बुधवार, 4 मार्च 2015

कपिल की कुंडलियां

कैसे हंसे नंद के लाला, कैसे छाने भंग

होली का तो हो गया, सब मौसम बदरंग
सब मौसम बदरंग, बजट कुछ ऐसा लाए
जूता छोड़ सभी चीजों के दाम बढ़ाए
महंगी में जनता के मुंह से छिना निवाला
अब बोलो भई, कैसे हंसे नंद के लाला

चित्र गूगल साभार


होली है इस बार की, एक रंग का खेल
बेशर्मी के रंग से, खेल सके तो खेल
खेल सके तो खेल, हमें तो यही दिखाया 
साहेब, औ’ भक्तों के भाग्य की यही है माया
शर्म को खाया, ओढ़ा, सूरत उससे धो ली
बेशर्मी से सराबोर, इस बार की होली

काला धन आया नहीं, सस्ता हुआ ना तेल

रोनी सूरत लेके होली, खेल सके तो खेल
खेल सके तो खेल, पड़ेगी जेब पे भारी
बिन रंगो के होली की कर ले तैयारी
जन की खुशियों पर जुमलों का लग गया ताला
अभी तलक ना आया सुसरा कोेई धन काला
चित्र गूगल साभार
छप्पन इंची छाती वाले नेता जी के भाग
जनता रोये ज़ार-ज़ार और धनिक गा रहे फाग
धनिक गा रहे फाग, लूट का मौका आया
लूट्यौ जो भी लूट सको, मोदी की माया
मरते हैं खेतों में अन्न उगाने वाले
राज कर रहे छप्पन इंची छाती वाले

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...