चुनाव आ गए हैं भाई! हमें कैसे पता लगा, हमारे जैसे लोकतंत्र में रहने वाले लोगों को चुनाव के आने का पता कुकरहांव से चलता है। जैसे ही चुनाव आते हैं बहुत हाउं-हाउं मचती है, झगड़े होते हैं, लोग मारे जाते हैं, कारों, जीपों के काफिले और कहीं-कहीं तो रथों की दौड़ होने लगती है। जब हम बच्चे थे तो चुनावी रैलियों में से बिल्ले और झण्डे लेने के लिए दौड़ते थे, इधर बिल्ले और झण्डे नहीं मिलते लेकिन बाकी काफी कुछ मिलने लगा है। मिक्सी, टीवी, लैपटॉप, साइकिल.....और भी ना जाने क्या-क्या। मतदाता लोग काफी खुश हैं, जो नेता सुसरे थोथे आश्वासनों की तख्ती की बदौलत ”अमूल्य या बहुमूल्य” वोट ले लेते थे और फिर ठेंगा दिखा देते थे, वो अब कम से कम कुछ तो कीमत दे ही रहे हैं, इस दो कौड़ी के वोट की। यूं भी अगर आप ना दे के आएंगे तो आपके नाम पर कोई और डाल देगा, अब ई वी एम, वोटर का फेस रिकॉग्नीशन तो नहीं कर सकती ना, तो एक आदमी एक से ज्यादा बार वोट डाल ही सकता है, या किसी और का वोट कोई और डाल सकता है।
लेकिन वो मतदाता कोई और होंगे जिन्हे इस चुनाव से फायदा हो रहा है। हम दिल्लीवाले बहुत बिचारे से लोग हैं, वैसे देश के हर राज्य के लोग समझते हैं कि दिल्ली में रहने वाले मजे कर रहे हैं, लेकिन भईया सच तो ये है कि मजे तुम ही लोग कर रहे हो, हमें तो चुनाव के मौसम में भी धमकियां मिल रही हैं। कैसे पूछ रहे हैं, लीजिए, इधर चुनाव का मौसम शुरु हुआ, उधर सड़क पर बड़े-बड़े होर्डिंग लग गए, और रेडुआ में चीख-चीख कर धमकियां जारी करना शुरु कर दिया गया है। एक आदमी चीखता है, ”रुकेगी नहीं मेरी दिल्ली......” तो भाई दिल्ली तो उसकी हुई, हमारी क्या हुई, हम ठहरे गरीब-गुरबा लोग, जीवन भर बारिश में सड़क पर भीगते खड़े रहे इस इंतजार में कि नेता जी, मंत्री लोग या विदेशी मेहमानों का काफिले निकले तो आगे निकलें, घर पहुंचे ज़रा बदन ही पोंछ लें। लेकिन ये जो गाना गाया जा रहा है, चीख-चीख कर रेडुआ पर, कि दिल्ली नहीं रुकेगी, वो धमकी है, साफ धमकी, कि तुम कुछ भी कर लो, जैसी तुम्हारी ऐसी की तैसी अब तक हो रही है, वैसी ही आगे भी होगी, अब कर लो जो करना हो। जान रहे हैं, मैट्रो बनी, किराया इत्ता कि आम आदमी तो देख के डर जाए, उपर से मैट्रो में गाना, खाना, हंसना, रोना, यानी सांस लेने के अलावा हर काम की मनाही है, और जगह-जगह धमकी भरी सूचनाएं चिपकी हैं, ये किया तो 100 रु जुर्माना, ये किया तो 200 रु। बसों की हालत ये है कि जिन बसों को लो फ्लोर और लो पॉल्यूशन कहा गया था, एक तो उनका किराया मजदूर की दिहाड़ी जितना है, उपर से तुर्रा ये कि जब शिकायत की तो कहा गया कि, ”बड़े बेमुरव्वत हैं, सुसरे, अगर इतना बूता नहीं है तो ना रहो दिल्ली में, चले जाओ वापिस.....” अब बताओ भैया, ये धमकी नही ंतो क्या है, बल्कि सच कहें, कॉमनवेल्थ के समय तो सच में उठा-उठा कर गाड़ियों में भरा और दिल्ली से बाहर फेंक आए थे, बिजली-पानी इतना महंगा है कि बिजली के साथ हमने चेतावनी वाला अलार्म लगवा लिया है, तो एक घंटे के बाद ही सूचना देने लगता है कि, ”अब बिजली बंद कर लो बेटा, वरना बिजली वाले आकर बिजली काट जाएंगे।” ये बात और है कि बिजली कंपनियां खुद अपनी मर्जी से दिन-दिन भर बिजली काटे रहती हैं। ये सिर्फ आपको ही लगता है कि आपके ही इलाके में बिजली जाती है, मेरा यकीन मानिए, यहां राजधानी में ही 24 घंटे बिजली नहीं आती, आपके राज्य में कैसे आ जाएगी। पानी का ये हाल है कि या तो आता नहीं है और आता है तो इतना गंदा कि खुद नल शर्मा जाता है।
हमें पहले दिया था बी पी एल कार्ड, कहा गया कि 2 रु किलो चावल मिलेंगे, अब कहने लगे कि पैसे ले लो, चावल बाजार से खरीद लो। ल्यो, 2 रुपये किलो चावल खुले बाजार में क्या तुम्हारा मौसा देगा, फिर धमकी, या तो पैसा ले लो, नहीं तो बी पी एल से भी हाथ धो बैठोगे। तो भैया लोगों, यहां तो धमकियों के सहारे जी रहे हैं।
हमने सोचा था कि चुनाव के मौसम में हमे दुलराया जाएगा, हमे कहा जाएगा कि ये देंगे, वो देंगे, ये कर देंगे, वो कर देंगे, या हो सकता है दे ही दें, यानी कुछ थोड़ा बहुत दे दें, पर दीदादिलेरी की ये हालत है कि साफ-साफ धमकियां मिल रही हैं, ”रुकेगी नहीं मेरी दिल्ली....” माने कर लो जो करना है, बिजली का बिल बढ़ता ही जाएगा, पुलिस वाले ऐसी ही मनमानी करेंगे, सड़कों पर पहले रात को बलात्कार की घटनाएं होती थीं, अब दिन-दहाड़े हुआ करेंगी, हे रे बाबा.....अब हमारा क्या होगा। माथे पर पसीना आ रहा है, रातों को नींद नहीं आती, थोड़ी आंख लगती है तो भयानक सपना आता है कि शीला दीक्षित खुद अपनी निगरानी में गरीब-गुरबा को उठा-उठा कर दिल्ली के बार्डर से बाहर फिंकवा रही है, और अमीर देशी-विदेशियों को गोद मंे उठा कर दुलार रही है। हमारा क्या होगा?
इधर एक और पार्टी आ गई है, नई है, लेकिन धमकियां माशाअल्लाह कमाल की हैं, कह रहे हैं, इस बार दिल्ली में झाडू लगेगी, और अंदाज बिल्कुल पुराने बाजार के चौराहे पर मजमा जमा कर मर्दाना ताकत का हलवा बेचने वाला है, ”ये देखो भाई सा’ब, बदन रगड़ लोहा हो जाएगा, मार धक्का पसीना निकलेगा लेकिन......नहीं निकलेगा। जिसने खाया वो फिर लेने आता है, तुमको चइए तो बोलो, 175 का शीशी, 150 में, लो भाई सा’ब, हां भाई सा’ब, अभी आता हूं भाई सा’ब....” तो इनका अंदाज ऐसा ही है, जैसे कह रहे हों, ”सैंकड़ो बार दूसरों से बेवकूफ बने, एक बार हमसे बेवकूफ बन कर देखिए, हमारे खेमे में आ जाइए, हमसे बेवकूफ बनने में अलग ही मजा है साहब।” रामलीला मैदान में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की धमकी दे रहे हैं, गांव बसा नहीं, लुटेरे पहले आ गए। क्या होगा उस विशेष सत्र में, लोकपाल बिल पास होगा, कैसे होगा, आप कह देंगे कि, ”हो जा सिम-सिम” और हो जाएगा।
चलिए मान लीजिए हो गया, फिर क्या होगा, फिर आप क्या करेंगे, दिल्ली विधान सभा में बैठकर मंजीरे और खड़ताल बजा कर कीर्तन करेंगे, क्योंकि बाकी तो आप कुछ ऐसा खास नहीं कर रहे हैं। तो अब धमकी यही नहीं है कि ये उस विशेष लोकपाल को बिना किसी जांच-पड़ताल के पास कर देंगे, बल्कि ये भी है, ये बेवकूफ जो ये समझे बैठे हैं कि दिल्ली की महंगाई, दिल्ली विधानसभा के करने से या लोकपाल बिल पास हो जाने से, कम हो जाएगी, ये दिल्ली के राजे बन जाएंगे, और तब दिल्ली वालों का कौन रखवाला होगा। ये दिल्ली की जनता के स्वयंभू हिताभिलाषी, वो बेवकूफ दोस्त हैं, जिनके बारे में किसी ज्ञानी ने सही कहा है कि, ”बेवकूफ दोस्त से, समझदार दुश्मन भला” कम से कम ये तो अंदाजा रहता है कि आगे क्या आने वाला है। इनके बारे में तो यही ना पता कि ये लोग अपने उंट को किस करवट बैठाएंगे, क्योंकि इन्हे खुद नहीं पता कि उंट किस करवट बैठेगा। तो यही सोच-सोच कर धमनियों में रक्त प्रवाह की रफ्तार तेज़ हो जाती है कि अगर ये किसी तरह जीत गए तो आम दिल्ली वासी का क्या होगा।
तीसरी पार्टी तो भैया धमकियों से ही जन्मी, पली, बड़ी हुई है तो अब अगर वो धमकियां दे रही है तो उसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। ये धमकियां ढके-छुपे ढंग से नहीं दे रहे, खुलेआम दे रहे हैं, अपने कारनामों के जरिए, जहां चले वहां बात, नहीं तो लात, घूंसे, डंडा, दंगा, मार-पिटाई, लड़कियां घर में बैठें, चूल्हा-चौका करें, यूं लगे कि दिल्ली की मॉरल पुलिस होगी, बजरंग दल की टुकड़ियां और जज की कुर्सी पर होंगे खाप पंचायत के स्वयंभू पंच, कर लो बेटा संविधान का तीया-पांचा। गोयल ना हो हर्षवर्धन हों, क्या फर्क पड़ता है, कर्मन तो सबके वही हैं, बल्कि हमें तो और भी डर है। बात ये है कि दिल्ली की यूं अराजनीतिक जनता, महंगाई से और अव्यवस्था से परेशान होकर वोट करती है, जैसे प्याज की महंगाई, बिजली-पानी की महंगाई, राशन की महंगाई, पैट्रोल की महंगाई, सड़कों का बुरा हाल, बिजली कटौती का बुरा हाल, सालों से खुदा हुआ सी पी, चौराहे पर रिश्वत मांगते ट्रैफिक पुलिस के थुल-थुल जवान......आदि, आदि। अब प्याज की महंगाई को भाजपा कोई मुद्दा नहीं बना पाई, बिजली-पानी की महंगाई का मुद्दा ”आप” ने पहले ही झटक लिया, तो भाजपा के पास कोई मुद्दा नहीं बचा, कि वो अपने वोटों को एकजुट कर सके, राजनीतिक समीकरण में, और इतिहास से सबक लेते हुए, इसका सीधा मतलब ये है कि उन्हे दंगों की, अव्यवस्था की जरूरत है, आप सबको बेशक कोई मुगालता हो, मुझे पूरा यकीन है कि इस बीच कुछ ना कुछ जरूर होगा। ये धमकी है, समझे, घमकी है ये, जो हमारे सिरों पर लटक रही है, कौन मरेगा, कौन बचेगा, किसका घर जलेगा......मेरी तो सोच कर ही सांस अटक रही है, हाय रे अब क्या होगा।
एक चुनाव का ही साल होता था, जिसमें थोड़ा दुलराया हुआ महसूस करते थे, हम लोग, बाकी देश की जनता से थोड़ा कम ही सही, जहां बाकी जनता को भौतिक सामान मिलता था, हमने चमचमाते क्लबों, और बड़े-बड़े मॉलों पर वो 2 से 3 हजार वाली चीजों का मोह छोड़ दिया। लेकिन अब क्या करें, अब तो आश्वासनों की जगह भी खुलेआम या ढंके-छुपे धमकियां मिल रही हैं। क्या चुनाव आयोग इन धमकियों का कुछ नहीं कर सकता। ना दुलराएं, अगर एतराज़ है तो, कम से कम, धमकाएं तो नहीं, प्लीज़, प्लीज़ हम दिल्ली वालों की मदद की गुहार सुनिए, और चुनाव के इस मौसम में धमकियों से हमें निजात दिलवाइए।

Behatareen vivaran hai dilli ki rajniti ka!
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