चुनावों में धंाधली कोई नई बात नहीं है। आज राहुल गांधी ने एक ऐसा बम जैसा विस्फोट करने का दावा किया है जिससे साफ जाहिर होता कि के चु आ के साथ मिलकर महामानव ने, या जिसे पुराने समयों में भाजपा माना जाता था उस पार्टी ने चुनावों में जम कर धंाधली की और सारे चुनाव जिनमें महाराष्ट, मध्य प्रदेश और हरियाणा तक शामिल हैं अपने नाम कर लिए। अब आपको ये समझाने के लिए कि ये सिर्फ कोरी हवा-हवाई बात नहीं है, राहुल गांधी ने के चु आ द्वारा जारी वोटर लिस्ट को ही आधार बनाया और सबके सामने रख दिया। ऐसे में क्या ही कहने लोकतंत्र के, भारतीय प्रजातंत्र के, या इस खुलासे के बाद तो कहा जाए, भारत के चुनाव आयोग तंत्र के, क्योंकि जब सरकार चुनने का काम चुनाव आयोग अपने हाथ में ले ले, तो फिर उस व्यवस्था को ईमानदारी से तो चुनाव आयोग तंत्र ही कहा जाएगा जिसे संक्षिप्त में केचुआ तंत्र भी कहा जा सकता है। और शायद यही बात राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कान्फ्रेंस में अंत में कही थी।
पर आज मैं आपको एक पुरानी जानकारी दे रहा हूं। दरअसल राहुल गांधी ने अपने आकट्य सबूतों से जिस तरह की धंाधली का आरोप लगाया है, उसका सूत्र जिन्होने धंाधली की है, उन्होने एक मशहूर व्यंग्य उपन्यास रागदरबारी से लिया है। यकीन नहीं आता, वीडियो पूरा देखिए आपको समझ में आ जाएगा।
श्रीलाल शुक्ल जी के उपन्यास में जिस चुनाव की बात है, उसी संदर्भ में चुनाव जीतने के कुछ तरीके बताए गए हैं। तो
चुनाव जीतने के रागदरबारी में जो तीन टिक बताई गई हैं, वो हैं। रामनगर वाली टिक, नेवादा वाली टिक और महिपालपुर वाली टिक।
रामनगर वाली टिक वो होती है जिसमें किसी चुनाव में दो मुख्य उम्मीदवार एक ही जाति के हों। ऐसे में जब जनता जाति के आधार पर वोट देने को तैयार ना हो, या उसमें उम्मीदवारों को लगे कि जाति का फायदे से ज्यादा नुक्सान हो सकता है, तो पहले जनता को ये समझाने की कोशिश की जानी चाहिए कि प्रजातंत्र बहुत महत्वपूर्ण है और वोट ग़लत आदमी को नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन अमूमन जनता समझदार होती है और वो जानती है कि जब दोनो ही आदमी ग़लत हो, तो वोट किसी को भी दो, जीतेगा ग़लत आदमी ही। तब जनता को ये समझाने की कोशिश की जानी चाहिए कि तुम्हारा प्रतिद्वंदी अगर जीता तो वो जनता का नुक्सान करेगा, लेकिन ऐसे में जनता जानती है कि नुक्सान दोनो ही करने वाले हैं, तब इसके अलावा कोई उपाय नहीं रह जाता कि पुलिस में कम्पलेंट करवा कर अपनी तरफ के और दूसरी तरफ के पच्चीस तीस आदमियों को जेल भिजवा दिया जाए। अब जब दोनो तरफ के पच्चीस-तीस आदमी जेल में हैं तो जिसके उम्मीदवार के आदमी जेल जाने से बच गए हैं, वो अपनी मनमानी करके चुनाव जीत लेगा। बहुत आसान तरीका है। लेकिन ये तरीका सिर्फ तब ही काम में लाया जा सकता है जब उम्मीदवार, समर्थकों और मतदाताओं की संख्या कम हो। आज के दौर में जहां, उम्मीदवार भी सैंकड़ों हों, समर्थक हजारों हों, और वोटर लाखों हों, इस टिक को चलाने और इस्तेमाल करने में मुश्किल हो सकती है।
रागदरबारी के अनुसार चुनाव जीतने की दूसरी टिक नेवादा वाली है, जिसे भाजपा बहुत शानदार तरीके से बहुत बार इस्तेमाल कर चुकी है। इस टिक में होता यूं है कि चुनाव के दिनों में किसी मंदिर, धर्म, का सहारा लिया जाता है। सीधे तौर पर धार्मिक बाबा लोग चुनाव प्रचार में नहीं उतरते, लेकिन अपने-अपने डेरों और ठिकानों से अपने अंधभक्तों को ये संदेश देते रहते हैं कि उन्हें किस पार्टी को वोट करना चाहिए। ऐसे में बलात्कार और हत्या के अपराध की सजा भुगत रहे एक खास बाबा को चुनावों के आस-पास बेल, फरलो, जैसी शर्तों के नाम पर जेल से बाहर निकाला जाता है, उसे ससम्मान तब तक बाहर रखा जाता है, जब तक उसके अंधभक्तों के वोट अपने नाम हो जाएं। ऐसे में वो बाबा जी 15 रुपये का पैटोल देने की बात कर सकते हैं, या हनुमान जी से सीधे बात भी कर सकते हैं, लेकिन जो एक बात बदलती नहीं है वो ये कि चुनाव के बाद वो बाबा जी गायब हो जाते हैं, जनता के सामने नहीं आते हैं। इस तरीके को चुनाव जीतने की नेवादा वाली टिक कहा जाता है, और देश में इस टिक बहुतेरा इस्तेमाल किया जा चुका है, अब भी हो ही रहा है।
लेकिन राहुल गांधी ने जो खुलासा किया है, वो बहुत हद तक राग दरबारी के चुनाव जीतने की महिपालपुर वाली टिक जैसा है। इसे चुनाव जीतने का एक वैज्ञानिक तरीका बताया गया है जिसकी खोज न्यूटन की खोज की तरह संयोगवश हुई थी, और अब उसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है। ये चाल पूरी चुनाव प्रक्रिया में धांधली करने की एक व्यापक रणनीति है, इसमें गांव में रहने वाले लोगों के नामों को मतदाता सूची से हटाकर एक झूठी मतदाता सूची बनाना शामिल है, और फिर अपने हिसाब से वोट डालना शामिल है। राग दरबारी की महिपालपुर टिक में वैद्यजी ने चुनाव कमिश्नर को अपने साथ मिला लिया था, और चुनाव के समय की घड़ी को एक घंटा आगे और पीछे करके, दूसरी पार्टी के वोटरों को वोट डालने से ही रोक दिया था। यानी जाली वोट डालकर धोखाधड़ी से चुनाव जीत लिया था।
अब राहुल गांधी की बातों को माने तो यही तरीका महामानव ने अपनाया है, लेकिन ज़रा बड़े पैमाने पर, यानी पहले के चु आ को अपने साथ मिलाया गया। वैद्यजी ने इसके लिए चुनाव अधिकारी को काफी कुछ दिया था, यहां ये नहीं पता कि क्या लिया-दिया गया है, या कुछ लिया-दिया गया है या नहीं। दूसरे पूरी मतदाता सूची का नक्शा ही बदल दिया गया है, और फिर महिपालपुर वाली टिक के अुनसार ही के चु आ ने घड़ी में टाइम ही बदल दिया। यानी उसूलों को ही बदल दिया, एक तो डिजिटल वोटर लिस्ट देने से ही मना कर दिया ताकि धोखाधड़ी पकड़ी ना जा सके, और दूसरे चुनाव के वक्त के वीडियो रिलीज़ करने से ही मना कर दिया, बल्कि कानून में ही फेरबदल कर दिया, कि अब वीडियो को जल्द से जल्द नष्ट करने का प्रावधान हो गया। इससे हमें ये समझ में आता है कि राग दरबारी की महिपालपुर वाली टिक का भी इवोल्यूशन हो गया है। आज रागदरबारी सार्थक हुआ, और महामानव यानी भाजपा के वैद्यजी ने, पहलवान, रुप्पन, और सभी गंजहों के साथ मिलकर इस देश को महिपालपुर बना दिया है। अब तुम सब इस महिपालपुर वाली टिक से चुनाव जीते हुए वैद्यजी के शासनकाल में उनके द्वारा गबन किए हुए रुपयों की भरपाई सरकार से करने का आयोजन देखो।
खैर हमें क्या, चचा हमारे याानी ग़ालिब जो थे, वो कोई रामाधीन भीखमखेड़वी से कम शायर नहीं थे, उन्होने भी ठीक भीखमखेड़वी की तरह ये शानदार शेर इस चुनावी टिक के बारे में कहा है,
पूछो हमसे इस इलैक्शन में खिला क्या गुल कहो
कुछ हुआ ना महिपालपुर वाली टिक ही चल गई
गंजहों का देश बन के रह गया इंडिया सुनो
टापती जनता रही, बैद जी की दिवाली मन गई
एक वाक्य में कहें तो ग़ालिब को पता था कि अंततः ये बैद्य जी देश के राजा की कुर्सी पर बैठेंगे, और उसी टिक का इस्तेमाल करके बैठेंगे, बाकि वैसा ही चलेगा जैसा चल रहा है, क्योंकि ये देश गंजहों का देश बन चुका है, और गंजहे......अब क्या कहं, खुद पढ़ लीजिए।
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