शुक्रवार, 21 जून 2013

आपदा अभी जारी है.......


आपदा अभी जारी है.......


पिछले दिनों मूसलाधार बारिश हुई और पहाड़ के इलाकों में जो तबाही मची, उससे मुझे बहुत तकलीफ हुई। सभी को हुई, सबने अपने-अपने फेसबुक वॉल पर संवेदना भरे, दुख भरे, मैसेज लिखे, कुछ ने कविताएं भी डालीं, ज्यादा रिसोर्सफुल लोगों ने फोटो-वोटो भी डाले। कुछ लोगों ने इसे प्राकृतिक आपदा कहा, कुछ लोगों ने कहा कि ये मानवनिर्मित आपदा थी, कुछ ने सरकार को कोसा, कुछ ने मुनाफाखोर लुटेरे पूंजीपतियों को कोसा, कुछ ज्ञानी लोगों ने कहा कि अगर हम कचरा नहीं फैलाएंगे, वहां यात्रा, तीर्थ यात्रा, रोमांस यात्रा आदि-आदि यात्राओं पर नहीं जाएंगे तो इस तरह की आपदाएं नहीं आएंगी। आपदा अभी जारी है।

सरकार ने इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया है। सरकार कर सकती है। कुछ सौ करोड़ का राहत पैकेज भी घोषित कर दिया गया है। सरकार ये भी कर सकती है। मुख्यमंत्री, विधायक आदि का दौरा चल रहा है, प्रधानमंत्री, और सत्तारूढ़ दल की मुख्य नेत्री का दौरा भी हो गया है, शायद अभी और भी होगा, युवराज के दौरे का पता नहीं, पर चुनाव करीब हैं उनका और उनके प्रतिद्वंदी का दौरा तो बनता है, शायद होगा भी, उम्मीद बनाए रखिए। युवराज शायद रो भी दें, रुमाल से आंखे पोंछ लें तो भी काफी होगा। दूसरे वाले शायद ये कहें कि ईश्वर देख रहा है कि धर्म का नाश हो रहा है इसलिए उसने आपको आपदा करके ये चेतावनी दी है कि धर्म का और नाश ना करें वरना और आपदा आएगी। आपदा अभी जारी है।

सरकार के सामने संकट है, संकट आपदा में फंसे लोगों को बचाने, या मरे हुओं को ठिकाने लगाने, या जो वहां के रहवासी हैं और आपदा में सबकुछ गवां चुके हैं उन्हे राहत देने, या पुर्नवास करने का नहीं है, संकट कुछ और है। सरकार का संकट ये है कि उसे ये अपना मानवीय चेहरा दिखाना है, अब मानवीय चेहरा दिखाने का परंपरागत तरीका ये है कि आप हैलीकॉप्टर से उस इलाके का चक्कर लगा आइए। चुनाव करीब हैं, हर किसी को धुकधुकी लगी हुई है, ये पढ़कर कुछ लोग जरूर ये कहेंगे कि देखो कैसे अधम है कि आपदा की इस बेला में भी इसे चुनावी चक्कर दिख रहा है, लेकिन मानिए ना मानिए संकट यही है। वरना पैकेज भी कम होता, और शोर-शराबा भी कम होता। आखिर लोगों का मरना, या इतनी तादाद में लोगों को मरना कोई नई बात तो है नहीं, आप जाने क्यों वही-वही बातें रिपीट करते रहते हो। आपदा अभी जारी है।

अच्छा देख कर बताओ तो एन जी ओ काम पर लग गई हैं क्या? राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के बड़े-’बूढ़े’ प्रबंधकों ने कुर्सियां संभाल ली हैं क्या? कुछ एक धार्मिक संस्थाओं को भी सामने आना चाहिए, आने लगी भी होंगी, कुछ बाबा लोगों के इस आपदा को, लोगों के धर्म, संस्कार, भ्रष्ट राजनीति आदि से जोड़ने वाले बयानों का आना भी या तो शुरु हो गया होगा या होने वाला होगा। फलफलांवटी, और ढिकढिकांजड़ी बांटने वाले थोड़ी देर में पहुंचेंगे, हालांकि सबसे पास वही हैं। अभी क्या जल्दी है। सरकारी राहत पैकेज की बंदरबांट होनी है, एन जी ओ विदेशों से पैसा लाएंगी, सरकारी एन जी ओ, राहत का पैसा बांटेंगी, पहले सबसे बड़े वाले को, फिर उससे छोटे वाले को, और फिर इसी तरह 20वें या पच्चीसवें नंबर पर आएगा वो आदमी जिसे असल में राहत की जरूरत है, अब अगर तब तक राहत बची रही तो उसे भी मिल जाएगी, वरना..... आपदा तो अभी जारी है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. its good and real observation in my views. every govt. does that same, actaully iske alawa aoh aur kuch kar bhi nahi skate. abb humare PM aur CM bhuude ho chuke hain, woh chal nahi sakte, isliye sarkari kharche per udte hain aur mausum ka jayaza lete hain

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  2. har mauka ek fayda hai... log bhi, sarkar bhi situation ka fayda uthate hain... I'm really proud though our army is working hard to rescue and save people. It's commendable.

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