गुरुवार, 29 मई 2025




इस सादगी पर कौन न मर जाए ए भगवान!!!



इतना सब सादा-सादा-सादा कहने वाले इन प्रगतिशीलों की आंखों पर नेहरु का चश्मा ऐसा चढ़ा है कि हद हो गई....लेकिन सादगी की असली जीवंत मिसाल को वो अक्सर इग्नोर कर देते हैं। 
हम आपको आज के यानी इस आधुनिक युग के सादगी के सरोवर, भारत के इकलौते नाॅन लाॅजिकल.....या नाॅन बायोलाॅजिकल इंसान के बारे में बताएंगे कि कैसे उनका सारा जीवन, सादगी की मिसाल है। सादगी की इतनी मिसालें हैं इस जीवन में कि जिसे सुनाते-सुनाते खुद उनकी आंखों से अक्सर आसूं बहने लगते हैं। चलिए शुरु से शुरु करते हैं......

सादगी के इस महापुरुष ने अपना सादा जीवन बहुत ही सादगी से शुरु किया, और कई दशकों तक किसी को ये पता ही नहीं चला कि ये महापुरुष तब वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय बेचता था, जबकि वो स्टेशन बना तक नहीं था। अपनी सादगी के चलते इन्होने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया और लगातार कई सालों तक वहां चाय बेच कर अपना खर्च चलाते रहे। क्या नेहरु ने कभी चाय बेची, उन्हें तो पता भी नहीं होगा कि चाय बेचना किसे कहते हैं। मैं यहा किसी की तुलना नही ंकर रहा हूं, लेकिन अगर पैमाना सादगी हो तो चाय बेचने की सादगी किसी भी पैमाने से नापिए हमेशा उपर ही मिलेगी। 

सादगी का आलम ये है कि खाने में ये महापुरुषों को भी मात करते हैं। अब तक मिली खबरों के अनुसार ये काजू की रोटी और मशरूम की सब्जी ग्रहण करते हैं। नेहरु क्या सादगी से रहे होंगे, सुनते हैं कि दाल, सब्जी, फल, सलाद खाते थे और उन्हे तो तंदूरी चिकन भी पसंद था। यानी बहुत सारे लोग उन्हें खाते हुए देखते थे, हमारे वाले महापुरुष सिर्फ काजू की रोटी और मशरूम की सब्जी पर गुज़र करते हैं और उन्हे खाते हुए भी बहुत कम लोगों ने देखा है।

आपने अक्सर ही सुना होगा कि नेहरु के कपड़े धुलने के लिए पेरिस जाते थे। प्रगतिशील लोग तो इसकी भी सफाई देते हैं, कहा जाता है कि खुद नेहरु ने अपने समय में ही इस बात का खंडन कर दिया था। लेकिन ये बात तो सही लगती है, आप नेहरु की कोई भी तस्वीर निकाल लीजिए, वो चूढ़ीदार और कुर्ता हपने हुए होते हैं, एक जैकेट होती है, जिसे अब नाम ही नेहरु जैकेट दे दिया गया है। एक टोपी मिलती है, और कुर्ता होता है। अब हर तस्वीर में एक ही जैसे कपड़े, और हर तस्वीर में कपड़ों में वही चमक दिखती है। अगर वो भारत में, या अपने घर में ही कपड़े धुलवाते तो बताइए, इतनी चमक कपड़ों में कैसे आ सकती थी। हमारे महामानव पेरिस में कपड़े नहीं धुलवाते, वो तो दरअसल भारत में भी कपड़े नहीं धुलवाते, जरूरत ही नहीं पड़ती। आप पिछले दस सालों की उनकी तस्वीर निकाल कर तुलना कर लीजिए, वो कोई भी कपड़ा एक बार से ज्यादा नहीं पहनते, बल्कि कई बार तो एक ही दिन में 5 से ज्यादा बार तक कपड़े बदलते हैं। सादगी की इस मूरत ने पुलिस, डाॅक्टर, संत, इंजीनियर, फौजी, पायलट हर तरह की वर्दी पहनी है। ऐसी सादगी, ऐसी कमखर्ची कहीं पूरी दुनिया में, कच्चे तेल का दिया लेकर ढूंढने पर भी नहीं मिलेगी। हर कपड़ा सीधा और सादा होता है, इतना सादगी पूर्ण जीवन जीने के लिए इन्हें अब तक नोबल मिल जाना चाहिए था। 

महामानव के विचारों में भी सादगी है। एक फकीरपना है, ये महापुरुष फकीराना तरीके से सोचते हैं। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से दूर, इनके विचारों में एक फक्कड़पना दिखाई देता है। कहां नेहरु अपने ज्ञान का ढिंढोरा पीटने के लिए किताबें लिख रहे थे, और महामानव किताबें पढ़ते तक नहीं हैं, यहां तक की सरकारी फाइलें तक नहीं पढ़ते, यहां तक कि खुद वे कहते हैं कि ”मैं पढ़ता नहीं हूं.....” इतनी सादगी....इतनी सादगी कहां से लाओगे, और कहां ले जाओगे.....बस ऐसे ही फाइल उठाना, उसे एक नज़र देखना और रख देना....आ हा हा हा हा, ऐसी सादगी या तो इनके पास है या फिर ईश्वर के पास हो सकती है। 

आपने नेहरू की किताब पढ़ी होगी, डिस्कवरी आॅफ इंडिया, भारत एक खोज, बेकार किताब है, कभी ना पढ़िएगा। उसमें नेहरू इतिहास, भूगोल, विज्ञान सबमें अपनी समझदारी दिखा दिया है। लेकिन महामानव पूरे आदि-अनादि का सवज्र्ञ ज्ञाता होने के बावजूद पूरी सादगी से रहते हैं। कभी - कभी ज्ञान का सागर कहीं किसी दरार से फूट पड़ता है तो हमें सादगीपूर्ण जीवन के उच्च वैज्ञानिक विचार देखने को मिलते हैं। 


अलजबरा के महान ज्ञाता, आधुनिक संचार प्रणाली राडार के इतने उच्च कोटी के ज्ञान और कैमिस्टरी, बायोलाॅजी, एनवायरमेंट साइंस, हिस्टरी के ऐसे महान ज्ञाता होने के बावजूद, सिर्फ एक देश का प्रधानमंत्री होने का संतोष......सादगी हो तो ऐसी हो। नेहरु क्या खाकर ऐसी सादगी बरतेंगे। 

जब ये कहते हैं कि ये बायलोजिकल नहीं हैं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं करते हैं। ये विश्वगुरु नहीं, ब्रहमंाड गुरु होने की काबिलियत रखते हैं, और सिर्फ इन नराधम प्रगतिशीलों के देश के प्रधानमंत्री पद पर बने हुए हैं, इससे बड़ी सादगी की मिसाल और क्या होगी। 

सादगी का इंटरनेशनल आलम ये है कि जहां भी गए, वहां का ढोल बजाया, जहां भी गए, वहीं का परिधान पहन लिया, अपना कुछ भी नहीं, पूरी दुनिया में गए और कहते हैं कि जहां भी जाते हैं, वहीं पैसा बचाते हैं। एक देश का प्रधानमंत्री अपनी विदेश यात्रा में पैसा बचाता है, ऐसा आपने कभी पहले सुना है? नहीं सुना होगा। मेरा दावा है कि नहीं सुना होगा।

सादगी का ये आलम है कि अगर देश का कोई हिस्सा अशांत हो, वहां कोई आतंकवादी या विदेशी हमला हुआ हो, तो वहां नहीं जाते। विपक्षी, विरोधी, कितना भी कहें, लेकिन ये वहां नहीं जाते, सिर्फ इसलिए कि सुरक्षा प्रोटोकाॅल के चलते कितना तामझाम वहां करना पड़ेगा। नेहरु के वंशज इस बात को क्या समझेंगे, जहां मर्जी चले जाते हैं। लेकिन सादगी से रहने वाले हमारे महापुरुष ऐसी किसी भी जगह नहीं जाते, वो उन्हीं जगहों पर जाते हैं, जहां बिल्कुल सादगी से रोड-शो करने की सादगी भरी सुविधा हो। इनकी सादगी से मोहित होकर ही अभी हाल ही में हुए इनके रोड शो में कर्नर कुरैशी के घरवालों ने इन पर पुष्प वर्षा की थी, और जबकि इनके ही एक सहयोगी ने कर्नल सोफिया को भरी सभा में अपमानित किया था। इन्हें दिल से बुरा लगा, जो कि हर सादगी पसंद व्यक्ति को लगता है, लेकिन हर सादगी पसंद व्यक्ति की तरह इन्होने इस अपमान के खिलाफ न कुछ कहा, न कोई कार्यवाही करने की अनुशंसा की, बस सादगी से अपने कर्तव्य का निर्वहन किया और रोड-शो के दौरान पूरी सादगी से अपने उपर फूलों की बारिश करवा ली।

मैने कोशिश की है आपको ये बताने की, कि सादगी की जीती जागती मिसाल हैं, ये बा-कमाल हैं, लेकिन, इनकी सादगी भरे सादा जीवन की सादा घटनाएं अपने आप में महान हैं, इतनी महान हैं कि शब्द कम पड़ जाते हैं, आज से सौ, डेढ़ सौ साल बाद जब कोई सादगी की मिसाल देगा तो......कम से कम नेहरू की मिसाल तो नहीं देगा। सादगी का अगर कोई रिकाॅर्ड होता, तो वो अब तक टूट चुका होता, बल्कि होगा तो टूट ही गया होगा, अब तो सादगी भी शर्माती होगी, कि वो किस मुहं से दुनिया के सामने जाएगी। खैर, सादगी की ऐसी प्रतिमूर्ति को आप सभी अनप्रगतिशीलों का शत्-शत् नमन.....नमस्कार

इस वीडियो को लाइक और सब्सक्राइब ना करने वाले पक्के तौर पे देशद्रोही होंगे। या वो जिन्हें सादगी की सही परिभाषा नहीं पता है। बाकी अगर आपके पास भी इनकी सादगी के ऐसे कुछ और उदाहरण हों तो कमेंट में दीजिएगा ताकि प्रगतिशीलों की आंखों से पर्दा हटाया जा सके। 
नमस्कार

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