मंगलवार, 11 अगस्त 2015

कांवड़ का महीना और पी एम






हमारे प्रधानमंत्री का दिशाज्ञान बहुत कमजोर है, कांवड़ वाले महीने में बिहार पहंुच गए, या हो सकता है कि वो पटना में गंगा घाट से जल लाकर संसद का जलाभिषेक करने की सोच रहे हों। जो भी हो, सावन के महीने का बड़ा महत्व है जी, और मैं ये मानता भी रहा हूं। ये वो महीना होता था, जब गांव के उपद्रवियों से राहत मिलती थी, सारे के सारे कांवड़ लेने चले जाते थे, गांव के आस-पास चोरी-चकारी की घटनाएं कम हो जाती थीं, लोग-बाग थोड़ा बेफिकरी और आराम के साथ सोते थे। आपको यकीन नही ंतो अब भी क्राइम ब्रांच के आंकड़े उठाकर देख लो, कांवड़ के महीने में महल्ले के अपराध दरों में कमी आ जाती है। सारे उपद्रवी, ”कोई ये ना सोचे कि मैं प्रधानमंत्री को उपद्रवी कह रहा हूं, हालांकि उनका इतिहास यही बताता है” कांवड़ के महीने में गांव के बाहर चले जाते थे। 

पहले-पहले कांवड़ इतना पॉपुलर नहीं था, मेरा मतलब बहुत कम लोग जाते थे कांवड़ लेने। मुझे लगता है कि गांव के बुर्जुगों ने सोचा होगा कि ये लौंडे जो दिन भर गांव में आवारागर्दी करते हैं, चोरी-चकारी लूटमार करते हैं, झगड़े करते हैं, इन्हे क्यों ना कुछ दिन गांव से निकाल दिया जाए, कुछ दिन तो शांति रहेगी। उस जमाने में ट्रैफिक इतना आसान नहीं था, आने-जाने में बहुत वक्त लगता था। तो ये जो गांव के चोर, उचक्के, गुंडे टाइप लोग थे वो चले जाते थे। और जब वो वापस आते थे तो पूरे गांव में ढोल-ताशे बजाकर कर, बाकायदा शोर मचाकर लोगों को सावधान किया जाता था कि भई अब तुम्हारी बेफिकरी के दिन खत्म हो गए हैं, ये गांव के गुंडे वापस आ गए हैं। 
गलती ये है कि गांव के गुंडे बाहर जाकर भी गुंडई ही करते हैं। क्योंकि चोर दिल्ली का हो या बनारस का, काम तो उसका चोरी ही रहेगा। उपर से लोगों की तादाद बढ़ गई, उपर से सफर का डिस्टेंस कम हो गया, कुल मिलाकर हालत ये हो गई कि अब कांवड़िये जो असल में गांव के गंुडे हैं, कांवड़ के नाम पर पूरे कांवड़ के रास्ते में गुंडई करते हैं। शराब पीकर हुड़दंग करना, महिलाओं के साथ बेधड़क छेड़खानी, चोरी-चकारी लूटमार, दंगा ये तो आम बात है, और ये सब करते हुए शिव से संबंधित नारे भी लगाते हैं। इनका असल मकसद शिव या धर्म या गंगा या मंदिर से नहीं होता। इनका असल मकसद होता है अपनी फ्रस्ट्रेशन को निकालने से, उसके लिए ये कारें तोड़ते हैं, आने-जाने वालों पर लाठी बरसाते हैं और जो मिलता है उसे आधा खाते हैं और आधा फैलाते हैं। 

पूरे कांवड़ भर आमजन की हालत खराब रहती है, कब कौन कांवड़िया उस पर हमला कर देगा इस आशंका से, महिलाएं घर से नहीं निकलती, ये कांवड़िए छोटी बच्चियों तक को नहीं छोड़ते, कांवड़ के रास्ते में पुलिस का भारी बंदोबस्त होता है, खुद पुलिसवाले भी डरे-डरे से रहते हैं, क्योंकि आम आदमी को बेवजह मारा-पीटा जा सकता है, जेल में डाला जा सकता है, उसका एनकाउंटर तक किया जा सकता है, लेकिन कांवड़िया आम आदमी नहीं होता, उसे उत्पात मचाने की, गुंडागर्दी करने का लाइसेंस मिला होता है, और वो उसका भरपूर फायदा उठाने की फिराक में रहता है। 

अगर किसी वजह से आपको ये लगता है कि साल-दर-साल कांवड़ियों की बढ़ती तादाद का लेना-देना धर्म के प्रति लोगों की आस्था के बढ़ने से है तो आप बहुत बड़ी गलती पर हैं, असल में कांवड़ के दौरान होने वाली गुंडागर्दी का आकर्षण इसकी सबसे बड़ी वजह है। 

कांवड़ लाने वालों के टैंपो ट्रैफिक नियमों को नहीं मानते, उनमें बड़े-बड़े स्पीकर अश्लील गानों के साथ शिव और पार्वती की बेइज्जती करते हैं, और उनमे चढ़े हुए गुंडे अपनी अश्लील हरकतों के साथ अपनी गुंडई की पूरी धाक जमाने का प्रयास करते हैं। जैसा कि आपने पटना में अभी देखा। 

गुंडई दो प्रकार की होती है, एक तो वो जिसमें गुंडागर्दी हाथ में लाठी पकड़ कर की जाती है और सबको साफ बता कर की जाती है, जिसमें नकटा-बूचा सबसे उंचा वाला भाव रहता है, दूसरी गुंडई थोड़ा सोफिस्टिकेटिड किस्म की होती है, हालांकि उसमें भी बेशर्मी कूट-कूट कर भरी होती है, लेकिन वो मंच पर चढ़कर माइक के सामने की जाती है। पहली वाली गुंडई सिर्फ कांवड़ के महीने में कुछ खास दिनो में ही होती है, दूसरी गंुडई का कोई अंत नहीं होता, कांवड़ हो या ना हो, सावन हो या ना हो, ये गुंडई चलती रहती है। आपको राहत की सांस नहीं मिलती। इसलिए कुछ लोग तो प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं से खुश भी लगते हैं, उनका कहना है, आफत जितनी दूर रहे उतना अच्छा। इसमें समस्या ये है कि आफत जाते हुए अपने प्रतिनिधियों को गुंडई फैलाने के लिए यहां छोड़ जाती है।

अभी कांवड़ियों को इस बात का गुस्सा है कि बनारस प्रशासन ने उन्हे डी जे की अनुमति नहीं दी है। बिल्कुल सही बात है, उनका गुस्सा जायज़ है, आखिर जो बिना शोर-शराबे, हुडदंग और दंगे के हो जाए, वो कैसी पूजा, ऐसी पूजा से तो पूजा ना हो वो अच्छा। आप प्रधानमंत्री को बिना किसी रुकावट, शर्म या ऐसे किसी नैतिक, सामाजिक बंधन के पूरे देश में गुंडई फैलाने दे रहे हैं, और कांवड़ियों को रोकेंगे। कांवड़िए इस तरह के भेदभाव को बर्दाश्त नहीं करेंगे। 

अब असली सवाल, क्या प्रधानमंत्री पटना की गंगा से पानी ले आए हैं, अगर नही ंतो क्यों, अगर हां तो फिर संसद में जलाभिषेक कब होने वाला है। मुलायम सिंह भी कह चुके हैं कि जलाभिषेक हो, जबसे यादवसिंह के सिर पर तलवार लटकी है, मुलायम सिंह कुछ ज्यादा ही मुलायम हो गए हैं, मुलायम सिंह की मुलायमियत सी बी आई के एक्शन के डायरेक्ट प्रोपोर्शन में होती है, जब-जब जिस-जिस सरकार ने मुलायम सिंह पर सी बी आई एक्शन की मार की, मुलायम सिंह की मुलायमियत उसी समय सरकार के साथ हो गई है, इतिहास देख लीजिए, मुलायम को मुलायम करने का सबसे ताकतवर मंत्र है सी बी आई, अब हो सकता है जलाभिषेक हो ही जाए। 

जो भी हो, अपने दोस्तों आदि को मेरी सलाह ये है कि कांवड़ के इन दिनो, घर पर ही रहें, मोदी हों या आम कांवड़िए, कभी भी दंगे करा सकते हैं। लड़कियों को घर से कतई नहीं निकलना चाहिए, जो लोग अपने आराध्य शिव की पत्नि को अपने अश्लील गानों में शुमार कर लें, वो राह चलती मासूम लड़कियों के साथ क्या कुछ नहीं कर सकते। इस मामले में भी, ताकतवर लोगों से बच कर रहें, उनका इतिहास भी लड़कियों का पीछा कराने का रहा है। कांवड़ आदि के रास्ते से ना निकलें, और यदि कोई मासूम इन कांवड़ियों के बीच में फंस जाए, तो उसे बचाने की पूरी कोशिश करें। 
बाकी ये हर साल की बिमारी है, इससे बचने का कोई उपाय नहीं दिखता, तो झंेलें, और क्या कहें। 

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