बुधवार, 29 अप्रैल 2015

हिंदु आपदा



नेपाल में जो भूकम्प आया, वो बहुत ही दुखद प्राकृति आपदा है। इसमें लाखों लोग उजड़ गए हैं, बरबाद हो गए हैं। इस समय हमारा क्या कर्तव्य बनता है? हमारा कर्तव्य बनता है कि हम इस आपदा को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें। ऐसी आपदाएं रोज़ नहीं आया करतीं, और इतने पड़ोस में तो नहीं ही आया करतीं। अब देखिए इस आपदा का असर बिहार में हुआ है, हम वहां की सरकार को निकम्मा साबित कर सकते हैं, और इस तरह आने वाले चुनाव में एक बार फिर अपने स्वयंभू अवतार को सच का अवतार घोषित कर सकते हैं। इसलिए हमें ऐसे काम करने चाहिएं जो हमारे लिए फायदेमंद हों। हमें नेपाल के लोगों की मदद तो करनी चाहिए, लेकिन मदद ऐसी ना हो कि मदद तो हो लेकिन किसी को पता ना चले। इसलिए मदद से पहले, मदद का प्रचार जरूरी है, और मदद के बाद उसका बखान करना ना भूलें। याद रखें किसी भी राजनेता का सबसे पहला काम होता है, प्रचार, दूसरा काम प्रचार, और फिर तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण काम होता है प्रचार। जी....तो मदद करें, लेकिन मदद करने से पहले उसका प्रचार करें। 
तो जो नेपाल जा सकता है जरूर जाए और मदद करे। लेकिन मदद करने से पहले हमें देख लेना चाहिए कि जो इस आपदा के पीड़ित हैं, वो हिंदु हैं या किसी अन्य धर्म के हैं। हमारा अतीव धार्मिक देश है, इसलिए इस बात का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि हमारी मदद गलती से किसी गलत इंसान तक ना पहुंच जाए। इसलिए होना ये चाहिए कि इस आपदा का इस्तेमाल हमें अपने महान लक्ष्य की पूर्ति के लिए करना चाहिए। जैसे इस बात का ज्यादा से ज्यादा प्रचार करना चाहिए कि हमारे स्वयंसेवकों की फौजें आपदा पीड़ित हिंदुओं को बचाने के लिए नेपाल पहुंच चुकी हैं। उसके लिए जहां से भी हो सके फोटो आदि का जुगाड़ करके फेसबुक आदि सोशल मीडिया साइट्स पर डालना चाहिए। ये तो शायद हो भी रहा हो, लेकिन मेरा सुझाव इससे आगे का था। हमें करना ये चाहिए कि अपनी स्वयंसेवकों की इस टीम के साथ कुछ वीडियोग्राफर भी भेजने चाहिएं, जो कुछ इस तरह के वीडियो वहां से भेजें कि हिंदुओं का हौसला बढ़े और अन्य धर्म वालों को हौसला डिगे। जैसे ये स्वयंसेवक मलबे में फंसे हुए किसी इंसान को देखें और उसकी तरफ बढ़ें, उससे पूछें कि उसका धर्म क्या है, अगर वो हिंदु हो तो उसे मलबे से निकाल लें और जो भी सेवा-सहायता बनती हो वो करें, लेकिन मान लीजिए कि वो किसी और धर्म को मानने वाला हो तो दो में से एक काम करें। एक तो ये कि उसे उसके हाल पर छोड़ा जा सकता है, या फिर जिंदा जलाया जा सकता है, मारा जा सकता है, महिला हो तो उसका बलात्कार किया जा सकता है, और फिर जय श्री राम के नारे लगाए जा सकते हैं। दूसरे थोड़ा संवेदनशीलता दिखाते हुए उससे ये पूछा जा सकता है कि क्या वो ”घर वापसी” यानी वापस हिंदु धर्म में आने के लिए तैयार है। अगर वो हां कहे तो पहले उसकी शुद्धि की जाए, यानी उसके माथे पर गंगाजल छिड़किए फिर उसके कपाल पर टीका लगाइए, इस बीच उसे बचाने की चिंता मत कीजिए, इस बीच अगर वो मर भी गया तो हिंदु होने पर ही मरेगा ना, तब उसका स्वर्ग जाना पक्का है, और अगर किसी और धर्म का होकर मरा तो......ये हम होने नहीं देंगे। एक बार वो शुद्धिकरण आदि की प्रक्रिया को झेल गया तो उसे बचाया भी जा सकता है। 
मेरा एक दोस्त जो अभी परसों ही नेपाल से लौटा है, पानी पी पीकर भारत सरकार के दावों को कोस रहा था। उसका कहना है कि वहां हालत ये है कि अगर तुम्हारी किसी मिनिस्टर से या किसी बड़े आदमी से जान पहचान है, यानी दिल्ली से सिफारिश लगवाई जा सकती है तो तुम्हे सुरक्षित निकाल लिए जाने के चांस हैं। लेकिन अगर मेरी तरह तुम बिना सिफारिश जान-पहचान के वहां हो, तो भैया पड़े रहो, और जो हो सकता है अपने तौर पर कर लो, क्योंकि भारत सरकार कुछ नहीं करने वाली, सिवाय आश्वासन देने के। मैने उससे कहा कि भाई तुम्हे भारतीय दूतावास जाना चाहिए था। उसका कहना है कि भारतीयों को भारतीय दूतावास में ही जगह नहीं है, पहले उनको निकाला जाएगा जो महत्वपूर्ण हैं, फिर उन्हे जिनके पास सिफारिश है, फिर हो सकता है कि तुम्हारा नंबर आ जाए। क्योंकि तुम्हे बचाकर तो टीवी पर लोगों को बचाने का नाम नहीं कमाया जा सकता।
हो ये भी सकता है कि भूकम्प में बचने वाले जितने लोग वहां हैं उनमें से गुजरातियों को निकाल लाया जाए, और बंगालियों को छोड़ दिया जाए ”अभी वो बंगाल में बुरी तरह हारे हैं” जैसा उन्होने उत्तराखंड की आपदा के दौरान किया था। अफवाह तो ये भी है कि एक मुसीबतज़दा शख्स झूठ बोलकर कि वो गुजराती है उनके बचाव हैलीकॉप्टर में बैठ गया था, उपर जाकर उन्हे पता लगा कि वो तो गुजराती नहीं है, तो उन्होेने उसे उसी वक्त लात मारकर नीचे गिरा दिया था। पर ये है अफवाह ही....इस पर बहुत भरोसा नहीं किया जा सकता। हो सकता है उस आदमी की किस्मत ही खराब हो, या उसका पैर फिसल गया हो। होने को क्या नहीं हो सकता। 
लेकिन कुछ बातें संदेह उपजाती हैं, हमें मिथ्या प्रचारों से बचना चाहिए। अब जो संख्या नेपाल जाने वाले स्वयंसेवकों की बताई जा रही है, या योगियों, बाबाओं द्वारा बचाए गए लोगों की बताई जा रही है, उस पर ध्यान रखने की जरूरत है। कहीं ऐसा ना हो कि उत्तराखंड की तरह यहां हमारे द्वारा बचाए गए लोगों की संख्या पीड़ितों की कुल संख्या से ज्यादा हो जाए, या कोई अतिउत्साही बाबा ये दावा करने लगे कि उसने दो दिन में दस लाख लोगों को बचा लिया। हमारे लोगों की यही खामी है, अतिशयोक्ति का भी तबला बजा देते हैं, किसी एक आदमी को पानी पिला दिया तो कथा यूं बताएंगे जैसे सारे शहर के लिए सदाव्रत बांटा हो। इसलिए हमें इस किस्म के असंभव दावों से बचना चाहिए। ज़रा सोचिए कि अगर सारे स्वयंसेवक, या ज्यादातर स्वयंसेवक नेपाल में चले गए तो इधर भारत में धर्म की रक्षा करने वाल कौन बचा रहेगा। घर वापसी कार्यक्रम अभी अपने शिखर पर है, हमें इसे और तेज़ करना है, और नेपाल में भी पीड़ित जनता में से ज्यादा से ज्यादा की घर वापसी करवानी है, इसके लिए उनकी असहायता का फायदा उठाया जा सकता है। 
हां, इससे याद आया, जब आप इस तरह की सहायता-वहायता में लगते हैं तो स्वाभाविक है मरे हुए लोगों की घड़ियां, कड़े, जेवर, पैसे आदि आप ले लेते हैं। ये कतई बुरा नहीं है, आखिर मरा हुआ इंसान इन सब भौतिक चीजों का क्या करेगा। लेकिन इसे बुरा माना जाता है। यूं बुरा तो दंगे करना, मासूमों को मारना, महिलाओं का बलात्कार करना भी माना जाता है, लेकिन हम करते हैं। लेकिन, ये बातें अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर आपकी छवि खराब कर सकती हैं। इसलिए अगर लूटने-लाटने की वारदात करनी हो तो पहले अच्छी तरह आस-पास देख लें, ताकि कोई सबूत ना रहे। 
अब मुझे सोशल मीडिया पर प्रचार के बारे में कुछ कहना है। मैं ये कतई नहीं कहूंगा कि झूठ ना कहें, या झूठी खबर ना फैलाएं, खबरे वहीं सही होती हैं, जो झूठी होती हैं, आखिर हमने गोयबल्स से कुछ सीखा है। लेकिन हमारा झूठ इतना शातिर होना चाहिए कि वो पकड़ा ना जा सके, जैसे ऐसी फोटो ना लगाएं जो आसानी से पकड़ी जाएं, ये हिंदु धर्म के दुश्मन, बहुत शातिर हैं, फौरन सच भंाप लेते हैं। अफसोस की शातिर झूठ बोलने में अभी तक हमारे स्वयंभू अवतार मोदी जी भी प्रवीण नहीं हो पाएं है, और अक्सर हिंदु धर्म के दुश्मन उनके झूठ पकड़ कर उन्हे यहां-वहां शर्मिंदा करते रहते हैं। फिर हमें उनका बचाव करना पड़ता है। खैर आप ऐसा ना करें। अब तक हम सोशल मीडिया पर गालियां देकर, महिलाओं के साथ गाली-गलौच करके, खुद को बनाए रखे थे, अब यही काम हमें और तेज़ी से करना होगा। जो भी हमारा झूठ पकड़े उसे गालियां दीजिए, असली बचाव कार्यों और मदद को झूठ बताइए, और अपने झूठ को सही बताइए। ”हिरोइनों के फोटो को फौरन लाइक करने वालों, इस स्वयंसेवक को कितने लाइक” जैसे कमेंट डालिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो फोटो 2007 में नांदेड़ के किसी गांव में खींचा गया हो। इसी तरह अपने स्वयंसेवकों के शौर्य, दानवीरता आदि के झूठे किस्से बनाइए, और उनका ज्यादा से ज्यादा प्रचार कीजिए। बाकी आप सब माहिर हैं, यही कुछ पाइंटस् याद रखिए।
बाकी जुबानी प्रचार में ये ध्यान रखिए कि इसे भी भगवान का चमत्कार कहा जा सकता है कि ना तो उत्तराखंड की बाढ़ में केदारनाथ को कुछ हुआ था और ना इस भूकम्प में पशुपतिनाथ मंदिर को कुछ हुआ है। इस तरह की घटनाओं को अपने हक में इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसी की किन्ही सुदूर गांव के मंदिरों की कहानियां बनाई जा सकती हैं, इसमें अगर ऐसा मसाला भी कि उसी गांव की मस्जिद या चर्च ढह गया तो कहानी अधिक विश्वसनीय लगेगी। ध्यान रहे।
अभी देखिए, योगी आदित्यनाथ ने क्या मौके पर चौका मारा, उन्होने फटाक से दावा कर दिया कि उन्होने हजारों लोगों को अपने मंदिर में जगह दे दी। ऐसे ही एक और बाबा ने दावा किया कि उन्होेने गांव या बच्चे कुछ याद नहीं हैं को गोद ले लिया। ये अच्छी बात है। बाबा बच गए ये भी भी अच्छी बात है, सुना है कि वहां भी वो मंच से कूद कर अपनी जान बचाए हैं, इसकी प्रैक्टिस उन्हे महिलाओं के कपड़े पहन कर भागने के दौरान हुई थी। यूं मैदान छोड़ने की परंपरा हमारे पुरखों से ही हमारे संगठनों में बनी हुई है, बस इसकी प्रैक्टिस करते रहना चाहिए।
बाकी नेपाल की आपदा से आप जितना फायदा उठा सकते हैं उठाइए, इसमें आपकी कुशलता आदि भी मायने रखती है। 


हो सकता है कि आप ये लेख लिखने पर मुझे कोसें, कुछ लोग इसे मेरी धृष्टता बताएं और कुछ शायद मुझे असंवेदनशील कहें। दरअसल मैं नेपाल में हुई भीषण त्रासदी पर कुछ लिख रहा हूं। इधर आधुनिक संचार साधनों की अत्याधुनिक तेज़ी का कमाल ये है कि उधर भूकम्प आया और इधर पूरी दुनिया के लोगों को पता चल गया कि भूकम्प आया है। फिर क्या था, सामाजिक संवेदनशीलता का अंबार लग गया, लोगों ने अपनी प्रार्थनाएं भेजनी शुरु कीं, लोगों ने और लोगों को उकसाया कि वो भी अपनी प्रार्थनाएं भेजंे, और लोगों ने और लोगों की बातें सुनी और उन्होने भी अपनी प्रार्थनाएं भेजीं। मैं नहीं भेज सका, या यूं कहूं कि मैं प्रार्थनाएं नहीं भेजता, इसलिए नहीं भेजीं। घटना दुखद है, इसमें कोई संदेह नहीं, लेकिन मेरी प्रार्थना उसमें कुछ कर पाएगी, या किसी की भी प्रार्थना उसमें कुछ कर पाएगी उसमें मुझे संदेह है। अभी तो विवाद यही है कि ये दैवीय आपदा है या नहीं, क्योंकि भूकम्प के बाद बी बी सी का पहला समाचार ये था कि पशुपतिनाथ मंदिर सुरक्षित है, हो सकता है कि आपदा दैवीय ही हो। आखिर गांव में आग लगाने वाला अपने घर को बचाकर चलता है। अगर ऐसा है तो प्रार्थना करने से फायदा क्या, और मान लीजिए कि आपदा प्राकृतिक है, तब प्रार्थना से ज्यादा पीड़ित जनता को हमारी मदद की आवश्यकता है, हमारे तन-मन-धन की मदद की आवश्यकता है।

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