सोमवार, 24 अगस्त 2015

आलोचकों की आलोचना में


मुझे अपनो ने लूटा गैरों में कहां दम था
मेरी कश्ती वहीं डूबी जहां पानी कम था.....

ये आलोचनाओं का दौर है, मेरे दोस्त! कोई नहीं जानना चाहता कि पिछले एक साल में हमने कितनी तरक्की की है, कोई नहीं जानना चाहता कि भारत पिछले एक साल में कितना आगे, मेरा मतलब विकास की राह पर, आगे आ गया है। पूरी दुनिया भारत के आगे बिछी जा रही है। दुनिया के चारों कोनो में भारत का नाम गूंज गया है, ये कोई नहीं जानना चाहता। हमारे अपने ही देश में ऐसे लोग हैं, जो भारत के विकास से जलते हैं, जो भारत को आगे बढ़ता हुआ नहीं देखना चाहते। ये हमारे ही लोग हैं जो दुश्मन बने हुए हैं। आज जब पूरे राष्ट्र को एकजुट होकर प्रधानमंत्री का साथ देने की जरूरत है तो ऐसे समय में, इस संक्रमणकाल में ये लोग आलोचनाएं कर रहे हैं। 

वो यूं ही मर जाते हैं तो हो जाते हैं मशहूर
हम कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।
पिछले सत्तर सालों में देश का कोई ऐसा प्रधानमंत्री नहीं था जिसने राजसी शान से भारत का गणतंत्र दिवस मनाया हो, जिसमें कई-कई देशों के, खासतौर पर सुपरपावर अमरीका के राष्ट्रपति ने हिस्सेदारी की हो। लेकिन इस बार ऐसा हुआ, ये बात कोई नहीं जानना चाहता। मैडीसन स्क्वायर गार्डन से लेकर, सउदी अरब का सैंट्रल गार्डन जनता से लबालब भर गया, ऐसा दुनिया में कभी नहीं हुआ था, कि एक देश के राष्ट्रपति को सुनने के लिए उस देश का इतना बड़ा गार्डन या स्टेडियम यूं पूरी तरह भर जाए, लेकिन इस बार ऐसा हुआ। लेकिन ये बात कोई नहीं जानना चाहता। इतने बड़े-बडे़ कारनामें देश में इस बीच हो चुके हैं लेकिन ये आलोचक सिर्फ और सिर्फ, गुजरात के दंगे, किसानों की आत्महत्या का राग अलापते रहे।

भला देखो भला होगा, बुरा सोचो बुरा होगा
ना होंगे हम जो महफिल में, ज़रा सोचो तो क्या होगा।
हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या यही है कि यहां के लोग चीप हैं, ”सस्ते नहीं,  कमीने” ये लोग इस देश के स्वर्णिम इतिहास को नहीं जानते, ये लोग इस देश के स्वर्णिम वर्तमान को नहीं जानना चाहते, और यही चीप लोग, इस देश को स्वर्णिम भविष्य नहीं देना चाहते। अगर यही प्रधानमंत्री किसी और देश का होता तो अब तक तो उस देश के लोग पता नहीं क्या-क्या और क्या कर चुके होते। इस देश के लोगों से कोई उम्मीद बाकी नहीं बची है। ये लोग सिर्फ आलोचना के कुछ नहीं कर सकते। इन्हे हर चीज़ में बुराई दिखाई देती है। पिछले सत्तर सालों से इस देश में हर चीज़ बुरी हुई, और इस देश के लोगों ने कुछ नहीं कहा, तो अब इन्हे बुरा कहने का क्या अधिकार है। ज़रा सोचो कि अगर ये प्रधानमंत्री नहीं आए होते, तो यही लोग जो इनकी आलोचना कर रहे हैं, ये कहां होते। ये वो लोग हैं, जिन्हे चारों तरफ बुरा दिखता है क्योंकि ये अच्छा देखना ही नहीं चाहते, अब ऐसे लोगों का किया ही क्या जा सकता है। हालांकि कुछ का तो किया ही जा रहा है, लेकिन सबका वो नहीं किया जा सकता जो कुछ का किया जा रहा है, इसलिए.......

हमें तू कर बुलंद इतना कि हर तदबीर से पहले
तुझे हमसे ये पूछना पड़े कि आखिर हमारी रज़ा क्या है।
ये ठीक है कि हमारे प्रधानमंत्री अभी काला धन वापिस नहीं ला पाए हैं, चीजों के दाम बढ़ रहे हैं, किसानों की आत्महत्या में भी बढ़ोतरी हुई है, देश भर के विश्वविद्यालयों में छात्र हड़तालें कर रहे हैं, बलात्कार, छेड़खानी के मामलों में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, देश में दंगों की तादाद बढ़ी है, और दंगे में मरने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है, पकिस्तान को अभी तक हम सबक नहीं सिखा पाए हैं, पाकिस्तान के मामले में हमारी विदेश नीति भी बहुत खराब रही है। ये भी सही है कि पैट्रोल के दाम, अंर्तराष्ट्रीय बाज़ार में कम होने के बावजूद भारत में पैट्रोल महंगा है, ये भी सही है कि अभी रुपया डॉलर के मुकाबले मजबूत नहीं हुआ है, बल्कि और कमजोर होता जा रहा है। लगातार मंत्री, केन्द्रीय मंत्री, मुख्य मंत्री, प्रधान मंत्री, और बाकी मंत्री, घोटालों में लपेटे में आ रहे हैं, उनके खिलाफ सबूतों का पुलंदा बढ़ता जा रहा है, उनके खिलाफ खुलेआम सबूत इकठ्ठा हो रहे हैं। ये सही है कि मिडिल क्लास के अच्छे दिन नहीं आए हैं, लोअर क्लास के बुरे दिन आ गए हैं। ये भी सही है कि देश लगातार बुरे दौर से गुज़र रहा है। लेकिन इसके पीछे एक लंबी कार्ययोजना है, जिसके लिए त्याग और सेवा भावना, त्याग और आस्था, त्याग और राष्ट्रभक्ति, त्याग और धर्म की भावना का होना जरूरी है।

वो पूछते हैं हमसे कि पी एम क्या है, कहां है?
कोई बतलाए कि हम बतलाएं क्या?
सत्तर सालों के बुरे राज के बाद, पहली बार देश को ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो अतिआत्मविश्वास से लबरेज़ है, जिसके पास इतनी बुद्धि है कि वो किसान से लेकर रॉकेट साइंटिस्ट तक जिस भी सभा में जाता है, उन्हे ज्ञान देकर आता है। ऐसा प्रधानमंत्री जो भूगोल में अव्वल है, इतिहास में अव्वल है, देश की संस्कृति का महान ज्ञाता है, विज्ञान में जिसे महारत हासिल है, जो शिक्षा और शैक्षिक नीतियों को पूरी तरह बदल देने की हिम्मत रखता है, जो किसी भी कानून या संविधान से नहीं डरता है, जो बिना रुके बोलता है, जो मर्जी बोलता है, जैसा मर्जी बोलता है, जो संतों का आदर करता है, और पूरी दुनिया घूमने का मद्दा रखता है। ऐसा प्रधानमंत्री ना भूतो ना भविष्यति वाली श्रेणी में आता है। ऐसे पीएम को मौका देना चाहिए, समय देना चाहिए। 

जन्नी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है
इसके कण-कण में लिखा राम-कृष्ण नाम है
धर्म का ये धाम है सदा इसे प्रणाम है
असल में हम पहले से ही कहते आए हैं कि ये भारतीय लोकतंत्र असल में बेकार की चीज़ है, यहां की पावन भूमि राजतंत्र के लिए बनी है, इसीलिए यहां अंग्रेजों के आने से पहले राजतंत्र हुआ करता था। ध्यान दीजिए इतने देवी-देवता यहां हुए, क्या किसी ने भी जनता के राज की बात की? उन्होने जो भी बात की, वो सब सौ टांक सच की, आज तक उन्हे हम अपने सिर के बालों तक के सिलसिले तक में मानते हैं, लेकिन वे सब राजाओं के घर पैदा हुए, और उन्होने राजाओं की वकालत की, तो यहां लोकतंत्र का क्या काम है। बुरा हो, नवाबतंत्र और सुल्तानतंत्र वाले मुगलों का जिन्होेने यहां के पावन राजाओं के राज को समाप्त कर दिया और फिर राज अंग्रेजों के हाथों में सौंप दिया। खैर, तो हम चाहते तो असल में ये हैं कि ये लोकतंत्र, चुनाव, संविधान आदि बेकार की चीजों वाली व्यवस्था खत्म हो जाए और हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री को भारत का एकछत्र राजा घोषित कर दिया जाए। हालात अपने आप सुधर जाएंगे। अगर नहीं सुधरे तो इस सुझाव में ये जोड़ दिया जाए कि भारत का एकछत्र सम्राट घोषित होने के बाद, प्रधानमंत्री जो तब सम्राट हो चुके हों, खुद को दुनिया का एकछत्र सम्राट घोषित कर दें, और फिर दुनिया की जीत पर निकल जाएं। 

वक्त आने दो बता देंगे तुम्हे आलोचकों
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है
लेकिन हम जानते हैं कि अभी हालात अनुकूल नहीं हैं, और इसलिए ऐसा नहीं हो सकता। लेकिन कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा। असल में पिछले सत्तर सालों में विभिन्न सरकारों ने ”वाजपेयी सरकार को छोड़ दिया जाए” इस देश को बर्बाद ही किया है, और इन हालात को सुधारने के लिए, देश का, राष्ट्र का विकास करने के लिए, पांच साल का वक्फा कम है, इसलिए संविधान में संशोधन किया जाए और वर्तमान प्रधानमंत्री को कम से कम पच्चीस साल तक प्रधानमंत्री रहने का मौका दिया जाए, तो देश के हालात सुधर सकते हैं। प्रधानमंत्री द्वारा इस दिशा में काम शुरु किया जा चुका है। प्रधानमंत्री की योजना का पहला हिस्सा पूर्ण हो चुका है, देश के सभी पत्र-पत्रिकाओं, टी वी चैनलों, यानी हर मीडिया संस्थान को प्रधानमंत्री के मित्रों द्वारा खरीदा जा चुका है, और ये बहुत व्यवस्थित तरीके से किया गया है, इतना व्यवस्थित, कि कोई खबर बिना सेंसर के निकलती ही नहीं है। देश की हर महत्वपूर्ण संस्था में, राष्ट्रवादियों को स्थापित किया जा रहा है, इस वक्त देश को विषय से संबंधित योग्यता नहीं, राष्ट्रवादिता, आस्था और प्रधानमंत्री में विश्वास की जरूरत है, इसलिए सिर्फ इन्हे ही योग्यता का प्रमाण माना जा रहा है। कुछ ही दिनों में सारे देश की सारी संस्थाओं में प्रधानमंत्री के विश्वस्त सेवक होंगे। देश के स्कूलों, कॉलेजों, और विश्वविद्यालयों में राष्ट्रवादी और प्रधानमंत्री में विश्वास करने वाले लोगों को नियुक्त किया जा रहा है, और इसके अलावा, शिक्षा के हर क्षेत्र जैसे किताब, नीति निर्माण वाले हर सरकारी, गैर-सरकारी संस्थान में प्रधानमंत्री के विश्वस्त जनों को नियुक्त किया जा रहा है। इसके बाद अगला चरण न्यायपालिका और प्रशासनिक अंगों में प्रधानमंत्री के विश्वस्त लोगों की नियुक्ति है। कुल मिलाकर जल्द ही पूरे देश में सिर्फ प्रधानमंत्री ही प्रधानमंत्री होंगे, और तब असल में ये देश विकास के उस रास्ते पर चलेगा जिस पर प्रधानमंत्री इसे हांकना चाहते हैं। असल में देश के अच्छे दिन तब आएंगे, क्योंकि तब ना सिर्फ प्रधानमंत्री के किसी कार्य पर विरोध करने वाला कोई नहीं होगा, बल्कि अगर कोई इस बारे में बोलेगा भी तो उसे सबक सिखा दिया जाएगा, जिसकी घोषणा समय-समय पर होती रही है। बल्कि हम तो चाहते हैं कि ऐसा सोचने वालों के खिलाफ भी कार्यवाही हो, लेकिन अभी विज्ञान ने इतनी तरक्की नहीं की है कि लोगों की सोच के बारे में बताया जा सके। 

तुम्हे हो ना हो, मुझको तो इतना यकीं है
कुछ ही दिनों में अच्छे दिनों की शुरुआत होनी है।

हमें पूरा यकीन है कि उपरलिखित इन सब बाधाओं के बावजूद प्रधानमंत्री इस देश को दुनिया का सबसे विकसित देश बनाने में सफल होंगे, वो दिन शायद हम ना देख पाएं जब इस दुनिया पर ब्राहम्ण राज करेंगे, दलित, मलेच्छ और बाकी असभ्य लोग अपनी सही जगह पहचान लेंगे और ये देश तरक्की के रास्ते पर चल पड़ेगा। जब विचारों से ही सर्जरी हो जाया करेगी, जब मन की गति से कारें सड़कों पर और आसमान में दौडें़गी, जब किसान, मजदूर सेवा के अपने कर्तव्य को अपना कर्म और भाग्य मानकर, इश्वरेच्छा मानकर करेंगे और उसके बदले में दाम नहीं मांगेगे, जब महिलाएं, घर में रहेंगी, या मंदिरों में नाचेंगी, कुछ को मानवमात्र के मनोरंजन के लिए छोड़ा जा सकता है। संतों पर उंगली उठाने वालों को यही जमीन पर नर्क की आग में झोंक दिया जाएगा, और उन्हे अपनी संतई के लिए हर तरह के कर्मकांड की खुली छूट मिल जाएगी। जब सारी दुनिया में यज्ञ होंगे और इन करोड़ों यज्ञों का धुआं इतना होगा कि सूरज भी ढंक जाएगा। बस सिर्फ इन आलोचकों का कुछ इलाज करना होगा, जो सस्ती प्याज़ के लिए चिल्लाते हैं, जो जी एस टी के खिलाफ नारे लगाते हैं, जो शुद्धिकरण, अर्थात दंगों के खिलाफ काम करते हैं। बाकी तो प्रधानमंत्री सक्षम हैं सब कुछ संभाल लेंगे। 

मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग
अभी तो उलझा हूं ज़रा नाज़ुक से इन मसलों में
फिर नाई के पास जाकर तेरी जुल्फों को कटवा दूंगा

4 टिप्‍पणियां:

  1. PM Modi ka karyakaal - ek nazar mein...
    wah kya baat hai...intersting style..mazedaar reading....
    Sahi kaha...bhala socho, bhala hoga. Bura socho Bura hoga.Na honge wo jo mehfil mein toh aalochakon ka kya hoga... :)

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    1. good that you liked the style, but its भला देखो भला होगा, बुरा सोचो बुरा होगा
      ना होंगे हम जो महफिल में, ज़रा सोचो तो क्या होगा। that means, if you see good in what is going on, you will feel good, but if you thinking is corrupt, you won't be able to see any good and it will be bad, even for you.

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    2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. Kapil Sir you r the brilliant writer आप की जितनी तारीफ़ की जाए उतनी कम है i m very fortunate person that you r my idol and mentor....Tons of love.... give me some tips please Sir its a humble request aur Sir aapse bahut kuch baat karni h par kabhi mauka nahi mil pata :(

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