सदियां गुजरीं अँधेरे में
सिर नीचे करके लोग जिए
अब सूरज लाल उगा देखो
अब आई है बारी अपनी
कभी ईश्वर था, कभी राजा था
कभी धर्म रहा, कभी पैसा रहा
इंसान उठा है अब देखो
अब आई है बारी अपनी
कभी नीले रंग का खून रहा
फिर खून सफ़ेद भी हुआ किया
अब रंग खून का लाल यहाँ
अब आई है बारी अपनी
कभी तलवारों ने राज किया
कभी तख़्त पे बैठा धर्मगुरु
फिर धनवानों का दौर आया
अब आई है बारी अपनी
कभी चाँद रहा था झंडे पर
कभी सूरज, शेर और सांप रहा
अब हंसिया हथौड़ा आया है
अब आई है बारी अपनी
वो सुबह आ गयी है देखो
जिसके गाने तुम गाते थे
जिसकी धुन में तुम मरते थे
जिसके लिए तुम जीते जाते थे
वो लाल सुबह, जब दुनिया की
हर चीज़ पे अपना हक होगा
वो इंक़लाब का दिन जब
दुनिया का हर ज़र्रा अपना होगा
जब अपनी मेहनत के साथी
हम सब खुद ही मालिक होंगे
तो उठ जाओ, आगे आओ
अब आई है बारी अपनी
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