जितने भी प्रगतिशीलों ने दादरी में हुई अख्लाक की हत्या का विरोध किया, मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या उनका ये विरोध उचित था? क्या उन्हे वाकई बहुत बुरा लगा कि अख्लाक की हत्या की गई। आखिर उसने बीफ खाया था, या कम से कम लोगों को लगा कि उसने बीफ खाया था। ये आस्था का मामला है, और आस्था प्रमाण नहीं मांगती। अगर लोगों की आस्था को ठेस लगेगी तो वो कुछ ना कुछ तो करेंगे ही। और आस्था को ठेस इस बात से नहीं लगती कि किसी ने वास्तव में बीफ खाया है या नहीं, आस्था को इस बात से ठेस लगती है कि उनके मन को ये लगे कि कोई बीफ खा सकता है या नहीं। यानी मान लीजिए, आपने आज तक खाना तो दूर बीफ देखा भी ना हो, लेकिन आपको ऐतराज ना हो बीफ खाने से, तो आपकी हत्या की जा सकती है। क्योंकि सवाल ये है ही नहीं, कि आपने बीफ खाया है या नहीं, सवाल ये है कि आप बीफ खा सकते हैं या नहीं।
हमें तो अब समझ में आ रहा है कि आखिर ये हर घर में टॉयलेट बनवाने की प्रधानमंत्री की योजना का असल मतबल क्या था। अब अख्लाक के जैसे किसी के घर में घुस कर उसके रेफ्रिजरेटर में से खाने का सामान निकाल कर जांचने की जरूरत है ही नहीं.....आपने सुबह टॉयलेट में जो भी किया, वो सीधा जांच के लिए जाएगा, और जांच के बाद जिस किसी ने भी बीफ खाया होगा, उसके घर आस्थावान लोगों का झंुड पहुंच जाएगा। और फिर आपका क्या होगा, ये सोच लीजिए।
चिंता मत कीजिए, ये लोग बहुत सभ्य होते हैं, सिर्फ जान से मारते हैं, बलात्कार वगैरह नहीं करते। हां ये अनुशासन तो मानना पड़ेगा भाई साहब.....बलात्कार वाली टाइम बलात्कार ही करते हैं ये लोग, मारने के टाइम मारते हैं, गालियां देने के टाइम गाली ही देते हैं। अब जैसे किसी को उसके बच्चों समेत जिंदा जलाना हो, तो बहुत ही फोकस होकर बस यही काम करते हैं, जैसे ग्राहम स्टेंस के साथ किया था। या मान लीजिए इनकी आस्था को आपने ठेस पहुंचा दी, और आपकी हत्या का इन्होने फैसला ले लिया, तो बस ये आपके घर जाएंगे और सीधा गोली.....काम में बहुत अनुशासन है, ये तो मानना पड़ेगा। कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है कि जैसे बलात्कार करना हो, या लड़कियों के कपड़े-वपड़े फाड़ने हों, उन्हे नंगा करके घुमाना हो, तो मार-पिटाई भी हो जाती है। लेकिन ये कभी-कभी ही होता है, ज्यादातर अनुशासन में ही रहते हैं, आस्थावान लोग।
कभी परसाई ने कहा था कि बाकी देशों में गाय दूध के, मांस के काम आती होगी, हमारे यहां तो गाय दंगे कराने के काम आती है। अभी तो हाल ये है कि गाय सिर्फ दंगे कराने के काम ही नहीं आती, इससे काफी सारे काम हो सकते हैं। अब ये अखलाक वाला मामला ही ले लीजिए, एक तरफ ये साफ हो गया कि आपके खाने की चीजों की जांच हो सकती है। यानी आपका घर हो, या रेफ्रिजरेटर कोई भी कभी भी आकर कोई भी सामान जब्त कर सकता है, और अगर पब्लिक को शक हो, यानी ”खास” पब्लिक को शक हो तो वो बिना कुछ सोचे-समझे आपको जान से भी मार सकती है।
अच्छा मान लीजिए कि अखलाक ने बीफ ही खाया हो, मान लीजिए कि उसके परिवार ने अपने घर के रेफ्रिजरेटर में बीफ ही रखा हो। और आपकी उस मीट की फोरेंसिक जांच से ये साबित भी हो जाए कि वो गाय का ही मांस था, तो? माने तो क्या होगा? क्या आप अखलाक के हत्यारों को छोड़ देंगे, क्या उन पर हत्या का मामला नहीं बनेगा। जिन लोगों को समझ में आता है, वो ये समझ लें कि दादरी में अखलाक को पीट-पीट कर नहीं मारा गया है, बल्कि वहां लोकतंत्र को पीट-पीट कर उसकी हत्या की गई है। आपके संविधान प्रदत्त अधिकार आई सी यू में पड़े हुए अंतिम सांसे गिन रहे हैं।
अभी कल या परसों की सुना या पढ़ा था कि कोई मिनिस्टर कह रहा था कि दादरी में जो हुआ वो गलत था लेकिन प्रधानमंत्री क्यों बयान दे, क्योंकि ये संेटर का मामला नहीं है। तो आखिर सेंटर का मामला क्या है। आपके देश के किसी हिस्से में, चाहे वो कितना ही छोटा हिस्सा क्यों ना हो, जनता किसी एक धर्म की आस्था के सवाल पर किसी के भी घर में घुस का उसे पीट-पीट कर मार दे, ये आतंकवाद नही ंतो क्या है, ये फासीवाद नही ंतो क्या है, ये लोकतंत्र की सरेआम हत्या नही ंतो क्या है। क्या देश में लोकतंत्र रहे या भाड़ में जाए ये प्रधानमंत्री की चिंता नहीं होनी चाहिए?
और सबसे बड़ी बात तो ये कि आखिर ये लेखकों बु़ि़द्वजीवियों को क्या हो गया, आखिर ये लोग अपने-अपने पुरस्कार क्यों लौटा रहे हैं। ये अकादमी पुरस्कार लौटाना, पद्म-भूषण लौटा देना, आखिर चक्कर क्या है जी। अगर इतना ही शौक है तो ये लो लिखना ही क्यों नहीं छोड़ देते। जो समझदार लेखक हैं, जैसे चेतन आनंद हुए, बतरा साहब हुए, मधोक जी हुए या सदाबहार मस्तराम, इन लोगों ने तो कोई पुरस्कार वापस नहीं किया। यूं हो सकता है कि इन्हे कोई पुरस्कार ना मिला हो, लेकिन आगे मिलेगा, अब लिखने वाले यही लोग रह जाएंगे तो सरकार को पुरस्कार तो देना ही ठहरा। बाकी सरकार को चाहिए कि लिखने के लिए भी जीने जैसी शर्तें लगा दे, जैसे आप रामायण-महाभारत-वेद-पुराण आदि की प्रशंसा में, मोदी की प्रशंसा में, हिंदुत्व की भाजपाई परिभाषा वाली कितबें-कहानियां ही लिख सकते हैं। बाकी कुछ और लिखा तो जेल हो जाएगी, या फिर हो सकता कि आस्थवान लोगों की भीड़ आपको भी.......समझ गए ना।
वैसे भी ये सरकार बहुत बढ़िया काम कर रही है। इससे पहले वाली सरकार ने तय कर दिया था कि सरकार का काम व्यापार करना नहीं है, इसलिए सबकुछ प्राइवेटाइज़ करने की शुरुआत कर दी, बिजली, पानी, शिक्षा, परिवहन, चिकित्सा.....गरज ये कि हर चीज़ को व्यापार मान कर प्राइवेट हाथों में सौंप दिया गया। अब खेती से लेकर विज्ञान तक हर चीज़ या तो अंबानी, अडानी, टाटा के हाथ में है, या फिर उन्ही की कोई सब्सीडरी कम्पनी के हाथ में है। तो सरकार को कोई काम तो बचा नहीं, सिवाय इसके कि वो इन कम्पनियों के काम को और आसान करने में उनकी मदद करे। तो आखिर ये सरकार क्या करे, क्योंकि सरकार है तो उसे कुछ ना कुछ तो करना ही होगा। तो इस सरकार ने अपना काम मान लिया कि ये जनता को बताएगी कि उसे किस तरह रहना है, क्या सोचना है, क्या पहनना है, क्या खाना है और आखिरकार ये कि उसे जिंदा रहना भी है या नहीं।
तो एक मंत्री ने जिम्मेदारी ली कि वो बताएंगे कि महिलाओं को कैसे कपड़े पहनने चाहिएं, कब और कितनी देर तक घर के बाहर रहना चाहिए, उन्हे किससे प्रेम करना चाहिए और किससे नहीं, वो कितने बच्चे, कब पैदा करें। फिर लोग क्या सोचें, और क्या नहीं सोचना है। क्या खाएं और क्या नहीं.....कुल मिलाकर अब सरकार देश नहीं चलाएगी, बल्कि लोगों की जिंदगी तय करेगी।
और इस काम को अंजाम देंगे हमारे राजा साहब। हमारे राजा साहब, प्रजा को बिल्कुल अपने बच्चों की तरह मानते हैं। ये सूडो-डेमोक्रेटिक, सूडो-सेक्यूलर, सूडो-इंटलैक्चुअल, क्या जाने कि राज-काज कैसे चलाया जाता है। राजकाज चलाया जाता था प्राचीन भारत में, जब भारत सोने की चिड़िया था, जब वायुयान, और अनाश्व-रथ होते थे, मन की गति से लोग अंतरिक्ष की अनंत सीमाओं तक चले जाते थे, और जब भारत पूरे विश्व का ही नहीं, पूरे ब्रहमांड का गुरु था। तो निश्चिंत बैठिए, दादरी में लोकतंत्र का छोटा सा टेस्ट हुआ है, इस तरह के छोटे-छोटे टेस्ट यानी परीक्षण पूरे देश में चल रहे हैं, और काफी फेवरेबल रिजल्ट भी आ रहे हैं। कुछ नालायकों को छोड़कर इन परीक्षणों को कोई ज्यादा विरोध नहीं हो रहा है। तो जल्दी ही लोकतंत्र को खारिज करके फिर से वही महान परपंरा वाला राजतंत्र फिर से इस देश में स्थापित होगा और फिर वही होगा जो अब हो रहा है.......तो तैयार हो जाइए........मरने के लिए.....या मारे जाने के लिए।


Waah sir you r a genius writer very well wrote.. bahut acha i applaud you sir.. give me some tips jise mai bhi likh sakun thora kuch.. i m very fortunate that you r our dictator,mentor and idol ..
जवाब देंहटाएंDictator?
हटाएंI am your director dear, not a dictator I guess……! Aftab babu, he meant director…..
हटाएंअच्छा लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंकुछ पहलू बिलकुल नए तरीके से बयान हैं, जैसे घर में शौचलय!
अंत काफ़ी ज़ोरदार है,
आपके अब तक लिखे, अच्छे लेखों में से एक!
बधाई!
Thank you Aftab that you likes it. please share it, these things needs to reach to as many as possible.
हटाएंaap ka ye tikatmak lekha bohot badhiya hai. beef ka test and loktantra ki hatya parikshan bohat jabardast hai. its actually intolerance which will acceptance for fundamentalism in name of culture. bohat badhiya ..
जवाब देंहटाएंm just sharing with my friends
हटाएंthank you for sharing it. Hope you like more of my work.
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