बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

चाय, चर्चा और मोदी

चाय, चर्चा और मोदी


जनता बावली है! ऐसा मैं नहीं सोचता, वो लोग सोचते हैं जो चाय के बहाने जनता को बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं। चाय के साथ चर्चा की चर्चा तो यूं हो रही है जैसे ये लोग चर्चा में यकीन रखते हों, पर यकीन मानिए, चाय पिलाने के बहाने ये लोग चर्चा को खत्म कर देने के मूड में हैं। बताइए तो, कोई ऐसा गिरोह जो प्रेस कॉन्फ्रेसों में जाकर खुली चर्चा में हुड़दंग मचाता हो, जो किसी भी तरह की कलात्मक अभिव्यक्ति के खिलाफ हो, जो हर उस शख्स के खिलाफ फतवे देने में यकीन रखता हो, जो इनके अपने विश्वास के खिलाफ बोले, वो लोग चाय पर चर्चा करने की बात कर रहे हैं। और इससे भी बड़ी हास्यास्पद बात ये है कि आखिर इनके पास चर्चा करने के लिए है ही क्या, जो ये चाय पर चर्चा कर रहे हैं। 
अब चाय तो समझ में आती है, इसका कारण बताया जाता है कि इनके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार, किसी जमाने में चाय बेचा करते थे, लेकिन चर्चा का कोई मतलब समझ नहीं आता, क्योंकि किसी भी जमाने में इनके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार या किसी भी पद के उम्मीदवार ने किसी भी चीज़ पर चर्चा कभी नहीं की.....हालत ये है कि ये जिनके नाम की चाय पर चर्चा हो रही है, वो मतिभ्रम के शिकारी मालूम पड़ते हैं, कभी भूगोल को उलट-पलट देते हैं और की इतिहास की शामत बुलाते हैं। ज़रा सोचिए तो क्या बात होती होंगी चाय पर......
एक: हां भई.....
दूसरा: हां भई.....
एक: और कहो.....
दूसरा: हा हा हा हा हा ......
एक: हा हा हा हा....
दूसरा: और कहो.....
एक: चाय पियो....
दूसरा: हा हा हा हा......
भई इसके अलावा हमें तो कुछ समझ में आता नहीं कि ये लोग चाय पर क्या बातें करते होंगे, क्योंकि ये हमारा व्यक्तिगत अनुभव है कि इनके पास कहने-सुनने के लिए कुछ खास होता ही नहीं है। फिर अब तक हमने जितनी रैलियां देखी-सुनी हैं, जिनके बारे में खबरों में पढ़ा है उनमें भी ऐसा कुछ नहीं है कि जैसे किसी बात पर चर्चा की जा सके, या कोई ऐसा मुद्दा इन्होने उठाया हो जिस पर लगता है कि देश के लोग कुछ बात कर सकें। ले देकर वही घिसी-पिटी बातें हैं जो लोग-बाग तब करते हैं जब वो या तो अफीम के नशे में होते हैं या सत्ता के नशे में होते हैं। 
पर चाय की बात कुछ खास होती है, तो पहले चाय के बारे में ही कुछ ”विचित्र किंतु सत्य” टाइप तथ्य जान लें तो बेहतर होगा। भारत कुछ साल पहले तक दुनिया का सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश था, अब नहीं है। खुद भारत के लोगों को चाय इतनी महंगी पड़ती है कि आजकल चाय का एक कप 7 से 10 रु. तक का पड़ता है। भारत में चाय वो बिकती है जो विदेश भेजने से बच जाती है, जो अमीर लोग नहीं पीते वो मध्यवर्ग पीता है, जो मध्यवर्ग हीन समझता है उसे गरीब आदमी पी लेता है। उस चाय को पीने से देश नहीं जागता, जैसा कि चाय के विज्ञापन में दिखाया जाता है। गरीब जो नहीं सोता है वो इस चिंता में, कि कल क्या होगा.....। चाय के प्लांट में मजदूरों को 17वीं-18वीं सदी के गुलामों जैसा व्यवहार मिलता है, वो जीते हैं तो प्लांट के मैनेजर की मर्जी से और मर जाते हैं तो कोई पूछता तक नहीं है, और अगर उनके हक में कोई आवाज़ उठाता है तो उसे सरेआम दिनदहाड़े मार दिया जाता है, असम में गंगाराम कौल जी इसके हालिया उदाहरण हैं। 
लेकिन हमें मोदी का आभार मानना चाहिए....कि उन्होने चाय पर चर्चा को अभियान बनाया, क्योंकि उन्होने अपनी जवानी में बहुत से ऐसे काम किए हैं कि अगर वो उन पर चर्चा करने का अभियान चला देते तो सचुमच आफत आ जाती.....जैसे वो बचपन में घर छोड़ कर भाग गए थे, फिर उन्होने अपनी बीवी को छोड़ दिया, अब सोचिए घर छोड़कर भागते हुए चर्चा या बीवी को छोड़कर भागते हुए चर्चा करने का अभियान चलता तो क्या हालत होती। ये ठीक भी है कि मोदी चाय वाले दिनों तक ही सीमित रहें, क्योंकि अगर दंगों या महिलाओं का पीछा करवाने, या नकली एनकाउंटर वाले दौर की बातों को अभियानों में तब्दील करने पर आ गए तो देश का क्या होगा। जरा कल्पना कीजिए सारे देश की महिलाओं के पीछे जासूस लगे हैं और साहब को हर महिला की पल-पल की खबर दी जा रही है। इसलिए चाय पर चर्चा ठीक है, और इसके लिए हमें मोदी का आभार मानना चाहिए। 
हमें चाय पर चर्चा की तारीफ करनी चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि भाजपा के हर नेता को चाय पर चर्चा में शरीक किया जा सके। ये बात मैं स्वार्थवश कह रहा हूं, बात कुछ यूं है कि मुझे लगता है और ये मेरा व्यक्तिगत मत है कि बन्दरों और बेशर्म गुण्डों को अगर कहीं उलझा दिया जाए तो वो हुड़दंग कम करते हैं। मैं व्यक्तिगत तौर पर उम्मीद करता हूं कि मोदी समर्थक चाय पर चर्चा के दौरान चाय पीते रहेंगे तो देश में कुछ वक्त के लिए अमन शांति रहेगी और बाकी शरीफ लोग बिना चाय भी कुछ ठीक-ठाक किस्म की चर्चा कर पाएंगे, क्योंकि हुड़दंग मचाने वाले तो कहीं और चाय पर चर्चा कर रहे होंगे, हालांकि वो चर्चा करेंगे इसमें संदेह है, पर उससे फर्क भी क्या पड़ता है।
बस मोदी से मेरी एक दरख्वास्त है। साधारण सी, चिन्नी-मिन्नी सी मेरी दरख्वास्त ये है कि मोदी व्यक्तिगत तौर पर पक्का करें कि चाय पर चर्चा के दौरान उनके समर्थक चाय ही पिएं, कपों में कुछ ”और ” ना ढाल लें। अभी हाल में दिल्ली पुस्तक मेले के दौरान एक स्वस्थ चर्चा के दौरान जो हुआ, उससे मुझे संदेह है कि ये लोग चाय की जगह कुछ ”और” पी पिला रहे हैं। बाकी तो आपकी चाय है आपकी चर्चा है, जो मर्जी कीजिए हमें क्या।

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