गुरुवार, 29 मई 2025

 भावनाओं की भड़कन - भड़कने वाली भावना




सलाम जनाब.....ओ हो हो हो हो.....लीजिए, शुरुआत ही ऐसी हो गई। देखिए शुरुआत में कहना चाहिए था, नमस्कार, कह गया सलाम। और आप मानिए ना मानिए, सारा झगड़ा इस सलाम नमस्कार में ही है। खैर, भावनाएं, भावनाएं होती हैं, भड़क जाती हैं, भड़काई जाती हैं, कभी - कभी तो भावनाओं को सैलाब उमड़ जाता है। आज मैं आपसे भावनाओं के भड़कने, तड़कने, हड़कने, थरथराने, सुरसुराने की ही बात करने आया हूं। मैं दरअसल ये सोचने समझने आया हूं कि आखिर ये कौन सी भावनाएं हैं जो अचानक भड़क जाती हैं। अब जैसे मैने नमस्कार की जगह सलाम बोल दिया, मितरों की जगह, जनाब बोल दिया। तो क्या इससे भावनाएं भड़क सकती हैं? मैं जानना इसलिए चाहता हूं क्योंकि अभी एक राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले शख्स के उपर यही भावनाएं भड़काने वाला, और राजद्रोह का आरोप लगाकर उसे हिरासत में लिया गया है। और अब अदालत ये सुनवाई करने के लिए कह रही है कि उसने भावनाओं को भड़काया या नहीं भड़काया। तो यार ये तो गजब हो गया, कहीं भी, कोई भी, पुलिस में जाकर एफ आई आर करवा देगा कि भावनाएं भड़क गई हैं, फलां शख्स को गिरफ्तार करो.....और पुलिस कर लेगी....और.....और फिर गया बंदा अंदर....। 


अब ये प्रो. महमूदाबाद वाला मामला ही देख लीजिए, भावनाएं भड़क गईं, अब भावनाओं पर किसी का जोर तो है नहीं, भड़क गई तो भड़क गईं। जिसकी भड़की उन्होंने पुलिस में एफ आई आर करवा दी, पुलिस आमतौर पर भववनाओं के भड़कने पर ज्यादा मुस्तैद होती है, तो पुलिस ने अपनी मुस्तैदी दिखाई और सुबह-सवेरे धर-पकड़ मचा दी। लगे लोग हल्ला मचाने कि ये तो कतई फासीवाद है, ऐसे कैसे आप किसी को भी पकड़ लोगे। तमाम शिक्षक संगठनों ने प्रो. महमूदाबाद के समर्थन में पर्चे निकाल दिए, प्रेस कान्फ्रेंस कर दीं। आपको लगता था, इससे कुछ होगा। लेकिन उनके पास बुद्धिजीवियों की कमी थोड़े ही है। उन्होंने फटाक से अपने बुद्धिजीवियों को निर्देश भेजा, या हो सकता है आदेश भेजा हो। खैर दांयी तरफ वाले बुद्धिजीवियों ने जिन्हें इसी काम के लिए बड़े-बड़े पदों और तनख्वाहों से नवाजा गया है, अपनी भूमिका को निर्वहन किया और एक लैटर निकाल दिया, प्रो. महमूदाबाद की मजम्मत की गई, कि उन्होने जो लिखा है, वो दरअसल वेल्ड मिसोजिनी है। यानी पर्दे में छुपा स्त्री विद्वेष है। कमाल ये है कि इन बारीक नज़र वाले बुद्धिजीवियों को ये वेल्ड मिसोजिनी दिखाई दी, लेकिन खुले आम सेना की महिला अफसरों पर की गई अपमानजनक टिप्पणियां नहीं नज़र आईं। जिस व्यक्ति को हाई कोर्ट कह रहा है गिरफ्तार करो, सुप्रीम कोर्ट ने उसके बयान को गंभीरता से लिया और पुलिस को फटकार लगाई कि एफ आई आर के नाम पर उसका बचाव करना बंद करो, उसके खिलाफ इन बुद्धिजीवियों ने आधा-पौना बयान नहीं दिया। लेकिन प्रो. महमूदाबाद की वेल्ड मिसोजिनी इन्हें जरूर दिखाई दे गई। बहुत ही फोकस्ड नज़र है सर, मानना पड़ेगा। अभी एक टी वी इंटरव्यू देखा था, उसमें पत्रकार ने रेणु भाटिया जो हरियाणा वुमन कमीशन की चैयरमैन हैं, से पूछा कि आखिर उन्हें प्रो. महमूदाबाद के पोस्ट में क्या आपत्तिजनक लगा, लेकिन चैयरमैन साहिबा बता ही नहीं पा रही थीं, तो ऐसे में इन बुद्धिजीवियों का मैदान में उतर आना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। बल्कि अगर ऐसा ना होता तो मामला कुछ गड़बड़ लगता। इन बुद्धिजीवियों ने कहा कि प्रो. महमूदाबाद को पोस्ट वेल्ड मिसोजिनी क्लोक्ड इन सूडो-एकेडेमिक इन्क्वाइरी है। यानी पर्दे में पर्दा....और पर्दे के खेल में माहिर लोगों ने इस फौरन पहचान लिया है। 


पर सच कहूं तो प्रो. महमूदाबाद को तो जाना ही था अंदर। कहां तो अब्दुल को टाइट करने की बात हो रही है, और कहां अब्दुल टाइट की जगह ब्राइट हो रहा है। इन पर जो आरोप लगे, और इन्हें अंदर किया गया, उसमें इस बात का कोई रोल ही नहीं है कि उन्होने क्या कहा। असल मामला है कि उनकी हिम्मत कैसे हो गई, कुछ भी कहने की। ये जो जिद है लोगों की कि ग़लत को ग़लत कहना है, ये गिरफ्तारी उस ज़िद पर हमला है। बताइए, इन्हें क्या पड़ी थी भाई ये सब कहने की, देखिए फिर से समझा रहा हूं, कहने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ सरकार और सरकार के समर्थकों को है, आप फालतू अपनी टांग घुसाए बैठे हैं। और अभी तो रुकिए, आपका नंबर भी आने वाला है। ये जो सब के सब प्रो. साहब के समर्थन में पर्चे निकाल रहे हैं, प्रेस कान्फ्रेंस कर रहे हैं, सब के सब निशाने पर हैं, सबका नंबर आएगा। 

सेना की अफसरों को आतंकवादियों की बहन बताया जा रहा है, सेना को मोदी के चरणों में नतमस्तक करवा दिया जा रहा है, और ये सब कहने वाले छाती चौड़ी करके घूम रहे हैं, कि कल्लो जो करना है। मंगलेश डबराल कहते हैं, 
तानाशाह कहता है 
हमारे बिना तुम कुछ नहीं कर सकते
तुम उठ नहीं सकते
सांस नहीं ले सकते
कहीं आ जा नहीं सकते
हम न हों तो तुम भी नहीं हो सकते......

छोड़िए मंगलेश डबराल को, ये जो कवि होते हैं, विचारक होते हैं, इनके खतरनाक विचारों में फंस कर ही, लोगों को लगता है कि अपने हक़ के लिए खड़ा होना सही है। पर मितरों, पुलिस का डंडा सही और ग़लत में सटीक फर्क याद दिला देता है। 

बताइए, खबर मिली कि प्रोफेसर साहब को जमानत मिल गई। वाह कमाल हुआ भाई, किसी को एक ऐसे मामले में जमानत मिले जिसमें कोई मामला ही ना बनता हो, तो इस बात की बधाई तो लेनी-देनी बनती है। बधाई हो प्रोफेसर साहब, सुना विशेष जांच टीम बनाई गई है जो ये जांच करेगी कि प्रोफेसर साहब ने जो पोस्ट किया, वो अपराध था या नहीं। किसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाले लोकतांत्रित देश में जब इस तरह के मामले होते हैं तो कसम से मजा आ जाता है। एक एस आई टी उस मामले में भी बनी है जिसमें कोई बड़े वाले नेता खुल्लम-खुल्ला भारतीय सेना की एक महिला अधिकारी का अपमान कर रहा है। देखें कौन सी एस आई टी पहले फैसला देती है और क्या फैसला देती है।

फिर भी एक अनजान, मेरा मतलब है मासूम भारतीय नागरिक की हैसियत से ये पूछना तो बनता है ना जी कि जब ये एक नजीर है कि आप चाहे कुछ भी लिखें आपको गिरफ्तार किया जा सकता है, विशेष जांच बिठाई जा सकती है तो, फिर जल्द ही सरकार कोई ऐसी सूची भी तो निकालेगी जिसमें भावनाओं को ध्यान मे रखते हुए बात करने की हामी भरी गई होगी। या तो हमको मुहं पर टेप चिपका लेना चाहिए कि कम से कम ये तो सिद्ध हो ही गया कि आप कुछ भी बोलें आपको पकड़ा जा सकता है, और आगे जो यहां नहीं हुआ वो भी किया ही जा सकता है।
लेकिन ये सिर्फ अकेला मामला तो नहीं है, यहां तो हाल ये हैं कि विदेश मामलों के मंत्री अगर खुलेआम कुछ कहें तो आप उसे दोहरा भी नहीं सकते हैं, कि दोहराया तो बाबू अंदर हो जाओगे.....फिर जैसा मैं हमेशा से सोचता आया हूं कि अदालत ये ना कहेगी, कि यारों मामला ही नहीं बनता, वो कहेगी, चलो तुम पर दया दिखाई, जाओ इत्ता पैसा दो, जमानत का, और अब इस पर जांच करेंगे कि क्या हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ। यानी तुमने जो किया वो तुम नही ंकर सकते। राहुल गांधी भुगत रहे हैं, लगता है जल्द ही उन पर भी देशद्रोह आदि का मुकद्मा चलाया जा सकता है कि आखिर इसने वो कैसे दोहरा दिया जो विदेश मामलों के मंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा था। खुद को सरकार का मंत्री समझता है क्या....
आप इस पूरे प्रकरण को यूं देखिए कि ऑप्टिकस् क्या बनता है। मंत्री कुछ भी कहे, सीधे-सीधे कहे, कोई दिक्कत नहीं है। याद रखिएगा कि कर्नल सोफिया कुरैशी के बारे में अभद्र टिप्पणी करने वाले भाजपा के नेता को ना गिरफ्तार किया गया है ना ही उन्होने जमानत दी है। भारतीय सेना के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने वाले भाजपा के नेता को तो खैर किसी ने चूं तक न कहा। लेकिन प्रोफेसर साहब के पोस्ट में वेल्ड मिसोजिनी भी दिखाई दे गई और उसमें सूडो इन्क्वाइरी भी दिखाई दे गई। यहां एक बात और बताता चलूं, एक और जोशीले साथी हैं, मनीष कुमार झा, ऑपरेशन सिंदूर  के दौरान वैश्विक मीडिया में रॉफेल से संबंधित खबरों पर भारत सरकार से स्पष्टीकरण मांग बैठे। मेरे वीडियो नहीं देखे थे, क्या किया जाए। झेल गए। अभी उन पर मुकद्में दर्ज हो गए हैं। 

तो जैसा कि मैं पूछता ही हूं, इस पूरे प्रकरण से आपने क्या सीखा? 
एक: चुप रहो यार.....बोलोगे तो गर्दन मारी जाएगी।
दो: अभिव्यक्ति की आजादी सिर्फ उसे मिलती है, जिसके पास सत्ता की चाभी है। वरना अदालत एस आई टी बिठाती है और जमानत देती है।
तीन: फासीवाद पिछले स्टॉपेज पर चाय-पकौड़े नहीं खा रहा है, यहीं है, अब तुम मानो या ना मानो है यहीं।
चार: एक बहुत अच्छी फिल्म बनी थी किसी जमाने में देखी थी......जुल्मतों के दौर में....देख लीजिए, आंखे खुल जाएंगी। 
बाकी ये तो मुझे पक्का पता है कि तुम बाज तो आने से रहे, बोलोगे और जेल जाओगे....जाओ भई जाओ.....हम न बोलेंगे, वरना क्या जाने किसकी भावना भड़क जाए, भावनाएं बहुत खतरनाक चीज होती हैं साहिब, भड़क जाएं तो बंदा सफा हो जाता है।

सुनिए, एक पर्सनल दरख्वास्त ये है कि ज़रा लाइक और सब्सक्राइब कर दीजिए अगर इससे आपकी भावनाओं को कोई नुक्सान ना हो रहा हो तो.....और यार लोग शेयर भी कर ही दो......ठीक है। फिर मिलता हूं
नमस्कार

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