सोमवार, 10 जून 2013

बंदरों के पेड़ पे....




बंदरों के पेड़ पे....

एक जंगल में एक बंदर था, बंदर अपने कबीले में बहुत माना जाता था क्योंकि वो अपने छल-प्रपंच का इस्तेमाल करके अपनी उपयोगिता को अपने कबीले पर जाहिर किए रहता था। वो जानता था कि जब तक वो अपनी उपयोगिता यूं ही जाहिर किए रहेगा कोई उसके सामने मुहं नहीं खोलेगा, कुछ नहीं बोलेगा। लेकिन बंदर तो बंदर होते हैं, नकल करना उनकी फितरत होती है, ओर साहेबान फितरत बदली नहीं जा सकती। ऐसे में उसी के कबीेले का एक छोटा बंदर, जो उसी की सोहबत में रहता था, उसी के छल-छंद देख कर सीखा और अपने तौर पर उन्हे इस्तेमाल किया। ये छोटा वाला बंदर बड़े वाले बंदर से ज्यादा चालू था। एक जेनरेशन बाद का था ना। खैर तो उसने जब पहले अपने छल-छंद चालू किए तो वो बड़े बंदर के पैर छूता था, उसके हाथ जोड़ता था, उससे अपने माथे पर तिलक लगवाता था। लेकिन वो अच्छी तरह जानता था कि जब तक बड़ा बंदर उंची वाली डाल पर बैठा है तब तक उसे ना तो उंची डाल पर बैठने दिया जाएगा और ना ही केलों का बड़ा हिस्सा उसके हिस्से आएगा। इसलिए उसने एक चाल चली, उसने अपने गिर्द भी ऐसे बंदर जमा करने चालू किए जैसे बंदर बड़े वाला बंदर अपने गिर्द जमा किए रहता था। और एक दिन ऐसा हुआ कि सभी बंदरों ने मिल कर सभा की और बड़े वाले बंदर की सबसे उंची वाली डाली को आधे से ज्यादा काट डाला, छोटे बंदर को ज्यादा सम्मान दिया गया, पद-पदवी और मान दिया गया, बड़े बंदर की आंखे भर आईं, अब वो अपने त्याग की, अपनी तपस्या, आराधना, साधना, कामना, मानना, सबकी हिचकियां भर-भर के दुहाई देने लगा लेकिन किसी ने उसकी एक ना सुनी और वो अकेला रह गया। अब वो पेड़ के नीचे बैठ कर अपने बुढ़ापे पर रोता है और उपर छोटा वाला बंदर, फल खाकर गुठलियां बड़े बंदर की पीठ पर मारता है और हंसता है। हा हा हा हा हा।

कहानी अच्छी है ना? कम से कम दिलचस्प तो है, हांलांकि हमेशा ऐसा ही होता है, किरदार बदल जाते हैं लेकिन बड़े बंदर को छोटा बंदर हमेश रिप्लेस कर ही देता है। सवाल ये है कि आपने इस कहानी से क्या सीखा? 

1. बंदरों के पेड़ पर वही बंदर माननीय होता है जो ज्यादा छल-प्रपंच कर सकता है
2. बंदर बंदरों पर अपने छल-प्रपंच का प्रयोग करके हमेशा खुद का फायदा करने की ताक में रहता है
3. बंदरों की पूंछ उनकी नाक से ज्यादा कारगर होती है, जो मक्खियां उड़ाने के काम आती है ये बात कहानी में नहीं है, लेकिन आप समझदार हैं, रीड बिटवीन द लाइन्स
4. बंदर हमेशा नकल करके ही जीता है, उसका अपना कुछ नहीं होता
5. बंदरों के कुनबे पर बहस करने का कोई फायदा नहीं है, वो वही करेंगे जो उनका मन करेगा, और उनका मन भी क्यों, वो वही करेंगे जो उनके पूर्ववर्तियों ने किया है
6. बड़ा बंदर अंत में हमेशा रोता है, छोटा बंदर अंत में हमेशा उंची डाल पर बैठ कर बड़े बंदर की पीठ पर गुठलियां मारा करता है

सदियों से यही होता आया है, अब भी यही हो रहा है और आगे भी यही होगा, गीता में ये उपदेश नहीं है, लेकिन होना चाहिए था, विश्वस्वरूप में जब कृष्ण आया तो उसे अर्जुन को ये भी बताना चाहिए था कि ”हे वत्स, जैसा तुमने किया वैसा तुम्हारे बाप ने भी किया था, तुम्हारे दादा ने भी किया था और उसके दादा ने भी वैसा ही किया था, जैसा तुम कर रहे हो, वैसा तुम्हारे बेटे भी करेंगे और उनके बेटे भी करेंगे, इसलिए देखो सोचो मत बस कर जाओ।” विश्वरूपम ने ये बात कही होती तो क्रांतिकारी होती, लेकिन ये बात तो कही नहीं, सिर्फ वही सब घिसी-पिटी बातें कही जो एक अफसर अपने मातहत से कहता है, या अपनी जगह बदली होकर आए दूसरे अफसर को बताता है। 

इन बातों में कुछ नहीं रखा, ना ही कुछ गूढ़-मूढ़ है, सब बूढ़े बंदर अपनी हैसियत छिनने पर ऐसे ही रोते हैं, जैसे वो तो अपना पेट काट-काट कर पैसे बचाएं हों और किसी बेमुरव्वत ने उनकी जेब काट ली हो। लेकिन ऐसा होता नहीं है, होता ये है कि चोरी का माल हमेशा ”मोरी” में ही जाता है। शब्द के उपर मत जाइएगा। युवा बंदर को मौका मिला तो उसने झटक लिया, अगर नहीं झटकता तो मारा जाता, फिर मौका भी नहीं मिलता। बंदरों के पेड़ पर ऐसा है भैया कि इस मौके की ताक में जाने कितने बंदर बैठे हैं, सबके सब मुहं बाए देख रहे हैं, इस बंदर ने जो ज़रा चूक की होती तो गया होता। बूढ़े बंदर के वैसे भी गिने-गिनाए दिन रखे थे, डाल आधी कट ही चुकी थी, थोड़ा भी वजन पड़ता तो गिर जाती। 

तो अच्छा हुआ कि युवा बंदर ने सब संभाल लिया, मोर्चा भी और डाल भी। 

कुल शिक्षा: बंदरों के पेड़ पर बंदरोचित व्यवहार से अलग किसी भी तरह के व्यवहार की अपेक्षा मूर्खता है। क्योंकि बंदर बंदर होता है।

1 टिप्पणी:

  1. यही है राजनीती. अपने आप को स्थापित करने के लिए, दुसरे को हटाना पड़ता है. अगर आज कल देखा जाये तो , मनमोहन, ममता, जया, मायावती ... सब कुर्सी की दौड़ में है ... पर कोई है जोह इन्हें हटा सके? मोदी के अलावा, शायद और कोई नहीं...

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