रविवार, 15 फ़रवरी 2015

बेदी का पिटारा या भानुमति का.....?





चुनाव मंे हारने के बाद अमूमन लोगों को झटका लगता है, सपने टूटते हैं। कुछ लोग अवसाद में चले जाते हैं, कुछ लोग सन्यास ले लेते हैं, कुछ लोग नाराज़ होते हैं, तो कुछ लोग......कुछ लोग बावले हो जाते हैं। इनमें बावले होने का खतरा उन लोगों को होता है, जो अतिआत्मविश्वास में खुद को चुनाव होने से पहले जीता हुआ मान लेते हैं। ये लोग वो होते हैं जो रात में सपना लेते हैं तो मान लेते हैं कि सपना सच हुआ कि हुआ, और अगर सपना सच नहीं होता तो उसमें उन्हे लोगों की साजिशें दिखाई देने लगती हैं। यूं साजिशें भी होती ही हैं, इसमें किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यहां तो हालत ये है कि लाखों-करोड़ों के घोटाले हो रहे हैं कि और किसी के माथे पर शिकन तक नहीं आता, न्यूज़ चैनल के वही रिपोर्टर जो घोटालों के स्टिंग में पकड़े जाते हैं, दूसरों से भ्रष्टाचार पर सवाल पूछते हैं। 
चुनाव के लिए टिकट मिलने से पहले ही उन्होने मान लिया था कि वो जीत गई हैं, टी वी पर उनके आसूं उनके हारने के पूर्वाभास की हताशा नहीं थे भई, वो वोट पड़ने से पहले ही अपनी जीत के प्रति उनके विश्वास का अतिभावनापूर्ण प्रदर्शन था। खैर.....इसके बाद तो अंबानी-अडानी के न्यूज़ चैनलों ने जैसे उनकी जीत सुनिश्चित मानते हुए दिल्ली वालों को किरण बेदी का चेहरा ऐसे दिखाया जैसे बाकी और कोई बचा ही ना हो टी वी में दिखाने के लिए.....उनके अधूरे जवाबों को ऐसे दिखाया गया जैसे वो दिल्ली की नहीं, बल्कि राजनीति की समस्याओं के शाश्वत समाधान हों, सुरक्षित सीट-सुरक्षित सीट का हल्ला मचाकर वोटरों को भरपूर भरमाया गया। इससे वोटरों पर कितना असर पड़ा ये तो नहीं पता, पर किरन बेदी ने सचमुच मान लिया कि उनकी जीत सुनिश्चित है। अब उसके बाद उन्होने सच में हद कर दी, वो टीवी पर इंटरव्यू भी ऐसे देने लगीं जैसे वो ना सिर्फ जीत चुकी हैं, बल्कि मुख्यमंत्री बन चुकी हैं। 
कृष्णा नगर में दौड़ लगाना, वोटर देने के बाद गाड़ी की छत पर चढ़ जाना और विजय का निशान बनाना, आखिर ये सब क्या था। फिर लगा उन्हे बड़ा झटका, कृष्णानगर की सीट, वो सीट जो दिल्ली में भा ज पा की सबसे सुरक्षित सीट कही जा रही थी, वहां से वो हार गईं, ओ हो हो......जहां से उनका जीतना लगभग तय था वहीं से वो हार गईं, उनका विजय अभियान शुरु होने से पहले ही खत्म हो गया। उफ....ये क्या हो गया....ये क्या हो गया....किरन बेदी हार गईं, जिसने इंदिरा गांधी की कार उठवा ली थी, मेरा मतलब पी एम के बेड़े की कार उठवा ली थी, मेरा मतलब कार का चालान कर दिया था, या चालान किसी और ने किया था, किरन बेदी ने सिर्फ......कुछ नहीं किया था.....पर क्रेडिट लेने में क्या जाता है। 
खैर उस किरन बेदी को लोगों ने वोट नहीं दिया......हार जाने से पहले किरन बेदी को सबकुछ अच्छा-अच्छा लग रहा था....सबकुछ.....गड़बड़ हुई किरन बेदी के हारने के बाद। किसने सोचा था कि वो हार जाएंगी, खुद किरन बेदी ने तो नहीं सोचा था। अब किरन बेदी जैसी शख्सियत हार जाए, तौबा-तौबा, वो भी कृष्णानगर जैसी सीट से, तौबा-तौबा.....तो हारने के बाद ऐसी शख्सियत करेगी क्या, वो कहेगी ”मैं नहीं हारी.....पार्टी हारी...” जैसे अगर वो इस पार्टी से टिकट ना लेतीं तो पक्का जीत जाती....तो मैडम आपसे कहा किसने था इस पार्टी से टिकट लेने के लिए। फिर पड़ी होगी डांट, पार्टी को बदनाम मत करो....तो बयान बदला...कहने लगी कि शाही इमाम ने जो समर्थन दिया उसकी वजह से उनकी हार हो गई। उनका मानना है कि उनके इस आरोप को आधार बनाकर चुनाव रद्द कर दिया जाए, या उससे भी अच्छा, उन्हे विजित घोषित किया जाए। 
मैं इस मामले में किरन बेदी के साथ हूं, उनसे सहमत हूं.....मैं भी चाहता हूं कि इस मामले में हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, इलैक्शन कमीशन आदि-आदि जो भी अधिकृत संस्था हैं वो मिल कर फैसला करें कि इमाम जो खुद को शाही मानते हैं, ने जो समर्थन दिया, जिसे समर्थन दिए जाने वाली पार्टी ने अस्वीकार कर दिया, उस समर्थन को आधार बना कर चुनाव रद्द कर दिया जाना चाहिए। 
बड़बोली, बकवादी किरन बेदी ने ये एक ऐसी आफत अपने पिटारे से निकाली है कि क्या कहने.....अब साहेब को चिंता होनी चाहिए, अगर शाही इमाम के अस्वीकृत समर्थन को आधार बनाकर चुनाव रद्द किया जाएगा तो बाबू ये मामला आगे कहां पहुंचेगा.....? बाबा संत राम रहीम इंसान के समर्थन या फतवे का क्या किया जाएगा भई। तब तो लोकसभा के चुनाव पर भी यही फैसला लागू होगा, हरियाणा और दिल्ली में भाजपा की जीत को रद्द माना जाएगा....चलिए एक किरण बेदी की सीट बचेगी तो हरियाणा और दिल्ली की लोकसभा की कई सीटें बच जाएंगी....। 
अब भानूमति के इस पिटारे को किरन बेदी ने खोल तो दिया है, देखें इससे सुसरी क्या-क्या आफतें निकलती हैं। 

तो किरन बेदी जी अगर शाही इमाम का वो समर्थन जिसे आप और आपके साहेब फतवा कह रहे हैं, तो ज़रा ये बता दीजिए कि बाबा ”संत अजीब-गरीब इंसान” भाजपा को जो समर्थन देते हैं वो क्या था, हालांकि सुसरा वो समर्थन भी फेल हो गया, उनकी फिल्म भी पिट गई। लेकिन जब लोकसभा में ऐसे ही कई बाबाओं ने आपकी पार्टी को समर्थन दिया था उसका क्या होगा। देखिए, अगर इस बिना पर कोई केस होगा तो वो लोकसभा चुनाव के लिए भी होगा, पूरे हरियाणा और दिल्ली की सीटस् जाएंगी, तब आप क्या करेंगी.....
मैं इस मामले में किरन बेदी के साथ हूं.....बाबे शाही इमाम 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...