शनिवार, 13 जुलाई 2013

नरेन्द्र-कुत्ता




शीर्षक से आप ये ना समझिएगा कि मैं नरेन्द्र को कुत्ता कह रहा हूं, या उसका अपमान या बेइज्जती कर रहा हूं, असल में मैं इस लेख का जो शीर्षक बनाना चाहता था, वो बहुत लंबा था, अब शीर्षक लंबा हो तो लोग लेख ही क्यों पढ़ेंगे, शीर्षक पढ़कर ही काम चला लेंगे। क्योंकि हिंदी पाठक बहुत आलसी होता है, सरसरी निगाह से देखता है और बस्स्स्स्स्स.....हो गया। यानी समझ गया। अबे जो नीचे लेख लिखा है उसे तो पढ़, मेरा मतलब है पढ़ो, तो अगर शीर्षक लंबा होगा तो लोग लेख नहीं सिर्फ शीर्षक पढ़ कर रह जाएंगे, इसलिए मैने शीर्षक में से जो दो सबसे महत्वपूर्ण शब्द थे, यानी ”नरेन्द्र और कुत्ता” उठा लिए और उसे शीर्षक बना दिया। इसलिए कृप्या शीर्षक को अन्यथा लें, और पूरा लेख पढ़ें, अच्छा लगे या बुरा, कमेंट जरूर करें।

अभी तो हर जगह कुत्तों और कुत्तों के बच्चों, यानी पिल्लों की बात चल रही है। नरेन्द्र ने कह क्या दिया कुत्तों के बारे में, कि हर आदमी को कुत्तों के बारे में अपने विचार प्रकट करने की थोड़ी जल्दी मच गई। कुछ लोगों का कहना है कि नरेन्द्र ने कुत्तों की तुलना इंसान से की है, कुछ का कहना है कि वो फासिस्ट है, कुछ तो खैर उसे कातिल, बेरहम और ना जाने क्या-क्या समझते हैं, और समझते रहेंगे। गलती इनकी भी नहीं है, नरेन्द्र का अपना स्वभाव, हाव-भाव, चाल-चलन कुछ ऐसा है कि वो कहता कुछ है, छपता कुछ है, और लोगों की समझ में कुछ और ही आता है। 

वैसे नरेन्द्र ने ऐसा कुछ नहीं कहा कि आप लोग ऐसी सब गलत-सलत बातें करें, उसने एक फालतू सवाल के जवाब में एक सार्थक जवाब देने की कोषिष की, यानी ऐसा जवाब जिसे सुन कर आप उसके व्यवहार, चरित्र आदि के बारे में जान जाएं, लेकिन आपने ऐसी जहमत नहीं उठाई। ये नरेन्द्र की खूबी है, आप जितना मांगते हैं, वो उससे ज्यादा देता है, कभी-कभी तो आपको मांगना ही नहीं पड़ता और वो दे देता है। 

अब यही देखिए, क्या आपने कभी नरेन्द्र को कहा कि आपको प्रधानमंत्री पद का कोई उम्मीदवार चाहिए, लेकिन उसने खुद को पेष कर दिया, क्या आपने कभी कहा था कि आपको विकास का एक मॉडल चाहिए, उसने बिना कहे पेश कर दिया, सच और झूठ पर आप बहस करते रहिए, उसने तो मॉडल पेश कर दिया। असल में नरेन्द्र जैसा व्यक्तित्व कई हजारों वर्षों में एक बार पैदा होता है, फिर मर जाता है, मेरा मतलब है जीवन तो नश्वर है, लेकिन यहां महत्व ऐसे व्यक्तित्व के पैदा होने का है। तो नरेन्द्र जैसे व्यक्तित्व के बारे में आप कोई अनर्गल बात ना सोचें और ना बोलें, और ना लिखें। 

तो सुनिए हुआ असल में क्या था, नरेन्द्र से पूछा गया कि ”क्या आपको साल 2002 में जो हुआ उसका अफसोस है?” अब नरेन्द्र तो नरेन्द्र है, उसने आपको उससे ज्यादा देना है जो आपने मांगा है, या वो दे देना है जो आपने नहीं भी मांगा। तो उसने क्या जवाब दिया, उसने कहा, ”देखिए अगर आप कार चला रहे हों तो आप ड्राइवर होते है।” जवाब के इस हिस्से को समझिए, अगर आप कार चला रहे हों तो आप ड्राइवर होते हैं, ये बात वही कह सकता है जिसने कार चलाई हो, अगर आपने कार ना चलाई हो तो आपको पता ही नहीं चल सकता कि आप ड्राइवर तभी कहलाए जाएंगे जब आप कार चलाते होंगे। गूढ़ार्थ को समझिए, इतने नेक नरेन्द्र की सद्भावनाओं पर गौर करें। उसने आपको कुछ सच्चाईयां बताई हैं। जो सवाल पूछा गया था, वो स्पष्ट नहीं था, सवाल था कि ”साल 2002 में जो हुआ क्या आपको उसका अफसोस है?” अब नरेन्द्र के इन्टरव्यू में कोई ये पूछेगा तो ये नरेन्द्र का फर्ज बनता है कि वही बताए कि साल 2002 में वही था जो गाड़ी चला रहा था, यानी ड्राइवर था। वरना कन्फ्यूज़न हो सकती थी, तो पहले उसने साफ किया कि उससे ये सवाल इसलिए हुआ है कि वही था जो कार चला रहा था, फिर उसने कहा कि, ”अगर चलती कार के नीचे कुत्ता भी आ जाए तो किसे अफसोस नहीं होगा”, यानी सबको अफसोस होगा। अब यहां भी आपको इस जवाब में गूढ़ार्थ देखने होंगे, आखिर नरेन्द्र है। तो उसने कहा कि अगर कार के नीचे कुत्ता आया होता तो उसे अफसोस होता। 

अब अगर आप इसका मतलब ये निकालने लगे कि उसने दंगे में मरने वालों की तुलना कुत्तों से की है तो ये अन्याय है। नरेन्द्र ने साफ कहा कि ”अगर” गौर कीजिए, ”अगर” पिल्ला भी कार के नीचे आ जाए तो उसे अफसोस होगा, साफ है कि उसका मतलब है कि उसे 2002 में जो हुआ उसका कोई अफसोस नहीं है, क्योंकि जाहिर है, 2002 में कोई ”पिल्ला” नहीं मरा था, बल्कि कुछ लोगों को माराकाटा गया था। अब नरेन्द्र जैसे व्यक्तित्व से आप इंसानों की हत्या पर अफसोस की बात सोच भी नहीं सकते। क्योंकि.....क्योंकि......क्यांेकि नरेन्द्र, नरेन्द्र है, वो आप हम जैसा नहीं सोचता, वो एक महान व्यक्तित्व है, और महान व्यक्तित्व पिल्लों की मौत का अफसोस कर सकता है, इंसानों की हत्या का नहीं, हमें उससे ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए। हमें उससे कैसी भी उम्मीद नहीं करनी चाहिए, वो बिना मांगे देता है, जितना मांगे उससे ज्यादा देता है। 

आपको मेरी इन बातों पर यकीन नहीं है। पूछिए रतन टाटा से, उन्होने गुजरात में कार लगाने के लिए जगह नहीं मांगी थी, नरेन्द्र ने खुद दी, और फिर इतना दिया, इतना दिया कि दुनिया की सबसे महंगी कार, शायद रतन टाटा मुफ्त में बना कर जनता को बेच रहे हैं, और भी ना जाने कितनी देशी-विदेशी कम्पनियां हैं जिन्हे नरेन्द्र मुफ्त में दे रहे हैं, जितना चाहिए उससे ज्यादा दे रहे हैं, और इस काम में जितने भी किसानों, मजदूरों की बली दी भी जाए तो उन्हे कोई मलाल नहीं है, ना अफसोस है, क्योंकि वे सिर्फ पिल्लों की मौत पर ही अफसोस जता सकते हैं, ऐसे ही हैं नरेन्द्र।

तो आप मांगे ना मांगे, नरेन्द्र ने खुद से जिद कर ली है कि वे इस देश को खुद के रूप में एक ”..........” प्रधानमंत्री देंगे, फिर चाहे आप मांगे ना मांगे, और हो सकता है कि उसके बाद इस देश में पिल्लों की दर्दनाक मौत कभी ना हो। इंसानों की बात रहने दीजिए, मरते ही रहते हैं, इसमें नरेन्द्र जैसे व्यक्तित्वों के अफसोस करने लायक कुछ है भी नहीं।

6 टिप्‍पणियां:

  1. एक बर पैदा होता है फ़िर मर जाता है! गजब बोले कपिल सर!

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  2. ha ha ha..sahi hai..Narendra Modi se jitna manga jayega woh us se jyada hi dega..!

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  3. Umeed se doguna. Bahut hia badiya kaha hai, badhe bhai. Yeh to tay hai ki Nardra Modi aur unke jaise bahot sey buddheejeevee jinmen mere kuch mitra bhi shamil hain unhen koee afsos nahin.

    Afsos ho bhi kyun, jo mare un oar ek label laga tha 'mussalma'. Jo mare wo insan kaha they. Ab itna keh bhji do, to dekhiye jawaab aayega ki jo hindo train men phoonke gaye kya woh insaan nahin they.

    Aaj tak yeh jaanch kabhi pooree nhain huee, Nitish ji ke rehate huye bhi, ki jo train ka dabba jala, wo kis tarah khak hua.

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  4. Sir Modi jaise logo ka existence Humanity ka downfall hai. Aap ne bahut achhe se Modi ka Kirya Karam kiya hai... aapka article bahut impressive aur meaningful hai. Jis tarah se Modi jaise log apni baaton ko sahi batane ke liye tod mod kar uska use karte hain aapne bilkul usi ki baaton se usko jawab diya hai. Sher ko sawa sher... Shayad aise kuch jawab se Modi jaise logo ko kuch sharam aajaye... But nahi bhi aa sakta hai kyu ki aise log bahut Besharam hote hain.

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  6. humnein socha than ki aap Narendra Modi ki tarif kar rahein hain. Par kya yeh vyang tha? Yahi vajah hai ki hindustan ke logon ko ek aisi government ki aadat ho gayi hai jo kaam toh kuch nahi karti par har dharm ke logon ko khush karti hai. Aur yeh vote bank politics par raaj karti hai. Kaunsi aisi sarkar hai jiske raaj mein dange nahin hue? 84 ke riots kisne karwaye? Sab jaante hain... par kya kya Rajiv Gandhi ko kuch kaha? Nahin, Kyunki, woh kabhi kuch nahin kehta ya karta tha. 93 mein humare paas congress ne kya kiya bombay mein hum jaante hain... par woh ek Bal Thakarey tha jisne unke gundo ko jawaab diya tha. Khair yeh baat violence support karne ki nahin hai par yeh ki aakhir mein development aur progress kisne ki. Aaj ke daur mein, development hi logon ko maar se bacha sakti hai. Aur Modi ne dikha diya hai ki joh hogaya use afsos hai ( uska koi vishwas nahin karega) par woh is desh ko nayi disha de sakta hai... koi aur hai jiska naam aata hai iske liye Arvid Kejriwal ke alawa?

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