गुरुवार, 29 मई 2025

 भावनाओं की भड़कन - भड़कने वाली भावना




सलाम जनाब.....ओ हो हो हो हो.....लीजिए, शुरुआत ही ऐसी हो गई। देखिए शुरुआत में कहना चाहिए था, नमस्कार, कह गया सलाम। और आप मानिए ना मानिए, सारा झगड़ा इस सलाम नमस्कार में ही है। खैर, भावनाएं, भावनाएं होती हैं, भड़क जाती हैं, भड़काई जाती हैं, कभी - कभी तो भावनाओं को सैलाब उमड़ जाता है। आज मैं आपसे भावनाओं के भड़कने, तड़कने, हड़कने, थरथराने, सुरसुराने की ही बात करने आया हूं। मैं दरअसल ये सोचने समझने आया हूं कि आखिर ये कौन सी भावनाएं हैं जो अचानक भड़क जाती हैं। अब जैसे मैने नमस्कार की जगह सलाम बोल दिया, मितरों की जगह, जनाब बोल दिया। तो क्या इससे भावनाएं भड़क सकती हैं? मैं जानना इसलिए चाहता हूं क्योंकि अभी एक राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले शख्स के उपर यही भावनाएं भड़काने वाला, और राजद्रोह का आरोप लगाकर उसे हिरासत में लिया गया है। और अब अदालत ये सुनवाई करने के लिए कह रही है कि उसने भावनाओं को भड़काया या नहीं भड़काया। तो यार ये तो गजब हो गया, कहीं भी, कोई भी, पुलिस में जाकर एफ आई आर करवा देगा कि भावनाएं भड़क गई हैं, फलां शख्स को गिरफ्तार करो.....और पुलिस कर लेगी....और.....और फिर गया बंदा अंदर....। 


अब ये प्रो. महमूदाबाद वाला मामला ही देख लीजिए, भावनाएं भड़क गईं, अब भावनाओं पर किसी का जोर तो है नहीं, भड़क गई तो भड़क गईं। जिसकी भड़की उन्होंने पुलिस में एफ आई आर करवा दी, पुलिस आमतौर पर भववनाओं के भड़कने पर ज्यादा मुस्तैद होती है, तो पुलिस ने अपनी मुस्तैदी दिखाई और सुबह-सवेरे धर-पकड़ मचा दी। लगे लोग हल्ला मचाने कि ये तो कतई फासीवाद है, ऐसे कैसे आप किसी को भी पकड़ लोगे। तमाम शिक्षक संगठनों ने प्रो. महमूदाबाद के समर्थन में पर्चे निकाल दिए, प्रेस कान्फ्रेंस कर दीं। आपको लगता था, इससे कुछ होगा। लेकिन उनके पास बुद्धिजीवियों की कमी थोड़े ही है। उन्होंने फटाक से अपने बुद्धिजीवियों को निर्देश भेजा, या हो सकता है आदेश भेजा हो। खैर दांयी तरफ वाले बुद्धिजीवियों ने जिन्हें इसी काम के लिए बड़े-बड़े पदों और तनख्वाहों से नवाजा गया है, अपनी भूमिका को निर्वहन किया और एक लैटर निकाल दिया, प्रो. महमूदाबाद की मजम्मत की गई, कि उन्होने जो लिखा है, वो दरअसल वेल्ड मिसोजिनी है। यानी पर्दे में छुपा स्त्री विद्वेष है। कमाल ये है कि इन बारीक नज़र वाले बुद्धिजीवियों को ये वेल्ड मिसोजिनी दिखाई दी, लेकिन खुले आम सेना की महिला अफसरों पर की गई अपमानजनक टिप्पणियां नहीं नज़र आईं। जिस व्यक्ति को हाई कोर्ट कह रहा है गिरफ्तार करो, सुप्रीम कोर्ट ने उसके बयान को गंभीरता से लिया और पुलिस को फटकार लगाई कि एफ आई आर के नाम पर उसका बचाव करना बंद करो, उसके खिलाफ इन बुद्धिजीवियों ने आधा-पौना बयान नहीं दिया। लेकिन प्रो. महमूदाबाद की वेल्ड मिसोजिनी इन्हें जरूर दिखाई दे गई। बहुत ही फोकस्ड नज़र है सर, मानना पड़ेगा। अभी एक टी वी इंटरव्यू देखा था, उसमें पत्रकार ने रेणु भाटिया जो हरियाणा वुमन कमीशन की चैयरमैन हैं, से पूछा कि आखिर उन्हें प्रो. महमूदाबाद के पोस्ट में क्या आपत्तिजनक लगा, लेकिन चैयरमैन साहिबा बता ही नहीं पा रही थीं, तो ऐसे में इन बुद्धिजीवियों का मैदान में उतर आना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। बल्कि अगर ऐसा ना होता तो मामला कुछ गड़बड़ लगता। इन बुद्धिजीवियों ने कहा कि प्रो. महमूदाबाद को पोस्ट वेल्ड मिसोजिनी क्लोक्ड इन सूडो-एकेडेमिक इन्क्वाइरी है। यानी पर्दे में पर्दा....और पर्दे के खेल में माहिर लोगों ने इस फौरन पहचान लिया है। 


पर सच कहूं तो प्रो. महमूदाबाद को तो जाना ही था अंदर। कहां तो अब्दुल को टाइट करने की बात हो रही है, और कहां अब्दुल टाइट की जगह ब्राइट हो रहा है। इन पर जो आरोप लगे, और इन्हें अंदर किया गया, उसमें इस बात का कोई रोल ही नहीं है कि उन्होने क्या कहा। असल मामला है कि उनकी हिम्मत कैसे हो गई, कुछ भी कहने की। ये जो जिद है लोगों की कि ग़लत को ग़लत कहना है, ये गिरफ्तारी उस ज़िद पर हमला है। बताइए, इन्हें क्या पड़ी थी भाई ये सब कहने की, देखिए फिर से समझा रहा हूं, कहने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ सरकार और सरकार के समर्थकों को है, आप फालतू अपनी टांग घुसाए बैठे हैं। और अभी तो रुकिए, आपका नंबर भी आने वाला है। ये जो सब के सब प्रो. साहब के समर्थन में पर्चे निकाल रहे हैं, प्रेस कान्फ्रेंस कर रहे हैं, सब के सब निशाने पर हैं, सबका नंबर आएगा। 

सेना की अफसरों को आतंकवादियों की बहन बताया जा रहा है, सेना को मोदी के चरणों में नतमस्तक करवा दिया जा रहा है, और ये सब कहने वाले छाती चौड़ी करके घूम रहे हैं, कि कल्लो जो करना है। मंगलेश डबराल कहते हैं, 
तानाशाह कहता है 
हमारे बिना तुम कुछ नहीं कर सकते
तुम उठ नहीं सकते
सांस नहीं ले सकते
कहीं आ जा नहीं सकते
हम न हों तो तुम भी नहीं हो सकते......

छोड़िए मंगलेश डबराल को, ये जो कवि होते हैं, विचारक होते हैं, इनके खतरनाक विचारों में फंस कर ही, लोगों को लगता है कि अपने हक़ के लिए खड़ा होना सही है। पर मितरों, पुलिस का डंडा सही और ग़लत में सटीक फर्क याद दिला देता है। 

बताइए, खबर मिली कि प्रोफेसर साहब को जमानत मिल गई। वाह कमाल हुआ भाई, किसी को एक ऐसे मामले में जमानत मिले जिसमें कोई मामला ही ना बनता हो, तो इस बात की बधाई तो लेनी-देनी बनती है। बधाई हो प्रोफेसर साहब, सुना विशेष जांच टीम बनाई गई है जो ये जांच करेगी कि प्रोफेसर साहब ने जो पोस्ट किया, वो अपराध था या नहीं। किसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाले लोकतांत्रित देश में जब इस तरह के मामले होते हैं तो कसम से मजा आ जाता है। एक एस आई टी उस मामले में भी बनी है जिसमें कोई बड़े वाले नेता खुल्लम-खुल्ला भारतीय सेना की एक महिला अधिकारी का अपमान कर रहा है। देखें कौन सी एस आई टी पहले फैसला देती है और क्या फैसला देती है।

फिर भी एक अनजान, मेरा मतलब है मासूम भारतीय नागरिक की हैसियत से ये पूछना तो बनता है ना जी कि जब ये एक नजीर है कि आप चाहे कुछ भी लिखें आपको गिरफ्तार किया जा सकता है, विशेष जांच बिठाई जा सकती है तो, फिर जल्द ही सरकार कोई ऐसी सूची भी तो निकालेगी जिसमें भावनाओं को ध्यान मे रखते हुए बात करने की हामी भरी गई होगी। या तो हमको मुहं पर टेप चिपका लेना चाहिए कि कम से कम ये तो सिद्ध हो ही गया कि आप कुछ भी बोलें आपको पकड़ा जा सकता है, और आगे जो यहां नहीं हुआ वो भी किया ही जा सकता है।
लेकिन ये सिर्फ अकेला मामला तो नहीं है, यहां तो हाल ये हैं कि विदेश मामलों के मंत्री अगर खुलेआम कुछ कहें तो आप उसे दोहरा भी नहीं सकते हैं, कि दोहराया तो बाबू अंदर हो जाओगे.....फिर जैसा मैं हमेशा से सोचता आया हूं कि अदालत ये ना कहेगी, कि यारों मामला ही नहीं बनता, वो कहेगी, चलो तुम पर दया दिखाई, जाओ इत्ता पैसा दो, जमानत का, और अब इस पर जांच करेंगे कि क्या हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ। यानी तुमने जो किया वो तुम नही ंकर सकते। राहुल गांधी भुगत रहे हैं, लगता है जल्द ही उन पर भी देशद्रोह आदि का मुकद्मा चलाया जा सकता है कि आखिर इसने वो कैसे दोहरा दिया जो विदेश मामलों के मंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा था। खुद को सरकार का मंत्री समझता है क्या....
आप इस पूरे प्रकरण को यूं देखिए कि ऑप्टिकस् क्या बनता है। मंत्री कुछ भी कहे, सीधे-सीधे कहे, कोई दिक्कत नहीं है। याद रखिएगा कि कर्नल सोफिया कुरैशी के बारे में अभद्र टिप्पणी करने वाले भाजपा के नेता को ना गिरफ्तार किया गया है ना ही उन्होने जमानत दी है। भारतीय सेना के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने वाले भाजपा के नेता को तो खैर किसी ने चूं तक न कहा। लेकिन प्रोफेसर साहब के पोस्ट में वेल्ड मिसोजिनी भी दिखाई दे गई और उसमें सूडो इन्क्वाइरी भी दिखाई दे गई। यहां एक बात और बताता चलूं, एक और जोशीले साथी हैं, मनीष कुमार झा, ऑपरेशन सिंदूर  के दौरान वैश्विक मीडिया में रॉफेल से संबंधित खबरों पर भारत सरकार से स्पष्टीकरण मांग बैठे। मेरे वीडियो नहीं देखे थे, क्या किया जाए। झेल गए। अभी उन पर मुकद्में दर्ज हो गए हैं। 

तो जैसा कि मैं पूछता ही हूं, इस पूरे प्रकरण से आपने क्या सीखा? 
एक: चुप रहो यार.....बोलोगे तो गर्दन मारी जाएगी।
दो: अभिव्यक्ति की आजादी सिर्फ उसे मिलती है, जिसके पास सत्ता की चाभी है। वरना अदालत एस आई टी बिठाती है और जमानत देती है।
तीन: फासीवाद पिछले स्टॉपेज पर चाय-पकौड़े नहीं खा रहा है, यहीं है, अब तुम मानो या ना मानो है यहीं।
चार: एक बहुत अच्छी फिल्म बनी थी किसी जमाने में देखी थी......जुल्मतों के दौर में....देख लीजिए, आंखे खुल जाएंगी। 
बाकी ये तो मुझे पक्का पता है कि तुम बाज तो आने से रहे, बोलोगे और जेल जाओगे....जाओ भई जाओ.....हम न बोलेंगे, वरना क्या जाने किसकी भावना भड़क जाए, भावनाएं बहुत खतरनाक चीज होती हैं साहिब, भड़क जाएं तो बंदा सफा हो जाता है।

सुनिए, एक पर्सनल दरख्वास्त ये है कि ज़रा लाइक और सब्सक्राइब कर दीजिए अगर इससे आपकी भावनाओं को कोई नुक्सान ना हो रहा हो तो.....और यार लोग शेयर भी कर ही दो......ठीक है। फिर मिलता हूं
नमस्कार


शहीदसाज़



 एक कहानी पढ़ी थी कभी....भला सा नाम था....शहीदसाज़। मंटो की कहानी थी। सआदत हसन मंटो। तो कहानी का जो मुख्य किरदार है वो गुजरात के काठियावाड़ का रहने वाला था, उसकी रगों में कारोबार दौड़ता था। तमाम तरह के उल्टे-सीधे काम करके वो जिंदगी के एक दौर में सफल हो जाता है, मतलब खूब रूपया- पैसा, कीमती कपड़े, चलने के लिए मोटरकार, बैठने के लिए सोफा, यानी तमाम ऐशो-इशरत का सामान उसके पास होता है। तब एक दिन उसे लगता है कि उसे कुछ ऐसा करना चाहिए जो उसकी आत्मा को सुकून दे। और बहुत सोचने के बाद उसे समझ में आता है कि ये ग़रीब जनता जो अपने जीवन में सदा दुख उठाती है, तो इसको अगर जन्नत में भेज दिया जाए तो बहुत ही सवाब का काम होगा। यानी अगर वो लोगों को शहीद करना शुरु कर दे, तो इससे बेहतर और कुछ न हो सकेगा। तो वो लोगों को शहीद बनाने का काम शुरु कर देता है और आखिर में कहता है कि इससे मेरी आत्मा हल्की होती है। और आइंदा भी मैं लोगेां को शहीद बनाने का काम यानी शहीदसाज़ी करता रहूंगा। किसी को याद है ये कहानी? मंटो की कहानियां पढ़िए मिल जाएगी। 


ये तो खैर एक कहानी पढ़ी थी, यूं ही याद आ गई तो सोचा सुना दिया जाए। पर खबर या खबरें बहुत सारी हैं, पहली तो यही कि ये जो बार-बार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई दे रहे हैं, बहुत ग़लत कर रहे हैं। ज़रा सोचिए आपको व्यक्ति की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में से चुनाव करने को कहा जाएगा तो आप क्या कीजिएगा। हां....सुना नेहा राठौड़ पर एक साथ चार सौ एफ आई आर कर दी गई हैं......बस फिर क्या था.....आ गई लाइन पे.....क्या आपने नेहा राठौड़ का नया गाना सुना? बार-बार कह रही हैं, साहेब, साहेब.... बहू-बेटी को धमकाना छोड़ दीजिए पुकार कर रही हैं, कह रही है कि बात-बात पर एफ आई आर मत करवाइए, कह रही है कि छोटी-छोटी बातों पर नाराज़ ना हों.....लेकिन अब नहीं....बिल्कुल नहीं....बहुत हुआ, अब तो कार्यवाही होगी। हो सकता है कि कल-परसों में ही यू पी पुलिस के मुस्तैद कर्मी कानून की मूंछ मरोड़ते हुए सुबह-सवेरे 5 बजे ही गिरफ्तार कर लें..... ऐसे ही थोड़ी नरेन्दर मोदी की छाती 56 इंच की है। और फिर धीरे-धीरे सब लाइन पर आ जाएंगे। 


पर सच कहूं....कुछ बात तो है ये नरेन्दर में.....नया वाला पोस्टर देखे हैं....बिल्कुल ऐसा लग रहा है कि जैसे कि अभी-अभी फाइटर जेट से नीचे उतर कर आ रहे हैं, रगो में जो सिंदूर बह रहा है.....मेरा मतलब दौड़ रहा है वो कुलबुला रहा है बाहर आने के लिए। एक तरफ बगल में हेल्मेट भी पकड़े हुए हैं, सिर पर फौजी वाली टोपी भी पहने हैं, पता नहीं टोपी पहन के जहाज चलाए थे, या हेल्मेट यूं ही थाम लिया है। पर फोटू गजब का है साहब। इत्ती रफ्तार से चलाए होंगे जहाज को, इत्ता तेज....लेकिन दाढ़ी का एक बाल इधर से उधर नहीं हुआ साहब का....एक हम हैं, कित्ता कोशिश किया कि ज़रा थोड़ा चमकते हुए नज़र आएं, कभी सिर का बाल फैल जाता है, कभी मूछ खराब हो जाती है, कभी दाढ़ी मचल-मचल जाती है। दोस्त लोग कहते हैं यार वीडियो बना रहे हो, थोड़ा चुस्त-दुरुस्त दिखो, हम कहते हैं यार मन तो हमारा भी बहुत करता है कि सुंदर, स्मार्ट दिखें, लेकिन होता ही नहीं है। एक मोदी को देखो, क्या लगता है भाय, हर प्रोग्राम में नया सूट, हर फोटोशूट में नया गेटअप....जितना हमारा पूरा सेटअप में पैसा लगा है, उसका दस गुणा सिर्फ इस फोटोशूट में लगा होगा...खैर इस बार जाने दीजिए, अगली बार से सिर के बालों मे ंतो कम से कम तेल लगा कर आएंगे।

भैया बी जे पी जिसे हिंदी में भा ज पा कहते हैं, ऐसे ही तो ऐसी नहीं है। सुना इनके शूरवीर नेता इनके शौर्य की गाथाएं सरेआम आठ लेन के हाइवे पर लिख रहे हैं। भई जिसने भी वो वीडियो बनाया, और उसे जाहिर किया, ये बहुत ग़लत बात है। पर जो हो गया सो हो गया, एम पी की पुलिस जल्द ही इस मामले में उन लोगों की गिरफ्तारी को अंजाम देगी जिसने ये किया है। बताइए अब भाजपा का कोई नेता सरेआम आठ लेन के हाइवे पर संभोग भी नहीं कर सकता। आखिर संस्कार और संस्कृति भी कोई चीज़ होती है, जिसकी भाजपा में नदी बह रही है। एक कहावत है, पता नहीं कहां सुनी थी, बड़े ने खैंची कार, उतर गई सह-कुटुम्ब परिवार.....अब इस कहावत से आप कितना समझें ये आप पर निर्भर करता है। साहेब से अनुरोध है कि एम पी के ये जो अराजब तत्व हैं, जिन्होने नेता जी का ये वीडियो वायरल किया है उन पर जल्द से जल्द और सख्त से सख्त कार्यवाही की जाए। और नेता जी के समर्थन में कम से कम चार-पांच रैलियां निकाली जाएं। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा लगाते हुए जब पावन धरा पर जब बलात्कारियों के समर्थन में ऐसी रैलियां निकलती हैं तो सच कहें मन गद्गद् हो जाता है। भाजपा नेता हमेशा समाज को सही रास्ता दिखाते हैं, इस बार आठ लेन का हाइवे दिखाया है, देखें आगे क्या होता है। 

ये जो टीमें भेजने की बात थी विदेशों में, आॅपरेशन सिंदूर पर भारतीय पक्ष को मजबूत करने के लिए, वो चली गई हैं क्या....चली ही गई होंगी। इनका भी विरोध ही किया था आॅपोजीशन ने साहब....लोगों को ये तक कहते सुना कि इससे पहले जो पूरी दुनिया के दर्जन में 13 के भाव से चक्कर लगा रहे थे पिछे एक दशक से उसका क्या यही नतीजा है....पूरी दुनिया के शीर्षस्थ नेता जिनके डीयर फ्रंेड हों, उन्हें ऐसी टीमें भेजने की जरूरत ही क्या रह जाती है। दूसरी तरफ मन की बात चलती है, जो भारतीय ही नहीं, विश्व की अन्य भाषाओं में भी अनूदित होता है, से काम क्यों नहीं लिया जाता। पर फिर सोचता हूं, कि यार क्यों बेकार नेताओं की मुफ्त विदेश यात्राओं पर क्यों पैर मारना, आखिर 30 साल भिक्षा से काम चलाने वाले मोदी जी भी तो उसी दौरान अमरीका की कई यात्राएं कर चुके थे, वो क्या अपने पैसों से गए होंगे। संभव ही नहीं है, तो अब मौका है ऐसे मौके निकालने का कि जिसको चाहें उसे विदेश यात्रा करवा दें, मोदी जी का दिल बहुत बड़ा है, खुद यात्राएं करते हैं, दूसरों को भी पूरा मौका देते हैं। अब कुछ लोग कहेंगे कि यार आॅपरेशन सिंदूर के बारे में दुनिया को बताने जा रही टीमों के बारे में ऐसा कह रहे हो, लेकिन आपदा में अवसर का फार्मूला भी तो मोदी जी ने ही दिया है। ये टीमें पूरी दुनिया को आॅपरेशन सिंदूर से रू-ब-रू करवाएंगी, और भारत की जनता के बीच आॅपरेशन सिंदूर के असली हीरो, जेट चालक, वीरों के वीर, रगों में खून की जगह सिंदूर दौड़ाने वाले मोदी जी और उनके समर्थक यही प्रचार करेंगे। करेंगे क्या, बल्कि कर रहे हैं। एक साहब पूरी सेना को मोदी के चरणों में नतमस्तक करवा दे रहे हैं, एक और वीडियो देखा जिसमें मोदी जी के लाइफ साइज पोस्टर की आरती उतारी जा रही थी और गाना भारत माता वाला बज रहा था। खैर हो भी क्यों ना, जो काम मोदी जी विदेशों में करवा रहे हैं, वही काम उन्हें भारत में करना तो बनता है। प्राॅब्लम ये है कि ये देशद्रोही किस्म की जनता, खासतौर पर राहुल गांधी, इस बात को समझ नहीं रहे हैं कि असली वीरता तो मोदी जी ने दिखाई है, इसलिए उनके द्वारा और उनके लिए किया गया प्रचार युद्ध का राजनीतिकरण, या शहीदों की शहादत का राजनीतिकरण नहीं माना जाएगा। 


चलिए वो सब छोड़िए, आप इस पर ध्यान दीजिए कि जिस तरह दिल्ली सरकार ने लिकर पाॅलिसी में ऐसा घोटाला किया जिसका कोई ओर-छोर ई डी को पता नहीं चल पाया, उसी तरह का एक मामला और सामने आ रहा है। तामिलनाडू में जहां शायद अगले साल चुनाव होने वाले हैं, वहां टस्मैक के दफ्तरों पर छापे मारने का काम शुरु किया जा चुका था, वो सुप्रीम कोर्ट कुछ-कुछ कह रहा है, लेकिन उससे निपट लिया जाएगा। अभी तो मोदी के तरकश में बहुत सारे तीर हैं। गर्वनर किस दिन काम आएंगे, गर्वनर न हों तो और भी कई रास्ते हैं, लेकिन सबके बारे में यहां बात करना ठीक नहीं है। अब चाहे जो हो, तामिलनाडू में होनी तो भई चार इंजनों वाली सरकार होनी ही चाहिए। जब तक एकछत्र राज ना हो तब तक मजा नहीं आता राज करने का, तो इस साल बिहार, आॅपरेशन सिंदूर से पक्का किया जाएगा और फिर नंबर आएगा तामिलनाडू का.....

तो कुल बात का लब्बो-लुबाब ये है कि कर लो जितना चाहे, सबको लाइन में ले आया जाएगा.....और लाइन में तुमको आना ही पड़ेगा....

बाकी बातें बाद में, और सुनो भाई, लाइक - सब्सक्राइब और शेयर......ठीक है। फिर मिलता हूं.....
अरे हां....ग़ालिब के कुछ गुमनाम शेर हाथ लगे हैं, एक सुन लीजिए और इस पर अपनी राय दीजिए, हालांकि मेरी राय में गालिब ऐसे कोई बहुत अच्छे शायर नहीं हैं, शायर और वो भी उर्दू के अच्छे हो भी नहीं सकते.....पर ये सुनिए आप

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जब माथे पर ही ना लगा तो फिर सिंदूर क्या है

आदाब आदाब.....शुक्रिया.....मने नमस्कार




इस सादगी पर कौन न मर जाए ए भगवान!!!



इतना सब सादा-सादा-सादा कहने वाले इन प्रगतिशीलों की आंखों पर नेहरु का चश्मा ऐसा चढ़ा है कि हद हो गई....लेकिन सादगी की असली जीवंत मिसाल को वो अक्सर इग्नोर कर देते हैं। 
हम आपको आज के यानी इस आधुनिक युग के सादगी के सरोवर, भारत के इकलौते नाॅन लाॅजिकल.....या नाॅन बायोलाॅजिकल इंसान के बारे में बताएंगे कि कैसे उनका सारा जीवन, सादगी की मिसाल है। सादगी की इतनी मिसालें हैं इस जीवन में कि जिसे सुनाते-सुनाते खुद उनकी आंखों से अक्सर आसूं बहने लगते हैं। चलिए शुरु से शुरु करते हैं......

सादगी के इस महापुरुष ने अपना सादा जीवन बहुत ही सादगी से शुरु किया, और कई दशकों तक किसी को ये पता ही नहीं चला कि ये महापुरुष तब वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय बेचता था, जबकि वो स्टेशन बना तक नहीं था। अपनी सादगी के चलते इन्होने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया और लगातार कई सालों तक वहां चाय बेच कर अपना खर्च चलाते रहे। क्या नेहरु ने कभी चाय बेची, उन्हें तो पता भी नहीं होगा कि चाय बेचना किसे कहते हैं। मैं यहा किसी की तुलना नही ंकर रहा हूं, लेकिन अगर पैमाना सादगी हो तो चाय बेचने की सादगी किसी भी पैमाने से नापिए हमेशा उपर ही मिलेगी। 

सादगी का आलम ये है कि खाने में ये महापुरुषों को भी मात करते हैं। अब तक मिली खबरों के अनुसार ये काजू की रोटी और मशरूम की सब्जी ग्रहण करते हैं। नेहरु क्या सादगी से रहे होंगे, सुनते हैं कि दाल, सब्जी, फल, सलाद खाते थे और उन्हे तो तंदूरी चिकन भी पसंद था। यानी बहुत सारे लोग उन्हें खाते हुए देखते थे, हमारे वाले महापुरुष सिर्फ काजू की रोटी और मशरूम की सब्जी पर गुज़र करते हैं और उन्हे खाते हुए भी बहुत कम लोगों ने देखा है।

आपने अक्सर ही सुना होगा कि नेहरु के कपड़े धुलने के लिए पेरिस जाते थे। प्रगतिशील लोग तो इसकी भी सफाई देते हैं, कहा जाता है कि खुद नेहरु ने अपने समय में ही इस बात का खंडन कर दिया था। लेकिन ये बात तो सही लगती है, आप नेहरु की कोई भी तस्वीर निकाल लीजिए, वो चूढ़ीदार और कुर्ता हपने हुए होते हैं, एक जैकेट होती है, जिसे अब नाम ही नेहरु जैकेट दे दिया गया है। एक टोपी मिलती है, और कुर्ता होता है। अब हर तस्वीर में एक ही जैसे कपड़े, और हर तस्वीर में कपड़ों में वही चमक दिखती है। अगर वो भारत में, या अपने घर में ही कपड़े धुलवाते तो बताइए, इतनी चमक कपड़ों में कैसे आ सकती थी। हमारे महामानव पेरिस में कपड़े नहीं धुलवाते, वो तो दरअसल भारत में भी कपड़े नहीं धुलवाते, जरूरत ही नहीं पड़ती। आप पिछले दस सालों की उनकी तस्वीर निकाल कर तुलना कर लीजिए, वो कोई भी कपड़ा एक बार से ज्यादा नहीं पहनते, बल्कि कई बार तो एक ही दिन में 5 से ज्यादा बार तक कपड़े बदलते हैं। सादगी की इस मूरत ने पुलिस, डाॅक्टर, संत, इंजीनियर, फौजी, पायलट हर तरह की वर्दी पहनी है। ऐसी सादगी, ऐसी कमखर्ची कहीं पूरी दुनिया में, कच्चे तेल का दिया लेकर ढूंढने पर भी नहीं मिलेगी। हर कपड़ा सीधा और सादा होता है, इतना सादगी पूर्ण जीवन जीने के लिए इन्हें अब तक नोबल मिल जाना चाहिए था। 

महामानव के विचारों में भी सादगी है। एक फकीरपना है, ये महापुरुष फकीराना तरीके से सोचते हैं। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से दूर, इनके विचारों में एक फक्कड़पना दिखाई देता है। कहां नेहरु अपने ज्ञान का ढिंढोरा पीटने के लिए किताबें लिख रहे थे, और महामानव किताबें पढ़ते तक नहीं हैं, यहां तक की सरकारी फाइलें तक नहीं पढ़ते, यहां तक कि खुद वे कहते हैं कि ”मैं पढ़ता नहीं हूं.....” इतनी सादगी....इतनी सादगी कहां से लाओगे, और कहां ले जाओगे.....बस ऐसे ही फाइल उठाना, उसे एक नज़र देखना और रख देना....आ हा हा हा हा, ऐसी सादगी या तो इनके पास है या फिर ईश्वर के पास हो सकती है। 

आपने नेहरू की किताब पढ़ी होगी, डिस्कवरी आॅफ इंडिया, भारत एक खोज, बेकार किताब है, कभी ना पढ़िएगा। उसमें नेहरू इतिहास, भूगोल, विज्ञान सबमें अपनी समझदारी दिखा दिया है। लेकिन महामानव पूरे आदि-अनादि का सवज्र्ञ ज्ञाता होने के बावजूद पूरी सादगी से रहते हैं। कभी - कभी ज्ञान का सागर कहीं किसी दरार से फूट पड़ता है तो हमें सादगीपूर्ण जीवन के उच्च वैज्ञानिक विचार देखने को मिलते हैं। 


अलजबरा के महान ज्ञाता, आधुनिक संचार प्रणाली राडार के इतने उच्च कोटी के ज्ञान और कैमिस्टरी, बायोलाॅजी, एनवायरमेंट साइंस, हिस्टरी के ऐसे महान ज्ञाता होने के बावजूद, सिर्फ एक देश का प्रधानमंत्री होने का संतोष......सादगी हो तो ऐसी हो। नेहरु क्या खाकर ऐसी सादगी बरतेंगे। 

जब ये कहते हैं कि ये बायलोजिकल नहीं हैं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं करते हैं। ये विश्वगुरु नहीं, ब्रहमंाड गुरु होने की काबिलियत रखते हैं, और सिर्फ इन नराधम प्रगतिशीलों के देश के प्रधानमंत्री पद पर बने हुए हैं, इससे बड़ी सादगी की मिसाल और क्या होगी। 

सादगी का इंटरनेशनल आलम ये है कि जहां भी गए, वहां का ढोल बजाया, जहां भी गए, वहीं का परिधान पहन लिया, अपना कुछ भी नहीं, पूरी दुनिया में गए और कहते हैं कि जहां भी जाते हैं, वहीं पैसा बचाते हैं। एक देश का प्रधानमंत्री अपनी विदेश यात्रा में पैसा बचाता है, ऐसा आपने कभी पहले सुना है? नहीं सुना होगा। मेरा दावा है कि नहीं सुना होगा।

सादगी का ये आलम है कि अगर देश का कोई हिस्सा अशांत हो, वहां कोई आतंकवादी या विदेशी हमला हुआ हो, तो वहां नहीं जाते। विपक्षी, विरोधी, कितना भी कहें, लेकिन ये वहां नहीं जाते, सिर्फ इसलिए कि सुरक्षा प्रोटोकाॅल के चलते कितना तामझाम वहां करना पड़ेगा। नेहरु के वंशज इस बात को क्या समझेंगे, जहां मर्जी चले जाते हैं। लेकिन सादगी से रहने वाले हमारे महापुरुष ऐसी किसी भी जगह नहीं जाते, वो उन्हीं जगहों पर जाते हैं, जहां बिल्कुल सादगी से रोड-शो करने की सादगी भरी सुविधा हो। इनकी सादगी से मोहित होकर ही अभी हाल ही में हुए इनके रोड शो में कर्नर कुरैशी के घरवालों ने इन पर पुष्प वर्षा की थी, और जबकि इनके ही एक सहयोगी ने कर्नल सोफिया को भरी सभा में अपमानित किया था। इन्हें दिल से बुरा लगा, जो कि हर सादगी पसंद व्यक्ति को लगता है, लेकिन हर सादगी पसंद व्यक्ति की तरह इन्होने इस अपमान के खिलाफ न कुछ कहा, न कोई कार्यवाही करने की अनुशंसा की, बस सादगी से अपने कर्तव्य का निर्वहन किया और रोड-शो के दौरान पूरी सादगी से अपने उपर फूलों की बारिश करवा ली।

मैने कोशिश की है आपको ये बताने की, कि सादगी की जीती जागती मिसाल हैं, ये बा-कमाल हैं, लेकिन, इनकी सादगी भरे सादा जीवन की सादा घटनाएं अपने आप में महान हैं, इतनी महान हैं कि शब्द कम पड़ जाते हैं, आज से सौ, डेढ़ सौ साल बाद जब कोई सादगी की मिसाल देगा तो......कम से कम नेहरू की मिसाल तो नहीं देगा। सादगी का अगर कोई रिकाॅर्ड होता, तो वो अब तक टूट चुका होता, बल्कि होगा तो टूट ही गया होगा, अब तो सादगी भी शर्माती होगी, कि वो किस मुहं से दुनिया के सामने जाएगी। खैर, सादगी की ऐसी प्रतिमूर्ति को आप सभी अनप्रगतिशीलों का शत्-शत् नमन.....नमस्कार

इस वीडियो को लाइक और सब्सक्राइब ना करने वाले पक्के तौर पे देशद्रोही होंगे। या वो जिन्हें सादगी की सही परिभाषा नहीं पता है। बाकी अगर आपके पास भी इनकी सादगी के ऐसे कुछ और उदाहरण हों तो कमेंट में दीजिएगा ताकि प्रगतिशीलों की आंखों से पर्दा हटाया जा सके। 
नमस्कार

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...