कामयाबी
एक जमाना था जब लंबी दूरी की यात्राओं में, ट्रेन हो या बस, आमतौर पर आपको अपने हाथ के दोनो पंजे आपस में घिसते हुए लोग दिख जाते थे। मेरे जैसे अज्ञानी लोग आश्चर्य से दोनो पंजों के नाखून घिसते लोगों को देखते थे, एक बार तो पूरी ट्रेन के लोग पंजे घिसते हुए दिखे थे। कुछ साथियों ने बताया कि ये सिर के बाल जमाए रखने का बाबा जी, यानी रामदेव का बताया हुआ नुस्खा है। हम सभी इस नुस्खे की सार्थकता पर संदेह करते हुए हंसते थे, और इसका मजाक उड़ाते थे। अब आपको इस तरह के लोग कम दिखेंगे, यानी बहुत ही कम, कभी ही कोई इक्का-दुक्का इंसान आपको इस तरह पंजों के नाखून आपस में घिसता हुआ मिलेगा। क्यों?
वजह है कामयाबी। जी हां, दरअसल मैने ऐसा कभी नहीं किया है, मेरे साथ मामला कुछ और ही है, मेरे सिर के बाल काफी घने और मुलायम हैं, इसलिए मुझे जरूरत नहीं पड़ी, वैसे भी रामदेव पर मुझे कभी विश्वास नहीं रहा, जो बाद में सही साबित हुआ, और पंजों के नाखून घिसना मुझे बहुत ही वाहियात लगता है। लेकिन करने वालों ने मुझे बताया था कि इसका फायदा बहुत है, यानी, यानी बाल उग आते हैं। अब अगर ये तरकीब कामयाब है, तो कहां तो पूरी दुनिया को अपने हाथों के पंजे के नाखून घिसते हुए दिखना चाहिए था, और कहां अब ऐसा करता कोई दिखाई नहीं पड़ता। बल्कि जो लोग पूरा-पूरा दिन पंजों के नाखूनों को घिसते रहते थे वो अब पूछने पर नज़रें चुराने लगते हैं।
दरअसल पंजे घिसने का नज़ारा बंद होने के पीछे का कारण, इस नुस्खे की कामयाबी है। समस्या बस ये है कि हाथ के पंजे घिसने से शरीर के किस हिस्से में बाल आ जाएंगे या बढ़ जाएंगे इस पर ना बाबा का कंट्रोल होता है, ना पंजे घिसने वाले का। नतीजा ये कि लोग कांख, पेट, पीठ, और ना जाने कहां-कहां के बाल काट-काट कर परेशान हैं, समस्या सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती, बाल उगने या बढ़ने की ये प्रक्रिया जो पंजे के नाखून घिसने से शुरु होती है तो फिर नाखून ना घिसने से खत्म नहीं होती, बल्कि बाल लगातार बढ़ते रहते हैं, और लोग काट-काट के परेशान। सुना है बाबाजी इस मुद्दे पर परेशान हैं, और इसका समाधान ढूंढने में लगे हैं। इसलिए आजकल उन्हे अपने हाथ कं पंजों को बदन के कई हिस्सों पर घिसते हुए देखा जा सकता है, जिसमें पिछवाड़ा प्रमुख है। उम्मीद है कि जल्दी ही, बाल बढ़ाने का नुस्खा कामयाब हो जाएगा और बाबाजी के चेले अपने हाथों के पंजे को शरीर के बाकी हिस्सों पर घिसते हुए नज़र आएंगे।
इधर काफी दिनों से आर्ट ऑफ लिव इन, मेरा मतलब लिविंग के प्रबंधक, प्रचारक, बाबा श्री श्री रवीशंकर दिखाई नहीं दे रहे। जहां उन्हे सबसे ज्यादा सक्रिय होना चाहिए था, वहीं से नदारद हैं। कहां तो आधुनिक इंसान को जीने के गुर सिखाते थे, कहां खुद गायब हो गए। ना मीडिया में दिखाई दे रहे हैं, ना टीवी में आर्ट ऑफ राजनीति के गुर बता रहे हैं, ना कहीं मीडिएशन कर रहे हैं, और ना ही अखबारों, टीवी में दिखाई पड़ रहे हैं। असल में उनके गायब होने के पीछे का राज़ भी कामयाबी ही है। आर्ट और लिविंग यानी जीने की कला की कामयाबी। असल में रवीशंकर को पहले से ही पता था कि अच्छे लिविंग के लिए किस चीज़ की जरूरत होती है। पैसा, शान-ओ-शौकत, ताकत, सेवक, हर शहर में घर, घूमने के लिए गाड़ियां, हवाई जहाज़, हजारों चेले-चेलियां.....आदि आदि। अब जब आपको कुछ ना आता हो, आप आलसी और अकर्मण्य हों, तब भी ऐश-ओ-आराम का चस्का हो, तो सबसे बेहतर काम है, बाबा बन जाओ। शुरु में थोड़ी इन्वेस्टमेंट होती है, मीडिया मैनेजमेंट ठीक-ठाक हो जाए, तो पहले के दो-तीन बैच ऑफ चेला-चेली बन जाते हैं, उसके बाद तो फिर ऐश ही ऐश है।
तो इस तरह मिलती है सफलता, आर्ट ऑफ लिविंग यानी जीने की कला के प्रचारक, ने जीने की सभी सुविधाएं हासिल कीं, और अब इसी कला का प्रचार भी कर रहे हैं, तो जीने की कला यानी बिना कुछ किए ऐश करना। तो वो इसमें सफल रहे और अब ऐश काट रहे हैं। बीच मंें सुना था कि राजनीति में उतरने की सोच रहे हैं, लेकिन राजनीति थोड़ा टेड़ी चीज़ है, उसमें काम भी करना पड़ता है, जैसे अब केजरीवाल को करना पड़ रहा है। तो आलसी लोगों को, आंय, बांय, शांय बकने वाले लोगों को राजनीति करना भारी पड़ सकता है, अब चेला चेलिया ंतो आप कुछ भी बोलिए, सहमति में सिर हिलाते हैं, लेकिन राजनीति में आलोचना भी होती है। शायद इसलिए श्री श्री ने राजनीति के अखाड़े में अपनी इतिश्री कर ली और अब आर्ट ऑफ लिविंग की सफलता से कमाई हुई लिविंग भोग रहे हैं।
खैर बाबाओं में बाबा, आसाराम की सफलता के किस्से तो अब किस्से कहानियों की बातें बन चुके हैं। क्या ना किया बाबा ने, भोगा और भोगा और भोगा, और भागने की बारी आई तो पकड़ा गया। लेकिन उसकी सफलता की हद ये है कि अपने पूरे जीवन, जोबन काल में, और बुढ़ापे में भी, उसने जितनी महिलाओं का खाना खराब किया उसमें से बहुत ही कम सामने आईं। इसे कहते हैं, ऐश की ऐश, रखने को कैश। अब बाबा जेल में हैं, लेकिन इससे उनकी सफलता को कम करके नहीं आंका जा सकता। वो जब तक था, सफल था,



Bhai, para teen sabse kamya hai vyagya ke dristikon se. Baki sab vyarth hai. Mamla ye hai ki vyajktigat duragrah, chahe wo paisa ho ya baba, vyangya ke liye dushman hai.
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