बुधवार, 8 जून 2016

पार्टिंग गिफ्ट



बैग का क्लैस्प बंद करते हुए वो घर से निकली, उसे याद आया कि उसने बाहर वाले गेट की चाबी तो अंदर भी छोड़ दी है। भुनभुनाते हुए वो फिर अंदर गई, और चाबी ढूंढने लगी, एक पल रुक कर सोचा कि पिछली रात चाबी कहां रखी थी, उसे फौरन याद आया कि चाबी, बाहर वाले पलंग पर ही रखी थी, जहां सारा सामान रखा होता है। उसे एक ही नज़र में दिख गई, उसने चाबी उठाई, चप्पल फिर से पहनी और बाहर निकल कर दरवाजा बंद कर दिया। 
मौसम अच्छा था, आसमान में बादल थे, और हवा चल रही थी। उसे ऐसा मौसम पसंद था, हवा चल रही हो, तो उसका बिगड़ा दिल भी खुश हो जाता है। वो तेज़ी से चलने लगी, तेज़ चलना उसकी आदत है, वो कभी धीरे नहीं चलती, हमेशा तेज़ कदम चलती है, पहले इसलिए तेज़ चलती थी क्योंकि उसे हर जगह पहुंचने की जल्दी होती थी, फिर तेज़ चलना आदत बन गया, और अब उसे पास काफी टाइम हो तो भी तेज़ ही चलती है। बाहर जाकर ऑटो पकड़ना था। ये दिल्ली शहर की सबसे बड़ी समस्या यही है कि ऑटो नहीं मिलता, मिलता है तो ऑटो वाला ठीक नहीं होता, मीटर खराब होता है, और अगर सब सही हो तो सड़कों पर ट्रैफिक इतना होता है कि सब कुछ ठीक होते हुए भी मूड खराब हो जाता है। 
बाहर निकल कर उसने इधर-उधर देखा, बताओ, रोज़ यहां पचीसों ऑटो खड़े होते हैं, और आज एक नहीं दिख रहा। पर मौसम अच्छा था, हवा अच्छी थी, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। वो पैदल ही सड़क की तरफ चलने लगी, वहां से पक्का ऑटो मिल जाएगा। आज बहुत दिनों बाद ऑफिस से जल्दी घर पहुंची थी, और दोस्तों के साथ फिल्म का प्रोग्राम बना था। उसके कॉलेज के दोस्त, पहले फिल्म देखेंगे, फिर कहीं बाहर खाना खाएंगे और फिर वापस घर, वैसे भी कल संडे है और संडे का दिन वो ज्यादातर सोकर ही गुज़ारती है। 
सड़के मुहाने पर आकर वो खड़ी हो गई, कोई ना कोई ऑटो रुक ही जाएगा, उसने सोचा। पहले सोचा सिगरेट पी लिया जाए, लेकिन......बाहर सड़क पर सिगरेट पीना उसे ठीक नहीं लगा, अपने घर या ऑफिस में सिगरेट पी सकती है, दोस्तों के साथ रेस्टोरेंट में भी पी ही जा सकती है, लेकिन सड़क पर खुलेआम, ना कभी नहीं, वो बहुत झेल चुकी है। खुलेआम सिगरेट सिर्फ लड़के पी सकते हैं, उसका मूड फिर से खराब होने ही वाला था, कि हवा का एक झोंका चेहरे पर लगा और वो फिर से मुस्कुराने लगी। चलो कुछ नहीं, ऑटो में बैठ कर सिगरेट पी लेगी, ऑटो वाला कुछ भी सोचे उसे क्या फर्क पड़ता है। दिल्ली में इतने ऑटो हैं कि उसे लगता है कि अगर वो रोज़ दो ऑटो ले तो भी दोबारा एक ही ऑटो का नंबर नहीं आने वाला। 
वो ये सब सोच ही रही थी कि एक कार उसके पास आकर रुकी, अच्छी कार थी, उसे कारों का मेक और मॉडल कभी याद नहीं रहता, लेकिन ये शायद एस यू वी थी, उसकी तरफ वाला शीशा खुला, अंदर एक भली शक्ल वाला लड़का बैठा था। ”आगे कहीं जाना हो तो मैं छोड़ देता हूं......” उसने रुक कर एक पल सोचा, क्या ये ठीक होगा। यूं ही ऐसे ही किसी से लिफ्ट ले लेना। नहीं। उसने सिर हिलाया, और भरसक मुस्कुरा कर कहा, ना ना, अभी ऑटो आ जाएगा। 
”अरे मैने आपको कई बार यहीं खड़े देखा है, ऑटो के इंतजार में......आ जाइए” लड़के ने अधिकारपूर्वक दरवाज़ा खोल दिया। उसने एक मिनट के लिए सोचा, फिर ना जाने क्या सोचकर वो कार में बैठ गई, वैसे भी उसे आगे ही जाना था। 
”हाय मेरा नाम धीरज है......” लड़के ने कार आगे बढ़ाते हुए अपना हाथ आगे कर दिया। उसने हाथ मिलाया, ”मैं आरती....” लड़का अच्छा हैंडसम था। 
”यहीं कहीं रहती हैं आप....मैने कई बार आपको यहां ऑटो लेते देखा है....” लड़के ने कहा, ”मेरा रास्ता यही है, नोएडा में फैक्टरी है, इसलिए इसी रास्ते से जाता हूं....”कुछ सफाई सी देते हुए वो बोला।
वो उसे नहीं बताना चाहती थी कि वो कहां रहती है, जाने कौन है, कैसा है। ”हां यही पास में रहती हूं.....” उसने गोल-मटोल जवाब दिया, ऐसे लहजे में ताकि वो समझ जाए कि वो बताना नहीं चाहती कि वो कहां रहती है। 
धीरज मुस्कुराया, ”चलिए....ये तो बताइए कि कहां जाना है......उसमें तो कोई हर्ज़ नहीं ह ैना....”
वो मुस्कुराई, ”आगे जाना है, वली मार्केट वाली रेड लाइट तक.....वहां मेरे दोस्त इंतजार कर रहे हैं....”
”ओ....तो दोस्तों के साथ प्रोग्राम है.....बढ़िया.....करती क्या हैं आप....”
”प्रॉडक्ट डिजाइनर हूं.....” इससे ज्यादा इन्फॉर्मेशन नहीं.....उसके दिमाग ने उसे सतर्क किया.....
”ओह....डिजाइनर हैं.....हूं....अच्छा....क्या प्रोडक्ट डिजाइन करती हैं आप”
”कुछ नहीं....एक्चुअली, आई वर्क विद है कन्सल्टेन्सी फर्म....सो वी डिजाइन आइडियाज़.....आई मीन....वी प्रिपेयर द होल कॉन्सेप्ट टू एग्जीक्यूशन डीटेल ऑफ द प्रॉडक्ट टू बी लांच्ड......”
”वाओ.....”
पता नहीं वो कितना समझा था.....लेकिन चेहरे से इम्प्रेस दिख रहा था। पता नहीं उसने उसे क्यों ये सब बता दिया......खैर....उसे जहां उतरना था वो जगह पास ही थी....इसलिए वो निश्चिंत हो गई। 
”लीजिए......” उसने चौंक कर सामने देखा तो जर्बदस्त ट्रैफिक जाम दिखाई दिया। ”मैं यहीं उतर जाती हूं.....पास ही है अब तो.....”
”पास.....! अरे अभी करीब दो किलोमीटर दूर है.....अच्छा रुकिए....” धीरज ने कार थोड़ी सी बैक की और पास वाले मोड़ पर मुड़ गया। ”ये रास्ता खराब है, लेकिन वहां तक पहुंच ही जाएगा। कम से कम जाम से तो अच्छा है।” रास्ता अनजाना था, लेकिन अब उसे लगा कि कुछ कहना बेकार है।
और थोड़ी देर बाद वो वापस मेन रोड पर आ गए। 
”अच्छा....ये मोड़ पार करने के बाद, आपकी वाली सड़क आ जाएगी....मुझे यहीं मुड़ना है.....इज़ इट ओके....”
”या या....” उसने कहा। 
”अगर ऐतराज़ ना हो तो अपना नंबर दे दीजिए.....” धीरज ने कहा। उसने एक पल के लिए सोचा.....फिर जाने क्या सोच कर अपना नंबर दे दिया। वो कार का दरवाजा बंद करके थोड़ा आगे चली ही थी कि उसका फोन बजा। देखा तो कोई अनजाना नंबर था। उठाया तो पता चला धीरज ही है। 
”मैने सोचा कि आपके पास मेरा नंबर भी तो हो.....सेव कर लीजिए” 
”ओके....” उसने कहा। लेकिन नंबर सेव नहीं किया। वैसे भी क्या करना था सेव करके। वो मन ही मन मुस्कुराती हुई चलने लगी। दोस्त सामने ही खड़े थे, लगभग सारे पहुंच गए थे, बस उसका इंतजार था। फिर दोस्तों के साथ, मस्ती, मूवी, खाना फन और वो सबकुछ भूल गई। 
कुछ दिनो बाद वो फिर से सड़क पर खड़ी थी। इस बार दूसरी तरफ.....आज उसे ऑफिस जाना था, गर्मी ज्यादा थी और उसका मूड खराब था, सड़क पर ट्रैफिक सरक-सरक कर चल रहा था, और उसे आज भी घर के पास ऑटो नहीं मिला था। उपर से उठने में देर हो गई थी, और बॉस वैसे ही नाराज़ चल रहा था। उसका फोन बजा, उसने झल्लाते हुए बैग से फोन निकाला, अनजाना नंबर था, 
”हैलो....” उसने कहा। 
”मैं हूं धीरज.....आज इस तरफ ऑटो लेने के लिए खड़ी  हो.....”
उसे अचानक तो याद ही नहीं आया कि कौन धीरज, किसका धीरज.....फिर अचानक सब दिन की तरह साफ हो गया। पर इसने फोन कैसे कर लिया.....अरे उसने ही तो नंबर दिया था। चुप्पी मोबाइल के हिसाब से ज्यादा लंबी हो गई थी। 
”मेरा नंबर सेव नहीं किया था ना......बढ़िया”
”अरे वो बात नहीं है....लेकिन....”बढ़िया”
”अरे वो बात नहीं है....लेकिन....”
”अपने दांयी तरफ देखो......” उसने नज़र घुमाई तो उसी एस यू वी में धीरज हाथ हिला रहा था। थोड़ी ही देर में धीरज ने कार उसके बगल में रोक कर दरवाजा खोला।
”अरे मैं चली जाउंगी.....” उसने कहा।
लेकिन धीरज दरवाजा खोल चुका था। पीछे लोगों ने हॉर्न बजाना शुरु कर दिया था। वो कार में बैठ गई। 
”क्या बात है भई.....मैंने देखा कि तुम खड़ी हो तो.....”
”थैंक यू....” अब वो और क्या कहती, ये कि उसे पसंद नहीं था कि कोई अनाजाना आदमी उसे गाहे-बगाहे लिफ्ट दे। फिर ऑफिस के लिए देर हो रही थी, और गर्मी इतनी थी कि तौबा, कम से कम कार में एसी तो चल रहा था। उसने बैग से रुमाल निकाल कर माथे का पसीना पोंछा, और धीरज की तरफ देख कर मुस्कुराई। 
”कुछ नहीं....यूं ही....सोचा तुम तकलीफ......”
”क्या बेकार की बात करती हो.....तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की....और तकलीफ” फिर वो हंसने लगा। वो भी हंस दी।  
कार धीरे-धीरे सरक रही थी, ट्रैफिक जाम बहुत ज्यादा था। लेकिन कम से कम ऑटो की आफत से तो बची हुई थी, आखिर डी एन डी आकर ट्रैफिक कुछ हल्का हुआ, लेकिन उन दोनो के बीच बातों का सिलसिला चल निकला था। ऐसे ही, हल्की-फुल्की बातें, लेकिन ऐसी बातें जिनसे एक दूसरे के बारे बहुत कुछ पता चलता है, जैसे वो दिल्ली का ही था, बहुत पहले पुरखे दिल्ली आए थे, और उसके पापा पहले सरकारी अफसर थे, फिर वी आर एस लेकर अपना बिजनेस शुरु कर दिया था, जो बहुत अच्छा चल रहा था, और अब तो बढ़ रहा था, जैसे वो अमेरिका से बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई करके आया हुआ था, और अब पूरे बिजनेस की जिम्मेदारी वही उठा रहा था, जैसे उसकी कोई गर्लफ्रेण्ड नहीं थी। इतना हैंडसम लड़का और कोई गर्लफ्रेंड ना हो, वो नहीं मानी, कम से कम मन में नहीं मानी। लेकिन ठीक था, क्या बुरा था, वैसे भी उसकी सारी दोस्त उसे ताना देती थीं कि उसका कोई ब्वायफ्रंेड नहीं है। 
और आखिर उसकी मंजिल आ गई, वो कार से उतर गई, इस बार उसने उतर कर उसके नंबर के साथ नाम भी सेव कर लिया। 
दिन गुज़रते गए और वो कभी ना कभी उससे मिलता रहा, कभी-कभी वो उसके इलाके में आता था तो दोनो कहीं कॉफी पीते थे, या खाना भी खा लेते थे, लेकिन ना उसने कभी पूछा, और ना कभी उनके बीच किसी तरह के रिश्ते की बात चली। और जब रिश्ता हुआ तो अचानक बिना कुछ सोचे समझे हुआ। बारिश हो रही थी, और उसकी कार कहीं बहुत दूर खड़ी थी, घर ज्यादा पास था, तो बिना सोचे वो उसे घर ले आई, घर में दोनो ने गीले कपड़े उतारे और बदन पोंछे, हालांकि धीरज लिए कपड़े नहीं थे लेकिन कुछ ना कुछ जुगाड़ हो गया, उसने चाय बनाई, चाय वो अक्सर अच्छी बनाती है, लेकिन धीरज चाय नहीं पीता था। और वो दोनो बैठ गए, कुछ देर बातें होती रहीं, फिर धीरज लेट गया, बारिश हो रही थी, और मौसम हल्का सर्द सा हो रहा था, जाने कब वो भी धीरज की बगल में लेट गई, और सब कुछ बहुत सहजता के साथ हो गया। 
इसके बाद लगभग सिलसिला ही बन गया, लगभग हर तीसरे-चौथे दिन धीरज उसके घर आ जाता था और फिर चला जाता था। ना उसने इसके आगे सोचा ना धीरज ने कभी इससे आगे की बात की। 
फिर एक दिन धीरज ने उसे अपने घर बुलाया, मम्मी-पापा कहीं बाहर गए हुए थे, वो उसके घर जाने के लिए बहुत उत्साहित थी। वो पहली बार धीरज के घर जा रही थी। घर क्या था, पूरी कोठी थी, बाहर गार्ड था, आलीशान महल जैसी कोठी। वो थोड़ा नर्वस थी, उसका अपना किराए का घर कईयों की तुलना में बहुत बड़ा था, लेकिन धीरज के घर के सामने तो......पर अपनी नर्वसनेस को अपने ही अंदर दबाते हुए वो धीरज के साथ उसके घर चली गई। धीरज ने उसे सारा घर दिखाया, अपना कमरा दिखाया और वो सब जो उसका था। फिर वही सब जो होना था, और आखिर में धीरज ने उसे सोने के ईयरिंग गिफ्ट किए। घर आई तो वो बहुत खुश थी, धीरज अच्छा खासा खूबसूरत आदमी था, ईमानदार था, वरना उसे अपने घर क्यूं ले जाता? उसे अचानक अपना भविष्य सुंदर लगने लगा। उस रात उसे बहुत अच्छी नींद आई। 
उसके बाद धीरज उसे नहीं मिला, उसने जब भी फोन किया, तो या तो फोन बिज़ी मिला या फिर धीरज ने फोन काट दिया। आखिर मन कड़ा करके वो धीरज के घर पहुंची, पहले तो यही समझ में नहीं आया कि क्या कहेगी, अगर धीरज के मम्मी-पापा हुए तो उन्हे क्या कहेगी। लेकिन चौकीदार ने कुछ नहीं कहा, जब उसने बताया कि वो धीरज से मिलने आई है तो चौकीदार ने गेट खोलकर उसे एक और नौकर के हवाले कर दिया। नौकर उसे आलीशान ड्राइंगरूम में बिठा दिया और फिर चला गया, कुछ देर बाद धीरज नीचे आया, उससे बहुत अच्छी तरह मिला, उसे समझ ही नहीं आया कि आखिर क्या हुआ। आखिरकार उसने पूछ ही लिया कि वो उससे बात क्यों नहीं कर रहा, मिल क्यों नहीं रहा। हंसते हुए धीरज ने कहा कि वो रिश्ते को आगे नहीं बढ़ाना चाहता, ये तो उसे तब भी समझ जाना चाहिए था जब धीरज ने उसे पिछली मुलाकात में पार्टिंग गिफ्ट दिया था, हालांकि वो चाहे तो वो उसकी और आर्थिक मदद कर सकता है। 
उसे समझ नहीं आया कि वो क्या कहे। सोने के वो ईयरिंग सामने ही पड़े थे, उसने उन्हे हाथ में उठा लिया, थोड़ी देर उन्हे अपनी उंगलियों में घुमाती रही, उसे जाने क्यों वो अपने से ज्यादा भारी लग रहे थे। उसने एक बार गौर से उन्हे देखा और फिर बाल्कनी में जाकर उन्हे बाहर फेंक दिया। 

3 टिप्‍पणियां:

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...