चित्र गूगल साभार
पिछले दिनों अखबार में एक बयान पढ़ा कि देश के राजकुमार, राहुल बाबा ने कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं को ”पार्टी लाइन” पर ही चलना चाहिए। बयान तो बहुत सलीके का है, लेकिन राहुल बाबा के इस बयान से उनकी पार्टी यानी कांग्रेस के लोगों में अफरा-तफरी मच गई। बात कुछ यूं है कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को आज तक, यानी जबसे कांग्रेस का जन्म हुआ है, ”पार्टी लाइन” का पता ही नहीं है। इतिहास कहता है कि वर्तमान कांग्रेस या भूतपूर्व कांग्रेस में ”पार्टी लाइन” नाम की कोई चीज़ ही नहीं थी, बल्कि वो तो जानते ही नहीं कि ”पार्टी लाइन” नाम की किसी चीज़ को असतित्व भी हो सकता है। हमारे देश में जितने भी दल हैं, ”कौम नस्टों” को छोड़ कर, वो कुछ इस सिद्धांत पर काम करते हैं, कि कुर्सी मिल जाए, फिर उसके लिए जो भी करना पड़े वो सब स्वीकृत है। इसलिए अब तक ये पता हीं नहीं था कि ”पार्टी लाइन” होती है और उसे मानना पड़ता है।
हालात कुछ यूं हैं कि कुछ साल पहले जब दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रसंघ में जब एन एस यू आई, यानी नेशनल स्टूडेंटस् यूनियन ऑफ इंदिरा, के ”जवान” जीते तो जाहिर है टी वी पर उनका इन्टरव्यू हुआ, जिसमें उनसे पूछा गया कि वो अपनी जीत का श्रेय किसे देते हैं, जवाब था, सोनिया जी और राहुल जी, तो आप स्टूडेंटस् को क्या संदेश देंगे, सोनिया जी और राहुल जी, आप स्टूडेंटस् के लिए क्या करेंगे, सोनिया जी और राहुल जी, आप खुद क्या सोचते हैं, सोनिया जी और राहुल जी..........यानी जो कुछ भी उनसे पूछा गया उसका जवाब सोनिया और राहुल के अलावा कुछ था ही नहीं, क्योंकि उन्हे पता हीं नहीं था कि पार्टी लाइन नाम की कोई चीज होती है, उनके लिए तो पार्टी भी सोनिया राहुल थे और लाइन भी।
मुश्किल कुछ यूं है कि ”पार्टी लाइन” शब्द असल में कम्युनिस्टों की देन है, अब कम्यूनिस्ट ठहरे कौम नस्ट, उनकी हर बात किसी ना किसी विशेष कारण से होती है, इन ”कौम नस्टों” ने ”पार्टी लाइन” तक बना गेरी है। जबकि बुर्जुआ पार्टियां, असल में इस सिद्धांत पर काम करती हैं कि जो तात्कालिक नेता ने कह दिया वही पार्टी लाइन हो गई, जो मन आए कर डालो, पार्टी लाइन तो बनती-बिगड़ती रहती है। इसलिए पहले मोहनदास जो भी कह दें, वो पार्टी लाइन हो जाती थी, जैसे अंहिसा के सिद्धांत का कट्टरता से पालन करते हुए भी विश्व युद्ध को सहायता देना स्वीकार करना, या आजादी के लिए ग्रामीणों के आंदोलन को ये कहके दबा देना कि ये आंदोलन नहीं है, सिर्फ असंयत व्यवहार है। फिर जब आजादी मिली, तो नेहरू का कहना पार्टी लाइन हो गया, जो असहमत हो उसके लिए बाहर का रास्ता, फिर इंदिरा का दौर आया तो लोकतांत्रिक देश में इमरजेंसी तक कांग्रेस की पार्टी लाइन हुई, फिर राजीव गांधी के जमाने में सिखों के खिलाफ साम्प्रदायिक दंगे, बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाना, उत्तर-पूर्व जाकर ये कहना कि ईसाइत के अलावा यहां कोई धर्म नहीं चलेगा, पार्टी लाइन थी, और अब जो भी सोनिया, राहुल कहें वो पार्टी लाइन है। इसके अलावा पार्टी लाइन में हर वो काम शुमार होता है जो पार्टी का कोई ऐसा इंसान कर दे, जिसे आप हटा नहीं सकते, नीचे नहीं भेज सकते। या कभी-कभी यूं भी होता है कि काम कर दिया जाता है और बाद में सोच कर उसे पार्टी लाइन घोषित कर दिया जाता है। बाकी कुछ लोगों का ये अनुमान भी है कि भाई-भतीजावाद, दल-बदल, भ्रष्टाचार आदि भी कांग्रेस की अघोषित पार्टी लाइन रही है। लेकिन मुसीबत ये है कि ये जितने भी काम हुए ये पार्टी लाइन के नाम पर नहीं हुए, ये हुए हाई कमान के आदेस के नाम पर। कांग्रेस का सदियों से ये रिवाज रहा है कि जिससे भी, जिस भी विषय पर, जो भी पूछो वो पार्टी हाईकमान के आदेस का मंतर थमा देता है, जो इस आदेस को नहीं सुनता वो अंतरआत्मा की आवाज को सुन लेता है और किसी और पार्टी में जाकर शामिल हो जाता है। तो राहुल बाबा के पार्टी लाइन के आदेश का क्या मतलब निकाला जाए, कांग्रेसियों की यही परेशानी है।
अभी का तो क्या है कि कांग्रेस पार्टी के सारे नेता, ”ज्यादातर का कोई जनाधार ही नहीं है” वकील हैं। कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी वगैरह और भी ना जाने कौन-कौन, जो वकील नहीं हैं वो भयानक बड़बोले बूर्बक हैं, थरूर, बेनी, दिग्विजय औ ना जाने कौन-कौन, और इनका काम कुछ यूं है कि जैसे ही कांग्रेस पर, या इसके किसी नेता पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगता है, ये बात की शुरुआत ही करते हैं कि ”घोटाला नहीं हुआ।” जैसे 2 जी घोटाला, कोलगेट, और भी बाकी जितने भी घोटाले रहे, उनमें कांग्रेस का पहला जवाब था, घोटाला कोई हुआ ही नहीं। मुझे पूरा यकीन है कि अगर किसी ने कपिल सिब्बल से ये पूछ लिया कि, जनाब आपके सिर के बाल सफेद हो गए हैं, तो उसका पहला जवाब होगा, कि मेरे सिर पर बाल ही नहीं हैं, सफेद क्या होगा। या फिर ये बड़बोले जाने क्या-क्या बोल जाते हैं, और पूरा मुद्दा असली मुद्दे से भटक कर इस बात पर स्थिर हो जाता है कि किसने-किसको-कब क्या कहा था। तब दिग्विजय ये साबित करने पर उतारू हो जाते हैं कि उनसे बड़ा हिन्दु कोई नहीं, और माकन इस बात को साबित करने की कोशिश करते हैं कि हम दूसरे दर्जे नाकारा हैं, पहले दर्जे के तो आप हैं। जैसे हमने गरीबी नहीं हटाई तो आपने ही कौन सा हटा दी, या हमने शिक्षा नहीं दी तो आपने ही कौन दे दी, आदि आदि। तो ये है इनकी पार्टी लाइन।
बात का लब्बो लुबाब ये कि राहुल बाबा तो कह गए, कि पार्टी लाइन पर चलो, और हमारा तो एकमात्र सिद्धांत है कि जो हाईकमान कहे वही हमारा सिद्धांत, चाहे वो समझ में आए या नहीं, तो हम चलना तो चाहते हैं पार्टी लाइन पर, पर यहां पता तो हो कि सुसरी पार्टी लाइन है क्या, या कहां है। तो मेरी मानो भाई लोगों, सारे मिलके, एक मांग पत्र तैयार करो, जिसमें सिर्फ एक ही मांग हो, कि बाबा राहुल, या सोनिया, या जो भी बेहतर कर सके, वो पार्टी लाइन, परिभाष समेत लिख कर, काडर के बीच बंटवा दे, ताकि राहुल बाबा की बात को माना जा सके। और कम से कम इस पार्टी लाइन को तो चलने दिया जाए कि, ”हाई कमान का आदेस है।”

काफी उम्दा टिपन्नी है आपकी कपिल भाई , बधाई दरसल पार्टी लाइन जैसे कोई चीज़ नहीं है राजनीति में जो भी लकीरें और मापदंड थे वो मिट जाये और द्वस्त हो गए I दरसल राहुल गाँधी पार्टी लाइन नहीं पार्टी लेन के बात कर रहे थे यानि पार्टी लेन मे रह कर अपनी राजनीति की गाड़ी चलायें . आखिर लेन ड्राइविंग इज सेफ ड्राइविंग (Lane driving is safe driving).
जवाब देंहटाएंपार्टी लेन वो सड़क है जिसमे सत्ता का हर दलाल अपनी ओछी राजनीति के SUV पर सवार हो, उसमे भ्रस्टाचार और चाटोकारिता का इंधन छोंक छोंक संसद तक पहुँच जाने के रेस मे है! हमाम मे तो सब नंगे थे ही लकिन अब सारे नंगे हमाम छोर सड़को , और टीवी चैनलों पर आ गये हैं और पुरे दौर और समाज को नंगा और शर्मशार करने मे लगे हैं