सोमवार, 2 जून 2025

अर्थव्यवस्था के उपर जाने का रास्ता....

 अर्थव्यवस्था के उपर जाने का रास्ता....


लीजिए, भारत यानी इंडिया, अजी यही हमारा देश हिन्दुस्तान, एक बार फिर से तरक्की की सीढ़ियां चढ़ गया। तरक्की यानी विकास की सीढ़ियां लगता है कि कुछ छुप-छुपा कर बनाई जाती हैं। देश तरक्की की ये सीढ़ियां चढ़ता रहता है और बेचारी जनता को पता ही नहीं चलता कि देश उपर जा रहा है। वो वही कचरे के डिब्बे में से खाना ढूंढती रहती हैं। 


इस बेमुरव्वत जनता को क्या पता कि भारत का जी डी पी, जी हां, जी डी पी लगातार, तेजी से, यानी फास्टम फास्ट बढ़ता जा रहा है। इकाॅनाॅमी, जिसे हिंदी में अर्थशास्त्र कहते हैं, वो दुनिया में चैथे नंबर पर आ गई बताते हैं। तीसरे और दूसरे नंबर पर आने में बस एक चुनाव भर का समय है। बस कुछ हल्के-छोटे कदम उठाने हैं, और पहुंची की पहुंची इस देश की अर्थव्यवस्था पहले नंबर पर.....मोदी जी कहते हैं कि चीनी सामानों का बहिष्कार करो। सरकार ऐसा नहीं कर सकती, नही ंकर सकती माने, सरकार चाहे तो कुछ भी कर सकती है, चीनी सामान का आयात बंद कर सकती है, चीनी सामान पर प्रतिबंध लगा सकती है, चीनी सामान पर टैरिफ बढ़ा सकती है, लेकिन दरअसल ये सरकार खुद से ज्यादा अपनी जनता पर भरोसा करती है। तो जो सरकार जनता पर भरोसा करती है, वो जनता से कहती है कि देखो भाई लोग, हम तो चीन से व्यापार करते रहेंगे, चीन हमारी जमीनों पर भले कब्जा कर ले, चीं तक नहीं बोलेंगे, लेकिन तुम लोग, यानी जनता, जो कुछ और नही ंकर सकते, कम से कम चीनी सामान का बहिष्कार कर दो। 


बहिष्कार का ये आइडिया भी इनका गांधी जी के विदेशी कपड़ों के बहिष्कार से चुराया है। लेकिन कहते हैं, और सच कहते हैं, कि नकल के लिए भी अकल की जरूरत होती है। अरे भई, जब भारत पर अंग्रेजों का कब्जा था, विदेश नीति, अर्थ नीति, आयात-निर्यात नीति, सब अंग्रेजों के कब्जे में थी, तब भारत की जनता के पास विदेशी सामान के बहिष्कार के अलावा और कोई चारा नहीं था, जिसे बखूबी इस्तेमाल किया गया। अब अगर हम ये भी मान लें कि भारत असल में 2014 में आजाद हुआ, जैसा कि बाॅलीवुड की महान अभिनेत्री ने घोषणा की थी, तो भी ये साल 2025 है, विदेश नीति, अर्थनीति, आयात-निर्यात नीति पर तो आप ही के विश्वगुरु का कब्जा है। तो सीधे-सीधे बंद कर दीजिए चीन के साथ व्यापार, और वो लाल आंखे जो आपने विदेशी मेबैक चश्में के पीछे छिपा रखी हैं, उनसे चीन की तरफ देखिए। ज़रा तो चीं कीजिए साहेब, ज़रा तो लाल आंखे दिखा कर डराइए। भाषणबाज़ी में महारत है बाकी सब कुछ टांय-टांय फुस्स.....


किसी जमाने में एक गांव में एक लड़का रहता था, सकूल में पढ़ता था, उन दिनों स्कूल को इस्कूल या सकूल ही कहा जाता था। सौ में 52 नंबर लाया। कच्छा में 23वें नंबर पर था। फिर हुआ ये कि जो लड़का 82 नंबर लाकर दूसरे नंबर पर आया था, उसके मामा उसे अपने हियां ले गए। सकूल से नाम कट गया, तो उसने हिसाब लगाया कि बढ़िया दूसरे नंबर वाला चला गया, तो हम 23वें से 22वें नंबर पर आ गए। वाह, उसका दिल ऐसा उछाह में आया कि पूरे गांव में मिठाई बांट दी भाई ने, कि वो कच्छा में एक नंबर और उपर चला गया था। बताइए, इससे बेहतर और क्या हो सकता है कि बिना कुछ किए - धिए एक नंबर उपर चला जाए।


ये जो नया जुमला निकाला है, कि भारत की इकाॅनाॅमी दिनोदिन तरक्की करती जा रही है, इसके कुछ आंकड़े सुन लीजिए.....

हंगर इंडेक्स में शामिल 127 देशों की लिस्ट में भारत 105वें नंबर पर है साहेब, नंबर एक सौ पांच.....एजुकेशन हो, या हेल्थ, पोषण हो या शोषण, अपने देश हिन्दुस्तान की हालत हर जगह शोचनीय ही है। 


तो ये वल्र्ड में नंबर पांच, चार, तीन की इकाॅनाॅमी बनने का झुनझुना किसे थमा रहे हैं साहेब। हमारी तो हालत ये है कि अपनी तरक्की का पूरा ठीकरा दूसरे की खराब हालत के सर फूटता है। अब हालिया रैकिंग का मामला कुछ यूं है कि खुद तो तरक्की हो नहीं सकी, तो इंतजार करते रहे कि कौन देश नीचे फिसलेगा, कि हम आॅटोमैटिकली उपर चले जाएंगे। बिल्ली के भाग से छींका फूटा कि जापान की अर्थव्यवस्था डाॅलर के मुकाबले थोड़ा गड़बड़ाई तो साहेब ने इसे अपने लिए शुभ शकुन मान लिया। पर ये भी कोई नई बात नहीं है, याद कीजिए, देश की महान अर्थमंत्री ने रुपये की गिरती हालत पर क्या सफाई दी थी....


सुनते हैं किसी जमाने में भारत, यही आपका हिन्दुस्तान सोने की चिड़िया हुआ करता था। आज हालत ये है कि दिल्ली में कोई असली चिड़िया नहीं ढूंढ सकता। ले देकर दो पंछी मिलते हैं यहां, एक कबूतर, दूसरा कौआ। अब चिड़िया तो साहेब इस देश को बनाने से रहे, कौआ ही बना दें। और यकीन मानिए साहेब अपनी पूरी ताकत से इस देश को कोयले का कौआ बनाने में जुटे हुए हैं। 


खैर ये तो ऐसे ही कह दिया। लेकिन सच कहिए, जब देश की इकाॅनाॅमी चार नंबर, तीन नंबर, दो नंबर और फिर एक नंबर होगी तो, सिर्फ उन्हीं लोगों को पता चलेगा जो 2014 में जाग गए थे, या बाकी जनता को भी इसकी कुछ भनक लगेगी। तरक्कीशील इस इकाॅनाॅमी में पैटरोल कुछ सस्ता होगा, दालें, आटा, चावल, प्याज.....हां....इस इकाॅनाॅमी में प्याज क्या भाव मिलेगी। देखिए ज्यादातर जनता, जिसे किसी ना किसी भोजन योजना के तहत खाने को खाना दिया जा रहा है, उसे उस मोदी जी की तस्वीर वाले पैकेट में प्याज तो ना मिलती होगी। जाहिर है जब वित्तमंत्री खुद प्याज नहीं खातीं तो किसी और को तो प्याज क्यों ही दें, लेकिन बाकी जो सुसंस्कृत लोग नहीं हैं, उन्हें तो प्याज लगता होगा, खाने में, 



तो हमें तो बस इतना भर बता दें कि ये तो अभी-अभी इस देश की इकाॅनाॅमी चैथे, या फिर तीसरे नंबर पर गई है, इससे प्याज के दामों में गिरावट देखने को मिलेगी या नहीं। 


देखो भाई, हमें तो इस सरकार पर पूरा भरोसा है, कि ये देश की इकाॅनाॅमी यानी अर्थव्यवस्था को आसमान से छुआ देगी। जब राज्यों में चार-छ इंजनो वाली सरकार चल रही हो, और राज्यों के सी एम ऐसे बयान दे रहे हों



तो पक्का है कि केन्द्र सरकार इस देश की इकाॅनाॅमी को आठ दस इंजन लगा कर खींच रही है, और ये इकाॅनाॅमी पक्के तौर पर आगे जाएगी। पीछे जाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। हमारे तो बस कुछ मासूम से सवाल हैं, जिनके जवाब ना भी मिलें तो कोई हर्ज नहीं है।

जैसे, अभी बिहार में बी पी एस सी के अभ्यर्थियों पर पुलिस ने जम कर डंडा परेड की थी। तो अब जबकि इकाॅनाॅमी दुनिया के चैथे नंबर पर आ गई है तो फिर इस देश के छात्र, युवा, महिलाएं, बच्चे, दलित, बच्चे आदि को ये पुलिसिया डंडा परेड का प्रसाद तो मिलता रहेगा ना। रोजगार मिले ना मिले, पुलिसिया लाठी चार्ज बस मिलता रहे, हम तो इसी से आनंद में रहते हैं। 


क्या अब भी इस देश में पकौड़े बेचने को रोजगार माना जाएगा, या फिर दुनिया की चैथी सबसे बड़ी इकाॅनाॅमी होने के चलते, उन्हें चाय-पकौड़े बेचने से, साइकिल का पंचर लगाने से लेकर पान-बीड़ी बेचने के रोजगार से निजात मिलेगी।

जेनुइन सवाल हैं भई, आपको हंसी सूझ रही है। 

चलिए बिना कुछ किए धरे इकाॅनाॅमी एक सीढ़ी उपर चढ़ गई, उन सबको जिन्होने इसके लिए काम किया बहुत बहुत धन्यवाद, यानी जापान के प्रधानमंत्री, वहां के वित्तमंत्री, और अन्य लोग जिन्होने जापानी इकाॅनाॅमी की वाट लगाई ताकि भारत की इकाॅनाॅमी को एक सीढ़ी उपर आने का मौका मिल सके। हम उम्मीद करते हैं कि भारत की इकाॅनाॅमी को आगे बढ़ाने में अन्य देश भी ऐसे ही हमारे विश्वगुरु, वीरों के वीर, यशस्वी प्रधानमंत्री के साथ सहयोग करते रहेंगे। अभी यू एस यानी अमेरिका और चीन हमसे उपर है, हमें उम्मीद करनी चाहिए कि जल्द ही उनकी इकाॅनाॅमी धराशायी होगी, और हमें और उपर बढ़ने का मौका मिलेगा। 

इससे याद आया, आपको याद है जब जापान के प्रधानमंत्री भारत आए थे, तो बहुत सारे विरोधियों ने उनका मजाक बनाया था, मतलब जैसे हमारे वाले उन्हें झूला झुला रहे थे, गंगा की आरती दिखाने ले गए थे। अब समझ मंे आया कि उस वक्त चुपके-चुपके क्या बात हो रही थी, हमारे वाले बड़े वाले डिप्लोमैट हैं, जापान के प्रधानमंत्री को समझा रहे थे कि तुम अपनी इकाॅनाॅमी डाउन करो, ताकि हमारी इकाॅनाॅमी उपर आ जाए। इस वल्र्ड डिप्लोमैसी का मतलब अब जाकर समझ में आया। हम तो यही आशा करते हैं कि और देशों के प्रधानमंत्री भी भारत आएं, हमारे महामानव के साथ झूला झूलें और अपनी इकाॅनाॅमी को नीचे गिराकर हमारी इकाॅनाॅमी के नंबर बढ़ाने में मदद करें। 

और अब आखिरी बात सुन लो, कान खोलकर सुन लो, रोजगार नहीं मिलेगा, महंगाई कम नहीं होगी, विरोध करने पर ऐसे ही जेल भेजे जाते रहोगे, अपने कर्मांे को रोते रहोगे, लेकिन इकाॅनाॅमी के एक पायदान उपर आने की खुशी अगर नहीं मनाई तो सच कह रहे हैं, सीधे सुप्रीम कोर्ट से शिकायत करेंगे कि वो तुम्हारे उपर एस आई टी बिठाए कि जांच तो हो कि तुम आखिर किस तरह के देशद्रोही हो। इसलिए सीधे-सीधे कह रहे हैं, कह क्या रहे हैं, आदेश दे रहे हैं, कि चीनी सामान का बहिष्कार करो। मतलब अपनी सस्ते चाइनीज़ मोबाइल से सोशल मीडिया पोस्ट लगाओ, कि चीनी सामान का बहिष्कार करके सरकार के हाथ मजबूत किए जाएं। दूसरे भारत की इकाॅनाॅमी की इस जर्बदस्त तरक्की के उपलक्ष्य में हमें मिठाई भेजो, नहीं भेजोगे तो तुम्हारे उपर एफ आई आर की जाएगी।

अब इससे तुम ऐसे बच सकते हो कि इसे लाइक, और शेयर करो। और ऐसे देशप्रेमी वीडियो और देखने हों तो सब्सक्राइब भी कर लो। समझे। 

आखिर में ग़ालिब का एक शेर याद आता है,

उनसे गिला नहीं हैं, जो मानते नहीं हैं

तुम मान लो हमारी, धमकी है ये हमारी

इसका इस पूरे वीडियो से कोई लेना-देना नहीं है। ग़ालिब का ये शेर याद था, तो सुना दिया। 



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