नमस्कार, मैं कपिल एक बार फिर आपके सामने। देखिए ये लोग मान नहीं रहे हैं, बिल्कुल नहीं मान रहे हैं। अरे ऐसी भी क्या दादागिरी है भई। सरकार के प्रवक्ता लगातार टी वी चैनलों पर बता रहे हैं, चीख-चीख कर बता रहे हैं कि चुनाव आयोग पर ग़लत आरोप लगाए जा रहे हैं, वोटों में कोई गड़बड़ी नहीं है, और ये जो राहुल गांधी कर रहे हैं, वो सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वो हार गए हैं।
आप भी जानते है जो हार जाता है वही वोटिंग की गड़बड़ी का राग अलापता है, आपने कभी किसी भाजपा नेता को देखा है लोकतंत्र की गुहार लगाते हुए। क्योंकि भाजपा जीती है, इसलिए वो नहीं चिल्ला रही है, बाकी जो हार गए हैं, वो चिल्ला रहे हैं।
योगेन्द्र यादव ने एस आई आर वाले मामले में दो लोगों को ले जाकर कोर्ट में ही खड़ा कर दिया, कि देखो माई-बाप ये लोग जो असल में जिंदा हैं, उन्हें एस आई आर में मृत घोषित कर दिया गया है। दोस्त मेरे, ये भारत है, यहां इंसान नहीं माना जाता, कागज़ माना जाता है, अरे भई जब एस आई आर में उन्हें मृत माना गया है, तो फिर हम उनकी बात का यकीन क्यों करेंगे। माई लॉर्ड ये लोग जो कह रहे हैं कि ये जिंदा हैं, क्या सबूत है इसका कि ये जिंदा हैं, क्योंकि चुनाव आयोग की एस आई आर तो कह रही है कि ये मर चुके हैं। ऐसे तो कल को कोई भी कोर्ट में आके कहने लगेगा कि वो जिंदा है जबकि सरकारी कागज़ों में वो मरा हुआ होगा।
इस बीच आप गौर कीजिएगा कि राहुल गांधी ने कसम अभी तक नहीं खाई है। खाओ मां कसम, फिर कहो कि तुम जो कह रहे हो, या आरोप लगा रहे हो, वो सही हैं। मैं बताउं ये जो राहुल गांधी ने वोटर लिस्ट दिखाई है वो इलैक्शन कमीशन की है ही नहीं, ये इन्होने खुद ही बना ली है और फिर उसे लोगों का दिखा दिया है। और इसीलिए मजबूरन के चु आ को अपनी साइट से वोटर लिस्ट ही हटानी पड़ी है। ना रहेगी साइट पर लिस्ट ना होगी उसकी जांच और ना लगेगा आरोप। अब कल्लो जो कन्ना ए।
वाराणसी में जब मादी ने चुनाव लड़ा था तो जितने लोगों ने वोट डाले उससे ज्यादा वोट निकले। इसमें ऐसी क्या दिक्कत है भाई, वोट कम होते तो कोई मामला बनता भी, वोट ज्यादा होने से क्या प्रॉब्लम है जी। राहुल कह रहे हैं कि वोट कटे हैं, ये सज्जन बोल रहे हैं कि वोट बढ़ गए हैं। बताइए, किस की बात मानें?
और भैये सवाल ये है ही नहीं कि केचुआ ने अपनी वेबसाइट पर वोटर लिस्ट लगाई या नहीं, आप मुझे यूं बताइए कि कौन सा कानून कहता है कि केचुआ को वोटर लिस्ट किस फॉर्मेट में साइट पर लगानी है? बताइए, केचुआ कानून के हिसाब से काम करे या फिर तुम्हारी जानकारी के लिए काम करे। केचुआ का काम चुनाव करवाना है, किसे वोट देने का अधिकार है, किसे नहीं, ये केचुआ तय करेगा। तुम कौन होते हो ये कहने वाले कि हमारा नाम कट गया, नहीं हो तुम अलिजिबल, नहीं देने देंगे तुम्हे वोट। कल्लो क्या कल्लोगे। अबे जाओ, लेकर आ गए आधार, ये आधार पासपोर्ट बनाने के काम आएगा, वोट डालने के काम नहीं आएगा। अब से वोट के दिन जब जाओगे तो जमीन के कागज़ या फिर दादा का जन्म प्रमाण पत्र लेकर जाना होगा, वरना वोट नहीं दे पाओगे तुम। कल्लो क्या कल्लोगे।
मेरे हिसाब से तो सुधीजन, ग़रीब आदमी को वोट का अधिकार देना ही नहीं चाहिए। बढ़िया ये रहे कि जिन लोगों की वजह से ये देश दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकॉनामी बना है, उन्हें ही सरकार चुनने का अधिकार होना चाहिए।
देखिए मेरा सीधा सादा हिसाब है, ग़रीबों को अक्सर पता नहीं होता कि उनकी भलाई किसमें है। अक्सर सरकार को पुलिस लगानी पड़ती है ये समझाने के लिए कि जनता की भलाई किसमें है। कृषि कानूनों के वक्त क्या हुआ था, सरकार ने किसानों की भलाई के लिए तीन कानून बनाए, उन्हें बकायदा बिना बहस के ध्वनि मत से संसद में पास करवा दिया था। लेकिन इन किसानों को समझ ही नहीं आया कि ये बिल उनके फायदे के लिए हैं। उतर गए धरना प्रदर्शन करने। अब बताइए, इत्ती पुलिस लगानी पड़ी, इत्ती गोलियां, लाठियां, मुकद्में इन लोगों पर लगाने पड़े, लगभग 700 किसानों को मार देना पड़ा, लेकिन इन्हें समझ नहीं आया कि सरकार इनकी भलाई करने की सोच रही है। आखिर में सरकार को दया आ गई, कि अब इससे ज्यादा लोगों को नहीं मारना चाहिए, क्योंकि महामानव को तो कुत्ते का पिल्ला भी अगर मर जाए तो दुख होता है, तो 700 किसानों के मरने का दुख तो होना ही था। इसलिए सरकार ने वो बिल जो किसानों की भलाई के लिए बनाए थे वापस ले लिए।
अब जब केचुआ, इसी जनता की भलाई के लिए बिहार में एस आई आर करवा रहा है, तो भी लोगों को दिक्कत हो रही है। सुना इसके लिए भी लोगों पर एफ आई आर हो रही है, बताइए, इन नालायकों को ये समझ में नहीं आता कि सरकार इनकी भलाई के लिए ही एस आई आर करवा रही है। माफ कीजिएगा, ग़़लती हो गई, मेरा मतलब था केचुआ इनकी भलाई के लिए एस आई आर करवा रहा है। अब एस आई आर से इन लोगों का भला होगा, ये लोगों को समझ नहीं आ रहा है, इन्हें लगता कि वोट देना जनता का अधिकार है, अरे भोले लोगों, यानी भारत की जनता, कभी था वोट देना तुम्हारा अधिकार, अब केचुआ जिसे चाहेगा, सिर्फ वही चुनाव लड़ेगा, सिर्फ वही वोट देगा जिसे चुनाव आयोग वोट देने देगा। और अभी तो बिहार में हो रहा है, अब सारे देश में होगा। तुम लोग जाते रहो, सुप्रीम कोर्ट, उसने तो साफ कह दिया कि भैये निर्देश ले लो, सुझाव ले लो, बाकी चाहे जितने सबूत ले आओ, होगा वही जो केचुआ चाहेगा।
खैर, मैं अपनी बात पर आता हूं। मेरा कहना ये है कि, एक तो इस देश से आम चुनाव बंद करवा देना चाहिए। बड़ा पैसा खर्च होता है, और इन लोग को सेट करने के चक्कर में बड़ी घपलेबाजी होती है। उपर से ये लोग उनको नहीं चुनते, जिन्हें केचुआ चाहता है, इसलिए केचुआ को तरह-तरह के काम करने पड़ते हैं, जैसे एस आई आर करवानी पड़ती है, एक ही घर में 800 लोगों का रजिस्टेशन करना पड़ता है, कहीं वोट काटने पड़ते हैं, कहीं वोट जोड़ने पड़ते हैं बल्कि आसान ये होगा कि एक कॉकस बनाया जाए, जिसमें देश के सबसे बड़े उद्योगपति हों, ब्यूरोक्रेट हों, जज हों, ये सब लोग हों। ये सब लोग बैठें और फिर सरकार बनाने की इच्छुक पार्टियां अपना आवेदन इन लोगों के सामने रखें, और फिर ये सब उद्योगपति, ब्यूरोक्रेट, जज आदि मिलकर सरकार बना दें। चुनाव आयोग इस बैठक का आयोजन करे, और इस दिन खाने-पीने का, पीने पर विशेष जोर के साथ इंतजाम करे। खूब उत्सव का माहौल हो, और इस तरह मतदान को महोत्सव बनाया जाए। उसके बाद कुछ परेड-वरेड आदि भी हो सकता है। अरे यार ये लोग समझदार लोग हैं, ये जानते हैं कि जनता की भलाई किसमें है। जनता नहीं जानती कि उसकी भलाई किसमें है। देखिए जनता की भलाई के लिए, जिसे आप देश की भलाई भी कह सकते हैं, कुछ बलिदान तो देना ही होता है। इस बार ये बलिदान लोकतंत्र का हो, तो भी क्या हुज्जत है जनाब। लोकतंत्र का क्या है, कल नहीं था, आज है, कल नहीं होगा। असली मामला राजगद्दी का है, सत्ता का है। कुछ लोग राजा बनें, कुछ लोग जज बनें, कुछ लोग आयोगों के अध्यक्ष बनें। जनता को तो वही रहना है जो वो थी, कल भी ग़रीब मजदूर किसान थी, आज भी ग़रीब मजदूर किसान है, और कल भी ग़रीब मजदूर किसान ही रहेगी।
और सबसे बड़ी बात ये है कि वोट देना एक प्रिविलेज है, तो पहले जनता ये साबित करे कि वो इस प्रिविलेज के लायक है, फिर उसे वोट करने मिलेगा। मैं क्या कहता हूं, खुद ही से केचुआ को लिख कर भेज दो कि भैया आप लोग मेरा वोट काटें इससे पहले मैं ही वोट करने का अपना अधिकार आपको सौंपता हूं, वैसे भी मेरे वोट करने से तो सरकार बनने से रही, सरकार तो उसी की बनेगी जिसकी आप चाहेंगे, तो इसलिए आप ही मेरा वोट भी डाल लीजिए, कम से कम चोरी जैसा पाप करने से तो बचेंगे।
और आखिरी बार कह रहा हूं, ये वोट चोरी, वोट फ्रॉड वाले नारों से सावधान रहिए, और मंदिर - मस्जिद में अपना ध्यान लगाइए, देश विश्वगुरु बस बनने ही वाला है। बस एक बार देश विश्वगुरु बन जाए, फिर देखना, गर्दा उड़ेगा, पूरी दुनिया में गरदा।
अरे हां, ग़ालिब का लोकतंत्र की डिमाइस पर यानी फौत पर एक शेर है, गजब शेर है, गौर से सुनिएगा, और समझ ना आए तो केचुआ को लेटर देकर मतलब पूछ लीजिएगा। तो शेर कुछ यूंह ै
ये वोट की जो तूने बात छेड़ी ग़ालिब
एक तीर सा इस दिल को लगा के हाय
हम करेंगे अपने दिल को लगा जो अच्छा
लोकतंत्र का क्या है सुसरा, मरता है तो मर जाए
बाकी वोट के अधिकार को छोड़िए, अपनी खैर मनाइए। चुनाव आ रहा है, जीतना उसी को है जिसे केचुआ चाहेगा। मेरी मानिए इस बार छुट्टी में ज़रा बाहर घूम आइए। वोट तो पड़ ही जाना है।
बाकी लोकतंत्र को याद कीजिए, जब तक रहा, अच्छा ही रहा बेचारा।
नमस्कार।