मंगलवार, 4 जनवरी 2022

अब आई है बारी अपनी

 



सदियां गुजरीं अँधेरे में 

सिर नीचे करके लोग जिए 
अब सूरज लाल उगा देखो 
अब आई है बारी अपनी 

कभी ईश्वर था, कभी राजा था 
कभी धर्म रहा, कभी पैसा रहा 
इंसान उठा है अब देखो 
अब आई है बारी अपनी 

कभी नीले रंग का खून रहा 
फिर खून सफ़ेद भी हुआ किया 
अब रंग खून का लाल यहाँ 
अब आई है बारी अपनी 

कभी तलवारों ने राज किया 
कभी तख़्त पे बैठा धर्मगुरु 
फिर धनवानों का दौर आया 
अब आई है बारी अपनी 

कभी चाँद रहा था झंडे पर 
कभी सूरज, शेर और सांप रहा 
अब हंसिया हथौड़ा आया है 
अब आई है बारी अपनी 

वो सुबह आ गयी है देखो 
जिसके गाने तुम गाते थे 
जिसकी धुन में तुम मरते थे 
जिसके लिए तुम जीते जाते थे 

वो लाल सुबह, जब दुनिया की 
हर चीज़ पे अपना हक होगा 
वो इंक़लाब का दिन जब 
दुनिया का हर ज़र्रा अपना होगा 

जब अपनी मेहनत के साथी 
हम सब खुद ही मालिक होंगे 
तो उठ जाओ, आगे आओ 


अब आई है बारी अपनी

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