अँधेरी धुंध सा मौसम
हवा की सुरमई सीलन
अर्श से फर्श तक गीला
दबी सी दूब का सा मन
हरे ताज़े ख्यालों सा
नज़र का दूर तक जाना
सवेरा शाम सा लगना
गुमशुदा साए बहलाना
धुआं खामोश लगता है
ठहर के उठता हो जैसे
सभी कुछ का अटकना सा
समय का भी कपकपाना
बूँद पर बूँद का गिरना
अजब सा शोर मच जाना
बहुत प्यारा सा लगता है
सुबह बरसात का होना।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें