शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

फांसी



फांसी


अच्छा हुआ फांसी हुई, फांसी यानी मृत्युदंड, यूं मृत्युदंड और भी कई तरीकों से दिया जा सकता है, लेकिन मौत की सज़ा अगर आसान हो तो फायदा क्या, और उसे ज्यादा मुश्किल भी नहीं बनाया जा सकता। मुश्किल होती है। इसलिए भारत की सचेत और प्रतिभाशाली न्यायपालिका ने आज तक फांसी की सज़ा में कोई रद्दोबदल नहीं किया है, हालांकि राज्य ने इसके लिए कई तरीके ढूंढ निकाले हैं। जैसे पहले के जमाने में मौत की सज़ा के लिए अपराधी को तोप के मुहं से बांध का उड़ा दिया जाता था, घटिया जमाना था। तोप जो है भारी होती है, कहां-कहां ले जाते फिरेंगे, और फिर जब आदमी उड़ जाए तो उसकी बोटियां समेटते फिरो, इसलिए तोप की जगह इंसान को रिवॉल्वर या बंदूक पर लगा कर उड़ा दिया जाता है, और बढ़िया बात ये कि अब इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो अपराधी है या नहीं, है ना मज़े की बात। 
फांसी के कई फायदे हैं। जनता में डर बना रहता है, फिर अगर पीड़ित ”इस मामले में बलात्कार पीड़ित” फांसी लगा ले, और आप उत्पीड़ित को फांसी दे दें, तो लीजिए किस्सा खतम। टी वी चैनलों को कुछ दिनों तक टी आर पी बढ़ाने का मौका मिल जाता है, कोई ना कोई टी वी चैनल तो ”फ से फांसी” नाम का प्रोग्राम भी लेकर आ सकता है, जिसमें अब तक कितनी फांसियां दी गई, कौन फांसी देने वाला जल्लाद सबसे मशहूर था, फांसी की रस्सी के कितने फायदे हैं, यानी इनसे भूत-प्रेत भागते हैं, या किसी और तरह की चमत्कारिक शक्ति की बातें, जैसी चीजें हो सकती हैं। देश का प्रबुद्ध वर्ग, ”ऐसे वहशियाना अपराध के लिए फांसी से उचित और कोई सज़ा नहीं हो सकती” कहकर चिंतामुक्त हो सकता है। जिन लोगों को किसी भी सामाजिक मुद्दे से कोई सरोकार ना हो, वो ये सोचकर खुश हो सकते हैं कि आखिर सरकार कुछ तो कर ही रही है। और सबसे बड़ी बात, फांसी का समर्थन करके, या राज्य फांसी देकर, इन अपराधों से जुड़े आधारभूत सवालों से बच सकते हैं। मूरख लोग पूछते हैं साहब, मैं तो महज़ हरकारा हूं। 
एक साहब ने कहा कि यानी अपराध का कारण अपराधी ही है, ये व्यवस्था नहीं है, इसलिए फांसी दे दी जाए। अपराधी खत्म तो अपराध खत्म, क्यों जी। फिर इससे राज व्यवस्था को क्लीन चिट मिल जाती है, उसे और कुछ करने को नहीं बचता। क्या जरूरत है ऐसी व्यवस्था का इंतजाम करने की जिसमें अपराध ना हो, ऐसी व्यवस्था क्या काफी नहीं है जिसमें आप फांसी दे सकते हैं, उम्र भर जेल में सड़ा सकते हैं, थाने में बलात्कार कर सकते हैं, और अपराधी को तिल-तिल मरने के लिए मजबूर कर सकते हैं। पर फिर वही बात, बातें हैं बातों का क्या। हमारे मित्र लोग बहुत खुश होंगे, वहशी दरिंदो को फांसी मिली, भई जश्न होना चाहिए। कभी राष्ट्र की सामुहिक चेतना को तुष्ट करने के लिए, कभी व्यवस्था की चुप्पी के लिए, और कभी सिर्फ इसलिए भी हो सकती है कि आपका मन कर रहा है। 
सवाल ये है, और ये सवाल उन लोगों से है जो फांसी का समर्थन इसलिए कर रहे हैं कि इससे लोगों में अपराध करने के खिलाफ डर बैठेगा, कि भाई लोगों, क्या वजह है कि 16 दिसंबर के बाद से अपराध तो बढ़ते ही जा रहे हैं, और उपर से ऐसी घटनाएं भी सामने आ रही हैं, कि बलात्कार के बाद लड़की को जान से ही मार दो, ना बचेगी लड़की, ना रहेगा सबूत और ना होगी फांसी। एक महिला हैं, जिन्होने असल में यही अंदेशा जताया था, सच हो रहा है। मेरे कुछ मित्र हैं जो अक्सर ये तर्क उठाते हैं कि जब तक व्यवस्था परिवर्तन ना हो, तब तक क्या करें, बिल्कुल सही दोस्तों, जब तक व्यवस्था परिवर्तन ना हो, तब तक लोगों को फांसियां देते चलो, ये तो मजबूरी है, करना ही होगा।
खैर हम क्यों मगज़ मारें इस सबमें, क्या कहते हो, फांसी देखने चलोगे, पॉपकॉर्न का बड़ा वाला डिब्बा ले लेंगे, कोल्ड ड्रिंक ले लेंगे, और फिंगर चिप्स या कोई और चिप्स ले लेंगे, फांसी देखने चलेंगे। बड़ा मज़ा आएगा। थोड़ा मौज-मेला रहेगा, एक रात का प्रोग्राम रहेगा। फांसियां अक्सर रात में होती हैं, या भोर के समय, सुबह-सुबह, भई सुबह-सुबह होगा तो हम तो ना जा पाएंगे, रात देर से सोते हैं ना, इतनी सुबह ना उठा जाएगा। तुम हो आना, और हो सके तो कुछ फोटोग्राफ्स भी ले आना, फेसबुक पर डालेंगे। देखना कितने लोग लाइक करते हैं। 
फांसी से दुनिया में देश का नाम होता है, अब और किसी चीज़ में तो हम नाम कर ना सके, इससे ही सही। बल्कि फांसी के नए तरीके विकसित किए जाने चाहिएं, छोटे अपराधों की सज़ा भी फांसी होनी चाहिए, हाथ काट डालने, और आंख फोड़ने जैसी सज़ाएं भी फिर से शुरु की जानी चाहिए। और इसमें विदेशी निवेश को आमंत्रित किया जाना चाहिए, आप समझ नहीं रहे हैं कि आप कितनी बड़ी सोने की खान पर बैठे हैं, ये तो ऐसा देश है जिसमें इस तरह के अपराध, या किसी भी तरह के अपराध होते रहेंगे, इसलिए फांसियों की तादाद बढ़ेगी ही, घटेगी नहीं। बच्चों को फांसी की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए, फांसी-फंासी करके एक रिएलिटी शो होना चाहिए, जिसमें कुछ लोगों को फांसी दी जाएगी। शो इनस्टेंट हिट होगा मेरी गारंटी है, सारा सरकारी अमला देखेगा, पूरी न्यायपालिका, और राज सत्ता तो देखेगी ही। माल काटोगे गुरु, बना गेरो। 
खैर, बहुत दिनो बाद अफज़ल गुरु और कसाब को फांसी मिली थी, तो सोचा था यार एक-एक इंसान को फांसी दे रहे हैं, कुछ ज्यादा होते तो मज़ा आता, लीजिए चार होग गए। राज्य व्यवस्था निपुण होती जा रही है, ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा जब हम और ज्यादा लोगों को फांसी मिलते हुए देखेंगे। तब तक के लिए शुभ फांसी।

4 टिप्‍पणियां:

  1. Mudde ki baat - filhaal ke liye, faansi se behtar insaan ko zabardasti marne ka tareeka to hone hee chahiye, jaise videshon men hota hai - dawa de kar sun kardo, aatam ko bhi pata na lage ki station kab choot gaya.

    Bhai, bahot hi mazedaar hai yeh maut ka tamaasha, khaskar jab tum bayaan karte ho. Meree duvidha hai ki faansi to kataee nahin, par fir kya. Sawaal isliye hain kyun ki chetna kund hain. Aur, gar jawaab mil bhi jaaye to bhi, zaalim manoranjan ke koee aur saadhan juta lega.

    Doosree pareshani, tum sawal bahot poochte ho jawaab kam dete ho. Vyangya katakshep ke saath yahi aanand hai. Seema ka bandhan nahin hai, oee zimedaree bhi nahin.

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छा है .....पूरा लंबा खींच कर ....फंदा ही बना लिया .....कितनों को एक साथ फांसने का इरादा लिए चलते हो.बहुत खूब .....मगर एक बात ...इसे अगर रोचक कहा दिया तो ....दुखवाद काला हास्य टाइप कुछ तो न हो जाएगा ....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. nahi hoga bhai, mudda yeh hai ki yeh sab ek hi saath judi hui cheezein hain, kaala hasya aakhir hota kya hai, to yun kaho ki aakhir aise me kiya kya jaye.

      हटाएं

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...