सोमवार, 9 मार्च 2015

धर्म और ईश्वर

खुदा, भगवान, ईश्वर.....आखिर हमें इनकी इतनी जरूरत है क्यों? अच्छा यूं मान लो कि धर्म और ईश्वर अलग हैं, तो....धर्म आखिर है क्या....एक संगठित संस्था, जो किसी भी तरीके से, तरह से, इंसानी समाज को कुछ असीमित नियमों में बांधने का काम करता है। माता पिता की सेवा करो, चोरी मत करो, झूठ मत बोलो.... ये तो बहुत सामान्य से नियम हैं, जो अमूमन धर्म के बारे में वैचारिक बहस में आते हैं। लेकिन ज़रा सोचो, क्या बिना धर्म के बारे में सोचे, एक संवेदनशील इंसान के लिए इन सामान्य नियमों का, क्या कोई महत्व नहीं रह जाता। अगर तुम्हारा जवाब नहीं है तो मुझे तुमसे और बात नहीं करनी....लेकिन अगर तुम्हारा जवाब हां है तो फिर ज़रा यूं सोचो कि आखिर ये संवेदनशीलता कहां से आती है, धर्म से, धार्मिक संस्था या सामाजिक परिवेश से, सवाल मुश्किल है क्या....इतिहास में पता करते हैं, बच्चों को मारने, यौन शोषण करने, दास बनाने आदि में किस संस्थानिक शक्ति का सहारा लिया गया, धर्म का....स्त्रियों को मारने, यौन शोषण करने, दास बनाने में किस संस्थानिक शक्ति का सहारा लिया गया, धर्म का....और मेरा यकीन मानो, मेरा इरादा किसी एक या खास धर्म का नाम लेने का नहीं है। क्योंकि ये काम सभी संस्थानों ने किया है, धर्म...चाहे वो कोई किसी हालत में, किसी भी परिस्थिति में किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। वो तुम्हे रास्ता नहीं दिखा सकता। हां सामाजिक परिवेश में सुधार करके, संवेदनशीलता और प्रगतिशील सोच को समाज की मुख्य संचालक शक्ति बनाया जा सकता है। अब ज़रा यूं सोचो कि सामाजिक महत्व के बड़े सवालों के बारे में धर्म क्या सोचता है। मेरा संगठन किसी भी दूसरे संगठन से ज्यादा बेहतर और ज्यादा अच्छा है, या किसी भी अन्य संगठन को काम करने का अवसर नहीं देना चाहिए, क्योंकि वो मेरे संगठन के बारे में गलत बातें फैलाता है। ये किसी भी संगठन या संस्था का मूलमंत्र हो सकता है होता है। इसमें सामान्य नियम यही है, कि अगर कोई दूसरा संगठन बेहतर होता तो मैं उसमें शामिल होता या होती....क्यों....गलत कहा क्या? तो इस सामान्य नियम से ये तो मान ही सकते हैं कि हम जिस संस्थागत धर्म के सदस्य हैं, वही सर्वश्रेष्ठ और बेहतर है। जो संगठन आपको ये सोचने की आज़ादी नहीं दे सकता कि कोई दूसरा संगठन श्रेष्ठ हो सकता है, वो किसी और चीज़ की आज़ादी कैसे दे सकता है। और यहीं धर्म का सबसे बड़ा विरोधाभास नज़र आता है, आपकी तरक्की आपके विचारों की तरक्की के बिना संभव नहीं हो सकती, विचारों की तरक्की विचार बदलने पर होती है, विचारों के बदलने से आपक किसी और संगठन या संस्था के सदस्य होने पर विचार कर सकते हैं, इसलिए विचारों की तरक्की रोकना इस तरह के संगठन और संस्था का मुख्य कार्य होता है। 
अब ज़रा धर्म से जुड़े ईश्वर या उसके असतित्व के सवाल पर आते हैं, धर्म का ईश्वर से अलग नहीं किया जा सकता। ये मेरा अपना मानना है। धर्म संस्थानिक तौर पर अपनी मान्यता, अपनी शक्ति या सत्ता, और अधिकार ईश्वर से ही लेता है। ईश्वर के बिना धर्म संभव नहीं है। या फिर मुझे वो धर्म बताओ जिसमें ईश्वर नहीं होता। एक बैद्ध धर्म पैदा हुआ था, लेकिन उसमें भी पहले तो खुद में ही ईश्वर को खोजने का प्रावधान है और फिर बाद में वही धर्म इसके संस्थापक को, यानी बुद्ध को ईश्वर बना देता है। क्योंकि धर्म बिना ईश्वर के संभव नहीं है। अब ईश्वर जो है वो सभी का समान ही है, कैसे....?
ईश्वर के चारित्रिक विशेषताएं क्या हैं....ज़रा सूची बनाओ....
1. वो सर्वशक्तिमान है
2. वो सर्वव्यापी है
3. वो भले और बुरे का निर्णायक है
4. वो निर्माता और विघ्वंसक है
5. मानव जीवन का ध्येय उसे खुश करना होना चाहिए
6. वो सज़ा देता है, पुरस्कार देता है

आदि आदि.....खैर....अभी ये मत सोचो कि वो दिखता है या नहीं दिखता, एक है या अनेक है.....क्योंकि ये सब उसकी शारिरिक विशेषताएं हैं.....
इसको इस तरह सोचो कि उत्पाद यानी ईश्वर एक है, उसके सेल्समैन कई सारे हैं, अब क्योंकि इस उत्पाद का कोई वजूद नहीं है, इसलिए इसके सेल्समैन तुम्हे इसे इस्तेमाल करने के कई तरीके बताता है, कोई कहता है, सिर पर मलो और फिर धूप में सिर कर दो, कोई कहता है सर पर ठंडा पानी डालो.....यानी मस्जिद हो या मंदिर हो....उत्पाद वही है, नमाज हो या हवन हो, उत्पाद वही है।
तब झगड़ा क्यों है, कारण वही है, अगर तुम किसी दूसरे सेल्समैन के पास जाओगे और दूसरी संस्था का मेम्बर बनने की सोचोगे तो इस संस्था का क्या होगा। कमाल का ईश्वर है जो अपनी संस्था का खुद ख्याल तक नहीं रख सकता। उसके स्वयंभू एजेण्टस् को ये जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। ज़रा सोचो तो, सभी धार्मिक संस्थाओं का सबसे बड़ा डर क्या है, मेरी संस्था खत्म हो जाएगी, मेरा धर्म खत्म हो जाएगा, इसलिए ना किसी को किसी दूसरे धर्म की संस्था में जाने दो, ना उसका ध्यान करने दो, वरना हमारी संस्था पर खतरा हो जाएगा। धार्मिक आतंकवादी जो स्वयंभू ईश्वरीय एजेण्टस् हैं, उन्हे आखिर किसने ये कहा कि जाओ ईश्वर की इस संस्था की रक्षा करो।
अब सही और गलत के चक्कर में मत पड़ो। ये बिल्कुल कॉरपोरेट के जैसा ही है, अगर ग्राहक किसी और दुकान पर चला गया तो इस दुकान का बंद होना तय है। उपर से धर्म का सारा कारोबार चलता है रेपुटेशन पर....अगर रेपुटेशन में कोई और धर्म बाज़ी मार ले गया तो इस धर्म का क्या होगा जिसके हम सेल्समैन हैं.....
खैर, जो समझदार होते हैं, वो सामाजिक प्राणियो की तरह बर्ताव करते हैं, और मेरे अपने अनुभव बताते हैं कि नास्तिक ज्यादा बेहतर सामाजिक प्राणी होते हैं, बाकी धर्म या किसी और वैचारिकी का पालन करना बहुत ही निजी मामला है....इसेलिए आपका धर्म....आपका ईश्वर आपको मुबारक....हमें अच्छा इंसान बनने के लिए किसी सज़ा के डर की, उपहार के लालच की, या किसी सहारे की ज़रूरत नहीं है।

इस बारे में और लंबी बात हो सकती है, लेकिन फिल्हाल इतना ही....

बुधवार, 4 मार्च 2015

कपिल की कुंडलियां

कैसे हंसे नंद के लाला, कैसे छाने भंग

होली का तो हो गया, सब मौसम बदरंग
सब मौसम बदरंग, बजट कुछ ऐसा लाए
जूता छोड़ सभी चीजों के दाम बढ़ाए
महंगी में जनता के मुंह से छिना निवाला
अब बोलो भई, कैसे हंसे नंद के लाला

चित्र गूगल साभार


होली है इस बार की, एक रंग का खेल
बेशर्मी के रंग से, खेल सके तो खेल
खेल सके तो खेल, हमें तो यही दिखाया 
साहेब, औ’ भक्तों के भाग्य की यही है माया
शर्म को खाया, ओढ़ा, सूरत उससे धो ली
बेशर्मी से सराबोर, इस बार की होली

काला धन आया नहीं, सस्ता हुआ ना तेल

रोनी सूरत लेके होली, खेल सके तो खेल
खेल सके तो खेल, पड़ेगी जेब पे भारी
बिन रंगो के होली की कर ले तैयारी
जन की खुशियों पर जुमलों का लग गया ताला
अभी तलक ना आया सुसरा कोेई धन काला
चित्र गूगल साभार
छप्पन इंची छाती वाले नेता जी के भाग
जनता रोये ज़ार-ज़ार और धनिक गा रहे फाग
धनिक गा रहे फाग, लूट का मौका आया
लूट्यौ जो भी लूट सको, मोदी की माया
मरते हैं खेतों में अन्न उगाने वाले
राज कर रहे छप्पन इंची छाती वाले

रविवार, 1 मार्च 2015

बजट - रोनी सूरत मत बनाओ बे...


बजट - रोनी सूरत मत बनाओ बे...
कल, यानी गुजरे कल, यूनियन बजट पेश किया गया। अरुण जेटली ने पेश किया, बनाया किसने था ये कोई ढंकी-छुपी बात नहीं है। असल में बजट उन्हे ही बनाना चाहिए जो दिन-रात पैसा-पैसा करते रहते हैं। मुझे ये बजट असल में बहुत अच्छा लगा, मेरा हमेशा से यही कहना है कि जिसका काम उसी को साजे, यानी बजट वो बनाए जो ये जानता हो कि घाटे को कैसे पूरना है। जनता का क्या है जी, यूंही भुुरभुराती है। ये देश जो सुसरा पिछले सत्तर साल से घाटे में जा रहा है, इसे कोई घाटे से उबारेगा भी या नहीं, बिचारा मनमोहन सिंह तो कोशिश किया, तुमने करने ही नहीं दिया। वो चाहता था कि पूरा बजट अमरीका से बन कर आए और यहां लागू हो जाए, तुमने हल्ला मचा दिया। मोदी से मुझे यही उम्मीद थी, उम्मीद क्या जनाब मैं तो जानता ही था कि जैसे ही मोदी आया सब ठीक हो जाएगा। जिसका काम उसी को साजे.....दलित कोई बजट बनाएगा क्या? अरे व्यापारी व्यापार करेगा, और पंडित खाएगा, छत्री लड़ेगा और बाकी जो भी फालतू आबादी है उसके लिए भी इंतजाम किया जाएगा....नौकर बना देंगे सुसरी जनता को, फैक्टरी में लोडर, स्वीपर का बहुत जॉब खाली रहता है जी, कोई नौकरी दे दिया जाएगा। 
बजट से पहले वाले दिन एक न्यूज़ चैनल पर देखा एक महिला नजूमी, यानी भविष्यवक्ता बता रही थीं कि ये बजट कैसा होगा.....मैं आंखे फाड़-फाड़ कर देख रहा था, न्यूज़ चैनल पर अर्थशास्त्रियों की जगह नजूमी बता रही हैं कि बजट कैसा होगा, हालांकि ये एक अच्छी बात है कि भविष्यवक्ता अब महिलाएं भी होने लगी हैं, बुरी डेवलपमेंट ये है कि अब भविष्यवक्ता बता रहे हैं कि बजट कैसा होगा, और किसके लिए कैसा होगा। लेकिन उनकी भविष्यवाणी सटीक थी, उन्होने कहा था, मुझे अच्छी तरह याद है, कि बजट कुछ लोगों के लिए अच्छा होगा, कुछ लोगों के लिए खराब होगा, कुछ लोगों के लिए सामान्य होगा, कुछ चीजों के दाम बढेंगे, कुछ के घटेंगे, कुछ वैसे ही रहेंगे, कुछ नये टैक्स लगेंगे, कुछ पुराने हटाए जाएंगे, कुछ टैक्स बढ़ेंगे और कुछ घटेंगे। मैं अब तक आश्चर्यचकित हूं, आखिर उस भविष्यवक्ता ने कितनी सटीक भविष्यवाणी की थी, सोचता हूं मैं भी अब इन सबमें यकीन करना शुरु कर ही दूं.......। 
मोदी ने ठीक ही किया, ये बजट अंबानी ने बनाया, अडानी की सहायता से बनाया, या हो सकता है उल्टा हो, अभी इतना पूंजीपति है देश में, पता नहीं चलता कि कौन बनाया, पर बनाया ये सब पूंजीपति लोग ही है। मोदी ने पहले ही कहा था कि मैं व्यापारी हूं, अब व्यापारी तो भैया व्यापारी की ही सोचेगा, ये देश चलाना व्यापार है, और व्यापार में घाटा.....ना ना ना, ये बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। व्यापारी लोग बहुत चालाक होता है, कब बेचना है कब खरीदना है, सब अच्छी तरह जानता है। जब घाटा होता है तो बिना चिंता किए कंपनी बेच देता है, या कंपनी का एसेट बेच देता है, अब इस देश को ही लो, क्या....रखा क्या है इस देश में, बदहाली, भुखमरी, बेचारगी, बेबसी.....अब तक अगर मोदी जैसा चालाक व्यापारी आ गया होता इस देश में तो कब का इस देश को पूरा बेच चुका होता और बजट का घाटा पूरा कर चुका होता। 
कुछ भी हो किसी भी बजट में घाटा अच्छा नहीं लगता, मुनाफा अच्छा लगता है, और व्यापारी हर काम मुनाफे के लिए करता है। इसी देश में अंबानी पैदा हुआ, जिसने पहले इस देश को मुठ्ठी में किया और फिर दुनिया को मुठ्ठी में करने चला, अडानी पैदा हुआ जो अचानक इस देश का सबसे अमीर आदमी बन गया, इतने करोड़पति पैदा करने के बाद भी ये देश सुसरा गरीब ही रहा। आखिर कब तक देश गुरबत झेलेगा। मोदी का नसीबा देखो, पहले सी एम था, अभी पी एम हो गया, हैं......क्या नसीब पाया है यार....अडानी का नसीब देखो, इधर मोदी पी एम और उधर उसके सारे प्रोजेक्ट एक के बाद एक पास, सारे लोन सैंक्शन, इसे कहते हैं नसीब.....और दूसरी तरफ वो बदनसीब लोग हैं जो आत्महत्या कर रहे हैं, तो भैया इतने बदनसीब लोगों के लिए बजट बनाया ही क्यों जाएगा, ये बताओ। 
मैं कहूं मोदी ने बिल्कुल ठीक किया, उसने अपने गुजरात के दिनों में ही ये जान लिया था कि ये कौम 5000 साल की भूखी कौम है, अब किसी कौम की 5000 साल की भूख को कोई पांच साल में तो मिटा नहीं सकता। तो बेकार कोशिश ही क्यों की जाए, मरने दो इसे भूख से, आओ हम नाश्ता करते हैं, क्या है नाश्ते में...गोश्त, अरे वाह....मजा आ गया। 
फिर जनता के लिए जो-जो जरूरी था, वो सब सस्ता कर दिया गया है। जूता सस्ता है, घिसते रहो, रोजगार की तलाश में, अगरबत्ती सस्ती कर दी है, रोजगार के लिए, अपने नसीब चमकाने के लिए भगवान से प्रार्थना करते रहो.....कभी ना कभी तो जरूर चमकेगी.....बस तब तुम्हे भी ये बजट अच्छा लगने लगेगा। ये जो बजट बुरा है, बजट खराब है, का शोर मचा रहे हैं, ये वो लोग हैं जिन्हे इन बारीक कामों की कोई समझ नहीं है। कह रहे हैं पैट्रोल सस्ता कर दो.....क्या करोगे सस्ते पैट्रोल का, सस्ती गैस का....किसान से जमीन सरकार ले लेगी, मनरेगा को सरकार वैसे ही बेकार की चीज़ मानती है, तब पकाने के लिए अनाज और सब्जी लाओगे कहां से, उपर से वो भी इतना महंगी है कि खाने को क्या कुछ दिनो में देखने को भी तरस जाओगे.....अबे जब खाना महंगा हो जाएगा तो सस्ती गैस का क्या होगा। दूरदर्शी मोदी सरकार ने पहले ही देख लिया, अब जिस जनता के पास पकाने के लिए अनाज ना हो, उसे सस्ती गैस देने का क्या फायदा, लीजिए जनाब ना गैस होगी ना आपको खाना पकाने का ख्याल आएगा। 
बाकी इतना रोना किस बात का है, बजट वैसा ही है, जैसा अब तक होता आया है। सेवा कर यानी सर्विस टैक्स बढ़ा दिया गया है, बाकी जो चीजें पहले महंगी थी उन्हे और महंगा कर दिया गया है, कुछ बेकार की चीजों पर छुट-पुट सस्ताई की गई है, दोस्तों को फायदा पहुंचाया गया है, दुश्मनों को सताया गया है। सब यही करते हैं। बाकी मामला है आधे खाली गिलास को आधा भरा देखने वाला। पैसेवाला और पैसेवाला होगा तो उसे ज्यादा नौकरों की जरूरत होगी, ये तो जाहिर है, तो गरीबों को रोजगार देने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि अमीर को और अमीर बना दिया जाए और गरीब को और गरीब बनाया जाए। तो यही है घुंडी इस बजट की.....समझे क्या मिस्टर तुर्रम खां.....

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...