
संजय दत्त को सजा क्या मिली चरों तरफ जैसे उन्हे माफ़ी दिलवाने वालों की भीड़ लग गयि. काश ऐसा होता हर उस बेगुनाह के साथ जिसे न जाने क्यूँ सालों जेल में सड़ना पड़ता है, या उनके साथ जिन्हें न जाने किस राष्ट्र के सामूहिक अन्तकरण की संतुष्टि के लिए फांसी चढ़ा दिया जाता है. जब बिनायक सेन जेल में थे, तब मार्कंडेय काटजू शायद सो रहे थे की उन्हे वो सारी कानूनी धाराएँ याद नहीं आ रही थीं जिनके सहारे बिनायक सेन को जेल से बहार निकाला जा सके, न ही किसी नेता को, न अभिनेता, अभिनेत्री को, दुःख हो रहा था, न मीडिया उनकी सजा के प्रति इतना संवेदनशील था की बार बार ये अपील करे की उन्हे छोड़ दिया जाये, की उनका गुनाह, (अगर इसे गुनाह कहा जा सकता है तो) सिर्फ इतना है की उनके घर में पुलिस को तथाकथित चिठ्ठी मिली थी, जो किसी नक्सल ने किसी और नक्सल को लिखी थी। सोनी सोरी जो आज भी जेल में है, जिसका गुनाह किसी को शायद पता ही नहीं है, और अभी खबर आई है कि यू पी में मजदूरों को बैल तक देने से इनकार कर दिया गया है, जबकि उनके खिलाफ किसी के पास कोई सबूत नहीं है, सिवाए इसके की वोह मजदूरों के नेता हैं।
अजीब सामूहिक अन्तकरण है जो अपनी कार से फुटपाथ पर सोते मजदूरों को कुचल देने वाले नंदा के लिए, घर में ए के ५७ रखने वाले संजय दत्त के लिए, या रेप, हत्या, या लूटमार करने वालों के लिए सहानुभूति दिखाता है, लेकिन मजदूरों के, आदिवासियों के, आम जनता के लिए, काम करने वाले उनके लिए लड़ने वाले लोगों के खिलाफ चुप रहता है. टी वी स्क्रीन पर दिखने वाला हर लिपा पुता चेहरा संजय दत्त को सजा मिलने पर दुखी लग रहा है, ऐसा लगता है जैसे इतने मासूम इंसान को सजा देने वाला कोर्ट गलती पर है, उसे अपनी भूल सुधारनी चाहिए, उसे न सिर्फ संजय दत्त को माफ़ कर देना चाहिए बल्कि उससे माफ़ी मंगनी चाहिए, और भारतीय समाज के लिए संजय दत्त का कुल योगदान आखिर क्या है, मुना भाई एम् बी बी एस, सन ऑफ़ सरदार जैसी फिल्मे, या उनके पिता का कांग्रेसी नेता होना, जिन बिचारों को अपने सपूत के कर्मो के चलते वबाल ठाकरे जैसे लोगों के हाथ तक जोड़ने पड़े।
कम से कम बीस बार सुना कि, संजय दत्त आतंकवादी नहीं है, जेल तो गया ही था, बहुत भुगता है बेचारे ने, उसे अब तो छोड़ दिया जाये, क्यूँ नहीं, वैसे भी जेलों में जगह नहीं बची, ५०% जेलें तो बेगुनाहों से भरी पड़ी हैं, पुलिस पर वैसे भी, अन्य वी आई पी कैदियों की मिजाजपुर्सी करने का बोझ है, फिर उनकी जान को एक और आदमी क्यूँ बढ़ाया जाये। और मासूम कौन नहीं है, संजय दत्त, या बिना किसी अपराध के जेल में ११ साल बिताने वाला आमिर, पूरी दुनिया के नोबेल विजेताओं की सहानुभूति पाने वाला बिनायक सेन, बिना एक भी सबूत के फांसी पाने वाला अफज़ल गुरु, पिछले एक दशक से भी ज्यादा भूक हड़ताल पर डटी हुई इरोम शर्मीला, बिना किसी कारण जेल में बंद सोनी सोरी, श्याम किशोर, या ऐसे ही हजारों लोग, जिनके घर बन्दूक नहीं मिली, जिन्होंने कभी चरस या हशीश नहीं ली, जो बंगलों में नहीं रहते, कारों में नहीं घुमते, लेकिन उन्हें जेल में दाल देने के लिए सिर्फ किसी पुलिस वाले का बयान ही काफी है।
ए के ५७ कोई ऐसी वैसी बन्दूक नहीं होती जिसे आप सब्जी मंदी से भाव ताव करके खरीद लें, हम जैसे लोगों को तो खैर ये भी नहीं पता होता की ए के ४७ के अलावा भी कोई बन्दूक होती है. लेकिन आज ये तो साबित हो गया की, इस बन्दूक के मुकाबले मार्क्सवादी किताबें ज्यादा खतरनाक हथियार होता है, जिसके घर में मिलने पर आपको २० साल तक जेल, बिना किसी सुनवाई के या, फांसी तक हो सकती है. तो आज टी वी से हमने क्या सीखा :
१ घर में ए के ५७ भले हो, कोई किताब ना हो, वर्ना आप आतंकवादी हो।
२ हर मजदूर आतंकवादी होता है, चाहे उसके खिलाफ कोई सबूत हो या नही।
३ अगर आप अभिनेता हैं, (चाहे कितनी भी ख़राब एक्टिंग करें) तो मर्केंडेय काटजू सी एम् से आपकी सिफारिश करेंगे।
४ राष्ट्र का सामूहिक अन्तकरण ऐसा ऊँट है, जो मालिक के इशारे पर किसी भी करवट बैठ सकता है, संभल कर रहे।
५ अगर आप भारतीय नागरिक हैं, तो आप अपराधी हैं, अपराध बाद में तय कर लिया जायेगा, अभी तो इंतज़ार कीजिये की पुलिस कब आपको पकडती है.
आखिरी पंक्ति उस समय के लिए जब ये होगा की संजय दत्त को छोड़ दिया जायेगा या उसकी सजा कम कर दी जाएगी।
६ अपराध और सजा सबूतों से नहीं, इस बात से तय होती है की आप हीरो, पूंजीपति, नेता, उनके रिश्तेदार, या सत्ताधारी पार्टी के सहयोगी आदि हैं या नहीं।
Kapil


Bahut hi badhiya likha hai Kapil ji aapne. Aapke paas kala hai likhne ki...Pleas
जवाब देंहटाएंव्यंग्य में बदलता जा रहा है सब कुछ, जिसका अंत भीषण त्रासदी में होना है.
जवाब देंहटाएंतुम्हारा वो जोके याद आ रहा है जिसमें दिल्ली पुलिस एक गधे से जुर्म क़ुबूल करवाने का प्रयास कर रही है। हैरैनी की बात ये है की इस बार गधा मिल नहीं पाया। या यूँ कहें की मुंबई पुलिस दिल्ली पुलिस से बेहतर हाल में हैं।
जवाब देंहटाएंरही बात संजय दत्त की, तो दोस्त तुम सही कह रहे हो की एक मार्क्सवादी चिट्ठी ए के 56 से ज्यादा खतरनाक है। सभ्य समाज संजय दत्त में अपनी मासूमियत खोज रहा है। कुछ दिनों में सलमान खान की दरियादिली की गाथाएं भी सुनाई जायेंगी।
आम आदमी तो वोह गधा ही रहेगा जिसके गले में संविधान की सारी धाराएँ सलीब की तरह लटकाई जायेंगी।