शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

बधाई हो बधाई




लो, तुम लोगों को कतई चैन नहीं है। मोदी ने केजरीवाल को बधाई क्या दे दी, तुम्हे तो मौका मिल गया। अरे भई चुनाव में कोई जीत जाता है तो अचछे राजनीतिज्ञ यही करते हैं, एक-दूसरे को बधाई देते हैं। मोदी जीत जाता ना, तो केजरीवाल नहीं देता बधाई, पक्की बात है, ये तो मोदी ही है जो इस तरह के सामान्य शिष्टाचार निभाते हैं। अब तुम कहोगे कि केजरीवाल को 26 जनवरी की परेड में क्यों नहीं बुलाया, अरे यार उसमें ओबामा आ रहा था, अब ओबामा जैसे महान राष्ट्रपति का, ”जिसे काम शुरु करने से पहले ईनाम मिल जाता है ”नोबेल पीस प्राइस””, केजरीवाल जैसे इंसान से मिलना, तो शिष्टाचार नहीं होता ना। फिर मोदी की मर्जी, जो राजा होता है परेड उसकी होती है, अपनी परेड में मोदी केजरीवाल को बुलाए या ना बुलाए, तुमसे मतलब, इतना पेट में दर्द है ना तो अपने बर्थडे पर बुला लेना, हां नी तो। 
ये गजब कही तुमने कि 26 जनवरी देश का उत्सव है, अबे कभी जनता का उत्सव राजपथ पर मनता है क्या, जनता का उत्सव जनपथ पर मनेगा, राजा का उत्सव राजपथ पर मनेगा। इस उत्सव में राजा होता है, प्रजा होती है, राजा सलामी लेता-देता है, और खुद की ताकत-वाकत दिखाता है, जो मोदी ने दिखा दी, अब इसमें केजरीवाल कर भी क्या लेता भला, हैं। तो इसलिए मोदी ने नहीं बुलाया केजरीवाल को। 
इसके बाद आते हैं, दिल्ली के चुनाव। अब दिल्ली के चुनाव मोदी और केजरीवाल में सीधी लड़ाई थी, किरण बेदी तो ध्यान बटाने वाला आइटम थीं, जैसे सर्कस में सीरियस आइटम के बीच में कभी-कभी जोकर को ले आते हैं ना, वैसे, वरना लड़ाई तो मोदी और केजरीवाल की थी, अब केजरीवाल जो है ना, उसे दिल्ली की जनता ने चुना लिया, किया तो बेकार ही काम, लेकिन अब जो हो गया वो हो गया, तो मोदी ने शिष्टाचारवश केजरीवाल को बधाई दे दी, और तुम्हे इसमें भी मोदी को भला-बुरा कहने का मौका मिल गया। कई जगह तो ये चुटकी ली तुम नालायकों ने कि, मोदी ने तो केजरीवाल को नक्सली कहा था, अराजक कहा था, अब उसके साथ चाय कैसे पिएंगे। भाई लोगों देशप्रेम की, राष्ट्रवाद की तुम्हारी परिभाषा में खोट है, मोदी तो इस मामले में बिल्कुल साफ हैं। जो ये मान ले कि आर एस एस, एक महान राष्ट्रवादी देशप्रेमी संगठन है और मोदी उसके कर्णधार हैं, महान नेता हैं, उनका नेतृत्व महान हैं, वो होते हैं देशभक्त, कर्मठ और जाने क्या-क्या, समझे, उदाहरण के लिए, किरण बेदी, शाजिया इल्मी आदि जैसे ही मोदी को महान जननायक के रूप में देखने लगीं, वो देशभक्त, कर्मठ आदि-आदि हो गईं, बाकी जो अब तक ऐसा नहीं मानते वो सभी देशद्रोही हैं, जैसे दिल्ली की जनता, जिसने मोदी को महान नायक के तौर पर नहीं माना, वो तो मोदी का मूड ठीक था वरना, दिल्ली की सारी जनता का तो.......बस मैं आपको बता नहीं सकता। इसी दरियादिली के मूड में मोदी ने केजरीवाल को बधाई भी दे दी और उसे चाय पर बुला लिया है। 
कुछ लोगों को ये भी लगता था कि चुनाव हारने के बाद ये कहा जाएगा कि ये मोदी की हार नहीं है, मेरे दोस्तों, साफ देख लो, मोदी ने केजरीवाल को बधाई देकर साफ कर दिया कि ये लड़ाई वही लड़ रहे थे, किरण बेदी ने तो केजरीवाल को कोई बधाई ना दी, बल्कि ये और कह दिया कि ये उनकी हार नहंी है, पार्टी की हार है, बिल्कुल दुरुस्त कहा, राजनीति विज्ञान की विद्यार्थी से ऐसे ही जवाब की उम्मीद थी। वैसे अब तो मुझे इसमें कुछ डाउट लगता है कि वो कभी राजनीति विज्ञान पढ़ी भी हैं कि नहीं, लेकिन खैर.....तो मामला ये है कि मोदी ने अपने बयान से, अपनी बधाई से मामला साफ कर दिया है, दिल्ली की हार मोदी की हार है, वैसे भी युद्ध सेना ही हारती है, लेकिन नाम तो सेनापति का होता है, तो चाहे इसे किरणबेदी की हार मानिए, चाहिए मोदी की, लेकिन हार ये इन दो महान, अभिमान, कर्मठ....आदि आदि नेताओं की ही है। 
दिल्ली चुनाव के समय मोदी की प्रशंसा में जिस तरह की बातें किरण बेदी कर रही थीं, उन्हे सुनकर सच में ऐसा लगता था कि अगर भाजपा दिल्ली चुनाव जीत गई तो स्वर्ग से देवता मोदी पर फूल बरसाएंगे और जहां भी मोदी खड़े हो जाएंगे वहीं, धरती फाड़ कर पानी नकिलेगा ताकि मोदी के चरण धुल जाएं। अफसोस कि ऐसा नहीं हुआ, बाकी सबकुछ अलबत्ता हुआ। किरण बेदी की छिछालेदार हुई, मोदी की छिछालेदार हुई, अब तक हो रही है। अब गुजरात में मंदिर बना है तो मोदी को कुछ थोड़ा बहुत ढ़ाढ़स बंधा है, वरना उनका चेहरा बिल्कुल ही बदल सा गया था। चुनाव के समय किरण बेदी दिल्ली की रैलियों में बिल्कुल गब्बर सिंह के स्टाइल में भाषण देती फिर रहीं थीं, अरे ओ दिल्ली के वासियों, अगर दिल्ली को बचाना है तो मोदी को वोट देना, वरना.......खैर दिल्ली वाले उनकी धमकियों में नहीं आए, ऐसा होना मुश्किल ही था, शोले तो दिल्ली वालों ने भी देखी है मैडम जी......
किरण बेदी को अफसोस इस बात का नहीं है कि वो चुनाव हार गईं, बल्कि इस बात का है कि वो मुख्यमंत्री नहीं बन पाईं, अगर आज भी भाजपा कोई छल प्रपंच करके उन्हे सी एम बना दे, तो वो भाजपा के अंर्तमंथन वाली बात वापस ले लेंगी और अपनी हार के बारे में कुछ नहीं बोलेंगी। ये चरित्र की बात होती है, चुनाव तो वो आ आ पा से भी लड़ सकती थीं, बल्कि हमने तो सुना कि केजरीवाल ने ऐसा ऑफर भी दिया था, लेकिन वहां उनके मुख्यमंत्री के चांस कम थे। 
पंजाब के एक मशहूर गायक, शायद मस्ताना का एक गीत है, सानूं लोकां दित्ती वधाई काका जम्म् प्या.......इस गाने में गायक बताता है कि काका का जन्म जो कि खुशी का मौका है उसकी बर्बादी का कारण बन गया है, लोग बधाइयां दे रहे हैं और उसका दिवाला निकल गया है। मोदी यानी विकास के पापा को विकास नाम का जो बच्चा हुआ, उसके जन्म ने मोदी को बर्बाद कर दिया, लेकिन बधाई तो बनती है। 
खैर जो भी हो, मोदी ने सही किया कि केजरीवाल को बधाई दे दी, हार की शर्म भी छुप गई, ”दांत दबा के मुस्कुराओ मत” और शिष्टाचार भी निभा लिया गया। एक तीर से दो शिकार, मोदी ऐसे ही महान नेता नहीं हैं। 


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