लीजिए साहब, आ आ पा के नेता सोमनाथ भारती पर उनकी पत्नि ने घरेलू हिंसा का आरोप लगा दिया। कुछ लोग इसे भा ज पा की साजिश करार दे रहे हैं, हो सकता है हो ही, लेकिन आरोप तो लगे हैं। नैतिकता, सच्चाई, ईमानदारी के तथाकथित सिंहासन पर बैठे हुए लोगों की कलई खुल रही है। हालांकि डिग्री के मामले में ईरानी साहिबा का भी पेंच है, लेकिन वो केन्द्रीय मंत्री हैं, बचा ले जाएंगी, आप का क्या होगा जनाबे आली......
प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को पार्टी से निष्कासित करके अरविंद केजरीवाल ने जो साख खोई थी, उसे वापस हासिल करने की राह पर वो चल पड़े थे, जिसका मौका उन्हे अजीब जंग ने दे ही दिया था। अजीब जंग के इस अजूबे व्यवहार और तौर तरीके को हम बहुत करीब से देख चुके हैं, जामिया में वी सी होते थे, और क्या होते थे। साहब की जी हुजूरी, और मातहतों की ऐसी-तैसी इनके खून में ही है। जामिया तो बच्चों के लिए नरक बना दिया था जनाब, जब एल जी बने दिल्ली के, तो हम कहे थे, लीजिए, दिल्ली का भी बुरा दिन आ गया। खै़र, अजीब जंग ने केजरीवाल को बेकार ही छेड़ कर, या समझिए कि केन्द्र के इशारे पर आ आ पा को छेड़कर खुद आ आ पा के लिए, केजरीवाल के लिए जीवनदान वाली दवा का इंतजाम कर दिया था। दिल्ली की जनता में एक बार फिर से सुगबुगाहट होने लगी थी कि, भई केजरीवाल को काम नहीं करने दिया जा रहा, और उसके निकम्मेपन, बेईमानी और तानाशाही चेहरे की असलियत लोगों के सामने आती-आती रह गई थी। असल में गलती केजरीवाल, या सिसोदिया की नहीं है, इस सिस्टम में इसके अलावा रह सकने का कोई और विकल्प है ही नहीं, अगर आप बेईमान ना हों, झूठे ना हों, आम जनता पर अत्याचार ना कर सकते हों, तो आप सत्ता की कुर्सी पर एक दिन टिके नहीं रह सकते। हो सकता है कि आप सोचते हों कि केजरीवाल ने तो कुर्सी छोड़ दी थी, नहीं जनाब, असल में वो भी एक राजनीतिक कदम था, उस समय वो कुर्सी पर रह ही नहीं सकता था, बिना सपोर्ट के वो सरकार चला नहीं सकता था। मैने तब भी कहा था, कि भाई लोकपाल तुम चाहो तो भी नहीं बना सकते, क्योंकि ये राज्य का मामला नहीं है, ये केन्द्र सूची की बात है, उन दिनो ये भिड़े हुए थे लोकपाल के लिए, अब क्या हुआ, कहां गया लोकपाल, अब तो आपके पास 67 विधायक हैं।
मुद्दा मजदूरों का हो, गरीबों को हो, ठेका मजदूरों का हो, या आम जनता का, आ आ पा ने सत्ता में आते ही सबसे मुहं मोड़ लिया। और तो और, हर मुद्दे पर धरना देने वाली आ आ पा ने अपने साथी की दिन-दहाड़े हत्या का विरोध करने वाले, और उसके लिए उचित मुआवजे की मांग करने वाले डी टी सी के कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस और नौकरी से बर्खास्तगी की धमकी तक दे डाली। अरे वाह रे केजरीवाल, यानी धरना दोगे तो तुम, और शासन करोगे तो तुम, और बाकी जो कोई करे तो उसे पुलिस से पिटवाओगे, नौकरी से निकाल दोगे, भई वाह गजब तुम्हारी ईमानदारी, और गजब तुम्हारा लोकतंत्र।
कई दिनो से दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में देख रहा हूं कि केजरीवाल सरकार ने 152 के करीब अफसरों को सस्पेंड कर दिया है, और करीब तीस-चालीस गिरफ्तार किए गए हैं, तो भई ये तो बड़ा काम हुआ। असल में ये भी धोखे की टट्टी है। एक पत्रकार मित्र के हवाले से सूचना ये है कि जितने भी ये तथाकथित अफसर सस्पेंड या गिरफ्तार हुए हैं, वो सब इन्सपेक्टर या उससे नीचे के रैंक के हैं, तो उपर वाले क्या सुसरे सब ईमानदार भरे पड़े थे, या उनके खिलाफ किसी ने शिकायत नहीं की, या सरकार को दिखाई ना दी, या आ आ पा का मानना है कि बेईमानी और भ्रष्टाचार सिर्फ नीचे रैंक वाले करते हैं, उपर वाले सभी ईमानदार होते हैं। वैसे आ आ पा ये मान भी सकती है, क्योंकि उसके अपने सारे मंत्री, दूध के धुले हैं, छिछोरे विश्वास कुमार से लेकर, स्व पत्नि पीड़क सोमनाथ भारती तक सब सद्चरित्र, स्वनुशासित हैं। बाकी अगर उनका किसी से कोई अफेयर रहा तो वो निजी मामला है, अगर डिग्री फर्जी है तो वो निजी मामला है, अगर वो पार्टी को दो करोड़ चंदा देकर टिकट लिए हैं तो ये पार्टी और उनके बीच का मसला है, और अगर उनकी पत्नि ने उन पर अत्याचार आदि का इल्जाम लगाया है तो ये भाजपा की साजिश है।
बात ये भी है कि अगर तोमर को फर्जी डिग्री के मामले में गिरफ्तार किया जा सकता है, इसलिए कि उसने चुनाव आयोग को अपने एफिडेविट में झूठी डिग्री दी थी तो फिर यही काम नरेन्द्र मोदी के लिए क्यों ना हो, जो एक चुनाव में कुंवारे और दूसरे में शादीशुदा होते हैं, स्मृति ईरानी के लिए क्यों ना हो, जो एक चुनाव में बी ए पास होती हैं, दूसरे में बी कॉम पास होती हैं, और फिर कहीं ये बयान देती हैं कि उनके पास तो ऑक्सफोर्ड की डिग्री है।
खैर कुल मिलाकर मामला इतना है कि राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी पटखनियां खा रहे हैं, राजनीतिक विश्लेषक चकरा रहे हैं, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा कि आखिर ये हो क्या रहा है। मामला इतना संगीन है कि कुछ लोगों को तो ये तक लगने लगा है कि कहीं आ आ पा दिल्ली विधानसभा में खुद ही विपक्ष ना बना जाए, आखिर उसे भी विपक्ष की कमी खल रही होगी। पर चाहे कुछ भी हो, मजा खूब आ रहा है इस सब उठापटक में, कभी एल जी केजरीवाल को पटखनी दे देते हैं, कभी केजरीवाल एल जी के उपर भारी दिखते हैं, गजब कुश्ती चल रही है भाई। हाल ये है कि जब कोई पटखनी देने वाला नहीं बचता तो केजरीवाल के मंत्री खुद ब खुद पटखनियां खाने लगते हैं, कभी तोमर कुछ कर देते हैं, कभी राखी बिड़ला, और कभी सोमनाथ भारती। हो सकता है कि अगली बार केजरीवाल दिल्ली की जनता के पास ये मुद्दा लेकर जाएं कि दिल्ली की सारी सत्तर सीटों से सिर्फ और सिर्फ केजरीवाल को ही जिता दिया जाए, ताकि उनके ऊपर किसी मंत्री आदि की कोई नैतिक जिम्मेदारी ना हो। अब अगर वही पूरी विधानसभा में अकेले होंगे तो फिर ईमानदारी ही ईमानदारी होगी, भ्रष्टाचार गायब हो जाएगा। हालांकि हमें यकीन है तब भी होगा यही कुछ जो अब हो रहा है, लेकिन वो चुनाव देखने में मजेदार होगा, जहां दिल्ली की सारी सत्तर सीटों से केजरीवाल ही केजरीवाल चुनाव लड़ेंगे। तब तक इंतजार कीजिए क्योंकि ये सब कारगुजारियां देखते हुए वो दिन दूर नहीं लग रहा जब इतने बड़े मैन्डेट से बनने वाली सरकार खुद अपने ही बोझ तले गिर जाएगी और दिल्ली में एक बार फिर से चुनाव होंगे।

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