लो जी, राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय दोनो ही जगहों पर साम्राज्यवादियों की मुसीबतें बढ़ गईं। इधर मोदी सरकार के कारनामों का भण्डाफोड़ हो रहा है, और उधर ग्रीस ने साम्राज्यवादियों के कर्ज़ की गलघोंटू रस्सी को सहर्ष स्वीकार करने से मना कर दिया। हो सकता है कि अब अमरीका और योरोप के अन्य देश मिलकर ये प्रचार करें कि ग्रीस में लोकतंत्र की हत्या हो रही है और जनता पर अत्याचार हो रहा है, फिर ग्रीस पर हमला हो, और वहां अमेरिकी लोकतंत्र कायम हो जाए, जैसा दुनिया के अन्य हिस्सों में हो रहा है। इसके अलावा ये भी हो सकता है कि ग्रीस में साम्प्रदायिक दंगे भड़कने लगें, वहां आतंकवाद पनपने लगे और तब अमेरिकी साम्राज्यवाद मानवीय सहायता ”सैनिक सहायता के तौर पर” पहुंचाने के लिए ग्रीस को अपने कब्जे में कर ले। जो भी हो, ग्रीस की जनता की इस समवेत ”ना” के परिणाम क्या होंगे ये आने वाला वक्त ही बता पाएगा।
इधर भारत में बहुत-बहुत सारे कांड एक साथ उभर कर आ रहे हैं। कुछ पुराने कांडों की परतें खुल रही हैं, कुछ नए कांड सामने हैं। व्यापमं के साए में अब तक 44 व्यक्ति ”प्राकृतिक” मौत का शिकार हो चुके हैं, और आगे का अभी पता नहीं है कि कितने लोग और इसकी भेंट चढेंगे। वसुंधरा और सुषमा बड़ी ही ढिठाई से अपनी कुर्सियों पर बैठी हैं, उनकी मानवीयता की परिभाषा लगातार विस्तार पा रही है। प्रधानमंत्री नित नई हवा-हवाई स्कीमें सोच कर जनता का ध्यान हटाने में लगे हैं, और उनके भक्त भिन्न मीडिया मंचों पर जनता को गालियां देने में व्यस्त हैं। कुल मिलाकर देश और विदेश में काफी उठापटक का माहौल है।
यूं हमारे प्रधानमंत्री काफी बड़बोले हैं, जब मर्ज़ी, जहां मर्ज़ी, जो मर्ज़ी बोल देने का उन्हे पुराना मर्ज़ है, लेकिन पी एम की कुर्सी का कमाल ऐसा है कि पहले वाले पी एम मौनमोहन हो गए थे, ये वाले मौनमोदी हो गए हैं। मौन का ऐसा मारक मंत्र अब तक नहीं देखा था। इधर आएं-बांए-शांए उगलने का सारा काम गैरसरकारी हो गया है, मोदी भक्तों ने जगह-जगह मोर्चा खोल लिया है, और अब मोदी की जगह वो आंए-बांए-शांए बक रहे हैं।
स्वच्छता अभियान, गौरक्षा, आदि-आदि के बाद मोदी ने अपनी जादू की पिटारी से डिजिटल इंडिया और सेल्फी विद डॉटर नाम के दो नये खेल निकाले हैं, और मोदी भक्त फिर से उन पर बलि-बलि जाने को उतावले हो गए हैं। मेरे एक मित्र थोड़ा चिंतित होकर कह रहे थे कि अचानक मोदी भक्तों की संख्या बढ़ गई है। मेरा कहना है कि कुछ भी अचानक नहीं होता, मोदियापे की गंदी गंगा बह रही है और उसमें डूब मरने के लिए तैयार लोग हाथ-पैर मार रहे हैं। बाकी जो पहले से ही इस गंदी गंगा में आंकठ उतरे हुए हैं, वो ज्यादा आंए-बांए-शांए बक रहे हैं।
व्यापमं घोटाले से जुड़े लोगों की लगातार संदेहास्पद परिस्थितियों में हो रही मौत के बारे में बाबूलाल गौर का कहना है कि जो पैदा हुआ है वो मरेगा ही, अरुण जेटली का कहना है कि सुषमा स्वराज ने एक अपराधी को मानवीय आधार पर ही इस देश की अदालतों से बचाया है इसलिए उन्होने कोई गलत काम नहीं किया, संबित पात्रा का कहना है कि धौलपुर का महल चाहे किसी जमाने में भारतीय स्टेट का रहा हो, लेकिन अभी क्योंकि वो रानी धौलपुर के बेटे की मिल्कीयत है, इसलिए इसमें कुछ गलत नहीं है, और इस बीच गडकरी गौमूत्र से गडकरी मूत्र के महत्व को उत्तरोतर अधिक प्रचारित करने की कोशिश कर रहे हैं।
पिछले हफ्ते एफ टी आई आई के छात्रों के प्रतिनिधिमंडल से मिले अरुण जेटली पूरी मीटिंग में आंए-बांए-शांए बकते रहे लेकिन मुद्दे पर एक बार भी चर्चा नहीं की। मोदी सरकार के सभी प्रवक्ता पूरे दिन टीवी पर आंए-बांए-शांए बकते हैं, और देश की जनता को नित नए लुभावने नारे देने की कोशिशों में लगे रहते हैं।
खैर, अभी तो हालत ये है कि देश में क्या हो रहा है किसी को पता ही नहीं चल रहा है, प्रधानमंत्री मन की बात करते हैं, लेकिन वो किसके मन की बात होती है ये खुद प्रधानमंत्री को नहीं पता होता, क्योंकि उनके काम और उनकी बातों में कोई साम्यता नहीं दिखाई देती, हिन्दू आतंकवादियों के खिलाफ सबूत और गवाह अचानक खत्म हो जाते हैं, और देश की सर्वश्रेष्ठ जांच एजेंसी अपने हाथ खड़े कर देती है, उसे कुछ संदेहास्पद भी नहीं मिलता। आसाराम और उनके पुत्र के खिलाफ सारे गवाह मारे जाते हैं, और किसी को कुछ पता नहीं होता कि क्या हो रहा है। आखिर इस देश में हो क्या रहा है, किसी को कुछ पता नहीं है, और आप चाहे किसी पुलिस अधिकारी से पूछ लें, नेता से पूछ लें, मंत्री या मीडियावाले से पूछ लें, सभी जवाब में आंए-बांए-शांए बकने लगते हैं।
देश के राज्यों में अपने नाम के अनुसार ही घोटाले हो रहे हैं, छत्तीसगढ़ में छत्तीस हजार करोड़ रुपये का घोटाला, महाराष्ट्र में महाघोटाले, राजस्थान में राजघराने की कुलवधू राजमहलों में घोटाला कर रही है, और मध्य प्रदेश घोटालों का केन्द्र बना हुआ है, दिल्ली जिसे कभी ढिल्ली भी कहा जाता था, ढीले-ढाले ढंग से चल रही है, तो कुल मिलाकर भी तो देश और दुनिया का हाल एक ही जैसा लग रहा है।

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