मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

कुछ तो लोग कहेंगे


कुछ तो लोग कहेंगे

नरेंद्र भाई दामोदर मोदी जबसे इस देश के प्रधानमंत्री बने हैं, इस देश ने विकास के कितने ही पड़ाव पार कर लिए हैं। कहां तो इस देश का नाम कोई नहीं जानता था, और अब.....अब हालत ये है कि पूरे ब्रह्मांड में इस देश की चर्चा हो रही है। हम पहले इसलिए जाने जाते थे कि हम दूसरों से कर्ज़ लेते हैं, वो क्या कहा था ग़ालिब ने, "कर्ज़ की पीते थे वो और कहते थे....."हां हां वही। आज हम दे रहे हैं, कर्ज़ नहीं, दान। मोदी के नेतृत्व में हम विश्व के सबसे महान देश बनने जा रहे हैं, हम कर्ज़ नहीं देंगे, दान देंगे। 
लेकिन अपने ही देश में कुछ लोग ऐसे हैं, जो भारत मां...आं....आं की इस विशाल ह्रदयता को समझ नहीं पा रहे हैं। ये लोग किसानों की आत्महत्या, किसानों पर मौसम की मार, बच्चों को शिक्षा, भोजन ना मिल पाने, गरीबों की बढ़ती महंगाई से त्रस्त हालत का दुखड़ा रोने लगे हैं। ये बहुत ही नीच किस्म के लोग हैं, ये चाहते हैं कि नरेंद्र भाई मोदी का ध्यान विश्व में अपने देश का नाम सबसे उपर करने के महान लक्ष्य से हटकर इन टुच्चे विषयों तक सीमित हो जाए। वो तो भला हो आज के नेपोलियन बोनापार्ट से ज्यादा योग्य और महत्वाकांक्षी सेनापति के गुण वाले, आज के जमाने के लोहिया, गांधी, भगतसिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, मार्टिन लूथर किंग, अब्राहम लिंकन और बाकी सारे महान लोगों की क्षमता वाले अमित शाह का जो लगभग इन्हीया इनसे ज्यादा गुणो वाले मोदी जी को पथ से भटकने नहीं दे रहे हैं। 
भारत जैसे देश का दुर्भाग्य ये है कि यहां लोकतंत्र है। बताइए, इस लोकतंत्र के चक्कर में ही कितने ही मोदी जैसे वीरों को भारत का ”क्षमा कीजिएगा” अखंड भारत का राजा बनने का मौका हाथ से निकल जाता है। वीर मोदी और महान अमित जी अब इस राह पर हैं कि इस देश से लोकतंत्र के सभी प्रतीकों को एक ही बार में खत्म कर दिया जाए। इसके लिए पहले तो संविधान में फेरबदल करके उसमें से पांच साल में चुनाव वाला मुद्दा खत्म किया जाना चाहिए, ये सुसरे चुनाव की तलवार तो वैसे ही किसी पर नहीं लटकनी चाहिए। अगर बिल्कुल खत्म ना हो सके तो एक बार चुने जाने पर किसी को कम से कम 20 साल तक तो सत्ता में रहना ही चाहिए। पांच साल में आखिर हो भी क्या सकता है। मोदी इसी रास्ते पर हैं, और अब मोदी ने ठान लिया है तो वो ये करके भी दिखा देंगे। शुरुआत ऐसे की जा सकती है कि दिल्ली, जो देश की राजधानी है इसे शाही शहर दिल्ली का नाम दिया जाना चाहिए। राजधानी शाही होगी तो इसके प्रधानमंत्री को शाह, सुल्तान या राजा, आदि कहा जा सकता है, क्यों? तब होगा यूं कि बीस साल तक तो मोदी शाही शहर दिल्ली की गद्दी पर भारत ”ये सुसरी जुबान भी ना” अखंड भारत के राजा की तरह राज कर सकेंगे। और तब आप देखेंगे कि बाकी छुट-पुट देश जैसे चीन, पाकिस्तान, रूस हमारे सामने नाम रगड़ेंगे.....नाक। 
इसके लिए योजना पर कार्य आरंभ हो चुका है, मोदी ने अपने बराक ओबामा को अपना ”छोटा” भाई बना लिया है, हालांकि अभी वो उसे प्रिय मित्र के संबोधन से नवाज़ते हैं, लेकिन कुछ दिन ठहर जाइए, फिर बराक अपने संबोधन में मोदी को बड़े भैया मोदी कहकर पुकारेंगे। बस एक बार मोदी, बराक के बड़े भाई बन गए तो फिर क्या है, अमरीका की सारी ताकत हमारे साथ खड़ी होगी। अब ये जो योजना है, ये बहुत ही सीक्रेट है। इसके मुताबिक, पहले तो उन लोगों की पहचान की जाएगी जो ”फाइव स्टार” एक्टीविस्ट हैं, यानी ऐसे लोग जो मानव अधिकार, धर्म निरपेक्षता, दलित और महिला अधिकार की बातें करते हैं, सुप्रीम कोर्ट को निर्देश दिया जा चुका है कि कानून कुछ भी कहे, अगर ये एक्टीविस्ट किसी चीज़ की मांग करते हैं, तो कानून की जगह नरेंद्र भाई मोदी की बात को सर्वोपरि माना जाए। आखिर राजा का कहा ही तो कानून होता है, यानी पहले कोर्ट-फोर्ट को आदत डाली जाएगी कि वो संविधान प्रदत्त कानून की जगह मोदी के आदेश के अनुसार फैसले सुनाया करे। इसके बाद संविधान की अनिवार्यता को चुनौती दी जाएगी। जब संविधान ही नहीं रहेगा तो अल्पसंख्यकों के अधिकारों की बातें बेमानी हो जाएंगी, तब अमित भाई शाह अपने पुराने धंधे पर लग जाएंगे। 
हालांकि अब भी अल्पसंख्यकों की धर-पकड़ होती है, लेकिन क्या है ना कि कानून, और संविधान के झंझट के चलते वो छूट जाते हैं। इसमें भी एक मसला ये है कि जिनका पता होता है कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है, उनका एन्काउंटर कर दिया जाता है, पड़ा करता रहे कोर्ट जांच, जब हाशिमपुरा, बाथे-बथानी में सैंकड़ों लोगों का जन-संहार तक के केस बिना किसी अपराधी तक के खत्म हो गए तो एक दो एनकांउटरों की तो बात ही क्या है। छुड़ा लेंगे हम अपने एनकाउंटर वीरों को ऐसे ही। इसके बाद बारी आएगी दलितों की, तो भैया एक बार राजा बन गए तो ये समझ लीजिए कि वही स्वर्णिम काल वाली पुरातन व्यवस्था लागू की जाएगी, जिसमें ब्राहम्ण सर्वोपरि होगा, लेकिन सिर्फ वो ब हरामन जो मोदी के आस-पास या साथ में होगा, ”इसमें वो लोग भी शामिल हैं, जो ब हरामन ना हों, लेकिन साधु-संतई आदि का कारोबार चलाते हों, जैसे आसाराम, रामदेव, श्री श्री आदि” और शूद्र जो हैं वो चतुर्थ श्रेणी के नागरिक बन कर रहेंगे। महिलाओं को सभी तरह के सार्वजनिक जीवन से हटा दिया जाएगा, ”घर की इज्जत, घर में ही लुटे तो अच्छा है”।  
अगर ये हो गया, ”और अब अगर-मगर करने का टाइम तो गया” तो ये देश दुनिया का सबसे महान देश बन कर उभरेगा और हम एक बार फिर से सोन चिरैया हो जाएंगे, गाय के पेशाब से दवाइयां बनेंगी, उसी के गोबर को भरके हमारे हवाई जहाज़ चलेंगे, हम तो चांद तक रॉकेट भी गौ-विष्ठा ईंधन से लेकर जाएंगे। गाय के पेशाब और गोबर की ताकत का अंदाजा आपको अभी है नहीं, आदि काल में एक ऋषि ने बताया है कि गाय के गोबर के ईंधन से चलने वाले अंतरिक्ष यान सूर्य तक के चक्कर एक घंटे में लगा आते थे। बतरा आदि महान अनुसंधानकर्ता वही अविष्कार ढूंढने में लगे हुए हैं, जैसे ही वो अविष्कार मिल जाएगा, हम पहले पूरी दुनिया पर विजय करेंगे और फिर ब्रहमांड पर विजय की पताका फहराएंगे। एक मिनट, ये पताका तिरंगा नहीं होगा, तिरंगा तो इसी लोकतंत्र की देन है, नहीं, परम पूज्य श्री गुरु जी ने कहा था कि तिरंगा अशुभ है, इसलिए हम हनुमान जी के लंगोट को डंडे पर बांध कर उसका झंटा बनाएंगे और उसे पूरे ब्रहमांड में फहरा देंगे। 
मोदी की इस ब्रहमांड विजय की योजना में कितना दम है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सातवें आसमान में रहने वाला ईश्वर भी उससे डर गया है, देखिए तो अप्रैल के महीने में ही ओले और बारिश हो रही है। अब बताइए, जिसके प्रताप से ईश्वर तक डरता हो, उसका अभियान सफल होगा या नहीं। हमें अफसोस इसी बात का है कि मोदी ने पालने में ही अपने पैर दिखा दिए थे, ”पढ़िए बाल मोदी” लेकिन भारत के लोगाों ने उसे समय पर नहीं पहचाना, बल्कि उसे चाय तक बनाना पड़ी। खैर अब भी कोई देर नहीं हुई है, अब हमें मोदी की आलोचना करने, उनका उपहास उड़ाने की जगह उनके कार्य को सहयोग देना चाहिए। शुरुआत आप ऐसे कर सकते हैं, कि मोदी की शिक्षा मंत्री ईरानी जी को पूरा सहयोग दें, आई आई टी, एम्स जैसे संस्थानों में गौ गोबर से लिपाई चालू करें। बतरा आदि को उनकी खोज में सहयोग दें, वे शिक्षा के क्षेत्र में भारी परिवर्तन के लिए, काम कर रहे हैं, भावी पीढ़ी को मोदी के कर्मों से प्रेरणा देने के लिए, बाल मोदी पुस्तकों की रचना और उनके वितरण में भी उनका बहुत बड़ा ”बहुत ही बड़ा” हाथ रहा है। उन्हे सहयोग दें। इसके लिए आप रामायण-महाभारत, वेद-पुराण आदि खंगाल कर उनमें से ऐसे आविष्कार निकाल सकते हैं, जो पुरातन समय में थे, जैसे इच्छाशक्ति से चलने वाला टीवी, या कम्प्यूटर, या मन की गति से चलने वाले वाहन, अश्वथामा की अमरता का मोती, आदि.....ये सिर्फ कुछ उदाहरण हैं आप इनमें इजाफा कर सकते हैं। 
बाकी मोदी ने अपनी योजना शुरु कर दी है, और उन्हे कोई रोक नहीं सकता।

विशेष नोट: मैने उपरोक्त लेख में कई अन्य भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया है, मोदी की योजना सफल होने के बाद, हमारे देश में सिर्फ संस्कृत का ही प्रयोग होगा। उर्दू जैसी भाषाओं को कतई जगह नहीं मिलेगी। 

1 टिप्पणी:

  1. bhai sahab maza aa gaya padhkar.....bus itna or h ki thoda mantrimandal par or hamari suraksha tukdi par bhi kuch or ho jata to or acha tha....keep it up

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