गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

उबेर - सबेर

 

उबेर - सबेर


दिसम्बर का महीना दिल्ली के लिए बहुत ही बुरा महीना होता है, पिछले साल भी एक बलात्कार हुआ, इस साल फिर हो गया। यूं दिल्ली में क्या, देश-भर में पूरे साल, लगभग हर रोज़ बलात्कार होते रहे, होते रहे। लेकिन साल के आखिर में दिल्ली में हुए बलात्कार ने पूरे देश में बलात्कारों पर होने वाली बहस को एक बार फिर तीखा कर दिया। उबेर एक टैक्सी सर्विस है, अनलाइसेंस्ड है, गैरकानूनी है, लेकिन है। इस देश में कई चीजे़ं हैं जो अनलाइसेंस्ड हैं, गैर कानूनी हैं, लेकिन हैं और चल रही हैं। लेकिन इस दिसम्बर को उबेर के टैक्सी ड्राइवर की हरकत ने बहस का केन्द्रबिन्दु टैक्सी सर्विस, उसके लाइसेंस, उसके ड्राइवर की पुलिस वेरिफिकेशन को बना दिया, और बलात्कार का मुद्दा फिर कहीं पीछे छूट गया। सवाल ये नहीं है कि बलात्कार टैक्सी में हुआ या टैक्सी वाले ने किया, सवाल ये है कि बलात्कार हुआ। पंजे झाड़ कर पड़ जाओ टैक्सी सर्विस के पीछे, क्या हासिल होगा, मेरा मतलब इसके अलावा कि बलात्कार पर बात करने से बच जाओगे। आंकड़े उठाकर देखो तो पता चलता है कि टैक्सियों से ज्यादा बलात्कार तो घरों में होते हैं, ड्राइवरों से ज्यादा बलात्कार तो रिश्तेदार करते हैं, तो अब क्या रिश्तेदारों के पुलिस वेरिफिकेशन की बात करनी होगी, या कि पुलिस वेरिफिकेशन से बलात्कार रुक जाएंगे। 
ये देश महिलाओ के लिए इतना असुरक्षित है कि उबेर-सबेर किसी ना किसी महिला का बलात्कार होता ही होता है। लड़कियों को ये बताना कि बलात्कार से बचने के लिए उन्हे क्या खाना चाहिए, क्या पहनना-ओढ़ना चाहिए, कहां और कब जाना चाहिए और कहां और कब नहीं, बहुत आसान है, मुश्किल है ये समझना कि बलात्कार लोगों की पुलिस वेरिफिकेशन से नहीं रुकते, टैक्सी के लाइसेंस से नहीं रुकते, बलात्कार रोकने के लिए इस पूरी व्यवस्था में परिवर्तन करना होगा, जब तक महिलाओं को सामाजिक सत्ता हासिल नहीं होती, राजनीतिक और आर्थिक सत्ता हासिल नहीं होती, बलात्कार होते रहेंगे। 
ट्रेन में बेगुसराय जाते हुए दो अधेड़बय महिलाओं की बात सुन रहा था, एक कह रही थीं, ”अरे जब तक लड़कियां ना चाहें, कोई कुछ कर ही नहीं सकता....” दूसरी, ” हां....हां......बिल्कुल ठीक कह रही हैं आप.....” मुझे गुस्सा आ रहा था इसलिए वहां से हट गया। यहां भी यही सिद्धांत काम करता है कि अगर आप लड़की नहीं हैं तो दो महिलाओं की बातचीत में अपनी बात नहीं रख सकते, खासतौर पर ट्रेन में, जब वे आपको जानती ना हों, लड़कों की इस तरह की बातचीत में मैं कई बार अपनी  टांग अड़ा चुका हूं, कि बलात्कार बलत्कृत के चाहने से नहीं होता, और उसके ना चाहने से नहीं रुकता। 
अब इसके लिए उबेर का कच्चा चिठ्ठा निकालने से तो कुछ नहीं होगा, महिलाओं को हर अधिकार के लिए लड़ना पड़ा है, वोट का अधिकार हो या समान काम का समान वेतन, महिलाओं ने हर अधिकार लंबी और यातनापूर्ण लड़ाई के बाद अपना हक हासिल किया है, राज्य हो या सामंती ताकतें, सभी ने महिलाओं को कभी भावनात्मक, तो कभी परंपरा का वास्ता देकर, पीछे हटने की ही सलाह दी है। प्रेम करने, शादी करने की आज़ादी के लिए भी महिलाओं के पास संघर्ष के अलावा और कोई रास्ता नहीं दिखता। अपनी आज़ादी के लिए, बलात्कार, छेड़छाड़, यौन शोषण के खिलाफ भी कानूनी प्रावधानों से, बलात्कारी को फांसी देने की मांग से कुछ नहीं होने वाला, अगर कुछ होगा तो महिलाओं की अपनी ताकत से होगा, महिलाओं के अपने संघर्ष से होगा। 
महिलाओं के हक-अधिकार के लिए काम करने वाली एन जी ओ, जहां शायद महिलाओं का सबसे ज्यादा शोषण होता है, इस मामले में सिर्फ दिखावटी बातें करके चुप हो जाती हैं, उन्हे ज्यादा बड़ी चिन्ता इस बात की होती है कि वो अपनी रिपोर्ट में इसे जगह दे सकती हैं या नहीं। पिछले दिसंबर में जब पूरी दिल्ली, पूरा देश, बलात्कार के खिलाफ प्रतिरोध में उतरा हुआ था, इन एन जी ओ के कितने प्रतिनिधि प्रतिरोध-प्रदर्शन में शामिल थे। पूछेंगे तो जवाब बहुत शानदार मिलेंगे जनाब, ”हम तो गए थे, वहां.....एक दिन.....” कब पूछने पर जवाब थोड़ा असमंजस वाला हो सकता है। होता ये है कि ये एन जी ओ, अपने ड्यूटी आवर्स में, ऑफिस के खर्च पर टैक्सी करके वहां पहुंचते हैं, कोई ”सेफ” जगह तलाशते हैं, और वहां कुछ देर अपने बैनर के साथ फोटो खिंचवा कर, गोलगप्पे खाने चले जाते हैं। वहां गोलगप्पे अच्छे ना मिलते हों तो ये छोले-भठूरे या कोई विदेशी व्यंजन खाने भी जा सकते हैं। खैर बाद में ये 13 पेज की एक शानदार रिपोर्ट बनाते हैं कि किस तरह इन्होने उस बलात्कार के विरोध में हुए प्रदर्शन में हिस्सा लिया और कहर ढ़ा दिया, साथ में तस्वीरें भी लगाते हैं। लेकिन अगर महिलाओं के राजनीतिक हकों को लेकर, उनके वेतन, सुरक्षा आदि को लेकर अगर कोई विरोध-प्रदर्शन हो तो इनका एक ही नारा होता है, हम राजनीतिक नहीं हैं। भाड़ में जाएं ये एन जी ओ। 
हमारा आपका काम आज के दौर में महिला संघर्षों को बल देना, समर्थन देना और उनके साथ मिल कर अपनी आवाज़ उठाना है। हमारा काम महिलाओं को ये महसूस करवाना है कि उनके इस संघर्ष में वो अकेली नहीं हैं, चाहे वो पानीपत की घटना हो या कहीं और, हमें हर कदम पर उनके साथ रहना है, हमें इस लड़ाई को अपनी लड़ाई की तरह लड़ना है, और बलात्कार ही नहीं, महिलाओं के प्रति होने वाले हर अन्याय, हर शोषण, हर उत्पीड़न को खत्म करना है।


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Kapil

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