शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

अध्यादेश

चित्र गूगल साभार
अध्यादेश

जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई है, ”हालांकि केंद्र की सत्ता हासिल करने से पहले, मोदी अखिल ब्रहमांड के सत्ताधीश थे, लेकिन वो बात बाद में”, तो जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई है, तबसे इस देश में अध्यादेशों की बाढ़ आ गई है। ताबड़तोड़ अध्यादेश, अघ्यादेश पर अघ्यादेश......कोई बहस नहीं, कोई कानून नहीं, कोई सुनवाई नहीं, कोई चर्चा नहीं, कोई सलाह नहीं, बस अध्यादेश, अध्यादेश, अध्यादेश। अब आप सोचेंगे कि यार ये बात तो पुरानी हो गई, ये अब इस बात को क्यों रट रहा है.....क्योंकि मेरे भाई, पहले की तरह ही मैं आज भी अपने उस बयान पर कायम हूं कि मोदी.....विराट मोदी, महान मोदी, मोदीमय मोदी, जो हैं, वो ये जो कुछ कर रहे हैं, सोच समझ कर कर रहे हैं, और तुम जैसे क्षुद्र दिमाग वाले लोगों को उनका पूरा प्लान यानी योजना समझ नहीं आ रही है, इसलिए तुम इतने दिन बीत जाने के बाद भी इन अध्यादेशों पर विरोध की आवाज़ के नारे लगा रहे हो।
अध्यादेश यानी वो आदेश जो आधा होता है, आधा इसलिए होता है क्योंकि किसी कानून के कानून बनने के लिए जो प्रक्रिया होती है, ये उसका सिर्फ एक हिस्सा पूरा करता है बाकी तीन हिस्से छोड़ देता है। किसी कानून को कानून बनने के लिए पहले लोकसभा में पेश होकर पारित होना होता है, फिर राज्यसभा में पेश होकर पारित होना होता है, फिर राष्ट्रपति द्वारा साइन होना होता है, और फिर वो गजट में आता है। कई कानून जो हैं, समय से पहले जन्म लेते हैं और प्रीमैच्योर डिलीवरी की कठिनाइयों में मारे जाते हैं, कई कानून गांधारी के बेटों की तरह कई सालों तक जन्म ही नहीं ले पाते। ये भारतीय संसदीय प्रक्रिया की कठिनाइयां हैं, जिन्हे मोदी, महान मोदी, विराट मोदी, मोदीमय मोदी भली प्रकार समझते हैं। 
ऐसे में वे क्या करें, जिन्होने इस देश को ”विकास” के रास्ते पर धकियाया है। क्या लोकसभा, राज्यसभा जैसी तुच्छ जगहों में बहस करके समय नष्ट करेंगे.....नहीं....वे दुनिया को दिखा देंगे कि अगर हमें कानून बनाना हो तो हमें कोई रोक नहीं सकता। अभी तो ये समझिए कि राष्ट्रपति और गजट की औपचारिकता को बना रखा है, वरना मोदी जी को कौन रोक सकता है भला....वे चाहें तो रात में सपना लें और सुबह वो कानून बन जाए। ”शायद इसी डर से वो सिर्फ पांच घंटे सोते हैं।” 
खैर, हम कहां थे, हां.....अध्यादेशों का क्या है कि इनकी कुछ खास उपयोगिता होती है। जैसे बिना लोकसभा का सदस्य बने प्रधानमंत्री की होती है। अध्यादेशों की तरह इस तरह के प्रधानमंत्री भी छः महीने से ज्यादा वैध नहीं होते, तो क्या हुआ, जिस तरह हर छः महीने में राज्यसभा के सदस्य को दोबारा प्रधान मंत्री बनाया जा सकता है उसी तरह छः महीने पूरे हो जाने पर अध्यादेश को फिर से लागू किया जा सकता है, क्यों....समझे कुछ।  
राजनीति बड़ी विचित्र होती है। प्लेटो से लेकर ”जिन्हे राजनीति विज्ञान का दादा कहा जाता है” अब मोदी तक राजनीति के जितने दांव-पेंच खेले जा सकते हैं सबका विश्लेषण करके देख लीजिए। इतनी विचित्र है ये बला कि इसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। जब मैने होश संभाला, यानी ये समझने लायक हुआ कि ये दुनिया क्या है, तबसे मुझे लगता था कि धर्म और ईश्वर की अवधारणा इस दुनिया की सबसे विचित्र चीज हैं, जबकि मैं भी किरण बेदी की तरह राजनीति विज्ञान का ही विद्यार्थी रहा हूं, और किरण बेदी की कसम, मै एक जमीनी स्तर का राजनीतिक कार्यकर्ता भी हूं, लेकिन हाल ही में मुझे अच्छी तरह समझ में आ गया कि राजनीति वास्तव में बहुत ही विचित्र चीज है। मोदी ने सत्ता में आने के बाद अब तक कुछ ऐसा नहीं किया जिसकी उनसे उम्मीद नहीं थी, ”अगर कुछ लोगों को लगे कि उनकी उम्मीद पर मोदी खरे नहीं उतरे तो उन्हे अपनी समझ का इलाज करवाना चाहिए।” अध्यादेश भी इसी विश्वास पर पास किया गया है कि आज हो चाहे छः महीने बाद, इस कानून को बदलना नहीं है। 
मैने पहले ही कहा था कि मोदी जो हैं, वो उससे ज्यादा देते हैं, जितना लोग उनसे उम्मीद करते हैं, बल्कि कई बार तो लोग उम्मीद भी नहीं करते और वो दे देते हैं, जिसे इस पर यकीन ना हो वो पूछ ले अडानी और अंबानी से, एक ही झटके में हजारों करोड़ का लोन, दम भर जमीन लो, कोई रोकने-टोकने वाला नहीं, जितने चाहे जैसे चाहे कानून बनवा लो, दर्जन में 13 बना के देंगे, ना बहस होगी, ना देर लगेगी। मोदी के पास पहले आओ, पहले पाओ वाली स्कीम है, तो पहले अडानी गए, उन्हे झोली भर मिल गया, तो अंबानी गए, उन्हे झोली भर मिल गया तो बाकी लोग लाइन में लगे हैं, यहां भी बिल्कुल तिरुपति वाला मामला है, अंबानी या उनके जैसे अमीर लोग चाहे जब मर्जी जाएं, पहला नंबर उनका होता है, उसके बाद बेचारी गरीब, धक्के खाती जनता 18 घंटे लाइन में लग कर पहंुचती है, अब तब तक क्या होता है कि झोली खाली हो चुकी होती है, जब तक वो झोली, दोबारा भरेगी तब तक, तुम्हारा नंबर निकल चुका होगा, अब किस्मत पर भरोसा करने वाले परधान मंतरी, तुम्हे किस्मत के भरोसे रहने का संदेश देने के अलावा और कर ही क्या सकते हैं। और तुम बद्किस्मत उन्हे दोष देते हो। शर्म करो, अपनी किस्मत को दोष दो और फूट-फूट कर रोओ, क्योंकि अभी तो रोने के अलावा तुम्हारी किस्मत में कुछ बचा ही नहीं है। बाकी अच्छी किस्मत है मोदी ”जी” की और उनके होते-सोतों की.......
चचा गालिब ने कहा था, इब्तिदाए इश्क है रोता है क्या, आगे-आगे देखिए होता है क्या......अभी तो संविधान में संशोधन होगा, अध्यादेश के जरिए, फिर शायद संविधान के औचित्य पर सवाल उठाए जाएं, आखिर मोदी, महान मोदी, विराट मोदी, मोदीमय मोदी को संविधान के निर्देशों, आदेशों आदि की जरूरत ही क्या है, वे स्वयं ही संविधान हैं, वे स्वयं ही विधान हैं, तो संविधान आउट हो जाएगा, फिर राज्यसभा की क्या जरूरत है, क्या किसी पुरातन भारतीय ऋषि ने कभी संविधान या राज्यसभा जैसी किसी चीज़ के अस्तित्व को स्वीकारा है, नहीं, तो बस, संविधान गया, जब संविधान नहीं है तो न्यायालय क्या करेगा, जो भी मुकद्मा-फैसला होना होगा वो मोदी ”जी” के दरबार में होगा, अब जब इतना सबकुछ मोदी ”जी” कर ही लेंगे तो फिर राष्ट्रपति के पद की भी जरूरत क्या है.....भला समझो कुछ....कहते हैं समझदार को इशारा काफी होता है......बस फिर ये देश, मोदी मय हो जाएगा, इस देश का नाम होगा मोदी-स्थान और पावन पुरातन संस्कृति, इतिहास, विज्ञान और हवन के शुद्ध घी के धुएं से पवित्र होगा इस मोदी-स्थान का वातावरण और इसमें से बद्किस्मतों को निकाल फेंका जाएगा, मोदी-महासागर में और जो बचेंगे वो मोदी की किस्मत पर जिएंगे या रोएंगे। 
पर ये सब अभी धीरे-धीरे होगा, इसलिए बद्किस्मतों, अध्यादेशों पर मत चिल्लाओ, दूर दृष्टि लाओ और जो आने वाला है उसकी तरफ अपनी आंखे लगाओ। बाकी अध्यादेशों का क्या है, वो तो पास होते ही रहे हैं, होते ही रहेंगे। 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...