सोमवार, 6 जुलाई 2015

व्यापमं हम ही हम


व्यापमं का ज़ोर बहुत ज्यादा नहीं हो गया? आप लोग तो ऐसे शोर मचा रहे हैं जैसे कोई पहाड़ टूट पड़ा हो। शवराज सिंह चौहान, जो मध्यप्रदेश के मुख्य मंत्री हैं, इस घोटाले की जांच में बढ़-चढ़ कर सहयोग कर रहे हैं। आप जाने क्यों हल्ला मचा रहे हो। आप ही कहो, क्या ये संभव है कि राज्य की सत्ता के सहयोग के बिना जांच में आने वाले हर नाम को दुनिया से रुखसत कर दिया जाए। सहयोग की कौन सी परिभाषा आपकी समझ में आती है भाई, आप तो पीछे पड़े हो इस मोदी सरकार के, आप ही बताओ, खांग्रेस ने क्या घोटाले नहीं किए थे, क्या उसके मंत्री दागी नहीं हैं, आपकों तो भाजपा की सरकार से खुन्नस है बस। 
ये ठीक है कि घोटाले होते हैं, लेकिन क्या घोटाले की इस कदर चर्चा करके देश का नाम मिट्टी में मिलाना ठीक है। हमें इन घोटालों का भण्डाफोड़ करने वालों पर सख्त कार्यवाही करनी चाहिए। मोदी जी इतनी कोशिश कर रहे हैं कि विदेशों में देश की छवि अच्छी बने और यहां विदेशी निवेश हो, लेकिन आप लोग घोटालों की चर्चा करके, और लगातार करके, इस देश की छवि को घूमिल कर रहे हैं। एक आदमी आखिर कितना कर सकता है। इस पवित्र देश की माटी में घोटाले सदियों से होते रहे हैं, लेकिन नैतिकता और इंसानियत का फर्ज है कि हम इन घोटालों के बारे में खुले में बात ना करें। सरकार की लीपापोती पर भरोसा रखें, आखिर सरकार चाहती है कि एक स्वच्छ भारत की तस्वीर दुनिया के सामने जाए, घोटालें हों तो भी उनकी खबर ना बने, खबर बने तो वो जल्दी दब जाए, जल्दी ना दबे तो उसमें कुछ साबित ना हो, कुछ साबित हो जाए तो उससे अपने लोगों को निकालने के लिए सरकार के पास पर्याप्त बहाने हों, बहाने ना भी हों तो हमें कौन रोक सकता है। इसलिए उन लोगों का जाना ज़रूरी है जो देश की इज्जत के साथ खिलवाड़ करते हैं। हमने तो इसीलिए लोकायुक्तों की नियुक्ति तक नही की, ताकि कोई घोटाला हो तो सामने ही ना आए, बाकी हम कोशिश कर रहे हैं कि देश के हर छोटे बड़े संस्थान में हमारे ही आदमी हों, इसके बाद हमारी कोशिश ये होगी कि कैग जैसी संस्थाओं को खत्म कर दिया जाए। आखिर ज़रूरत क्या है घोटालों को इतना उछालने की। शासन है, प्रशासन है तो घोटाला होता ही है, क्या पिछले 70 साल में कोई घोटाला नहीं हुआ था, तब तो किसी ने फेसबुक पर, ट्विटर पर इस तरह का कोई आंदोलन नहीं चलाया। 
देश की अस्मिता की रक्षा के लिए 44 या 250 क्या, 2,5,10 लाख लोगों की कुर्बानी देनी पड़े तो भी हम देंगे। लोगांे की मतलब जनता की, अपने खास लोगों को तो हम पद तक से ना हटाएंगे, आखिर हमारी सत्ता है, कर लो जो तुमसे बन पड़े। असल में घोटाले होने की दो वजहे हैं, एक तो ये कि कोई पैसा खाए और कोई बमय सबूत जनता को ये बता दे कि पैसा खाया गया है। ये अपराधिक कार्य है, नहीं पैसा खाना नहीं, जनता को बमय सबूत ये बता देना कि पैसा खाया गया है। घोटाले के होने के बाद होना ये चाहिए कि उसे दबा दिया जाए, आखिर जिन घोटालों के बारे में जनता को पता ही नहीं है, उनके बारे में तो कोई बात नहीं करता। उनमें लिप्त लोगों की जान पर तो कोई खतरा नहीं है। मेरा ये कहना है कि ये व्यापमं घोटाले में जिन लोगों की जान गई है उनमें जनता का ही हाथ है। ना आप लोग उन्हे गंभीरता से लेते, ना आप घोटाले की जांच की बात उठाते और ना उन लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता। अब कहिए, इस पूरे देश की जनता के, या मान लीजिए उन लोगों के हाथ खून से रंगे हैं, जिन्होने इस घोटाले की जांच की मांग उठाई। आखिर प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री और बाकी मंत्री शपथ लेते हीे पवित्र जीव बन जाते हैं और उन पर उंगली उठाना तक संविधान के प्रति गहरा पाप होता है, हजारों लोगों की हत्या से ज्यादा बड़ा पाप, ऐसा पाप जिसकी कीमत या तो आपको जेल में जाकर चुकानी पड़ती है, या ये भी हो सकता है कि आपका एनकाउंटर कर दिया जाए, बाकी व्यापमं जैसे तरीके भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं, जिनमें हींग और फिटकरी लगे बिना रंग चोखा आता है। 
व्यापमं असल में कोई एकमात्र मामला नहीं है। इससे पहले हमने अपने संतों पर, अपने संगठनों पर लगे हुए दागों के खिलाफ इस तरीके को इस्तेमाल किया हुआ है, और नतीजा तसल्लीबख्श पाया है। हमारे परम-पूज्य आसाराम को देख लीजिए, उनके और उनके बेटे के खिलाफ जितने भी गवाह थे, सभी एक-एक करके दोज़ख-नशीन हो गए, और आखिरकार नारायण साईं को जमानत मिल गई। आप कहिए क्या आप प्रो. सांई बाबा को जमानत दिलवा पाए, वो तो जब हमें लगा कि अब हालत हमारे हाथ से बाहर हो गई है, तो हमने दे दी जमानत, वरना अदालत तो यही माने बैठी थी कि वो व्हील चेयर पर जिंदगी गुज़ारता इंसान कहीं भाग कर जंगल ना चला जाए, और वहां से नक्सली गतिविधियों को अंजाम ना देने लगे। अभी साध्वी प्रज्ञा और बाकी लोगों के नाम साफ करने के लिए भी यही मुहिम चल रही है, काफी समय से चल रही है, उनके खिलाफ जितने गवाह थे, वो सब या तो गायब हो गए हैं, या मारे गए हैं, और जो बाकी ऐसे सबूत हैं जिनकी जान नहीं ली जा सकती, उसे हमने एन आई ए के हवाले कर दिया है, वो उन सबूतों की जान वैसे ही निकाल लेगी। 
आपको समझ नहीं आता, ये सब इसलिए हो रहा है, किया जा रहा है ताकि भारत की छवि विदेशों में खराब ना हो। बताई, 2 जी, 3जी, कोयला घोटाला, प्रतिभूति घोटाला, ताबूत घोटाला आदि ने विदेशों में भारत की क्या छवि बनाई होगी, क्या आप चाहते हैं कि भारत की ऐसी ही छवि विदेशों में बनें? अगर आप ऐसा चाहते हैं तो आप पाकिस्तान जाकर रहिए, या अगर वहां नहीं जा सकते तो आपको जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। बाकि हम आपसे ये वादा करते हैं कि भारत की स्वच्छ छवि को बरकरार रखा जाएगा, इसका ये मतलब नहीं है कि घोटाले नहीं होंगे, जो लोग पदों पर विराजे हैं, उन्हे खाने से कोई नहीं रोक सकता, और ये उनका अधिकार है, हमारा वादा ये है कि हम इन बातों को बाहर ही नहीं आने देंगे। मीडिया को हम या तो खरीद चुके हैं, या नेस्तनाबूद कर चुके हैं, घोटाले की जांच करने वाली संस्थाओं को बंद किया जा चुका है, या वहां हमारे अपने लोग बैठे हैं। उन जगहों पर जहां घोटाले किए जा सकते हैं, हम अपने लोगों बैठाने में जी - जान से लगे हुए हैं, और जल्दी ही ये काम भी पूरा कर लिया जाएगा। 
हमारी सबसे बड़ी दुश्मन ये जनता है, जो भक्त नहीं है, अगर ये आंख में पट्टी बांध ले और अन्धों की तरह हमारा अनुसरण करे, हमारी जय करे तो मामला आसान है, नही ंतो हमें इसका इलाज करना पड़ेगा। अभी हम ऐसा माहौल बना रहे हैं कि जनता में शामिल हर शख्स खौफ के साये में जिए, हर रोज़ अपने जिंदा होने की खुशी मनाए, और सिर्फ जीवित रहने को नियामत समझे, इसके साथ हम, शुद्धि कार्यक्रम भी चला रहे हैं, अभी छोटे-छोटे दंगे आयोजित किए जा रहे हैं, ये हमारे प्रयोग हैं, इनमें सफल होने पर बड़े दंगे भी कराए जाएंगे, बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी। इसीके साथ हम चुनावों की निरर्थकता और लोकतंत्र की अव्यवहारिकता आदि पर चर्चा और संवाद चला रहे हैं, ताकि आने वाले समय में ऐसा माहौल तैयार किया जा सके कि जब हम संविधान को खत्म करके तानाशाही लागू करें तो लोग तालियों से उसका स्वागत करें। 
अभी तो आपसे यही कहना है कि व्यापमं का नाम लेना बंद करें, वरना आपका नाम भी व्यापमं से जोड़ दिया जाएगा, फिर आपका जो होगा......वो तो आप जानते ही हैं।

3 टिप्‍पणियां:

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  2. घोटाले के होने के बाद होना ये चाहिए कि उसे दबा दिया जाए, आखिर जिन घोटालों के बारे में जनता को पता ही नहीं है, उनके बारे में तो कोई बात नहीं करता। उनमें लिप्त लोगों की जान पर तो कोई खतरा नहीं है। मेरा ''ये कहना है कि ये व्यापमं घोटाले में जिन लोगों की जान गई है उनमें जनता का ही हाथ है। ना आप लोग उन्हे गंभीरता से लेते, ना आप घोटाले की जांच की बात उठाते और ना उन लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता''- Good one Boss :-)

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