गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

बदलाव बिना बदलाव - आप



बदलाव बिना बदलाव - आप


भारत के साथ बहुत बड़ी समस्या है, इसे बदकिस्मती भी कह सकते हैं, और अशुभ कर्म भी कह सकते हैं। समस्या ये है कि यहां चीजें बीच से शुरु हो जाती हैं, ना उनका आदि होता है ना अंत....बस बीच से शुरु....। इससे दिक्कत होती है, विश्लेषकों को ये पता लगाने में दिक्कत होती है कि क्या हुआ, कैसे हुआ, क्या होगा, कैसे होगा, आदि-आदि। 
”आप” को ही लीजिए...यूं ही बीच से चल निकली....अरे भाई लोगों, पहले शुरु, फिर मध्य, फिर अंत, क्योंकि जो बीच में से शुरु होगा वो अधर में लटकेगा। ये वैसा ही सार्वभौमिक सत्य है जैसा ये कि जहां तेल होगा, वहां लोकतंत्र के नाम पर अमेरिका हमला करेगा ही करेगा। मेरे हिसाब से होना यूं चाहिए था कि पहले होती ”मा” यानी ” मैं और आप” अंग्रेजी में ”एम ए ए” फिर होता ”बाप” जो शायद है भी यानी ”भारतीय आम आदमी पार्टी” ठीक ही है। और फिर ये दोनो मिल जाते तब बनती ”आप” यानी ”आम आदमी पार्टी”। कुछ बात बनती, कुछ ठीक होता, हमें पता होता कि इसकी जड़ कहां है, सिर कहां है, पैर कहां है और दिमाग कहां है। याद रखिए जिसका दिमाग ना पता हो, कहां है ऐसी चीजों से दूर रहना चाहिए। पता नहीं कब क्या कर दें। जैसे अन्ना। 
जबसे दिल्ली के चुनावों के नतीजे आए हैं, बुद्धिजीवियों, राजनीतिक विश्लेषकों, राजनीतिक जिज्ञासुओं और भी ना जाने कैसे-कैसे और कैसे-कैसे जन्तुओं ने जीना हराम कर दिया है। कुछ लोग तो इसे क्रांति तक घोषित कर बैठे हैं, कर रहे हैं। समस्या सिर्फ यही है कि ”आप” के सिर-पैर का पता नहीं चल पा रहा है। क्यूं बनी, कैसे बनी, इसकी राजनीतिक विचारधारा क्या है, और आगे क्या होने वाली है। लोगों को लग सकता है कि ये सवाल आसान हैं, लेकिन जनाब इन सवालों के जवाब सबसे ज्यादा मुश्किल हैं, क्योंकि ये वो सवाल हैं जिनके जवाब बहुत घुमावदार और गंुजल वाले होते हैं। योगेन्द्र यादव कुछ बोलते हैं, केजरीवाल कुछ बोलते हैं, और इनके बुद्धिजीवी, रसिक कवि महोदय, कुमार विश्वास जिन पर विश्वास नहीं किया जा सकता, कुछ और ही सुर लगाते हैं। 
लेकिन तथ्य ये है कि ”आप” ने दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीता है, भारी मतों से जीता है, कई दिग्गजों को धूल चटा कर जीता है, जिसमें सबसे ज्यादा मिट्टी पलीत की है, भूतपूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की, जिन्हे करीब 25000 वोटों से हरा कर चुनाव जीता है। तो सबसे पहला विश्लेषण तो ये होना चाहिए कि आखिर ”आप” में दिल्ली की जनता को क्या दिखा कि उसे चुनावा जिता दिया। दूसरा सवाल ये होना चाहिए कि क्या ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई पार्टी आई और छा गई, तीसरा सवाल होना चाहिए कि क्या ”आप” यही जादू पूरे देश में कर सकती है। याद रखिए ये क्षेत्रीय पार्टियों का दौर है, जिसमें राष्ट्रीय पार्टियों की ऐसी-तैसी फिर रही है। 
पहले पहली बात, ”आप” में दिल्ली की जनता को क्या दिखाई दिया होगा। बात कुछ यूं है कि जबसे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन शुरु हुआ, चला तबसे ही ये बात चल रही है कि ये एक मध्य वर्गी आंदोलन है, क्या ये सही बात है, क्या अन्ना का आंदोलन मध्यवर्गीय आंदोलन था, जिससे आप निकली, अगर ये बात सही होगी तो कम से कम आप के स्रोत का पता चल जाएगा। यानी ये माना जाएगा कि आप एक मध्यवर्गीय आंदोलन से उपजी पार्टी है। इसका सीधा सा मतलब ये होगा कि आप एक मध्यवर्गीय राजनीतिक पार्टी है। अगर इस विचार को मान लिया जाए तो दिल्ली में आप की सफलता समझ में आ सकती है। कैसे?
अगर वर्ग विश्लेषण के तौर पर देखा जाए तो समझ में आता है कि ”आप” की जीत के इलाके भी ज्यादातर और अक्सर वही रहे जहां मघ्यवर्गीय जनता बहुसंख्या में है। जरा एक नज़र इस नक्शे पर डालें तो समझ में आता है। 

”आप” ने किन सीटों पर बाजी मारी है, कालका जी, जंगपुरा, नई दिल्ली.....वगैरा-वगैरा, 
अब अगर ये बात समझ में आ रही है तो ये साफ हो जाता कि आप को दिल्ली में जिताने वाला असल में ये मध्यवर्ग ही है। ना इससे कोई समस्या नहीं है, समस्या तो इससे खत्म होती है, क्योंकि इससे आपको ये समझ में आ जाता है कि आप क्या पार्टी है, और वो क्या करने वाली है। ये समझ में आ जाता है कि असल में आप क्यूं जीती है। 
असल में मध्यवर्ग बदलाव चाहता है, ना ना....चौंकिए मत, मध्यवर्ग सच में बदलाव चाहता है। लेकिन वो बदलाव जो दिखने में बदलावा हो, लेकिन बदलाव ना हो। आप सोचेंगे, ये कैसा बदलाव है भाई। जनाब ये वो बदलाव है जो मध्यवर्ग चाहता है, और आप ने परोसा है। मध्यवर्ग इस राजनीति के कोर-किनारों में, नारों में, कामों में कोई बदलाव नहीं चाहता। मध्यवर्ग चाहता है ऐसी पार्टी, जो उसे ये भरोसा दे, कि आप के काम-काज के तरीके में, राज चलाने में कोई बदलाव नहीं होगा, बस थोड़ा-मोड़ा कॉस्मेटिक चेंज हम करेंगे, ताकि आपको लगातार ये लगता रहे कि राजनीति की साफ-सफाई हो रही है। जैसे हम भ्रष्टाचार को पकड़ेंगे, लेकिन हम ठेका मजदूरों के बारे में बात नहीं करेंगे, हम बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के देश में होने वाले भ्रष्टाचार के बारे में कुछ नहीं कहेंगे। जैसे हम टाटा-बिडला का नाम नहीं लेंगे, बस भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलेंगे। कौन से भ्रष्टाचार के खिलाफ, कि जो टेलीफोन के ऑफिस में 150 रुपये की रिश्वत का होता है, बाकी उस भ्रष्टाचार की हम बात ही ना करेंगे, जो टाटा के लिए जमीन हथियाते हुए आदिवासियों का जनसंहार करके किया जाता है। 
मध्यवर्ग तब तक आमूल बदलाव से डरता है, उसे रोकने की कोशिश करता है, जब तक वो बदलाव उसके सिर पर खड़ा ना हो जाए। ये खामख्याली ही है कि लोग ज्यादा बेहतर जीवन के लिए बदलाव का चुनाव कर रहे हैं, असल में लोग, बदलाव के खिलाफ चुनाव कर रहे हैं, लोग चाहते हैं कि कांग्रेस और भाजपा जैसी ही व्यवस्था और नीतियों वाला, थोड़ा दिखने में ठीक-ठाक, थोड़ा ईमानदार, थोड़ा पढ़ा-लिखा आदमी आ जाए, वैसी कोई पार्टी आ जाए, ताकि कहीं ऐसा ना हो कि कोई भगतसिंह खड़ा हो जाए, क्योंकि आज के तेज़ संचार के जमाने में अगर कोई भगतसिंह खड़ा हो गया, तो ये सारी शासकवर्गीय पार्टियां, चाहे वो भाजपा हो, कांग्रेस, बसपा, राजद, जद, आप, टी एम सी, डी एम के.....मेरा मतलब इन सभी पार्टियों को तो जगह भी ना मिलेगी छुपने की। 
पिछले एक साल में इस देश ने काफी कुछ इतिहास में पहली बार होने वाला देख लिया है, दामिनी के लिए देश भर में आंदोलन,  भ्रष्टाचार के खिलाफ देश भर में जनता का आंदोलन, अगर एक और झटका लगता तो ये पक्का था कि इस देश में जनता का इस कदर जोर झटका लगता कि सत्ताधारियों को पानी मांगने का मौका ना मिलता। इससे बचाव का, सेफ्टी वाल्व है आप, जैसा कांग्रेस थी किसी जमाने में, जबकि उससे पहले कितने ही मंच आजादी के लिए बातें कर रहे थे। तो यूं कहिए कि आप जैसा करिश्मा जाने कितनी ही बार हुआ है। बसपा ने, सपा, कांग्रेस, भाजपा जैसी पार्टियों की नींद हराम कर दी। ए आई यू डी एफ 2006 की पार्टी है और उसने असम में सभी पार्टियों की नाक में दम कर रखा है, होने दीजिए चुनाव, इस बार वो भी कुछ कमाल ही करेगी। टी एम सी ने पश्चिम बंगाल के वाम शासन की जड़ें हिला दीं। कैसे हुआ ये सब करिश्मा, बिल्कुल वैसे ही जैसे दिल्ली में आप ने किया है। मध्यवर्ग के बदलाव के बिना बदलाव के सपनों को अपनी जुबान से कहने के चलते, इन सपनों से बदलाव निकाल कर इन पर साफ-सुथराई का रैपर चढ़ाने के चलते। वरना हम सभी जानते हैं कि टी एम सी, सी पी एम से बेहतर नहीं है, नीतीश लालू से बेहतर नहीं हैं, और आप - कंाग्रेस या भाजपा से बेहतर नहीं है। 
अब आती है बात ये कि क्या ये जादू पूरे देश में भी चलेगा.....बिल्कुल चल सकता है साहब। पिछले 20-22 सालों में इस देश में मध्यवर्ग बहुत मजबूत हुआ है, सेवा क्षेत्र का इतना विस्तार हुआ है कि हमारी ग्रोथ सिर्फ सेवा क्षेत्र में ही दिखाई देती है। ऐसे में अगर थोड़ा बहुत भी मध्यवर्ग को साध लिया गया तो कुछ बहुत सीट तो ”आप” झेंट ही लेगी। लेकिन इसमें ये बात भी होगी कि दिल्ली में आप क्या करती है, समस्या ये है कि वादे, वादों के तौर पर तो बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन एक तो ये कि वादे कितने और कैसे पूरे किए गए, दूसरे एक बार वादा पूरा कर दिया जाए तब क्या, यानी उसके बाद आप कुछ नया वादा करेंगे या फिर पुराने वादे को ही दोहराएंगे, जैसे कांग्रेस ने ”गरीबी हटाओ” के नारे के साथ किया, लेकिन ”कांग्रेेस का हाथ, आम आदमी के साथ” के साथ ना कर पाई। तो भ्रष्टाचार हटाने वाला नारा कैसे चलेगा, महंगाई तो ”आप” के नारों से कम ना होगी, क्योंकि ये महंगाई भ्रष्टाचार से पैदा नहीं हुई है, बल्कि भ्रष्टचार का ये आधुनिकतम रूप और ये कमरतोड़ महंगाई दोनो ही जिन नीतियों की देन हैं, उनके बारे में मुझे नहीं लगता कि आप या आप के वोटरों के मत, कांग्रेस या भा ज पा से कुछ भिन्न हैं। 

तो कुल मिलाकर बात का लब्बो-लुबाब ये है दोस्तों कि ”आप” बाज़ी में अभी आगे चल रही है, लेकिन बदलाव के बिना बदलाव चाहने वालों को ये कब तक रास आएगी ये वाकई देखने वाली बात है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. Sir,
    maine ye article 4-5 baar pura padha, jis tarah se aapne AAP ke baare choti choti baaton ko likha hai wo jabardast hai. Main AAP ka supporter hun aur member bhi hun lekin bahut saari baaton ke baare me maine socha bhi nahi jo is article ko padhne ke bad mere dimag me aaya. Aapne bahut baareeki se AAP ke baare me choti se le ke badi baaton ko darshaya hai lekin mere 2-3 sawal hain jinka jawab shayad aap de paayen
    1. Kiya AAP aaj ke corrupt system ko theek kar sakta hai ?
    2. As a political Party, AAP ka future kiya ho sakta hai ?
    3. Ek common insaan ko AAP ka support karna chahiye ya nahi ?

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  2. किसी भी राजनीतिक पार्टी का पहला आधार उसका राजनीतिक विश्वास होता है। कोई भी पार्टी, जो किसी ऐसे आंदोलन से निकली हो जिसका पहला और सबसे महत्वपूर्ण वक्तव्य ये हो कि वो एक अराजनीतिक आंदोलन है, उसका पहला और सबसे महत्वपूर्ण काम ये बताना होता है कि वो अराजनीतिक से राजनीतिक क्यों हुई, और अगर उसकी कोई राजनीतिक विचारधारा है तो वो क्या है, सिर्फ लोकप्रिय नारों पर कोई राजनीति आंदोलन चलाना या कोई राजनीतिक कार्य संभव नहीं होता। ”आज के दौर में राजनीति में गंदगी मची हुई है, भ्रष्टाचार है, और हम उस भ्रष्टाचार को साफ करेंगे” इस कथन से कुछ बातें साफ होती हैं, 1. आपको राजनीति की समझ नहीं है, 2. आप खुद को साफ मानते हैं और दूसरों को गंदा, 3. आप समझते हैं कि आप सबकी आलोचना कर सकते हैं, किसी और को आपकी आलोचना करने का अधिकार नहीं है। राजनीति असल में विचार होता है, कोई ये मान सकता है कि सिर्फ पूंजीवाद ही मानव कल्याण का सबसे सही रास्ता है, तो कोई हिन्दु धर्म को मानव कल्याण का रास्ता मान सकता है। क्या तुम्हे ये लगता है कि कोई कांग्रेसी ये समझते हुए कांग्रेस में रहता है कि कांग्रेस खराब है, या कोई भाजपाई, सपाई, बसपाई अपनी पार्टी और उसकी विचारधारा की खामियां देखते हुए भी उसी पार्टी में, उसी राजनीतिक विचारधारा के कार्य कर सकते हैं। हो सकता है अपवाद के तौर पर कुछ लोग ऐसे हों ही, लेकिन असल में ऐसा नहीं होता है। जब हिटलर ने जर्मनी पर राज किया तो क्या जर्मनों को ये लगता था कि वे कुछ गलत कर रहे हैं। बल्कि उन्हे लगता था कि सारी दुनिया गलत है और सिर्फ वही सही हैं, और वे पूरी समझदारी के साथ ये मानते थे कि जब उनकी विचारधारा जीत जाएगी तो बाकी लोग, यानी बाकी दुनिया अपनी गलती मान लेगी। यानी वे एक विचारधारा में यकीन करते थे, गलत या सही, बाद की बात है। ”आप” की सबसे बड़ी खामी यही है कि यहां आपको यही नहीं पता है कि आखिर उसकी राजनीति क्या है। क्या वो समाजवादी है, साम्यवादी है, मध्यमार्गी है, हिन्दुवादी है....मेरा मतलब क्या है। क्योंकि बिना किसी राजनीतिक विचारधारा के आप कैसे उसे समर्थन दे सकते हैं। कोई भी समझदार आदमी किसी राजनीतिक पार्टी का सदस्य इसलिए नहीं बनता कि उसके नारे लुभावने हैं, बल्कि इसलिए बनता है कि वो उसकी राजनीति से इत्तेफाक रखता है, उस राजनीतिक विचारधारा के लिए काम करना चाहता है, अपना सहयोग देना चाहता है। अगर आपको यही नहीं पता है कि आप किसी तरह की राजनीतिक विचारधारा के लिए काम कर रहे हैं तो फिर आखिर आप ”आप” का समर्थन किस आधार पर कर रहे हैं। याद रखो, हिटलर जब सत्ता में आया तो वो जर्मनी को भ्रष्टाचारमुक्त, गरीबीमुक्त, राष्ट्रीय गौरव आदि का सपना दिखा कर आया था, और ये भी सच है कि उस समय मुख्य पार्टियां भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हुई थीं। यहां मैं ”आप” की तुलना नाजी पार्टी से नहीं कर रहा, बल्कि ये बता रहा हूं कि अगर हिटलर ने सोशलिस्ट मुखौटा नहीं पहना होता तो बहुत संभव है कि वो सत्ता में आया ही ना होता। ये आपके आखिरी सवाल का जवाब है। इससे पहले का सवाल भी इसी में नीहित है, जब किसी पार्टी का कोई राजनीतिक आधार नहीं है तो उसका भविष्य क्या हो सकता है। जाहिर है उसे कोई अवलम्बन चाहिए होगा, आप के लिए ये अवलम्बन मघ्यमार्गी यानी कांग्रेस या उसके जैसी पार्टी हो सकती है। विश्व इतिहास में ऐसा कई बार हुआ है, और इस व्यवस्था में ऐसा आगे भी होने की संभावना है।

    अब बात आती है आप द्वारा किए जा रहे दावे यानी भ्रष्टाचार को खत्म करने की। मैं अक्सर अपने बच्चों को इस तरह के सवालों का जवाब देते हुए कहता हूं कि इसका सरलीकरण कर दो तो मामला समझ में आ जाएगा। बाकी गुत्थियों को बाद में देखेंगे। अगर कोई मशीन कटोरी बनाती है, तो उसका कोई स्क्रू या बोल्ट ठीक करके, उससे प्लेट नहीं बनाई जा सकती, इसके लिए आपको उस पूरी मशीन को बदल देना होगा, उसके मुख्य पुर्जों को तो खासतौर पर बदलना होगा, तब ही आप उस कटोरी बनाने वाली मशीन से प्लेट बना सकते हैं। इसके अलावा आप कटोरी बनाने वाली मशीन को साफ कर सकते हैं, ताकि कटोरियां चमकती हुई निकलें, लेकिन निकलेंगी कटोरी ही, क्योंकि वो एक कटोरी बनाने वाली मशीन है। भ्रष्टाचार इस व्यवस्था का अंर्तनिहित हिस्सा है, ये व्यवस्था भ्रष्टाचार को जन्म देने, उसे पोषित करने और बनाए रखने के लिए ही बनी है। ”आप” के आ जाने से हो सकता है कि भ्रष्टाचार थोड़ा और सोफिस्टीकेटिड हो जाए, लेकिन इस व्यवस्था में उसे मिटा पाना संभव नहीं है। ”आप” मन से भी चाहे, पूरी ईमानदारी से भी चाहे, तो इस व्यवस्था से भ्रष्टाचार खत्म नहीं कर सकती, क्योंकि तब पूरी व्यवस्था ही खत्म हो जाएगी।
    अगर कोई और बात तो कहना!!

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    1. Sir,
      Aapki saari baaaten accept karta hun aur ye bhi maanta hun ki bina vichardhara ke kisi political party ka astitva nahi ho sakta ya jyada din tak chal nahi sakta. Agar main apne angle se dekhta hun to muje yahi samaj aata hai ki log itne jyada frustrated ho gaye hain jahan bhi ummed ki kiran najar aati hai wahin chale jaate hain. AAP ki jeet se yahi dikhta hai ki kahin na kahin pe existing political parties aur Goverment ko aur jyada better hone ki jarurat hai. AAP ka future chahe jo bhi ho ek baat to saaf ho gaya ki ek aam aadmi bhi agar chahe to desh badal sakta hai.
      Corruption to completely khatam nahi ho sakta lekin jis Corrution se desh ki economy damage ho hati hai (for example - 2G Scam, Common Wealth) is type ke corruption ko to ek achhi Govt form kar ke roka ja sakta hai. Ya fir ek Darr paida kiya ja sakta hai ki Corrution karne walo ko maaf nahi kiya ja sakta. In dono hi cheejo ke liye ek aisi Govt chahiye jo khud pahle Corruption me involve na ho. Ab aise terms n condition pe aap BJP ya Cong se expect nahi kar sakte haan kuch achhi Vichardhara wale log jo honest aur effective logo ko ek sath to aana hi padega, chahiye wo ek platform AAP ka ho ya koi aur.

      Main ye maanta hun ki AAP ek initiative hai har us Indian ke liye jo effective hai kuch achha karne ko, jo capable hai kisi bhi term n condition pe situation ko face karne ko. Main ye maan leta hun ki AAP ki koi vichardhara nahi hai, lekin kuch log jaise Kpil sir aap aur aap jaise doosre agar chahen to isko ek Vichardhara de sakte hain aur system ko bahut hadh tak sudhar sakte hain. Sir aap mere ek sawal ka jaywab dijiye - kiya aap nahi chahte ki Desh ki halat kuch to sudhre ? Jaorr chahte, muje ye lagta hai har us insaan ko ek platform pe aana chahiye jisko ye samj hai ki burai ko completely khatam nahi kiya ja sakta, kam jarur kiya ja sakta hai. Ab wo platform koi bhi ho sakta hai, matter ye karta hai ki aise log ek sath Ekjut kaise ho ?

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