नहीं था, कभी नहीं। 
उसे कभी पता नहीं चला कि मां के साथ उन लोगों ने क्या किया, हालांकि बाद में उसे समझ में आ ही गया, कि मां की चिता जला दी गई होगी, लेकिन उसे ये भी याद है कि उस समय, यानी जब मां की मौत हुई थी, तो उसके बाद काफी समय तक वो लोगों की बातचीत चुपचाप इसलिए सुनता था कि उसे पता चल जाए कि आखिर मां के साथ क्या किया गया है। लेकिन उसे बहुत देर तक पता नहीं चला था और आखिरकार वो भूल गया कि उसे जानना है कि उसकी मां के साथ क्या हुआ। 
बहुत दिनो तक घर में चुप्पी रही, पिता शाम को घर आते थे और बिना कुछ कहे-सुने अपने कमरे में चले जाते थे। दूर के रिश्ते की एक दीदी उसे सुबह तैयार करके स्कूल भेजती थीं, और जब वो स्कूल से घर वापस आता था तो उसे खाना देती थीं। कुछ दिनों बाद दीदी चली गईं, और उसे उसकी दादी के पास गांव भेज दिया गया। जब वो गांव से वापस आया तो घर बिल्कुल बदला हुआ था। पूरे घर में चहल-पहल थी। घर में तीन बच्चे थे, तीनो उससे बड़े थे, बहुत बड़े। उसे ऐसा लगा कि वो गलती से किसी और घर में आ गया हो। घर तो वही था बस बदल गया था, सबकुछ बदल गया था। पहले पिता सुबह सोते हुए दिखते थे, अब नहीं थे, रात को आते हुए दिखते थे, अब नहीं दिखते थे। हां, एक और महिला घर में थीं, जिन्होने सारे घर को संभाला हुआ था।
जब वो गांव से वापस आया तो उन्होने उसे अपने पास बुलाया और कहा, ”अब से मैं तुम्हारी मां हूं...... समझे....”
समझा तो वो कुछ नहीं, लेकिन उसे इतना समझ आ ही गया था कि उसकी मां अब नहीं आने वाली। उसने बिना कुछ सोचे-समझे सिर हिलाया और उस महिला को मां कहा। कुछ दिनो बाद उसे समझ में आया कि वो बच्चे जिन्हे उसने गांव से वापस आने पर अपने घर में देखा था, असल में उसके भाई-बहन थे, जिन्हे उसने उससे पहले कभी नहीं देखा था। मां, भाई-बहन, और उसके बाद कई ऐसे लोग उसने देखे जो पहले कभी नहीं देखे थे, जैसे मामा, सब उसे बदरी मामा कहते थे, उसके भाई-बहन बदरी मामा के आने पर बहुत खुश होते थे, और वो बच्चों के साथ खुश हो जाया करता था। हालांकि मामा और भी थे, लेकिन बदरी कुछ खास था, क्योंकि वो महीने में कम से कम तीन बार आता था, और तीन दिन से पहले वापस नहीं जाता था, कभी-कभी तो ज्यादा भी......
पहले तो घर में हुए इन बदलावों से उसे कोई फर्क नहीं पड़ा, और फिर जब फर्क पड़ा तो जर्बदस्त पड़ा। उसे धीरे-धीरे लगने लगा कि ये जो महिला है, जिसे वो मां कहता है, असल में उसकी मां नहीं है, ये उसके भाई-बहन की मां है। क्योंकि वो उन्हे ही प्यार करती है, उन्ही की बात सुनती है, उन्ही का काम करती है। अपने कपड़े उसे खुद धोने होते थे, जो कि उसकी मां ने उसे साफ कह दिया था, वो खुद रसोई में जाकर खाना नहीं ले सकता था, क्योंकि उसकी मां ने उसे साफ मना कर दिया था। पहले वो खाने के बाद जाली वाली अल्मारी से गुड़ लेकर खाया करता था, उसे अच्छा लगता था। अब नहीं, अब जाली वाली अल्मारी में ताला लगा होता था, और वैसे भी उसे रसोई में जाने की मनाही हो गई थी। उसके भाई बहन शाम को दूध पीते थे, लेकिन उसे दूध नहीं दिया जाता था। और भी ऐसी कई बातें थीं, जिनसे उसे यूं कोई ऐतराज़ नहीं था, क्योंकि उसे पता ही नहीं था कि ऐसा क्यूं है, बस उसे यही बुरा लगता था कि उसे उसके भाई-बहनों से अलग व्यवहार मिल रहा है। व्यवहार का ये अलगाव उसे अपनी मां की लगभग हर बात में देखने को मिला, और पिता, वो पहले ही उससे बात नहीं करते थे, वो सिर्फ पिता को देखता था, और अब तो वो दिखना भी बंद हो गए थे, बस कभी-कभी उनकी झलक मिल जाती थी। 
अब वो खेलता नहीं था, क्योंकि जब भी वो खेलता था, कुछ ना कुछ ऐसा हो जाता था कि उसकी मां को उसे डांटना या मारना पड़ता था। हालांकि उसे समझ में आता था कि उससे गलती हुई है, बुरा उसे ये लगता था कि उसके सामने उसके भाई-बहनों को कभी डांट तक नहीं पड़ती थी। स्कूल से आकर वो हाथ मुहं धोता था और खाने का इंतजार करता था, अक्सर उसकी मां उसे सबसे उपर वाले कमरे में, जहां वो अब रात को सोता था खुद खाना दे जाती थी, लेकिन कभी-कभी मां भूल भी जाती थी, तब उसे बहुत देर तक इंतजार करना होता था, क्योंकि एक बार जब वो थोड़ी सी देर इंतजार करके मां से खाना मांगने चला गया था, तो उसकी मां ने उसे ये कहते हुए मारा था कि उसे थोड़ी सी देर का सबर नहीं था। वो मार से डरता नहीं था, बस उसे बुरा लगता था।
वो स्कूल से आकर सबसे पहले अपना होमवर्क पूरा करता था, क्योंकि करने को और कुछ था ही नहीं....इसके बाद वो अपने कपड़े धोता था, क्योंकि दूसरे दिन पहन कर जाने के लिए कपड़ों का होना ज़रूरी था, और स्कूल में ड्रेस पहन कर ना जाने पर टीचर भी सज़ा देते थे। अपने सारे काम, अपना खुद का ध्यान रखना उसकी आदत में इतनी सहजता से आ गए थे, कि जब तक उसकी उम्र कुछ समझने लायक हुई, और उसने ये समझा कि असल में वो महिला जिसे वो अपनी मां कहता है, वो उसकी मां नहीं है, तब तक उसे इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता था कि कोई उसकी मां है या नहीं, पिता है या नहीं, भाई-बहन हैं या नहीं। 
वो करीब 11 साल का था, जब उसके पिता मरे। उनका एक्सीडेंट हुआ, ऑफिस से वापस आते हुए, उनके स्कूटर को किसी कार ने टक्कर मार दी थी। दृश्य वही था, बस चेहरे बदले हुए थे, उसके पिता नीचे आंगन में लकड़ी की सीढ़ी, अब वो जानता था कि उसे अर्थी कहते हैं, पर लेटे थे, उनके उपर सफेद चादर थी, लेकिन उसे नहीं पता था कि पिता को सफेद चादर से मुंह ढंक कर सोने में कोई समस्य है या नहीं.......इस बार वो पिता की अर्थी के साथ शमशान घाट तक गया था, और जब उसके बड़े भाई ने चिता को आग दी तो उसे ये याद आ रहा था कि उसकी मां की चिता भी इसी तरह जली होगी, और उसके दिमाग में ख्याल आया कि आखिर उसकी मां की चिता को किसने आग लगाई होगी, क्योंकि उस समय तो उसका ये वाला बड़ा भाई वहां नहीं था। 
पिता के बाद घर में जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई थी, उसकी मां ने उस पर ध्यान देना बिल्कुल बंद कर दिया था, घर में बदरी मामा, स्थाई रूप से रहने लगा था, और अब उसके भाई-बहन उसे मारते भी थे, मां भी मारती थीं, और बदरी मामा भी मारते थे। वो उसे गालियां देते थे, बार-बार उसे घर से निकल जाने के लिए कहते थे, और अक्सर उसे हरामी कहते थे। इतना ज्यादा कि उसका घर का नाम ही हरामी पड़ गया था। उसे पता था कि हरामी गाली होती है, लेकिन ये गाली बाकी गालियों से अलग थी, क्योंकि इसे उसने पहली बार अपने लिए, अपने घर में सुना था, और किसी से पूछा भी नहीं था कि आखिर इसका क्या मतलब होता है। उसे बहुत बाद में समझ आया कि जब कोई बिना शादी किए बच्चे पैदा करता है तो बच्चे को हरामी कहते हैं, इसलिए कि शादी नहीं हुई थी। जब उसे ये बाद पता चली तब उसे बहुत सी बातें नहीं पता थीं, जैसे ये कि शादी क्या होती है और कैसे होती है। जैसे ये कि बच्चे कैसे और क्यों पैदा किए जाते हैं, और भी कई बातें, जो उसे याद भी नहीं हैं, और जिनकी तरफ उसने बाद में कोई ध्यान भी नहीं दिया। खैर, इसी तरह पिटते-घिसटते उसने दो साल निकाल दिए, और आखिरकार उसकी मां और मामा के सब्र का पैमाना एक दिन छलक ही गया। 
मामा उसे लेकर घर से निकला, मामा के पास एक बैग था, और उसके पास अपने स्कूल बैग के अलावा अपने बड़े भाई का स्कूल बैग था, जिसमें उसके कपड़े थे। मामा उसे लेकर ट्रेन में चढ़ा और जाने कहां ले गया, उस शहर में मामा ने उसे शाम तक इधर से उधर घुमाया और आखिरकार एक ऑफिस में ले जाकर छोड़ दिया। उसके बाद से उसे अपना मामा आज तक नहीं दिखा। उसे बाद में पता चला कि उसका मामा उसे अनाथालय में छोड़ गया है, ऑफिस वालों ने उसे देखा, उससे काफी कुछ पूछने की कोशिश की, पहले तो वो इसलिए चुप रहा कि अगर उसने कुछ बोला जो बदरी मामा को पसंद ना आया तो बदरी मामा उसे मारेगा, और फिर जब उसे ये समझ आ गया कि बदरी मामा अब नहीं आने वाला, तो इसलिए नहीं बोला कि जो लोग उसे अपनी मर्जी से छोड़ गए हैं, उनका पता बताने से आखिर होगा भी क्या? 
और तबसे वो अनाथालय में ही रह गया, अच्छी जगह थी। आज उम्र के इस पड़ाव पर आने के बाद उसे लगता है कि अगर कुछ खामियों को छोड़ दिया जाए तो अनाथालय उसके अपने घर से अच्छा ही था। वहां समय से खाना मिलता था, सबको एक जैसा खाना मिलता था, कभी-कभी किसी दयालु इंसान के चलते बढ़िया खाना भी मिलता था, अनाथालय वालों को उसने अपना नाम विपिन गुलाटी बताया था, जो असल में उसके स्कूल में, उसकी ही क्लास में पढ़ने वाले एक लड़के का नाम था। फिर यही उसका असली नाम बन गया, विपिन गुलाटी, और उसका पुराना नाम, गौरव, खत्म हो गया, अब तो वो खुद भी भूल गया कि उसका नाम गौरव था। वैसे भी अब बचपन की यादें रखे रहना बेवकूफी ही है। उसे अपनी मां की याद नहीं आती, ना ही पिता की, अजीब बात है कि उसे अपनी नई मां अच्छी तरह याद है, और बदरी मामा, भाई-बहनों को वो अलबत्ता भूल चुका है। 
अनाथालय में उसने 12वीं तक पढ़ाई की, पढ़ाई में वो तेज़ था, इसलिए उन्होने ही उसकी स्कॉलरशिप का इंतजाम करवा दिया, उसने अपने कॉलेज की पढ़ाई खत्म ही, एक जॉब पकड़ी और अब वो पढ़ाई भी कर रहा है और जॉब भी कर रहा है। जॉब अच्छी है, उसे पसंद है। अनाथालय के जीवन की वो कई बुरी कहानियां सुन चुका है, खुद उसके जीवन में ऐसा कुछ बुरा नहीं हुआ। बहुत बचपन में ही उसे समझ में आ गया था, कि बुरा वो होता है जो ना हो, जो हो जाए उसे बुरा कहने, और समझने से खुद को बुरा लगने के अलावा कुछ नहीं होता, इसलिए उसे अपना जीवन कुछ खास बुरा नहीं लगा था। जो एक बात उसे बुरी लगती थी, और जिसका उसने पूरी जिंदगी विरोध किया था, वो ये कि कुछ दिनो के बाद अनाथालय में भी उसे हरामी सुनना पड़ा था, उसने विरोध किया था, लेकिन असल में वहां, लगभग हर दूसरे-तीसरे बच्चे को ये गाली, अक्सर सुनाई जाती थी। उसने जब भी ये गाली सुनी तब इसका विरोध किया, हालांकि उस समय उस बच्चे की बात कौन मानता, और फिर जब एक बार ये तय हो गया कि वो सीधा बच्चा है और पढ़ाई में तेज़ है तो उसे वैसे भी हरामी सुनाई देना बंद हो गया। 
उसकी कुल जिंदगी की जमापूंजी ये थी कि वो आज अपने पैरों पर खड़ा था, और खुद के लिए कमा रहा था, उसकी जिंदगी में एक लड़की थी जिसे वो पसंद करता था और आज उसके घर उसके परिवार वालों से मिलने जा रहा था, जहां उसे मिताली से अपने रिश्ते की बात शुरु करना थी। ये उसकी ही ज़िद थी कि मिताली उससे शादी करे तो घर वालों की मर्ज़ी से करे। अपने जीवन में उसने ना जाने कितने ऐसे बच्चे देखे थे जो किसी ना किसी की लव मैरिज का नतीजा थे, और अब अनाथालय में जी रहे थे। 
मिताली उसे समझा चुकी थी कि उसे परिवार वाले शादी के लिए नहीं मानेंगे और वो उससे वैसे ही शादी के लिए तैयार थी। समझदार लड़की थी और बहुत खोल के समझा चुकी थी कि वो और मिताली मिल कर इतना कमा रहे थे कि जिंदगी आराम से चल सकती थी, अगर परिवार वालें चाहें तो उनकी शादी में शरीक हो सकते हैं, लेकिन अपने रीति-रिवाज़ छोड़ कर, खुद मिताली अपने को नास्तिक कहती थी, और वो तो बहुत पहले ही नास्तिक हो गया था, हालांकि अनाथालय में हर रोज़ सुबह प्रार्थना उसे ही गानी पड़ती थी। लेकिन वो नहीं माना, उसे लगता था कि शादी हो तो घरवालों की मर्जी से हो ताकि बाद में बच्चा हो तो उसे कोई परेशानी ना हो। उसने अपने बारे में मिताली को सबकुछ बता दिया था। 
उसने फ्रिज खोल कर बोतल निकाली और गटागट आधी बोतल पानी पी गया। अचानक ठंडी हवा का झोंका आया। पास कहीं बारिश शुरु हो चुकी थी, उसने घड़ी की तरफ देखा, उसे अब निकल जाना चाहिए, उसे मिताली को गांधी पार्क से पिक करना था। 
मिताली का घर वैसा ही था जैसा मिताली ने उसे बताया था। नये ढंग का घर था जिसमें दीवारों से ज्यादा खिड़कियां थीं और बैठने की जगह से ज्यादा दिखाने की चीजें थीं। वो मिताली के परिवार से मिला, अच्छे लोग थे, चाय-नाश्ते के दौरान पहले उसने उन्हे बताया कि वो कौन है और कहां नौकरी करता है और फिर ये बताया कि वो और मिताली दोस्त हैं और इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते हैं और इसके लिए उनकी मंजूरी चाहिए। मिताली के मां-पिता को इस बातचीत से किसी तरह का आश्चर्य नहीं हुआ, जिसकी वजह शायद ये थी कि वो पहले ही उन्हे उसके बारे में बता चुकी थी। हालांकि उन्होने कोई पक्का जवाब नहीं दिया, लेकिन उनके व्यवहार से उसे ऐसा लगा जैसे सब ठीक ही होगा। करीब डेढ़ घंटे बाद वो वहां से निकला, और अभी सड़क पर पहुंचा ही था कि उसे याद आया कि वो अपना रेनकोट भूल आया है। 
जब वो वापस मिताली के घर पहुंचा तो उसने उसके पिता की आवाज़ सुनी, वो कह रहे थे, ”मुझे और किसी चीज़ से कोई ऐतराज़ नहीं है, सिर्फ ये कि वो लड़का......बास्टर्ड है......” शायद मिताली को पता लग गया था कि दरवाजे पर कोई है। उसने दरवाज़ा खोला तो उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था, बहुत अर्से बाद उसने ये गाली दोबारा सुनी थी, जो कभी उसका नाम हुआ करती थी। बहुत मुश्किल से जब्त करके उसने बताया कि वो अपना रेनकोट भूल गया है, जो पास ही पड़ा था, उसने थोड़ा सा आगे बढ़कर रेनकोट उठाया और वहां से निकल गया। 
सड़क पर पहंुचते-पहुंचते उसकी आंखों में आसूं आ गए थे, वो जीवन भर नहीं रोया था, जब मां मरी, जब पिता मरे, जब वो अनाथालय गया, कभी नहीं......आज जाने क्यूं उसकी आंखों में आसूं आ गए। उसने रेनकोट कंधे पर रखा और अपनी आंखे पोंछी। जाने क्यूं उसका मन हुआ कि वो पीछे मुड़कर एक बार मिताली के घर को देखे। वो पीछे मुड़ा तो मिताली आ रही थी। वो रुक गया, वो शायद माफी मांगे या ऐसा ही कुछ कहे, खुद का भरसक संयत बनाए रखने की कोशिश करते हुए वो रुका रहा। 
”क्या हम तुम्हारे घर रह सकते हैं.....मैं अब इस घर में नहीं रहना चाहती......” मिताली ने उसका हाथ पकड़ लिया। एक अजीब सी गर्मी उसके  जिस्म में भर गई। अब उसे मिताली के पिता पर, अपने मां-पिता पर और पूरी दुनिया पर गुस्सा नहीं आ रहा था। वो मिताली का हाथ पकड़े-पकड़े आगे बढ़ गया। 

बुधवार, 8 जून 2016

पार्टिंग गिफ्ट



बैग का क्लैस्प बंद करते हुए वो घर से निकली, उसे याद आया कि उसने बाहर वाले गेट की चाबी तो अंदर भी छोड़ दी है। भुनभुनाते हुए वो फिर अंदर गई, और चाबी ढूंढने लगी, एक पल रुक कर सोचा कि पिछली रात चाबी कहां रखी थी, उसे फौरन याद आया कि चाबी, बाहर वाले पलंग पर ही रखी थी, जहां सारा सामान रखा होता है। उसे एक ही नज़र में दिख गई, उसने चाबी उठाई, चप्पल फिर से पहनी और बाहर निकल कर दरवाजा बंद कर दिया। 
मौसम अच्छा था, आसमान में बादल थे, और हवा चल रही थी। उसे ऐसा मौसम पसंद था, हवा चल रही हो, तो उसका बिगड़ा दिल भी खुश हो जाता है। वो तेज़ी से चलने लगी, तेज़ चलना उसकी आदत है, वो कभी धीरे नहीं चलती, हमेशा तेज़ कदम चलती है, पहले इसलिए तेज़ चलती थी क्योंकि उसे हर जगह पहुंचने की जल्दी होती थी, फिर तेज़ चलना आदत बन गया, और अब उसे पास काफी टाइम हो तो भी तेज़ ही चलती है। बाहर जाकर ऑटो पकड़ना था। ये दिल्ली शहर की सबसे बड़ी समस्या यही है कि ऑटो नहीं मिलता, मिलता है तो ऑटो वाला ठीक नहीं होता, मीटर खराब होता है, और अगर सब सही हो तो सड़कों पर ट्रैफिक इतना होता है कि सब कुछ ठीक होते हुए भी मूड खराब हो जाता है। 
बाहर निकल कर उसने इधर-उधर देखा, बताओ, रोज़ यहां पचीसों ऑटो खड़े होते हैं, और आज एक नहीं दिख रहा। पर मौसम अच्छा था, हवा अच्छी थी, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। वो पैदल ही सड़क की तरफ चलने लगी, वहां से पक्का ऑटो मिल जाएगा। आज बहुत दिनों बाद ऑफिस से जल्दी घर पहुंची थी, और दोस्तों के साथ फिल्म का प्रोग्राम बना था। उसके कॉलेज के दोस्त, पहले फिल्म देखेंगे, फिर कहीं बाहर खाना खाएंगे और फिर वापस घर, वैसे भी कल संडे है और संडे का दिन वो ज्यादातर सोकर ही गुज़ारती है। 
सड़के मुहाने पर आकर वो खड़ी हो गई, कोई ना कोई ऑटो रुक ही जाएगा, उसने सोचा। पहले सोचा सिगरेट पी लिया जाए, लेकिन......बाहर सड़क पर सिगरेट पीना उसे ठीक नहीं लगा, अपने घर या ऑफिस में सिगरेट पी सकती है, दोस्तों के साथ रेस्टोरेंट में भी पी ही जा सकती है, लेकिन सड़क पर खुलेआम, ना कभी नहीं, वो बहुत झेल चुकी है। खुलेआम सिगरेट सिर्फ लड़के पी सकते हैं, उसका मूड फिर से खराब होने ही वाला था, कि हवा का एक झोंका चेहरे पर लगा और वो फिर से मुस्कुराने लगी। चलो कुछ नहीं, ऑटो में बैठ कर सिगरेट पी लेगी, ऑटो वाला कुछ भी सोचे उसे क्या फर्क पड़ता है। दिल्ली में इतने ऑटो हैं कि उसे लगता है कि अगर वो रोज़ दो ऑटो ले तो भी दोबारा एक ही ऑटो का नंबर नहीं आने वाला। 
वो ये सब सोच ही रही थी कि एक कार उसके पास आकर रुकी, अच्छी कार थी, उसे कारों का मेक और मॉडल कभी याद नहीं रहता, लेकिन ये शायद एस यू वी थी, उसकी तरफ वाला शीशा खुला, अंदर एक भली शक्ल वाला लड़का बैठा था। ”आगे कहीं जाना हो तो मैं छोड़ देता हूं......” उसने रुक कर एक पल सोचा, क्या ये ठीक होगा। यूं ही ऐसे ही किसी से लिफ्ट ले लेना। नहीं। उसने सिर हिलाया, और भरसक मुस्कुरा कर कहा, ना ना, अभी ऑटो आ जाएगा। 
”अरे मैने आपको कई बार यहीं खड़े देखा है, ऑटो के इंतजार में......आ जाइए” लड़के ने अधिकारपूर्वक दरवाज़ा खोल दिया। उसने एक मिनट के लिए सोचा, फिर ना जाने क्या सोचकर वो कार में बैठ गई, वैसे भी उसे आगे ही जाना था। 
”हाय मेरा नाम धीरज है......” लड़के ने कार आगे बढ़ाते हुए अपना हाथ आगे कर दिया। उसने हाथ मिलाया, ”मैं आरती....” लड़का अच्छा हैंडसम था। 
”यहीं कहीं रहती हैं आप....मैने कई बार आपको यहां ऑटो लेते देखा है....” लड़के ने कहा, ”मेरा रास्ता यही है, नोएडा में फैक्टरी है, इसलिए इसी रास्ते से जाता हूं....”कुछ सफाई सी देते हुए वो बोला।
वो उसे नहीं बताना चाहती थी कि वो कहां रहती है, जाने कौन है, कैसा है। ”हां यही पास में रहती हूं.....” उसने गोल-मटोल जवाब दिया, ऐसे लहजे में ताकि वो समझ जाए कि वो बताना नहीं चाहती कि वो कहां रहती है। 
धीरज मुस्कुराया, ”चलिए....ये तो बताइए कि कहां जाना है......उसमें तो कोई हर्ज़ नहीं ह ैना....”
वो मुस्कुराई, ”आगे जाना है, वली मार्केट वाली रेड लाइट तक.....वहां मेरे दोस्त इंतजार कर रहे हैं....”
”ओ....तो दोस्तों के साथ प्रोग्राम है.....बढ़िया.....करती क्या हैं आप....”
”प्रॉडक्ट डिजाइनर हूं.....” इससे ज्यादा इन्फॉर्मेशन नहीं.....उसके दिमाग ने उसे सतर्क किया.....
”ओह....डिजाइनर हैं.....हूं....अच्छा....क्या प्रोडक्ट डिजाइन करती हैं आप”
”कुछ नहीं....एक्चुअली, आई वर्क विद है कन्सल्टेन्सी फर्म....सो वी डिजाइन आइडियाज़.....आई मीन....वी प्रिपेयर द होल कॉन्सेप्ट टू एग्जीक्यूशन डीटेल ऑफ द प्रॉडक्ट टू बी लांच्ड......”
”वाओ.....”
पता नहीं वो कितना समझा था.....लेकिन चेहरे से इम्प्रेस दिख रहा था। पता नहीं उसने उसे क्यों ये सब बता दिया......खैर....उसे जहां उतरना था वो जगह पास ही थी....इसलिए वो निश्चिंत हो गई। 
”लीजिए......” उसने चौंक कर सामने देखा तो जर्बदस्त ट्रैफिक जाम दिखाई दिया। ”मैं यहीं उतर जाती हूं.....पास ही है अब तो.....”
”पास.....! अरे अभी करीब दो किलोमीटर दूर है.....अच्छा रुकिए....” धीरज ने कार थोड़ी सी बैक की और पास वाले मोड़ पर मुड़ गया। ”ये रास्ता खराब है, लेकिन वहां तक पहुंच ही जाएगा। कम से कम जाम से तो अच्छा है।” रास्ता अनजाना था, लेकिन अब उसे लगा कि कुछ कहना बेकार है।
और थोड़ी देर बाद वो वापस मेन रोड पर आ गए। 
”अच्छा....ये मोड़ पार करने के बाद, आपकी वाली सड़क आ जाएगी....मुझे यहीं मुड़ना है.....इज़ इट ओके....”
”या या....” उसने कहा। 
”अगर ऐतराज़ ना हो तो अपना नंबर दे दीजिए.....” धीरज ने कहा। उसने एक पल के लिए सोचा.....फिर जाने क्या सोच कर अपना नंबर दे दिया। वो कार का दरवाजा बंद करके थोड़ा आगे चली ही थी कि उसका फोन बजा। देखा तो कोई अनजाना नंबर था। उठाया तो पता चला धीरज ही है। 
”मैने सोचा कि आपके पास मेरा नंबर भी तो हो.....सेव कर लीजिए” 
”ओके....” उसने कहा। लेकिन नंबर सेव नहीं किया। वैसे भी क्या करना था सेव करके। वो मन ही मन मुस्कुराती हुई चलने लगी। दोस्त सामने ही खड़े थे, लगभग सारे पहुंच गए थे, बस उसका इंतजार था। फिर दोस्तों के साथ, मस्ती, मूवी, खाना फन और वो सबकुछ भूल गई। 
कुछ दिनो बाद वो फिर से सड़क पर खड़ी थी। इस बार दूसरी तरफ.....आज उसे ऑफिस जाना था, गर्मी ज्यादा थी और उसका मूड खराब था, सड़क पर ट्रैफिक सरक-सरक कर चल रहा था, और उसे आज भी घर के पास ऑटो नहीं मिला था। उपर से उठने में देर हो गई थी, और बॉस वैसे ही नाराज़ चल रहा था। उसका फोन बजा, उसने झल्लाते हुए बैग से फोन निकाला, अनजाना नंबर था, 
”हैलो....” उसने कहा। 
”मैं हूं धीरज.....आज इस तरफ ऑटो लेने के लिए खड़ी  हो.....”
उसे अचानक तो याद ही नहीं आया कि कौन धीरज, किसका धीरज.....फिर अचानक सब दिन की तरह साफ हो गया। पर इसने फोन कैसे कर लिया.....अरे उसने ही तो नंबर दिया था। चुप्पी मोबाइल के हिसाब से ज्यादा लंबी हो गई थी। 
”मेरा नंबर सेव नहीं किया था ना......बढ़िया”
”अरे वो बात नहीं है....लेकिन....”बढ़िया”
”अरे वो बात नहीं है....लेकिन....”
”अपने दांयी तरफ देखो......” उसने नज़र घुमाई तो उसी एस यू वी में धीरज हाथ हिला रहा था। थोड़ी ही देर में धीरज ने कार उसके बगल में रोक कर दरवाजा खोला।
”अरे मैं चली जाउंगी.....” उसने कहा।
लेकिन धीरज दरवाजा खोल चुका था। पीछे लोगों ने हॉर्न बजाना शुरु कर दिया था। वो कार में बैठ गई। 
”क्या बात है भई.....मैंने देखा कि तुम खड़ी हो तो.....”
”थैंक यू....” अब वो और क्या कहती, ये कि उसे पसंद नहीं था कि कोई अनाजाना आदमी उसे गाहे-बगाहे लिफ्ट दे। फिर ऑफिस के लिए देर हो रही थी, और गर्मी इतनी थी कि तौबा, कम से कम कार में एसी तो चल रहा था। उसने बैग से रुमाल निकाल कर माथे का पसीना पोंछा, और धीरज की तरफ देख कर मुस्कुराई। 
”कुछ नहीं....यूं ही....सोचा तुम तकलीफ......”
”क्या बेकार की बात करती हो.....तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की....और तकलीफ” फिर वो हंसने लगा। वो भी हंस दी।  
कार धीरे-धीरे सरक रही थी, ट्रैफिक जाम बहुत ज्यादा था। लेकिन कम से कम ऑटो की आफत से तो बची हुई थी, आखिर डी एन डी आकर ट्रैफिक कुछ हल्का हुआ, लेकिन उन दोनो के बीच बातों का सिलसिला चल निकला था। ऐसे ही, हल्की-फुल्की बातें, लेकिन ऐसी बातें जिनसे एक दूसरे के बारे बहुत कुछ पता चलता है, जैसे वो दिल्ली का ही था, बहुत पहले पुरखे दिल्ली आए थे, और उसके पापा पहले सरकारी अफसर थे, फिर वी आर एस लेकर अपना बिजनेस शुरु कर दिया था, जो बहुत अच्छा चल रहा था, और अब तो बढ़ रहा था, जैसे वो अमेरिका से बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई करके आया हुआ था, और अब पूरे बिजनेस की जिम्मेदारी वही उठा रहा था, जैसे उसकी कोई गर्लफ्रेण्ड नहीं थी। इतना हैंडसम लड़का और कोई गर्लफ्रेंड ना हो, वो नहीं मानी, कम से कम मन में नहीं मानी। लेकिन ठीक था, क्या बुरा था, वैसे भी उसकी सारी दोस्त उसे ताना देती थीं कि उसका कोई ब्वायफ्रंेड नहीं है। 
और आखिर उसकी मंजिल आ गई, वो कार से उतर गई, इस बार उसने उतर कर उसके नंबर के साथ नाम भी सेव कर लिया। 
दिन गुज़रते गए और वो कभी ना कभी उससे मिलता रहा, कभी-कभी वो उसके इलाके में आता था तो दोनो कहीं कॉफी पीते थे, या खाना भी खा लेते थे, लेकिन ना उसने कभी पूछा, और ना कभी उनके बीच किसी तरह के रिश्ते की बात चली। और जब रिश्ता हुआ तो अचानक बिना कुछ सोचे समझे हुआ। बारिश हो रही थी, और उसकी कार कहीं बहुत दूर खड़ी थी, घर ज्यादा पास था, तो बिना सोचे वो उसे घर ले आई, घर में दोनो ने गीले कपड़े उतारे और बदन पोंछे, हालांकि धीरज लिए कपड़े नहीं थे लेकिन कुछ ना कुछ जुगाड़ हो गया, उसने चाय बनाई, चाय वो अक्सर अच्छी बनाती है, लेकिन धीरज चाय नहीं पीता था। और वो दोनो बैठ गए, कुछ देर बातें होती रहीं, फिर धीरज लेट गया, बारिश हो रही थी, और मौसम हल्का सर्द सा हो रहा था, जाने कब वो भी धीरज की बगल में लेट गई, और सब कुछ बहुत सहजता के साथ हो गया। 
इसके बाद लगभग सिलसिला ही बन गया, लगभग हर तीसरे-चौथे दिन धीरज उसके घर आ जाता था और फिर चला जाता था। ना उसने इसके आगे सोचा ना धीरज ने कभी इससे आगे की बात की। 
फिर एक दिन धीरज ने उसे अपने घर बुलाया, मम्मी-पापा कहीं बाहर गए हुए थे, वो उसके घर जाने के लिए बहुत उत्साहित थी। वो पहली बार धीरज के घर जा रही थी। घर क्या था, पूरी कोठी थी, बाहर गार्ड था, आलीशान महल जैसी कोठी। वो थोड़ा नर्वस थी, उसका अपना किराए का घर कईयों की तुलना में बहुत बड़ा था, लेकिन धीरज के घर के सामने तो......पर अपनी नर्वसनेस को अपने ही अंदर दबाते हुए वो धीरज के साथ उसके घर चली गई। धीरज ने उसे सारा घर दिखाया, अपना कमरा दिखाया और वो सब जो उसका था। फिर वही सब जो होना था, और आखिर में धीरज ने उसे सोने के ईयरिंग गिफ्ट किए। घर आई तो वो बहुत खुश थी, धीरज अच्छा खासा खूबसूरत आदमी था, ईमानदार था, वरना उसे अपने घर क्यूं ले जाता? उसे अचानक अपना भविष्य सुंदर लगने लगा। उस रात उसे बहुत अच्छी नींद आई। 
उसके बाद धीरज उसे नहीं मिला, उसने जब भी फोन किया, तो या तो फोन बिज़ी मिला या फिर धीरज ने फोन काट दिया। आखिर मन कड़ा करके वो धीरज के घर पहुंची, पहले तो यही समझ में नहीं आया कि क्या कहेगी, अगर धीरज के मम्मी-पापा हुए तो उन्हे क्या कहेगी। लेकिन चौकीदार ने कुछ नहीं कहा, जब उसने बताया कि वो धीरज से मिलने आई है तो चौकीदार ने गेट खोलकर उसे एक और नौकर के हवाले कर दिया। नौकर उसे आलीशान ड्राइंगरूम में बिठा दिया और फिर चला गया, कुछ देर बाद धीरज नीचे आया, उससे बहुत अच्छी तरह मिला, उसे समझ ही नहीं आया कि आखिर क्या हुआ। आखिरकार उसने पूछ ही लिया कि वो उससे बात क्यों नहीं कर रहा, मिल क्यों नहीं रहा। हंसते हुए धीरज ने कहा कि वो रिश्ते को आगे नहीं बढ़ाना चाहता, ये तो उसे तब भी समझ जाना चाहिए था जब धीरज ने उसे पिछली मुलाकात में पार्टिंग गिफ्ट दिया था, हालांकि वो चाहे तो वो उसकी और आर्थिक मदद कर सकता है। 
उसे समझ नहीं आया कि वो क्या कहे। सोने के वो ईयरिंग सामने ही पड़े थे, उसने उन्हे हाथ में उठा लिया, थोड़ी देर उन्हे अपनी उंगलियों में घुमाती रही, उसे जाने क्यों वो अपने से ज्यादा भारी लग रहे थे। उसने एक बार गौर से उन्हे देखा और फिर बाल्कनी में जाकर उन्हे बाहर फेंक दिया। 

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...