गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

आत्महत्या और कायरता



जाने क्यों अभी कुछ साल पहले से किसानों की आत्महत्या ने इस देश के बुद्धिजीवियों का पेट खराब किया हुआ है। जिसे देखो वही किसानों की आत्महत्या से परेशान है। बंधु किसान इस देश के, सदियों से आत्महत्या करते आए हैं, आत्महत्या नहीं होती तो उनकी हत्या कर दी जाती है। असल में तुम लोग कुछ समझते नहीं हो, किसान लोग अपनी फसल की बरबादी से, परिवार या भविष्य की चिंता से नहीं, बल्कि हमारी परंपरा को बचाने के लिए आत्महत्या करते हैं। बताइए कभी ऐसा हुआ है क्या कि सेठों ने, सामंतों ने, या राजाओं ने आत्महत्या की हो। आपने कभी नहीं सुना होगा कि एक ही महीने या साल में 15 सांसदों ने, विधायकों ने आत्महत्या की। किसानों की, बेरोजगार छात्र-नौजवानों की आत्महत्या हमारे देश की परंपरा है, और परंपरा का ये है गुरु कि चाहे जो हो जाए ये चलती रहती है। 
पीढ़ी दर पीढ़ी किसान मरते हैं, उनके मरने में कोई नई बात नहीं है। नई बात है ये इस बात पर बेवजह के शोर-शराबे की। बताइए, कौन सरकार जाकर कही है कि किसानो से कि आत्महत्या कर लो भाई, और आत्महत्या निजी मामला होता है, अब सरकार इसमें कर भी क्या सकती है। सरकार ने थोड़े ही कहा था कि खेती करो, तुम्हारी इच्छा है, करो, ना करो, बल्कि सरकार तो तुम्हे खेती जैसे मनहूस पेशे से निज़ात दिलाने की कोशिश कर रही है। भूमि अधिग्रहण करवा लो, बस......फिर मजे काटो और क्या। खेती-किसानी में आखिर रखा ही क्या है। शहर आ जाओ, यहां विदेसी दारू मिलती है, सिनेमा मिलता है, खुल्ले आकास के नीचे सोना और.......बाकी सहर में तो वो क्या कहते हैं, शेल्टर होम भी बना है, गांव में होता है क्या शेल्टर होम.....शहर आ जाओ, जब कुछ ना हो पास में तो शेल्टर होम में आ जाना......उसका पूरा इंतजाम है यहां पर। मरने की क्या जरूरत है बोलो तो......। पर नहीं....मरना है क्योंकि परंपरा है। 
अभी विवाद हो गया कि हरियाणा के एक मंत्री ने कह दिया कि किसान कायर होता है जो आत्महत्या कर लेता है। क्या गलत कहा जी, ये अपने अनुभव से बोल रहे हैं। हम कहें, बेशर्म होइए, चाहे जनता गाली दे, चाहे मुंह काला कर दे, हंसते रहिए। इन नेताओं को इसका बहुत प्रैक्टिस है जी......। किसान आज तक, मने इतने साल में बेशर्मी नहीं सीख पाया। बताइए, पूंजीपत सब, लाखों का कर्ज लेते हैं बैंक से, और बैंक बड़े आराम से उसे नॉन परफॉर्मिंग एसेट में डाल देता है। किस्सा खतम, ना पूंजीपति को दूसरी कम्पनी बना कर उसी बैंक से कर्ज लेने में शरम आता है, और ना बैंक उस पूंजीपति से पैसा वापस लेने की बात करता है। किसान भी तो ऐसा कर सकता है। ना दो ब्याज बैंक को, ना जमा कराओ किस्तें, जब पुलिस वाला आए तो कह दो कि तुम हो ही नहीं, रामादेस या जुम्मन। किस्सा खतम। ये क्या कि लटक गए पेड़ से, या कीटनाशक पीकर मर गए। उस पूंजीपति से कुछ सीखो, बैंक का कर्जा खा गया, शेयर होल्डरों का पैसा खा गया, फिर भी मुस्कुराता है, और फिर से वही घोटाला करने में जुट जाता है। और एक तुम हो, इतना सा बेइज्जती नहीं झेल पा रहे हो, कि बैंक का कर्ज वापस करना होगा। कायर हो तुम, बेशक कायर हो तुम।
इधर देखो, हमारी सरकार में, बड़ी ही बेशर्मी से चुनाव से पहले, गला फाड़-फाड़ कर झूठ बोला, और फिर उतनी ही बेशर्मी से कह भी दिया कि हमने तो झूठ बोला था। कर लो क्या करोगे, अरे हमसे नहीं तो अपने प्रधानमंत्री से ही कुछ सीख लेते। थोड़ी बहुत बेशर्मी सीख लेने में कोई गलती नहीं है, फिर वो तो अथाह बेशर्म हैं। किसान कायर हैं, बताइए, पहले बैंक से कर्ज लिया, फिर पूरा मौसम खेत में खटते रहे, कभी बीज डाल रहे हैं, तो कभी निराई, रुपाई, गुड़ाई कर रहे हैं, पानी लगा रहे हैं, तो रखवाली कर रहे हैं, और अंत में जब काटने का समय आया तो.....तो फसल पर पानी फिर गया। ऐसे में अपने भविष्य की चिंता करना कायरता नहीं तो और क्या है।
सरकार ने बीज, खाद, और बाकी कृषि सामान से सब्सिडी खत्म कर दी, किसानों को मिलने वाले कर्ज की ब्याज दर, पूंजीपतियों के कर्ज की ब्याज दर से ज्यादा है। जहां चाहे किसानो को जमीन से बेदखल कर दिया। फिर भी जमीन से चिपटे रहना, खेती करने की लालसा रखना कायरता नहीं तो और क्या है। किसानों को भारत-माता के चरणों में अपने जीवन का बलिदान कर देना चाहिए ताकि, खट्टर, बतरा, मोदी, शाह, और गडकरी जैसे लोग अपने-अपने तरीके से भारत माता को अडानी, अम्बानी आदि के हवाले करते रह सकें। इसी में सबकी भलाई है, और अगर वो ऐसा नहीं करते, तो वो कायर हैं। बताइए अपने नेताओं, पूंजीपतियों की इच्छाओं का पालन करते हुए भूख, बेकारी, बदहाली से मरने की जगह, आप आत्महत्या करें तो ये कायरता नहीं तो और क्या है। मेरी तो समझ नहीं आता कि जिंदगी जीने की चाह इन बेकार के किसान टाइप लोगों को होती ही क्यों है। क्यों नहीं योगी, साधु, साध्वी बन कर ये भी मुसलमानों को कोसें, किसी ना किसी तरह धार्मिक विद्वेष फैलाएं, ऐसा करने वाले लोग कायर नहीं होते। 
असल में वो सारे लोग कायर हैं जो अपने तौर पर जिंदगी जीना चाहते हैं, चाहे वो छात्र हों, नौजवान हों, महिलाएं हों, यहां तक कि बच्चे हों। अपने भविष्य के लिए अपना खून-पसीना एक कर देना कायरता है, जो धनकड़ जी कर रहे हैं वो कायरता नहीं है। किसानों को वो करना चाहिए जो धनकड़ जी ने किया। प्रधानमंत्री के कहने पर देश भर से लोहा-लंगड़ और ईंटें जमा करना, प्रधानमंत्री के प्रति अपनी वफादारी साबित करने के लिए किसी भी हद तक बेशर्मी करना आदि कायरता नहीं है। इसका अच्छा फल भी मिलता है, अब धनकड़ जी को ही देख लो, मिनिस्टर बने बैठे हैं ठाठ से, किसी को भी कायर कह देने का उन्हे पूरा अधिकार है। 
अपनी जिंदगी बचाने के लिए जानभर मेहनत करना कायरता है, और हमारे देश के किसान सदियों से ये कायरता करते आ रहे हैं। जब-जब भी इस देश में युद्ध हुआ सबसे ज्यादा नुक्सान किसानों ने झेला है, लेकिन ऐसा करना कायरता होती है। वीरता क्या होती है, किसी भी युद्ध, आपदा, संकट में मुनाफा कमा लेने के मौके ढूंढ लेना वीरता होती है। जैसा कि पूंजीपति करते हैं। पहला विश्वयुद्ध, दूसरा विश्वयुद्ध, सारी दुनिया भूखी मरती रही, आतंक में जीती रही और पूंजीपति मुनाफा बटोरते रहे, हमारे अपने देश के बिड़ला टाटा की सम्पत्ति उन दिनों कई गुना बढ़ गई थी, जिनके घरों में गांधी रुकते थे। वो थे वीर। अभी अडानी, अम्बानी बंधु वीर हैं, क्योंकि खाड़ी युद्ध हो, या बिहार की बाढ़, उत्तराखंड की आपदा हो या किसानों पर मौसम की मार, ये पूंजीपति मुनाफा कमा रहे हैं और जी भर के मुनाफा कमा रहे हैं। ये तो हुए वीर। बाकी भाजपा के सारे नेता वीर हैं, वे भी जो आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहे हैं और वे भी जो बाहर बैठ कर अनाप-शनाप बयान दे रहे हैं। वीर वो हैं जो नेपाल के भूकम्प जैसी त्रासदी को भी हिंदु-मुस्लिम में बांट रहे हैं। बाकी किसान कायर हैं, क्योंकि मेहनत करते हैं, किसान कायर हैं क्योंकि इनका पेट भरते हैं, किसान कायर हैं क्योंकि इनकी तरह बेशर्म नहीं हैं। 
बस एक दिक्कत दिखती है, अगर ये कायर, वीर हो गए तो क्या होगा। इन कायरों को धीरे-धीरे ये सारा गेम समझ में आ रहा है, और ये संगठित हो रहे हैं। अब क्या होगा। धनकड़ और धनकड़ के साहेब का क्या होगा, उनके साहेब यानी पूंजीपतियों का क्या होगा। क्योंकि वो दिन दूर नहीं जब अपनी जान लेने से ज्यादा अच्छा ये कायर खुद को संकट में डालने वाले वीरों को की जान लेना समझेंगे। तब क्या होगा। 
रहीम ने कहा था
”रहिमन जिव्हा बावरी, कह गई सुरग पाताल
आपहुं तो भीतर गई, जूती खात कपाल”
जिव्हा वाला काम तो धनकड़ ने कर दिया, अब बारी कपाल की है। 
फैज़ ने कहा
ये मजलूम मखलूक जब सर उठाए
तो इन्सान हर 
ये चाहें तो दुनिया को अपना बना लें
ये आकाओं की हड्डियां तक चबा लें
धनकड़ साहब, ख़ैर मनाइए कि किसान अपनी जान ले रहे हैं, अगर जो ये आपके आकाओं की जान लेने पर आ गए तो सोचिए आपको और आपके होते-सोतों को कहां पनाह मिलेगी। और ये भी तय है कि किसान उठ रहे हैं, एक हो रहे हैं, छात्र नौजवान मजदूर इकठ्ठे हो रहे हैं, और वो दिन दूर नहीं जब आपको समझ में आएगा कि आत्महत्या करने वाला किसान और क्या-क्या और क्या कर सकता है। 

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

हिंदु आपदा



नेपाल में जो भूकम्प आया, वो बहुत ही दुखद प्राकृति आपदा है। इसमें लाखों लोग उजड़ गए हैं, बरबाद हो गए हैं। इस समय हमारा क्या कर्तव्य बनता है? हमारा कर्तव्य बनता है कि हम इस आपदा को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें। ऐसी आपदाएं रोज़ नहीं आया करतीं, और इतने पड़ोस में तो नहीं ही आया करतीं। अब देखिए इस आपदा का असर बिहार में हुआ है, हम वहां की सरकार को निकम्मा साबित कर सकते हैं, और इस तरह आने वाले चुनाव में एक बार फिर अपने स्वयंभू अवतार को सच का अवतार घोषित कर सकते हैं। इसलिए हमें ऐसे काम करने चाहिएं जो हमारे लिए फायदेमंद हों। हमें नेपाल के लोगों की मदद तो करनी चाहिए, लेकिन मदद ऐसी ना हो कि मदद तो हो लेकिन किसी को पता ना चले। इसलिए मदद से पहले, मदद का प्रचार जरूरी है, और मदद के बाद उसका बखान करना ना भूलें। याद रखें किसी भी राजनेता का सबसे पहला काम होता है, प्रचार, दूसरा काम प्रचार, और फिर तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण काम होता है प्रचार। जी....तो मदद करें, लेकिन मदद करने से पहले उसका प्रचार करें। 
तो जो नेपाल जा सकता है जरूर जाए और मदद करे। लेकिन मदद करने से पहले हमें देख लेना चाहिए कि जो इस आपदा के पीड़ित हैं, वो हिंदु हैं या किसी अन्य धर्म के हैं। हमारा अतीव धार्मिक देश है, इसलिए इस बात का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि हमारी मदद गलती से किसी गलत इंसान तक ना पहुंच जाए। इसलिए होना ये चाहिए कि इस आपदा का इस्तेमाल हमें अपने महान लक्ष्य की पूर्ति के लिए करना चाहिए। जैसे इस बात का ज्यादा से ज्यादा प्रचार करना चाहिए कि हमारे स्वयंसेवकों की फौजें आपदा पीड़ित हिंदुओं को बचाने के लिए नेपाल पहुंच चुकी हैं। उसके लिए जहां से भी हो सके फोटो आदि का जुगाड़ करके फेसबुक आदि सोशल मीडिया साइट्स पर डालना चाहिए। ये तो शायद हो भी रहा हो, लेकिन मेरा सुझाव इससे आगे का था। हमें करना ये चाहिए कि अपनी स्वयंसेवकों की इस टीम के साथ कुछ वीडियोग्राफर भी भेजने चाहिएं, जो कुछ इस तरह के वीडियो वहां से भेजें कि हिंदुओं का हौसला बढ़े और अन्य धर्म वालों को हौसला डिगे। जैसे ये स्वयंसेवक मलबे में फंसे हुए किसी इंसान को देखें और उसकी तरफ बढ़ें, उससे पूछें कि उसका धर्म क्या है, अगर वो हिंदु हो तो उसे मलबे से निकाल लें और जो भी सेवा-सहायता बनती हो वो करें, लेकिन मान लीजिए कि वो किसी और धर्म को मानने वाला हो तो दो में से एक काम करें। एक तो ये कि उसे उसके हाल पर छोड़ा जा सकता है, या फिर जिंदा जलाया जा सकता है, मारा जा सकता है, महिला हो तो उसका बलात्कार किया जा सकता है, और फिर जय श्री राम के नारे लगाए जा सकते हैं। दूसरे थोड़ा संवेदनशीलता दिखाते हुए उससे ये पूछा जा सकता है कि क्या वो ”घर वापसी” यानी वापस हिंदु धर्म में आने के लिए तैयार है। अगर वो हां कहे तो पहले उसकी शुद्धि की जाए, यानी उसके माथे पर गंगाजल छिड़किए फिर उसके कपाल पर टीका लगाइए, इस बीच उसे बचाने की चिंता मत कीजिए, इस बीच अगर वो मर भी गया तो हिंदु होने पर ही मरेगा ना, तब उसका स्वर्ग जाना पक्का है, और अगर किसी और धर्म का होकर मरा तो......ये हम होने नहीं देंगे। एक बार वो शुद्धिकरण आदि की प्रक्रिया को झेल गया तो उसे बचाया भी जा सकता है। 
मेरा एक दोस्त जो अभी परसों ही नेपाल से लौटा है, पानी पी पीकर भारत सरकार के दावों को कोस रहा था। उसका कहना है कि वहां हालत ये है कि अगर तुम्हारी किसी मिनिस्टर से या किसी बड़े आदमी से जान पहचान है, यानी दिल्ली से सिफारिश लगवाई जा सकती है तो तुम्हे सुरक्षित निकाल लिए जाने के चांस हैं। लेकिन अगर मेरी तरह तुम बिना सिफारिश जान-पहचान के वहां हो, तो भैया पड़े रहो, और जो हो सकता है अपने तौर पर कर लो, क्योंकि भारत सरकार कुछ नहीं करने वाली, सिवाय आश्वासन देने के। मैने उससे कहा कि भाई तुम्हे भारतीय दूतावास जाना चाहिए था। उसका कहना है कि भारतीयों को भारतीय दूतावास में ही जगह नहीं है, पहले उनको निकाला जाएगा जो महत्वपूर्ण हैं, फिर उन्हे जिनके पास सिफारिश है, फिर हो सकता है कि तुम्हारा नंबर आ जाए। क्योंकि तुम्हे बचाकर तो टीवी पर लोगों को बचाने का नाम नहीं कमाया जा सकता।
हो ये भी सकता है कि भूकम्प में बचने वाले जितने लोग वहां हैं उनमें से गुजरातियों को निकाल लाया जाए, और बंगालियों को छोड़ दिया जाए ”अभी वो बंगाल में बुरी तरह हारे हैं” जैसा उन्होने उत्तराखंड की आपदा के दौरान किया था। अफवाह तो ये भी है कि एक मुसीबतज़दा शख्स झूठ बोलकर कि वो गुजराती है उनके बचाव हैलीकॉप्टर में बैठ गया था, उपर जाकर उन्हे पता लगा कि वो तो गुजराती नहीं है, तो उन्होेने उसे उसी वक्त लात मारकर नीचे गिरा दिया था। पर ये है अफवाह ही....इस पर बहुत भरोसा नहीं किया जा सकता। हो सकता है उस आदमी की किस्मत ही खराब हो, या उसका पैर फिसल गया हो। होने को क्या नहीं हो सकता। 
लेकिन कुछ बातें संदेह उपजाती हैं, हमें मिथ्या प्रचारों से बचना चाहिए। अब जो संख्या नेपाल जाने वाले स्वयंसेवकों की बताई जा रही है, या योगियों, बाबाओं द्वारा बचाए गए लोगों की बताई जा रही है, उस पर ध्यान रखने की जरूरत है। कहीं ऐसा ना हो कि उत्तराखंड की तरह यहां हमारे द्वारा बचाए गए लोगों की संख्या पीड़ितों की कुल संख्या से ज्यादा हो जाए, या कोई अतिउत्साही बाबा ये दावा करने लगे कि उसने दो दिन में दस लाख लोगों को बचा लिया। हमारे लोगों की यही खामी है, अतिशयोक्ति का भी तबला बजा देते हैं, किसी एक आदमी को पानी पिला दिया तो कथा यूं बताएंगे जैसे सारे शहर के लिए सदाव्रत बांटा हो। इसलिए हमें इस किस्म के असंभव दावों से बचना चाहिए। ज़रा सोचिए कि अगर सारे स्वयंसेवक, या ज्यादातर स्वयंसेवक नेपाल में चले गए तो इधर भारत में धर्म की रक्षा करने वाल कौन बचा रहेगा। घर वापसी कार्यक्रम अभी अपने शिखर पर है, हमें इसे और तेज़ करना है, और नेपाल में भी पीड़ित जनता में से ज्यादा से ज्यादा की घर वापसी करवानी है, इसके लिए उनकी असहायता का फायदा उठाया जा सकता है। 
हां, इससे याद आया, जब आप इस तरह की सहायता-वहायता में लगते हैं तो स्वाभाविक है मरे हुए लोगों की घड़ियां, कड़े, जेवर, पैसे आदि आप ले लेते हैं। ये कतई बुरा नहीं है, आखिर मरा हुआ इंसान इन सब भौतिक चीजों का क्या करेगा। लेकिन इसे बुरा माना जाता है। यूं बुरा तो दंगे करना, मासूमों को मारना, महिलाओं का बलात्कार करना भी माना जाता है, लेकिन हम करते हैं। लेकिन, ये बातें अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर आपकी छवि खराब कर सकती हैं। इसलिए अगर लूटने-लाटने की वारदात करनी हो तो पहले अच्छी तरह आस-पास देख लें, ताकि कोई सबूत ना रहे। 
अब मुझे सोशल मीडिया पर प्रचार के बारे में कुछ कहना है। मैं ये कतई नहीं कहूंगा कि झूठ ना कहें, या झूठी खबर ना फैलाएं, खबरे वहीं सही होती हैं, जो झूठी होती हैं, आखिर हमने गोयबल्स से कुछ सीखा है। लेकिन हमारा झूठ इतना शातिर होना चाहिए कि वो पकड़ा ना जा सके, जैसे ऐसी फोटो ना लगाएं जो आसानी से पकड़ी जाएं, ये हिंदु धर्म के दुश्मन, बहुत शातिर हैं, फौरन सच भंाप लेते हैं। अफसोस की शातिर झूठ बोलने में अभी तक हमारे स्वयंभू अवतार मोदी जी भी प्रवीण नहीं हो पाएं है, और अक्सर हिंदु धर्म के दुश्मन उनके झूठ पकड़ कर उन्हे यहां-वहां शर्मिंदा करते रहते हैं। फिर हमें उनका बचाव करना पड़ता है। खैर आप ऐसा ना करें। अब तक हम सोशल मीडिया पर गालियां देकर, महिलाओं के साथ गाली-गलौच करके, खुद को बनाए रखे थे, अब यही काम हमें और तेज़ी से करना होगा। जो भी हमारा झूठ पकड़े उसे गालियां दीजिए, असली बचाव कार्यों और मदद को झूठ बताइए, और अपने झूठ को सही बताइए। ”हिरोइनों के फोटो को फौरन लाइक करने वालों, इस स्वयंसेवक को कितने लाइक” जैसे कमेंट डालिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो फोटो 2007 में नांदेड़ के किसी गांव में खींचा गया हो। इसी तरह अपने स्वयंसेवकों के शौर्य, दानवीरता आदि के झूठे किस्से बनाइए, और उनका ज्यादा से ज्यादा प्रचार कीजिए। बाकी आप सब माहिर हैं, यही कुछ पाइंटस् याद रखिए।
बाकी जुबानी प्रचार में ये ध्यान रखिए कि इसे भी भगवान का चमत्कार कहा जा सकता है कि ना तो उत्तराखंड की बाढ़ में केदारनाथ को कुछ हुआ था और ना इस भूकम्प में पशुपतिनाथ मंदिर को कुछ हुआ है। इस तरह की घटनाओं को अपने हक में इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसी की किन्ही सुदूर गांव के मंदिरों की कहानियां बनाई जा सकती हैं, इसमें अगर ऐसा मसाला भी कि उसी गांव की मस्जिद या चर्च ढह गया तो कहानी अधिक विश्वसनीय लगेगी। ध्यान रहे।
अभी देखिए, योगी आदित्यनाथ ने क्या मौके पर चौका मारा, उन्होने फटाक से दावा कर दिया कि उन्होने हजारों लोगों को अपने मंदिर में जगह दे दी। ऐसे ही एक और बाबा ने दावा किया कि उन्होेने गांव या बच्चे कुछ याद नहीं हैं को गोद ले लिया। ये अच्छी बात है। बाबा बच गए ये भी भी अच्छी बात है, सुना है कि वहां भी वो मंच से कूद कर अपनी जान बचाए हैं, इसकी प्रैक्टिस उन्हे महिलाओं के कपड़े पहन कर भागने के दौरान हुई थी। यूं मैदान छोड़ने की परंपरा हमारे पुरखों से ही हमारे संगठनों में बनी हुई है, बस इसकी प्रैक्टिस करते रहना चाहिए।
बाकी नेपाल की आपदा से आप जितना फायदा उठा सकते हैं उठाइए, इसमें आपकी कुशलता आदि भी मायने रखती है। 


हो सकता है कि आप ये लेख लिखने पर मुझे कोसें, कुछ लोग इसे मेरी धृष्टता बताएं और कुछ शायद मुझे असंवेदनशील कहें। दरअसल मैं नेपाल में हुई भीषण त्रासदी पर कुछ लिख रहा हूं। इधर आधुनिक संचार साधनों की अत्याधुनिक तेज़ी का कमाल ये है कि उधर भूकम्प आया और इधर पूरी दुनिया के लोगों को पता चल गया कि भूकम्प आया है। फिर क्या था, सामाजिक संवेदनशीलता का अंबार लग गया, लोगों ने अपनी प्रार्थनाएं भेजनी शुरु कीं, लोगों ने और लोगों को उकसाया कि वो भी अपनी प्रार्थनाएं भेजंे, और लोगों ने और लोगों की बातें सुनी और उन्होने भी अपनी प्रार्थनाएं भेजीं। मैं नहीं भेज सका, या यूं कहूं कि मैं प्रार्थनाएं नहीं भेजता, इसलिए नहीं भेजीं। घटना दुखद है, इसमें कोई संदेह नहीं, लेकिन मेरी प्रार्थना उसमें कुछ कर पाएगी, या किसी की भी प्रार्थना उसमें कुछ कर पाएगी उसमें मुझे संदेह है। अभी तो विवाद यही है कि ये दैवीय आपदा है या नहीं, क्योंकि भूकम्प के बाद बी बी सी का पहला समाचार ये था कि पशुपतिनाथ मंदिर सुरक्षित है, हो सकता है कि आपदा दैवीय ही हो। आखिर गांव में आग लगाने वाला अपने घर को बचाकर चलता है। अगर ऐसा है तो प्रार्थना करने से फायदा क्या, और मान लीजिए कि आपदा प्राकृतिक है, तब प्रार्थना से ज्यादा पीड़ित जनता को हमारी मदद की आवश्यकता है, हमारे तन-मन-धन की मदद की आवश्यकता है।

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

कुछ तो लोग कहेंगे


कुछ तो लोग कहेंगे

नरेंद्र भाई दामोदर मोदी जबसे इस देश के प्रधानमंत्री बने हैं, इस देश ने विकास के कितने ही पड़ाव पार कर लिए हैं। कहां तो इस देश का नाम कोई नहीं जानता था, और अब.....अब हालत ये है कि पूरे ब्रह्मांड में इस देश की चर्चा हो रही है। हम पहले इसलिए जाने जाते थे कि हम दूसरों से कर्ज़ लेते हैं, वो क्या कहा था ग़ालिब ने, "कर्ज़ की पीते थे वो और कहते थे....."हां हां वही। आज हम दे रहे हैं, कर्ज़ नहीं, दान। मोदी के नेतृत्व में हम विश्व के सबसे महान देश बनने जा रहे हैं, हम कर्ज़ नहीं देंगे, दान देंगे। 
लेकिन अपने ही देश में कुछ लोग ऐसे हैं, जो भारत मां...आं....आं की इस विशाल ह्रदयता को समझ नहीं पा रहे हैं। ये लोग किसानों की आत्महत्या, किसानों पर मौसम की मार, बच्चों को शिक्षा, भोजन ना मिल पाने, गरीबों की बढ़ती महंगाई से त्रस्त हालत का दुखड़ा रोने लगे हैं। ये बहुत ही नीच किस्म के लोग हैं, ये चाहते हैं कि नरेंद्र भाई मोदी का ध्यान विश्व में अपने देश का नाम सबसे उपर करने के महान लक्ष्य से हटकर इन टुच्चे विषयों तक सीमित हो जाए। वो तो भला हो आज के नेपोलियन बोनापार्ट से ज्यादा योग्य और महत्वाकांक्षी सेनापति के गुण वाले, आज के जमाने के लोहिया, गांधी, भगतसिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, मार्टिन लूथर किंग, अब्राहम लिंकन और बाकी सारे महान लोगों की क्षमता वाले अमित शाह का जो लगभग इन्हीया इनसे ज्यादा गुणो वाले मोदी जी को पथ से भटकने नहीं दे रहे हैं। 
भारत जैसे देश का दुर्भाग्य ये है कि यहां लोकतंत्र है। बताइए, इस लोकतंत्र के चक्कर में ही कितने ही मोदी जैसे वीरों को भारत का ”क्षमा कीजिएगा” अखंड भारत का राजा बनने का मौका हाथ से निकल जाता है। वीर मोदी और महान अमित जी अब इस राह पर हैं कि इस देश से लोकतंत्र के सभी प्रतीकों को एक ही बार में खत्म कर दिया जाए। इसके लिए पहले तो संविधान में फेरबदल करके उसमें से पांच साल में चुनाव वाला मुद्दा खत्म किया जाना चाहिए, ये सुसरे चुनाव की तलवार तो वैसे ही किसी पर नहीं लटकनी चाहिए। अगर बिल्कुल खत्म ना हो सके तो एक बार चुने जाने पर किसी को कम से कम 20 साल तक तो सत्ता में रहना ही चाहिए। पांच साल में आखिर हो भी क्या सकता है। मोदी इसी रास्ते पर हैं, और अब मोदी ने ठान लिया है तो वो ये करके भी दिखा देंगे। शुरुआत ऐसे की जा सकती है कि दिल्ली, जो देश की राजधानी है इसे शाही शहर दिल्ली का नाम दिया जाना चाहिए। राजधानी शाही होगी तो इसके प्रधानमंत्री को शाह, सुल्तान या राजा, आदि कहा जा सकता है, क्यों? तब होगा यूं कि बीस साल तक तो मोदी शाही शहर दिल्ली की गद्दी पर भारत ”ये सुसरी जुबान भी ना” अखंड भारत के राजा की तरह राज कर सकेंगे। और तब आप देखेंगे कि बाकी छुट-पुट देश जैसे चीन, पाकिस्तान, रूस हमारे सामने नाम रगड़ेंगे.....नाक। 
इसके लिए योजना पर कार्य आरंभ हो चुका है, मोदी ने अपने बराक ओबामा को अपना ”छोटा” भाई बना लिया है, हालांकि अभी वो उसे प्रिय मित्र के संबोधन से नवाज़ते हैं, लेकिन कुछ दिन ठहर जाइए, फिर बराक अपने संबोधन में मोदी को बड़े भैया मोदी कहकर पुकारेंगे। बस एक बार मोदी, बराक के बड़े भाई बन गए तो फिर क्या है, अमरीका की सारी ताकत हमारे साथ खड़ी होगी। अब ये जो योजना है, ये बहुत ही सीक्रेट है। इसके मुताबिक, पहले तो उन लोगों की पहचान की जाएगी जो ”फाइव स्टार” एक्टीविस्ट हैं, यानी ऐसे लोग जो मानव अधिकार, धर्म निरपेक्षता, दलित और महिला अधिकार की बातें करते हैं, सुप्रीम कोर्ट को निर्देश दिया जा चुका है कि कानून कुछ भी कहे, अगर ये एक्टीविस्ट किसी चीज़ की मांग करते हैं, तो कानून की जगह नरेंद्र भाई मोदी की बात को सर्वोपरि माना जाए। आखिर राजा का कहा ही तो कानून होता है, यानी पहले कोर्ट-फोर्ट को आदत डाली जाएगी कि वो संविधान प्रदत्त कानून की जगह मोदी के आदेश के अनुसार फैसले सुनाया करे। इसके बाद संविधान की अनिवार्यता को चुनौती दी जाएगी। जब संविधान ही नहीं रहेगा तो अल्पसंख्यकों के अधिकारों की बातें बेमानी हो जाएंगी, तब अमित भाई शाह अपने पुराने धंधे पर लग जाएंगे। 
हालांकि अब भी अल्पसंख्यकों की धर-पकड़ होती है, लेकिन क्या है ना कि कानून, और संविधान के झंझट के चलते वो छूट जाते हैं। इसमें भी एक मसला ये है कि जिनका पता होता है कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है, उनका एन्काउंटर कर दिया जाता है, पड़ा करता रहे कोर्ट जांच, जब हाशिमपुरा, बाथे-बथानी में सैंकड़ों लोगों का जन-संहार तक के केस बिना किसी अपराधी तक के खत्म हो गए तो एक दो एनकांउटरों की तो बात ही क्या है। छुड़ा लेंगे हम अपने एनकाउंटर वीरों को ऐसे ही। इसके बाद बारी आएगी दलितों की, तो भैया एक बार राजा बन गए तो ये समझ लीजिए कि वही स्वर्णिम काल वाली पुरातन व्यवस्था लागू की जाएगी, जिसमें ब्राहम्ण सर्वोपरि होगा, लेकिन सिर्फ वो ब हरामन जो मोदी के आस-पास या साथ में होगा, ”इसमें वो लोग भी शामिल हैं, जो ब हरामन ना हों, लेकिन साधु-संतई आदि का कारोबार चलाते हों, जैसे आसाराम, रामदेव, श्री श्री आदि” और शूद्र जो हैं वो चतुर्थ श्रेणी के नागरिक बन कर रहेंगे। महिलाओं को सभी तरह के सार्वजनिक जीवन से हटा दिया जाएगा, ”घर की इज्जत, घर में ही लुटे तो अच्छा है”।  
अगर ये हो गया, ”और अब अगर-मगर करने का टाइम तो गया” तो ये देश दुनिया का सबसे महान देश बन कर उभरेगा और हम एक बार फिर से सोन चिरैया हो जाएंगे, गाय के पेशाब से दवाइयां बनेंगी, उसी के गोबर को भरके हमारे हवाई जहाज़ चलेंगे, हम तो चांद तक रॉकेट भी गौ-विष्ठा ईंधन से लेकर जाएंगे। गाय के पेशाब और गोबर की ताकत का अंदाजा आपको अभी है नहीं, आदि काल में एक ऋषि ने बताया है कि गाय के गोबर के ईंधन से चलने वाले अंतरिक्ष यान सूर्य तक के चक्कर एक घंटे में लगा आते थे। बतरा आदि महान अनुसंधानकर्ता वही अविष्कार ढूंढने में लगे हुए हैं, जैसे ही वो अविष्कार मिल जाएगा, हम पहले पूरी दुनिया पर विजय करेंगे और फिर ब्रहमांड पर विजय की पताका फहराएंगे। एक मिनट, ये पताका तिरंगा नहीं होगा, तिरंगा तो इसी लोकतंत्र की देन है, नहीं, परम पूज्य श्री गुरु जी ने कहा था कि तिरंगा अशुभ है, इसलिए हम हनुमान जी के लंगोट को डंडे पर बांध कर उसका झंटा बनाएंगे और उसे पूरे ब्रहमांड में फहरा देंगे। 
मोदी की इस ब्रहमांड विजय की योजना में कितना दम है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सातवें आसमान में रहने वाला ईश्वर भी उससे डर गया है, देखिए तो अप्रैल के महीने में ही ओले और बारिश हो रही है। अब बताइए, जिसके प्रताप से ईश्वर तक डरता हो, उसका अभियान सफल होगा या नहीं। हमें अफसोस इसी बात का है कि मोदी ने पालने में ही अपने पैर दिखा दिए थे, ”पढ़िए बाल मोदी” लेकिन भारत के लोगाों ने उसे समय पर नहीं पहचाना, बल्कि उसे चाय तक बनाना पड़ी। खैर अब भी कोई देर नहीं हुई है, अब हमें मोदी की आलोचना करने, उनका उपहास उड़ाने की जगह उनके कार्य को सहयोग देना चाहिए। शुरुआत आप ऐसे कर सकते हैं, कि मोदी की शिक्षा मंत्री ईरानी जी को पूरा सहयोग दें, आई आई टी, एम्स जैसे संस्थानों में गौ गोबर से लिपाई चालू करें। बतरा आदि को उनकी खोज में सहयोग दें, वे शिक्षा के क्षेत्र में भारी परिवर्तन के लिए, काम कर रहे हैं, भावी पीढ़ी को मोदी के कर्मों से प्रेरणा देने के लिए, बाल मोदी पुस्तकों की रचना और उनके वितरण में भी उनका बहुत बड़ा ”बहुत ही बड़ा” हाथ रहा है। उन्हे सहयोग दें। इसके लिए आप रामायण-महाभारत, वेद-पुराण आदि खंगाल कर उनमें से ऐसे आविष्कार निकाल सकते हैं, जो पुरातन समय में थे, जैसे इच्छाशक्ति से चलने वाला टीवी, या कम्प्यूटर, या मन की गति से चलने वाले वाहन, अश्वथामा की अमरता का मोती, आदि.....ये सिर्फ कुछ उदाहरण हैं आप इनमें इजाफा कर सकते हैं। 
बाकी मोदी ने अपनी योजना शुरु कर दी है, और उन्हे कोई रोक नहीं सकता।

विशेष नोट: मैने उपरोक्त लेख में कई अन्य भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया है, मोदी की योजना सफल होने के बाद, हमारे देश में सिर्फ संस्कृत का ही प्रयोग होगा। उर्दू जैसी भाषाओं को कतई जगह नहीं मिलेगी। 

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...