भई बहुत ही शानदार समय है। कुछ समय तक तो यूं लगता था कि इस देश में कुछ होगा भी कि नहीं, लेकिन अब पिछले कुछ समय से, इतना कुछ चल रहा है? जैसा कि नेतृत्व ने यकीन दिलाया था। बहुत कुछ है देखने-सुनने-समझने के लिए, अभी दादरी के अख्लाक की मौत की खबर ठंडी भी नहीं हुई थी कि पता चला कि रामलीला देखते हुए एक बच्ची को उठा ले गए और उसके साथ बलात्कार कर दिया, फिर एक और बच्ची के साथ ऐसा हुआ, फिर तीसरी बच्ची के साथ भी यही करने की कोशिश की गई। दूसरी तरफ फरीदाबाद में दो बच्चों को जिंदा जला दिया गया। देश का कोई कोना ऐसा नहीं है जहां से हत्या, बलात्कार, दंगा, की खबर ना आ रही हो। लोगों को इसलिए मारा जा रहा है, क्योंकि उनके लिखने से, खाने से, पीने से, जीने से ऐतराज है। गजब समय है जहां मुल्क और कौम के रहबर ये कह रहे हैं कि, ”ये हत्याएं, बलात्कार स्वाभाविक प्रतिक्रिया हैं” यानी कुल मिलाकर हत्यारों को, बलात्कारियों को इन रहबरों का वरदहस्त मिला हुआ है।
जाने कौन है जिसे विकास चाहिए, जिसके लिए इतना सब कुछ कुर्बान कर देना पड़ रहा है। क्या आपको नहीं लगता कि किसी भी तरह के विकास के लिए ये कीमत बहुत बड़ी है। क्या आपको समाज के आपसी विश्वास, प्यार और सद्भाव की कीमत पर बुलेट ट्रेन चाहिए। कुछ समय पहले मेरा मतलब है तब जबकि सारे देश में चुनाव की लहर दौड़ रही थी, मैने तब भी एक जगह लिखा था कि लाशों के अंबार पर शानदार सड़कें, चमचमाते शहर, और दुनिया भर का विकास नहीं चाहिए, अब तो मैं ये कहना चाहता हूं कि किसी भी तरह से अगर वो दोनो बच्चें वापस आ जाएं, इन बच्चियों के बलात्कार रुक जाएं, तो ये जो दो चार दिन की सांसे भी हैं वो भी ले लो यारों, कम से कम देश के इस तथाकथित विकास के लिए बच्चों की बलि मत दो।
इन खबरों को पढ़कर भी तुम्हारा दिल ”मेक इन इंडिया” ”स्वच्छ भारत” जैसे नारों से बहलता है, अब भी तुम ये सवाल नहीं करना चाहते कि आखिर ये देश कहां जा रहा है, किस दिशा में बढ़ रहा है। कलबुर्गी, पन्सारे, और दाभोलकर को इसलिए मार दिया गया कि उन्होने जो लिखा वो तुम्हे रास नहीं आया, अख्लाक को इसलिए मार दिया क्योंकि उसने जो खाया वो तुम्हे रास नहीं आया, इन बच्चों को इसलिए जला दिया कि आखिर ये जो चाहते थे वो भी तुम्हे रास नहीं आ रहा था। मेरे एक दोस्त ने याद दिलाया कि ये असल में पिछले साल हुए एक झगड़े का बदला था जिसमें दलितों के एक लड़कों को नाली से गेंद निकालने के लिए कहा गया था, दलित को नाली से गेंद निकालने का आदेश देने की हिम्मत जिस संस्कृति से मिलती है, थू है ऐसी संस्कृति पर। और तुम यही संस्कृति पूरे देश में फैलाने की बातें कर रहे हों। हलक से निवाला नहीं उतरता, और लोग पूरे दिन सोशल मीडिया पर उन बच्चों के फोटो चस्पा कर रहे हैं।
तुम्हे शर्म नहीं आती कि अब भी तुम उन्ही कामों का बचाव कर रहे हो, जिनकी वजह से इन बच्चों की जान गई है। क्या तुम्हारे कानों में वो चीखें नहीं गूंज रही, क्या तुम्हे इस मॉल के शांत वातावरण में उन बच्चों का आर्तनाद नहीं सुन रहा, क्या यहां ईको टॅूरिज्म करते हुए अचानक तुम्हारी नाक में जलते मांस की गंध नहीं समा जा रही। क्या अब भी तुम्हे समझ नहीं आ रहा कि आखिर क्यों जरूरी है कि विरोध के सभी स्वरों को एकसाथ मिलाया जाए, क्या अब भी तुम्हे लेखकों, साहित्याकारों, नाटकारों, शिक्षकों और बुद्धिजीवियों के इस सत्ता के और इन हत्यारों के खिलाफ खड़े होने का मतलब समझ नहीं आता।
कौन है जिसने ये माहौल बनाया है, कौन है जो इस माहौल को पाल-पोस रहा है। कौन है जिसे इस माहौल से फायदा होता है, क्यों है ये माहौल ऐसा कि जिसके बारे सोचते ही आपकी नस-नस में नपसंदगी और वहशत छा जाती है। वो कौन है जो लोगो के गोश्त-पोस्त से अपने लिए बेहतरी के रास्ते तलाश सकता है।
अब इसके अलावा अमनपसंद लोगों के पास, अपने अधिकारों के प्रति जागरुक लोगों के पास, आत्म सम्मान के साथ जीने वाले लोगों के पास, आज़ादी पसंद लोगों के पास क्या चारा बचा रह जाता है कि वो एक साथ इस माहौल के विरोध में, इस असहिष्णुता के विरोध में, इस अंधे हत्यारे युग की शुरुआत के विरोध में, इस बलात्कारी समय की कोशिश के खिलाफ, इस जहालत से भरे विकास के झूठे वादों वाले युग के खिलाफ अपनी पूरी ताकत, पूरे चेष्टा से अपना प्रतिरोध दर्ज करवाएं। क्योंकि अगर आज चुप रहे तो कल आप ही के पास इस बात का जवाब नहीं होगा कि जब एक पूरे युग की हत्या हो रही थी, जब अधिकारों का गला घोंटा जा रहा था, जब मानवता के हाथ बांधे जा रहे थे, सद्भावना को चाकुओं से गोदा जा रहा था, और पूरे समाज को दहशत में पिरोया जा रहा था, तब तुम कहां थे। जो लोग इस लड़ाई में जन के पक्ष में हैं वो तो जाहिर है लड़ रहे हैं, कुछ लोग चुप हैं, शायद डरे हुए हैं, उम्मीद है कि वो भी साथ आ ही जाएंगे, आज नही ंतो कल......
असली मामला उन लोगों का है जो इस सबके बावजूद सत्ता की इस वहशियाना कोशिश के समर्थन में हैं और आज भी, इतने सब के बावजूद किसी ना किसी तरह से इसे सही साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। महिलाओं का बलात्कार हो रहा है, मासूम बच्चियों तक को नहीं छोड़ा जा रहा, सिर्फ शक करके किसी को भी मारा जा रहा है, जिंदा जलाया जा रहा है, तमाम तरह की धमकियां दी जा रही हैं। विरोध के, असहमति के हर स्वर को मारा जा रहा है, मारने की धमकी दी जा रही है, और फिर भी तुम अमीर बनने के, वाई-फाई के, स्मार्ट सिटी के सपने में इन सबको नज़रअंदाज़ कर रहे हो.....कुछ तो शर्म करो....कुछ तो शर्म करो......


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