गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

आत्महत्या और कायरता



जाने क्यों अभी कुछ साल पहले से किसानों की आत्महत्या ने इस देश के बुद्धिजीवियों का पेट खराब किया हुआ है। जिसे देखो वही किसानों की आत्महत्या से परेशान है। बंधु किसान इस देश के, सदियों से आत्महत्या करते आए हैं, आत्महत्या नहीं होती तो उनकी हत्या कर दी जाती है। असल में तुम लोग कुछ समझते नहीं हो, किसान लोग अपनी फसल की बरबादी से, परिवार या भविष्य की चिंता से नहीं, बल्कि हमारी परंपरा को बचाने के लिए आत्महत्या करते हैं। बताइए कभी ऐसा हुआ है क्या कि सेठों ने, सामंतों ने, या राजाओं ने आत्महत्या की हो। आपने कभी नहीं सुना होगा कि एक ही महीने या साल में 15 सांसदों ने, विधायकों ने आत्महत्या की। किसानों की, बेरोजगार छात्र-नौजवानों की आत्महत्या हमारे देश की परंपरा है, और परंपरा का ये है गुरु कि चाहे जो हो जाए ये चलती रहती है। 
पीढ़ी दर पीढ़ी किसान मरते हैं, उनके मरने में कोई नई बात नहीं है। नई बात है ये इस बात पर बेवजह के शोर-शराबे की। बताइए, कौन सरकार जाकर कही है कि किसानो से कि आत्महत्या कर लो भाई, और आत्महत्या निजी मामला होता है, अब सरकार इसमें कर भी क्या सकती है। सरकार ने थोड़े ही कहा था कि खेती करो, तुम्हारी इच्छा है, करो, ना करो, बल्कि सरकार तो तुम्हे खेती जैसे मनहूस पेशे से निज़ात दिलाने की कोशिश कर रही है। भूमि अधिग्रहण करवा लो, बस......फिर मजे काटो और क्या। खेती-किसानी में आखिर रखा ही क्या है। शहर आ जाओ, यहां विदेसी दारू मिलती है, सिनेमा मिलता है, खुल्ले आकास के नीचे सोना और.......बाकी सहर में तो वो क्या कहते हैं, शेल्टर होम भी बना है, गांव में होता है क्या शेल्टर होम.....शहर आ जाओ, जब कुछ ना हो पास में तो शेल्टर होम में आ जाना......उसका पूरा इंतजाम है यहां पर। मरने की क्या जरूरत है बोलो तो......। पर नहीं....मरना है क्योंकि परंपरा है। 
अभी विवाद हो गया कि हरियाणा के एक मंत्री ने कह दिया कि किसान कायर होता है जो आत्महत्या कर लेता है। क्या गलत कहा जी, ये अपने अनुभव से बोल रहे हैं। हम कहें, बेशर्म होइए, चाहे जनता गाली दे, चाहे मुंह काला कर दे, हंसते रहिए। इन नेताओं को इसका बहुत प्रैक्टिस है जी......। किसान आज तक, मने इतने साल में बेशर्मी नहीं सीख पाया। बताइए, पूंजीपत सब, लाखों का कर्ज लेते हैं बैंक से, और बैंक बड़े आराम से उसे नॉन परफॉर्मिंग एसेट में डाल देता है। किस्सा खतम, ना पूंजीपति को दूसरी कम्पनी बना कर उसी बैंक से कर्ज लेने में शरम आता है, और ना बैंक उस पूंजीपति से पैसा वापस लेने की बात करता है। किसान भी तो ऐसा कर सकता है। ना दो ब्याज बैंक को, ना जमा कराओ किस्तें, जब पुलिस वाला आए तो कह दो कि तुम हो ही नहीं, रामादेस या जुम्मन। किस्सा खतम। ये क्या कि लटक गए पेड़ से, या कीटनाशक पीकर मर गए। उस पूंजीपति से कुछ सीखो, बैंक का कर्जा खा गया, शेयर होल्डरों का पैसा खा गया, फिर भी मुस्कुराता है, और फिर से वही घोटाला करने में जुट जाता है। और एक तुम हो, इतना सा बेइज्जती नहीं झेल पा रहे हो, कि बैंक का कर्ज वापस करना होगा। कायर हो तुम, बेशक कायर हो तुम।
इधर देखो, हमारी सरकार में, बड़ी ही बेशर्मी से चुनाव से पहले, गला फाड़-फाड़ कर झूठ बोला, और फिर उतनी ही बेशर्मी से कह भी दिया कि हमने तो झूठ बोला था। कर लो क्या करोगे, अरे हमसे नहीं तो अपने प्रधानमंत्री से ही कुछ सीख लेते। थोड़ी बहुत बेशर्मी सीख लेने में कोई गलती नहीं है, फिर वो तो अथाह बेशर्म हैं। किसान कायर हैं, बताइए, पहले बैंक से कर्ज लिया, फिर पूरा मौसम खेत में खटते रहे, कभी बीज डाल रहे हैं, तो कभी निराई, रुपाई, गुड़ाई कर रहे हैं, पानी लगा रहे हैं, तो रखवाली कर रहे हैं, और अंत में जब काटने का समय आया तो.....तो फसल पर पानी फिर गया। ऐसे में अपने भविष्य की चिंता करना कायरता नहीं तो और क्या है।
सरकार ने बीज, खाद, और बाकी कृषि सामान से सब्सिडी खत्म कर दी, किसानों को मिलने वाले कर्ज की ब्याज दर, पूंजीपतियों के कर्ज की ब्याज दर से ज्यादा है। जहां चाहे किसानो को जमीन से बेदखल कर दिया। फिर भी जमीन से चिपटे रहना, खेती करने की लालसा रखना कायरता नहीं तो और क्या है। किसानों को भारत-माता के चरणों में अपने जीवन का बलिदान कर देना चाहिए ताकि, खट्टर, बतरा, मोदी, शाह, और गडकरी जैसे लोग अपने-अपने तरीके से भारत माता को अडानी, अम्बानी आदि के हवाले करते रह सकें। इसी में सबकी भलाई है, और अगर वो ऐसा नहीं करते, तो वो कायर हैं। बताइए अपने नेताओं, पूंजीपतियों की इच्छाओं का पालन करते हुए भूख, बेकारी, बदहाली से मरने की जगह, आप आत्महत्या करें तो ये कायरता नहीं तो और क्या है। मेरी तो समझ नहीं आता कि जिंदगी जीने की चाह इन बेकार के किसान टाइप लोगों को होती ही क्यों है। क्यों नहीं योगी, साधु, साध्वी बन कर ये भी मुसलमानों को कोसें, किसी ना किसी तरह धार्मिक विद्वेष फैलाएं, ऐसा करने वाले लोग कायर नहीं होते। 
असल में वो सारे लोग कायर हैं जो अपने तौर पर जिंदगी जीना चाहते हैं, चाहे वो छात्र हों, नौजवान हों, महिलाएं हों, यहां तक कि बच्चे हों। अपने भविष्य के लिए अपना खून-पसीना एक कर देना कायरता है, जो धनकड़ जी कर रहे हैं वो कायरता नहीं है। किसानों को वो करना चाहिए जो धनकड़ जी ने किया। प्रधानमंत्री के कहने पर देश भर से लोहा-लंगड़ और ईंटें जमा करना, प्रधानमंत्री के प्रति अपनी वफादारी साबित करने के लिए किसी भी हद तक बेशर्मी करना आदि कायरता नहीं है। इसका अच्छा फल भी मिलता है, अब धनकड़ जी को ही देख लो, मिनिस्टर बने बैठे हैं ठाठ से, किसी को भी कायर कह देने का उन्हे पूरा अधिकार है। 
अपनी जिंदगी बचाने के लिए जानभर मेहनत करना कायरता है, और हमारे देश के किसान सदियों से ये कायरता करते आ रहे हैं। जब-जब भी इस देश में युद्ध हुआ सबसे ज्यादा नुक्सान किसानों ने झेला है, लेकिन ऐसा करना कायरता होती है। वीरता क्या होती है, किसी भी युद्ध, आपदा, संकट में मुनाफा कमा लेने के मौके ढूंढ लेना वीरता होती है। जैसा कि पूंजीपति करते हैं। पहला विश्वयुद्ध, दूसरा विश्वयुद्ध, सारी दुनिया भूखी मरती रही, आतंक में जीती रही और पूंजीपति मुनाफा बटोरते रहे, हमारे अपने देश के बिड़ला टाटा की सम्पत्ति उन दिनों कई गुना बढ़ गई थी, जिनके घरों में गांधी रुकते थे। वो थे वीर। अभी अडानी, अम्बानी बंधु वीर हैं, क्योंकि खाड़ी युद्ध हो, या बिहार की बाढ़, उत्तराखंड की आपदा हो या किसानों पर मौसम की मार, ये पूंजीपति मुनाफा कमा रहे हैं और जी भर के मुनाफा कमा रहे हैं। ये तो हुए वीर। बाकी भाजपा के सारे नेता वीर हैं, वे भी जो आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहे हैं और वे भी जो बाहर बैठ कर अनाप-शनाप बयान दे रहे हैं। वीर वो हैं जो नेपाल के भूकम्प जैसी त्रासदी को भी हिंदु-मुस्लिम में बांट रहे हैं। बाकी किसान कायर हैं, क्योंकि मेहनत करते हैं, किसान कायर हैं क्योंकि इनका पेट भरते हैं, किसान कायर हैं क्योंकि इनकी तरह बेशर्म नहीं हैं। 
बस एक दिक्कत दिखती है, अगर ये कायर, वीर हो गए तो क्या होगा। इन कायरों को धीरे-धीरे ये सारा गेम समझ में आ रहा है, और ये संगठित हो रहे हैं। अब क्या होगा। धनकड़ और धनकड़ के साहेब का क्या होगा, उनके साहेब यानी पूंजीपतियों का क्या होगा। क्योंकि वो दिन दूर नहीं जब अपनी जान लेने से ज्यादा अच्छा ये कायर खुद को संकट में डालने वाले वीरों को की जान लेना समझेंगे। तब क्या होगा। 
रहीम ने कहा था
”रहिमन जिव्हा बावरी, कह गई सुरग पाताल
आपहुं तो भीतर गई, जूती खात कपाल”
जिव्हा वाला काम तो धनकड़ ने कर दिया, अब बारी कपाल की है। 
फैज़ ने कहा
ये मजलूम मखलूक जब सर उठाए
तो इन्सान हर 
ये चाहें तो दुनिया को अपना बना लें
ये आकाओं की हड्डियां तक चबा लें
धनकड़ साहब, ख़ैर मनाइए कि किसान अपनी जान ले रहे हैं, अगर जो ये आपके आकाओं की जान लेने पर आ गए तो सोचिए आपको और आपके होते-सोतों को कहां पनाह मिलेगी। और ये भी तय है कि किसान उठ रहे हैं, एक हो रहे हैं, छात्र नौजवान मजदूर इकठ्ठे हो रहे हैं, और वो दिन दूर नहीं जब आपको समझ में आएगा कि आत्महत्या करने वाला किसान और क्या-क्या और क्या कर सकता है। 

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