”समय पर कचरा उठाने वाला ना आए तो सारा घर गंधा जाता है” बुआ ने बाथरूम से निकलते हुए कहा, वो पास ही चूल्हे में लकड़ियां डाल रहा था। उसने एक बार बुआ की तरफ देखा और फिर कचरे की तरफ, कचरे वाली बाल्टी पूरी भरी हुई थी और थोड़ा सा कचरा बाहर भी पड़ा हुआ था, रात बारिश होने की वजह से कचरे में पानी पड़ गया था और घर का कचरा भी घूरे की तरह बजबजा रहा था। कचरे की मीठी बदबू पूरे घर में फैली हुई थी, लेकिन कोई कुछ कर नहीं सकता था। पहले लोग रेलवे लाइन के पास कचरा फेंक आते थे, लेकिन जब से रेलवे वालों ने वहां अपनी कॉलोनी बना दी थी, बस्ती का कचरा फेंकने की जगह खत्म हो गई थी और अब सारे मुहल्ले वाले कचरे वाले की रेहड़ी का रास्ता देखते थे। हालांकि उसका निश्चित समय था और वो उसी समय आता था जब उसे आना होता था, लेकिन पिछले दो दिनो से कचरे की रेहड़ी का कुछ पता नहीं था। पूरी बस्ती में, हर घर में दो दिनों का कचरा जमा हो चुका था और लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इसका क्या किया जाए।
पहले का हिसाब अच्छा था, जामवती नाम की एक भंगन आती थी, जिसका काम घर-घर से कूड़ा जमा करना होता था, वो अपने साथ एक टोकरी लिए रहती थी, जिसमें लोग कूड़ा डालते थे, उसमें एक छोटी सी झाड़ू भी होती थी, जिससे वो आस-पास का कूड़ा बिना कुछ कहे समेट कर उठा लेती थी, वो बस्ती की हर गली में जाती थी, और गली का कूड़ा जमा करके जाने कहां ”शायद रेल की पटरियों पर ही” फेंक आती थी। इसके बदले में उसे हर घर से कुछ खाना मिलता था, घर में मां सुबह के खाने में से उसका खाना अलग करके रखती थी, जिसमें रोटी,सब्जी, होती थी, कभी-कभी मिठाई और सीधा भी रखा जाता था। खैर वो दिन तो जाने कबके हवा हो चुके थे। अब जामवती कूड़ा जमा नहीं करती थी, अब कूड़ा जमा करने का काम दो लड़कों का था जो कूड़े की रेहड़ी लेकर आते थे और बाहर से ही आवाज़ लगाते थे ”कूड़ा डाल दो” लोग अपने कूड़े के डिब्बे की तरफ इशारा करते थे और वो एक बड़े से झोले में कूड़ा जमा करके उसे रेहड़ी में उढ़ेल देते थे। सुबह 8 बजे से ही गलियों के कोनो में उनकी रेहड़ी दिखने लगती थी, और 12 बजते ना बजते वो बस्ती को मुख्य रास्ते से जोड़ने वाले चौराहे पर रेहड़ी को खड़ा करके कूड़ा बीनते थे। गीला कूड़ा एक तरफ, सूखा कूड़ा एक तरफ, फिर..... जाने वो उस कूड़े का क्या करते थे। लेकिन पिछले दो दिनो से ना जामवती दिखाई दी थी और ना ही कूड़े की रेहड़ी।
तीसरे दिन सुबह-सुबह उसकी गली में ही झगड़ा हो गया, श्रीलाल ने अपना कूड़ा गोविन्द जी के घर से सामने फेंक दिया था। अब गोबिन्द जी की पत्नि श्रीलाल को गालियां दे रही थी, और श्रीलाल आधा गेट के अंदर- आधा बाहर उन गालियों का जवाब दे रहा था। अजीब मंजर था, हालांकि श्रीलाल का दावा था कि ये कचरा उसने नहीं फेंका, लेकिन गली में सबको पता था कि हर हफ्ते कपूर के तेल की बोतल श्रीलाल के घर ही आती है, और कूड़े में कपूर के तेल की बोतल पड़ी साफ दिख रही थी। इधर श्रीलाल जी और गोविन्द जी की पत्नि का झगड़ा चालू था कि साइकिल के कैरियर पर कचरे का डिब्बा उठाए एक सज्जन आ पहंुचे, वे अपनी साइकिल को गली में पड़े कूड़े से बचाकर निकाल ले जाना चाहते थे, लेकिन जाने क्या हुआ, कैसे हुआ कि साइकिल का पिछला पहिया कूड़े पर पड़ा, एक तरफ को फिसला और फिर वो, हें हें करते रहे कि कूड़े के डिब्बे समेत पूरी साइकिल एक तरफ को उलट गई। डिब्बे का कूड़ा भी, गली में पहले से पड़े कूड़े में जा मिला। जो थेाड़ा बहुत रास्ता गली में पैदल चलने वालों के लिए बचा हुआ था वो भी बंद हो गया।
श्हारों की गलियों में वैसे ही पैदल चलने की गुंजाइश बहुत कम होती है, जबसे बैंकों ने इन्सटॉलमेंट वाला सिस्टम लागू किया है, मोटरसाइकिलों ने शहर के मुहल्लों की गलियों में कब्जा जमा लिया है। यूं लगता है कि सबने ये मोटरसाइकिलें इसीलिए खरीदी हैं ताकि उन्हे गलियों में खड़ा किया जा सके। उपर से घर बनाने वाले अपने घर के सामने गली में घर की दीवार के साथ चबूतरा बनवाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं और इसे लेकर भी अक्सर मुहल्लों में सिर फुटौवल हो ही जाती है। खैर, गली में बने हुए चबूतरों और गली के दोनो तरफ खड़ी मोटरसाइकिलों के चलते बीच में कुछ 1 या 1.5 फुट का जो रास्ता बचा रह गया था, वो कूड़े से भर गया था।
गली के कचरे में नये आदमी का कचरा मिल गया था। ये नया आदमी कोने वाले मकान के तिवारी जी के यहां नया किराएदार आया था। जब ये नया कचरा पुराने कचरे में मिला तो पहले तो सभी अवाक से चुप हो गए, फिर तीनो एक साथ शुरु हो गए। पहले डिब्बा गिरने की आवाज़, और उसके अचानक बाद एकाएक शोर की आवाज़ ने पूरे मोहल्ले के जमा होने लायक सामग्री उपलब्ध करवा दी थी। अचानक लोग अपने-अपने घरों से निकल कर उस कचरे के ढेर के पास जमा होने लगे थे। सबके पास अपनी राय थी, सबके पास अपना समाधान था, किसी का कहना था कि इस कचरे को वो नया आदमी उठाए, कोई चाहता था कि एम सी डी को फोन लगाया जाए, किसी ने कहा कि कचरे वाले लड़कों को ढूंढना चाहिए तो कोई सीधा पुलिस को बुलाने की बात कर रहा था। वो नया आदमी जो कचरा गिरने पर पहले बचाव की मुद्र में था अब अपनी साइकिल का हैंडल पकड़े सभी को देख रहा था और महौल भांपने की कोशिश में अजीब सा मुहं बना रहा था। जाहिर था कि वो अपना कचरा उठाने को तैयार नहीं था, और फिर आखिर ये पता कैसे चलता कि उसका कचरा कितना और कौन सा था।
फिर अचानक ही हाथापाई सी शुरु हो गई। हुआ कुछ यूं कि वो नया आदमी धीरे से पीछे हुआ और फिर साइकिल घुमाकर चलने की तैयारी करने लगा, उसके इस गुपचुप एक्शन को लालजी ने देख लिया, अब लालजी, लालजी ठहरे, यूं तो वो भी मुहल्ले में नये ही थे, लेकिन एक तो उन्होने यहां एक मकान खरीदा था, दूसरे वो इस किराएदार से कदरन पुराने थे। जाने किस अधिकर से उन्होने उचक कर उस नये आदमी की कोहनी पकड़ ली और उसे वापिस खींचते हुए बोले, ”तू कहां जा रहा है......” उस नये आदमी को शायद उनके कोहनी पकड़े जाने से इतना एतराज नहीं हुआ जितना उसे ”तू” पुकारे जाने से, और वो कुछ धमकी तो कुछ ”देखलूंगा” वाले लहज़े से.....सो उसने पलट कर लालाजी के हाथ को झटका दे दिया। लालजी बड़े व्यापारी थे, लेकिन बड़े पहलवान तो नहीं ही थे, उनके हाथ ने उनके शरीर समेत झटका खाया और अचानक ही उनके गले से कुछ, ”बचाओ” कुछ ”मार डाला” टाइप आवाज़ निकली। आपस में बातों के जरिए अपने एक्शनस् के बारे में बताते लोगों का ध्यान लाला जी की तरफ गया, तो देखा कि वो और नया आदमी एक दूसरे को ”खा जाने” वाली नज़रों से घूर रहे हैं, लाला जी ने अपने बायें हाथ से अपना दायां हाथ पकड़ा हुआ है, और ऐसा लग रहा है जैसे वो नये आदमी पर बस झपट पड़ने को तैयार हैं, इधर नया आदमी भी अपने फुल तेवर में था, और वो लालाजी को आखंे दिखा रहा था।
सुभाष जो अब तक तटस्थ सा इस सारे नज़ारे का अवलोकन करता हुआ अपनी पीठ खुजा रहा था। सुभाष इस मुहल्ले का ऐसा दादा था जिसे अब तक किसी से चुनौती नहीं मिली थी, उसका काम था गली के अंत में लगे खंभे के साथ एक पैर खंभे पर रखे हुए गुटका चबाना, आते-जाते लोगों को घूरना, ”सिर्फ लड़कियों को नहीं, सबको” छोटे बच्चों को डराना धमकाना, या गाहे-बगाहे किसी रेहड़ी वाले को डरा-धमका कर उसकी रेहड़ी से कुछ सामान उठा लेना। उसे लगा कि जैसे ये उसके एरिया का मामला है, उसने आव देखा ना ताव नये आदमी को थप्पड़ मार दिया, वैसे ये वही सुभाष था जिसने कुछ दिन पहले लाला जी के घर की दीवार के पास बाइक खड़ी की थी और लालाजी के एतराज करने पर उन्हे भी थप्पड़ मारा था। लेकिन इस समय मामला कुछ और था और उसे ऐसा लग रहा था जैसे लालाजी की इज्जत उसकी अपनी इज्जत है, जिसे उस नये आदमी ने लालजी का हाथ झटक कर बेइज्जत किया है। सुभाष का ये थप्पड़ नये आदमी को पूरी तरह नहीं लगा था, नया आदमी उम्र में, डील-डौल में और कद में उससे बड़ा था, दूसरे वो कचरे के एक तरफ खड़ा था और सुभाष कचरे के दूसरी ओर, पैरों को कचरे से बचाने के चक्कर में सुभाष का हाथ पूरी तरह नये आदमी के गाल पर नहीं पड़ा था, बस उंगलियां छू भर गईं थीं। लेकिन नया आदमी इस हमले से बचने के लिए पीछे हटा तो सीधा रमन भाई से टकराया जिन्होने उसे आगे घकेला तो उसका एक पैर सीधा कचरे के उपर जाकर पड़ा, फिसलने से बचने के लिए उसने हाथ आगे बढ़ाया और वो हाथ मेहता जी के सिर पर पड़ा.......इसके बाद पूरा भभ्भड़ मच गया।
जारी.....

बहुत सुंदर। बहुत ही सुंदर। मैंने विजुवलाइज किया। खूबसूरत डीटेलिंग। शानदार विवरण और ताना बाना। एमसीडी वाली बात हटा देते तो मुआमला यूनिवर्सल सा हो जाता।
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