आप मानिए या ना मानिए, मानवियता का समय होता है, ज़रूरी नहीं कि हर समय आप मानवीय रहें, अगर जीवन भर मानवीयता का बोझा ढोते रहेंगे तो खुद के लिए कुछ ना कर पाएंगे, कुकुर की तरह मारे जाएंगे, या जीवित भी रहेंगे तो कुकुर की तरह। इसलिए मानवीयता हो ये सही है, लेकिन सही मौके पर हो, इसकी आवश्यकता है। आम इंसान इस बात का समझ नहीं पाता, इसलिए गलत मौके पर मानवीयता आदि की बात करने लगता है और मारा जाता है। आपको सही मौके की तलाश करनी चाहिए और अपनी मानवीयता वहीं दिखानी चाहिए, जहां सही समय हो, मौका हो।
बात को और आसानी से समझने के लिए, मान लीजिए लाल चंदन के जंगल में बीस निर्दोष मजदूरों को एनकाउंटर कर दिया जाए, तो ये मानवीयता दिखाने का सही मौका नहीं हो सकता। इसी तरह छत्तीसगढ़ या झारखंड में आदिवासियों के पक्ष में मानवीयता कभी काम नहीं कर सकती। कश्मीर या उत्तर-पूर्व में, मानवीयता कारगर नहीं होती, बल्कि उल्टा असर करती है। इसके बरअक्स इन्ही सब जगहों पर नक्सल हमले में मारे गए सेना या पुलिस अफसरों के प्रति आपको मानवीयता के दायरे में सोचना होगा। इन इलाकों में अगर आपने आदिवासियों के हक में मानवीयता के नाते कुछ किया तो हो सकता है कि आपसे मानव होने का हक भी छीन लिया जाए। जैसे प्रो. साईंबाबा का मामला देख लीजिए, उन्होने आदिवासी हितों के बारे में लिखा और अपने मानव होने के हक से महरूम कर दिए गए, अब 90 प्रतिशत से ज्यादा पैरेलिटिक शरीर के साथ व्हीलचेयर पर भी बिना किसी मेडिकल सहायता के लिए जेल में पड़े हैं, सरकार का कहना है कि उन्हे इसलिए बेल नहीं दी जा सकती, क्योंकि वो खतरनाक हैं, अब इस मामले में मानवीयता का कोई मतलब ही नहीं बनता, क्योंकि साईंबाबा आदिवासी हितों में काम करते हैं।
दूसरे देखना ये भी चाहिए कि जिसके प्रति आप मानवीयता दिखला रहे हैं वो मानवीयता का हकदार है भी कि नहीं, गरीबों, फुटपाथ के सोने वालों, मजदूरों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों के प्रति मानवीयता का दृष्टिकोण आपको कोई लाभ नहीं दिला सकता, अतः इन मामलों में मानवीयता का कोई मतलब नहीं रह जाता। दूसरी ओर, सलमान खान, संजय दत्त, ललित मोदी, हाशिमपुरा कांड के अभियुक्त, बाथे-बथानी के कर्मकांडी, सलवा-जुडुम के नेता आदि के प्रति मानवीयता दिखाने से आप काफी फायदा उठा सकते हैं, इसलिए इनके प्रति मानवीयता दिखाई जा सकती है।
कई बार यूं भी होता है कि आप कुछ कर दें और बाद में उसे मानवीयता की कैटेगरी में डाल दें। ऐसी मानवीयता ज्यादा कारगर होती है। कुछ काम करने से पहले ही उन्हे मानवीयता की कैटेगरी में डाल देने से भी बात बन सकती है। अब मान लीजिए कि आप जानते हैं कि आपको कुछ करना होगा, तो पहले से ही उस काम के पक्ष में मानवीयता आदि का वातावरण तैयार करना शुरु कर दें, इस तरह आपके विरोधी उस कार्य का विरोध नहीं कर पाएंगे, क्योंकि, मानवीयता का विरोध करना तो वैसे भी मानवीयता विरोधी होता है साहेब।
अब यही लीजिए, सुषमा स्वराज ने मानवीयता के आधार पर ललित मोदी की सहायता की, और भाई लोग उन्हे दोषी करार देने लगे हैं। सुषमा जी के इस मानवीय कार्य का विरोध करने वाले वही लोग हैं जो मानवीयता के आधारभूत नियम से अपरिचित हैं, मानवीयता वहीं संभव है जहां मौका है, और मौका, मौका होता है। आप लोग चाहते हैं कि हर मामले में मानवीयता ठोकी जाए, आप तो भेड़-बकरी सबको एक ही लाठी से हांकने की बात कर रहे हैं। ये संभव नहीं है, इस तरह तो संसार का विधान उलट-पुलट जाएगा। ललित मोदी की बात दूसरी है, अगर वो नहीं होते तो कहिए ज़रा दुनिया को आई पी एल जैसे क्रिकेट से पैसा कमाने का तरीका कैसे मिलता, क्या हुआ कि वो थोड़ा लालची था, सिर्फ इस आधार पर उसे इंग्लैंड या फ्रांस में छुट्टियां मनाने से नहीं रोका जा सकता, ये तो अमानवीयता होती। इसलिए माननीया मानवीया सुषमा जी ने उसे मानवीयता के आधार पर इंग्लैंड जाने में मदद की।
इसलिए मितरों, मानवीयता की पुरानी परिभाषा पर मत जाइए, मौके की नज़ाकत को पहचान का मनवीयता को बरतिए, याद रखिए ”छिमा बड़ेन का चाहिए, छोटन को उत्पात”, यानी बड़े लोगों को क्षमा कर देना चाहिए और छोटों को उत्पाती करार देकर जेल में डाल देना चाहिए। यहां क्षमा को मानवीयता की कैटेगरी में डाल कर कहा जा रहा है। ये भारतीय परंपरा रही है, मानवीयता उसी के साथ बरती जाती है जो मानवीय हो, राम ने भी मौका देखकर मानवीयता बरती थी, जब जंगल में जा रहे थे, तो आदिवासियों की मदद चाहिए थी, इसलिए शबरी के बेर भी खाए, और जब वापस आकर राजा बन गए तो शंबूक के कानों में सीसा भी डलवा दिया। ये मौके की बात होती है, अब मोदी जी को राम राज लाने के लिए राम के नक्शे कदमों पर ही चलना होगा। इसे आप सब मोदी विरोधी नहीं समझ सकते, इसे समझने के लिए मोदी भक्त होना अनिवार्य होता है।
मुझे लगता है कि मानवीयता की इस नई परिभाषा को विश्वभर में फैलाने की जरूरत है, मोदी जी जैसे ही विश्व योग दिवस मना कर फुरसत पाते हैं वे मानवीयता की इस नई परिभाषा को भी प्रसिद्ध करेंगे ऐसी हम आशा करते हैं, सुषमा स्वराज जी की मानवीयता को बधाई, सारे नेताओं को उनसे सबक लेकर देश के सभी बड़े अपराधियों को मानवीयता के आधार पर बाहर जाने की, बेल की सुविधा देनी चाहिए। जेलों का क्या है उसके लिए काफी लोग हैं, जो सुसरे मानव की कैटेगरी में ही नहीं आते।

आधार खोता मानवीय आधार,,,अक्षरशः सहमत कपिल भाई।
जवाब देंहटाएंkuch top 10 criminal list or adhaar card k upar bhi likha jaye
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