शनिवार, 11 जनवरी 2014

सूरज के घोड़े - पहला घोड़ा

सूरज के घोड़े 

पहला घोड़ा


शाम हुई नहीं कि इनका रिरियाना चालू, काहे कि दवा-दारू का टैम हो गया है। बिस्तर से उठा नहीं जाता, हगना-मूतना तक खटिया पर ही होता है, लेकिन दवा दारू के लिए हाय-हाय किए जाएंगे। उर्मिला भी दिए जाती है, किए जाती है। लोगों के यहां काम करने जाती है, तो खाने को मिलता है, वही बांध-बूंध के ले आती है, रोटी चबाना तो इनके बस का है नहीं, इसलिए पानी में घोल के सत्तू जैसा बना के पिला देती है, कभी कोई मोटा निवाला अटक जाए गले में तो आफत हो जाती है, उंगली हलक में डाल कर निकालना पड़ता है। 
पता नहीं भगवान किन करमों की सजा दे रहा है, सजा क्या अभी दे रहा है, जबसे पैदा हुई है सजा ही तो भुगत रही है। किस्मत की ऐसी धनी है कि जब पैदा हुई उसके एक ही साल बाद अपने इकलौते बड़े भाई को खा गई, और जब तीन की हुई तो पिताजी को खा गई। ये इसकी समझ में अब तक नहीं आया कि ये ही कैसे खा गई, किसी और के माथे भाई और पिता की हत्या का आरोप क्यों नहीं आया। ......पर सब करमों का परताप है, जो लड़की बनके पैदा हो वो तो वैसे ही अभागा होता है, फिर अभागे पर ही बुरे करमों के आरोप लगते हैं। इंसान जब अच्छे करम करता होगा तो अगले जनम में लड़का बनता होगा, बुरे करम करता होगा तो कुत्ता, सूअर की जगह भगवान उसे लड़की बना देते होंगे, हां, उन जानवरों की जिन्नगी लड़कियों से तो अच्छी ही होती होगी। 
बच्ची रही तो भूखी रही, कि लड़के को मिलेगा, जब लड़का गया तो इसलिए भूखी रखी गई कि पूर्व जन्म के पापों का प्रायश्चित करे, लेकिन पाप ज्यादा थे, इसलिए बाप मर गया तो भूखी रही कि खाने को घर में कुछ था ही नहीं, अब अपना पति है, अपने बच्चे हैं इसलिए खाने को पूर नहीं पड़ती। लोग झूठ ही कहते हैं कि जिसने मुहं दिया है वो दाना भी देगा, कहना ये चाहिए कि अगर पेट भर नहीं दे सकता तो पेट दिया ही क्यों था। नहीं.....भगवान के बारे में ऐसा नहीं बोलना चाहिए। भगवान से वो बहुत डरती है, वो छोटी सी थी, जब भगवान नाम के पड़ोसी दुकानदार ने दुकान के अंदर ना जाने उसके साथ क्या-क्या किया था, उससे वो इतना डरती थी कि रात को उसे नींद तक नहीं आती थी, कि अगर बंद आंखों में उसका सपना आ गया तो क्या होगा, और मां थी कि उधार लेने के लिए उसे ही भेजती थी, ना जाओ तो मां पीटती थी ओर जाती थी तो.........भगवान......। 
उसका पति बचपन में घर से भाग गया था, साधू बनने, मां बाप का इकलौता था, इसलिए सबने खूब ढंूढ़ा, कई सालों तक गायब रहा, फिर जैसे गया था, वैसे ही एक दिन वापस आ गया, मां-बाप ने अच्छा सोचा, लेकिन डरते तो थे ही कि कहीं फिर ना भाग जाए, और कोई अपनी लड़की भी देने को तैयार नहीं था, कि कहीं शादी करके भाग जाए तो......तो लड़की का क्या होगा, और उसकी मां तो जैसे इसी इंतजार में थी कि कोई इस तरह का लड़का-विड़का मिल जाए तो उसका ब्याह कर दे......मां के अच्छे करम और उसके बुरे करमों के बदौलत वो लड़का उसका पति हो गया.....। जिसने अपनी आधी जिंदगी बेकार घूमने और मांग कर खाने में गुजारी हो, वो किसी हालत में मेहनक करके खाने का हामी नहीं हो सकता, लड़के ने ना तो शादी से पहले कभी काम किया था, ना ही शादी के बाद काम किया, साधुओं की संगत में उसे दो चीजों की घनघोर लत लग गई थी, एक गांजा और दूसरा .......कहा नहीं जाता, यूं कह देना चाहिए, फिर भी उसके साथ दो बच्चे पैदा कर दिए ये क्या कम चमत्कार है। 
चमत्कार तो ये भी है कि ऐसे बुरे करमों के बावजूद उसके दोनो बच्चे लड़के पैदा हुए, और दोनो ही अब तक जीते हैं, लेकिन लोग कहते हैं कि उसके बुरे करमों का नहीं, ये उसके पति के अच्छे करमों का फल है, जिसने अपनी आधी जिंदगी साधू बनके ईश्वर की सेवा में लगा दी। लड़के अच्छे करमों का फल होते हैं और लड़कियां बुरे करमों का फल होती हैं। उसकी मां, उसकी सास, और जमाने भर की सब बड़ी-बूढ़ियां उसे यही समझाती रहीं कि उसे अपनी पति की जी जान से सेवा करनी चाहिए, कि उसके बुरे करम तभी कटेंगे जब वो अपने पति की सेवा करेगी। और वो करती रही......
पहले मां मरी, फिर सास, ससुर.....घर में खाने को कुछ नही हो तो इंसान क्या कुछ नहीं करता। उसके पति को तो कोई ना कोई खाने को दे ही देता था, अपने गांजे का जुगाड़ भी पति कहीं ना कहीं से कर ही लेता था, और अपनी सधुक्कड़ी में इतना मस्त रहता था कि उसे कोई फरक नहीं पड़ता था कि उसे बीवी-बच्चों ने खाया या नहीं, लेकिन उसके अच्छे करमों के सदके जो बच्चे पैदा हुए थे, उनका पेट भरने की जिम्मेदारी, ईश्वर की नहीं उसकी थी, और वो उसे किसी ना किसी हीले से पूरा करती थी। कभी मांग कर, कभी चुरा कर.......वो जानती थी कि इस जनम में उसका मांगना और चुराना उसे अगले जनम के लिए भी अभिशप्त कर रहा है, लेकिन ये जनम किसी तरह कटे.....सोच कर वो जो बन पड़ता था वो करती थी। 
फिर किसी की मेहरबानी से उसे झाडू-बुहारू का काम मिल गया। साफ-सफाई करो, और इतना मिल जाता है कि भूखे नहीं मरना होता, हालांकि खाने को अब भी आधे पेट ही मिलता है, लेकिन कम से कम कुछ दाने तो पेट में पड़ते हैं। अगर एक घर और मिल जाए तो शायद पेट पूरा भर जाए। तब से लेकर अब तक वो एक घर के काम से पांच घरों के काम तक बढ़ गई है लेकिन......उसका पेट अब भी नहीं भरता।
पति को लकवा मार गया, फिर बेटे का पैर कट गया, एक बेटा बीमार पड़ गया। उसके खराब करमों की छाया उसे पूरे परिवार पर पड़ रही थी, और पति के अच्छे करम मांदे पड़ रहे थे। फिर अपनी जान को काट-काट कर उसने जितना हो सकता पति का इलाज करवाया, बेटों का इलाज करवाया और.....और....इसी तरह दिन कट रहे हैं, सूरज रोज निकलता है, रोज छुपता है, रोज दिन कटते हैं, उसके करम भी कटते हैं, शायद किसी दिन उसके पिछले जनमों के करम कट जाएंगे सारे, वो भी लड़का हो जाएगी, या शायद उसके दिन फिर जाएं, जैसे अक्सर ईश्वरीय कथाओं में लोगों के फिरते हैं, कहते हैं, घूरे के दिन भी फिरते हैं, 12 साल में, क्या उमर हो गई उसकी, कई 12 गुजर गए, उसके दिन नहीं फिरेंगे, उसके पुराने जनम के करम बहुत ज्यादा बुरे हैं, उसके दिन नहीं फिरेंगे। 
रात हो गई है, कल जब सबेरा होगा तो वो फिर अपने पुराने जनम के करमों को काटने निकलेगी, और सूरज के ढलते ना ढलते अपनी पूरी ताकत भर इस कटान में लगी रहेगी......शायद उसके करम कट जाएं और वो अगले जनम में लड़का पैदा हो......

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