मंगलवार, 23 जून 2015

योग: विवादासान




राजपथ पर पद्मासन लगाकर बैठे, गले में राष्ट्रीय ध्वज को मफलर की तरह डाले प्रधानमंत्री, आ हा हा हा हा.....किसी देश के लोकतंत्र के लिए कितनी सुखद बात है। ऐसी बातें देखने में कहां आती थी साहब, तरस गए थे, भारतीय संस्कृति के इस विशद, विराट रूप को देखने के लिए। चलो साहेब की कृपा से गिनीज़ बुक में भी नाम दर्ज़ हो ही गया.....जहां दुनिया के सबसे लंबे कद के आदमी और सबसे ज्यादा बालों वाले इंसान, कीलें खाने वाले इंसान के साथ एक देश के तौर पर भारत का नाम भी आ ही जाएगा। कितनी बड़ी उपलब्धि है ये देश के लिए......और ये अधम लोग अब भी विवाद करने से नहीं चूक रहे हैं। योग को बदनाम कर रहे हैं। ये लोग इस देश का भला नहीं चाहते, बताइए, बाबा रामदेव जैसे योगियों ने योग को एक माल के तौर पर पूरी दुनिया के आगे परोसा, और व्यापारीरूपी प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्रीरूपी व्यापारी ने उस व्यापार का ये जर्बदस्त प्रचार-प्रचार किया तो इसमें बुरा क्या है भाई। अगर तुममे ज़रा भी समझ होती तो तुम भी रामदेव हरिद्वारवाले, लंपट रविशंकर, लुच्चे चिदानंद, ढोंगी वासुदेव की तरह आश्रम खोल लेते और फिर मौज उड़ाते, ना हो बड़ा, छोटा ही खोल लो, पंतजलि के नाम से चलने वाली मुहल्ले की दुकाने देखते हो, कमा रहे हैं भाई लोग, और तुम योग को बदनाम कर रहे हो।
असल में ये लोग योग को जानते नहीं हैं अभी, योग जैसा कि प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों का कहना है, इंसान को सृष्टि के साथ एकमेक कर देता है। चित्त को शांत करता है, और आत्मा को चेतन कर देता है, कुंडलियों का जागरण आदि कर देता है। समस्या ये है कि भूखे लोग योग नहीं करते सुसरे, भूखे लोग अगर योग करें तो वो अपनी भूख भूल जाएंगे, गरीबी भूल जाएंगे और उन्हे शारीरिक कष्ट परेशान नहीं करेंगे क्योंकि गीता में कहा ही है कि आत्मा ना कटती है, ना मरती है, ना गीली होती है ना सूखती है.......अब भूखे लोगों का राग अलापने वालों, अबे योग करो, यही सारी समस्याओं का समाधान है। अगर योग करते हुए गरीब लोगों की आत्मा प्रकृतिस्थ हो जाए तो बताओ उन्हे भूख क्योंकर लगेगी, और योग करते-करते वो परमात्मा में विलीन हो जाएं तो इससे अच्छी मृत्यु कहां मिलेगी। 
योग के बहुत फायदे हैं। एक तो यही कि जनता का ध्यान, बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई और घटती जी डी पी से हटा रहता है। रोम में सीज़र जो है यूं ही अपने खर्चे पर कोलोसियम में दुनिया भर के तमाशे नहीं करता था, और अपने चुनावी भाषणों में प्रधानमंत्री ये साबित कर चुके हैं कि वो बाकी कुछ चाहे जाने या ना जाने इतिहास बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। वो जानते हैं कि रोम के सीज़र की तरह जनता का ध्यान भुखमरी और बेरोज़गारी से हटाने के लिए योग दिवस जैसे टोटके करते रहना चाहिए। 
मेरा ये कहना है कि योग जैसी चीजों का प्रचार असल में घर से ही शुरु होना चाहिए, मेरा मतलब प्रधानमंत्री को खुद अपने मंत्रीमंडल को पहले योग कराके लाभान्वित करना चाहिए था। गडकरी को देखिए, अमितशाह को देखिए, छाती 30 इंच की है तोंद 52 इंच की हो रही है, अब अगर ये लोग योग करते रहे हैं तो बाकी देश को ऐसा तोंद बढ़ाने वाला योग क्यों करवा रहे हो जी, और अगर ये लोग योग नहीं करते हैं तो पहले इन्हे करवाइए जी। बाकी मन-आत्मा की शांति के बारे में भी हमें थोड़ा संदेह ही है, खुद प्रधानमंत्री जिनके बारे कहा जाता है कि वो तो जनम भर से योग कर रहे हैं, झूठ बोलने में नहीं झिझकते, अमितशाह महिलाओं की जासूसी करवाते हैं, वसुंधरा और सुषमा अपराधियों के साथ मौज-मस्ती करते हैं, और स्मृति ईरानी चुनाव आयोग को दर्ज़ एफिडेविट में झूठ बोलती हैं। तो इन्हे पहले योग करवाइए, फिर जनता को करवाइएगा। 
योग से और कुछ हो ना हो, विवाद खूब हुआ है, पहले तो यही कि अपने आपको योगी कहने वाले ये साधू खुद योगी हैं भी कि नहीं। इनमें से ज्यादातर के चेहरे से ही कपट और लंपटई झलकती है, ये लोग योग नहीं करते हो सकते, सोने की कुर्सी पर बैठकर संसार को माया बताने वाले ये साधू, गोरी-गोरी, छोटे कपड़े पहने विदेशी महिलाओं को योग सिखाने के बहाने.......जाने क्या-कराने वाले ये कपटी, योग के बेसिक, एडवांस, और अल्ट्रा एडवांस कोर्स कराने वाले ये नासुरे पाखंडी, किसे और कैसा योग करवा रहे हैं। लेकिन मेरी मानिए ऐसा है नहीं, रामदेव बहुत ही सद्चरित्र योगी हैं, ये ठीक है कि उन्होने काले धन के बारे में झूठ बोला, लेकिन तब मजबूरी थी, ये भी ठीक है कि वो पंडाल से महिलाओं के कपड़े पहन कर भागे थे, लेकिन वो भी मजबूरी थी, इस नश्वर काया को बचाना था, अपनी महत्वाकांक्षा का पूरा करना था। योगी का क्या मन नहीं होता, रविशंकर ने भी पॉलिटिक्स में हाथ आजमाना चाहा, लेकिन होम करते ही हाथ जल गए, इसलिए किनारे से सरक लिए, अपना योग अच्छा है, बाकी आर्ट और लिविंग में आर्ट नहीं है, फार्ट है। जो लोग रविशंकर के यहां जाते हैं, उनका कब्ज सुना है दूर हो जाता है। तो गैस की अपच की शिकायत सुनते हैं उनकी दूर हो जाती है इसलिए उसका सही नाम फार्ट ऑफ लिविंग है, डैड क्या फार्ट करेगा जी। लेकिन योगी वो बहुत बढ़िया हैं, बालक मर रहे हों, महिलाओं का बलात्कार हो रहा हो, वही चिरस्थाई मुस्कान लेकर कहेंगे कि आर्ट ऑफ लिविंग का कोर्स कर लो, ठीक हो जाएगा। और करना भी चाहिए, पैसा ना हो तो बैंक से कर्ज ले लो।
दूसरा विवाद हुआ योग के बाद.....पहले तो राम माधव ने कहा कि, ”जब राष्ट्रपति तक ने योगा किया लेकिन उप राष्ट्रपति ने नहीं किया” जवाब में उपराष्ट्रपति कार्यालय ने कहा कि भई उपराष्ट्रपति को तो निमंत्रित ही नहीं किया गया था। ओहो, फिर राम माधव ने कहा कि, ”उन्हे सूचित किया गया है कि उपराष्ट्रपति की तबीयत खराब थी, इसलिए वो अपना कथन वापस लेते हैं, क्योंकि उपराष्ट्रपति संस्था सम्मान के लायक है।” इन्हे पहले समझ ना आया ये सम्मान, अगर सम्मान के लायक है तो माधव बाबू आपने पहला कथन ही क्यों दिया। और इससे भी महत्ववपूर्ण बात ये है कि आपको ये सूचना किसने दी कि उपराष्ट्रपति की तबीयत खराब है। क्योंकि खुद उपराष्ट्रपति कार्यालय ने स्पष्ट किया कि ”उपराष्ट्रपति बिल्कुल ठीक हैं, वो राजपथ इसलिए नहीं गए, क्योंकि उन्हे निमंत्रित नहीं किया गया था।” मामला यहीं खत्म नहीं होता। कहा जाता है कि योग करने वाले का मस्तिष्क कुशाग्र बन जाता है, इसलिए आयुष मंत्री के कुशाग्र दिमाग से एक और रास्ता निकला, उन्होने कहा कि भई जिस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मुख्य अतिथि हो उसमें उपराष्ट्रपति को निमंत्रित किया नहीं जा सकता, क्योंकि प्रोटोकोल है। अब भक्तों ने इसे लपक लिया। सवाल ये है कि भाई साहब, ये राष्ट्रपति क्या वहां बिन बुलाए पहुंच गए थे, इन्हे निमंत्रण नहीं मिला था क्या, अगर ये बिना निमंत्रण के पहुंचे तो इन्होने राष्ट्रपति पद की गरिमा को ठेस पहंुचाई है, और अगर इन्हे निमंत्रण दिया गया था, तो फिर आयुष मंत्रालय ने प्रोटोकोल में गड़बड़ की है। क्योंकि ऐसा कौन सा प्रोटोकोल है जो उपराष्ट्रपति के निमंत्रण के आड़े आ जाए, और राष्ट्रपति जो उससे उंचा पद है, उसके लिए ठीक रहे। बात कुछ समझ नहीं आई, हो सकता है कि योग करने से कुछ समझ मंे आए। 
माधव राम ने कौनसा योग किया, इसका अभी पता नहीं चला है, वैसे पता तो ये भी चलाना है कि कौन-कौन मंत्री, नेता, आई ए एस, आई पी एस, प्रशानिक अधिकारी आदि-आदि राजपथ पहंुचा था, जो नहीं पहंुचे उनके खिलाफ कार्यवाही तो करनी होगी ना, वरना इन नालायक प्रशासनिक अधिकारियों की इतनी हिम्मत हो जाएगी कि सरकारी आयोजन से ही गोल हो जाएंगे। 
हमने योग नहीं किया, करते भी नहीं, ये रामदेव-फामदेव वाला तो कतई नहीं करते, बाकी कुछ शरीर को इधर-उधर, टेढ़ा-मेढ़ा सा करते हैं, सो करेंगे। राजपथ पर कुल लोग पहंुचे थे, 35000, सरकारी आंकड़ा है, बाकियों को वापिस भेज दिया गया था। योग दिवस से पहले ही ये घोषणा कर दी गई थी जो सूर्य नमस्कार ना करे उसे पाकिस्तान भेज दो। मेरे कुछ एक दोस्तों ने तो इसीलिए योग नहीं किया, बोले यार कराची और लाहौर देखना है, चलो सरकारी खर्च पर ही सही। अब देखना ये है कि हमारे जैसे लोग जो भारत की कुल आबादी, घटा 35000 लोग हैं, को कब पाकिस्तान भेजा जाता है। 

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