मंगलवार, 1 अक्टूबर 2013

गंगाराम कुंवारा रह गया!



गंगाराम कुंवारा रह गया!



शहर के नये बने मॉल की चौथी मंजिल पर खाली पड़ी गैलरी में एक बंद दरवाजा है, उस बंद दरवाजे के पीछे जो सीढ़ियां हैं वो मॉल की छत पर जाती हैं। दरवाजे के पीछे बैठा गंगाराम सोच रहा था कि आज ये किस्सा खत्म कर ही दिया जाए। बहुत हुआ। बहुत तमाशा देख लिया दुनिया ने, बहुत मजे ले लिए उसके। पहले घर में लोग हंसते थे, फिर रिश्तेदारी और महल्ले में हंसी उड़ने लगी, और अब तो जैसे पूरा शहर जान गया है कि.....। लेकिन गलती तो उसकी भी है। उसे जरूरत क्या थी, ये सब आडंबर रचाने की, अपने घरवालों की बात मानने की। जो जो घरवाले कहते गए, वो करता गया, और आज हाल ये है कि.....उसने दोनो उंगलियों के बीच दबी सिगरेट का आखिरी कश लिया, यूं जैसे, अपनी ख्वाहिशों को आखिरी बार सांस में भर कर महसूस कर रहा हो, सिगरेट खत्म थी, उसका टोटा भी पूरा निचुड़ सा गया था। होता था ऐसा, जब वो कुछ सोचते हुए, टेंशन में सिगरेट पीता था, तो सिगरेट पीता नहीं था, चूसता था जैसे। पिछले दिनों में तो जाने कितनी ही सिगरेट चूस डाले उसने, गिनती भी याद नहीं है। ये सातवीं बार थी जब किसी लड़की ने उसके घर ”ना” का संदेस भिजवाया था, नहीं, ये कहना गलत होगा। पहली तीन बार तो ”ना” का संदेस उसीके के घर से गया था, बाकी आखिरी चार बार, लड़की वालों ने ”ना” कहलवा दिया। कुल सात बार, सात बार उसने पूरी तैयारियां की, सपने संजोए, और.....

इस बार तो कमाल ही हो गया था, शादी की बात हो चुकी थी, लड़के वाले लड़की देख आए थे, रोकना-रुकाना हो गया था। लड़की की मां ने गंगाराम की बलैयां लेकर उसे एक लॉकेट और सोने की अंगूठी पहनाई थी, और उसे आसीस दिया था। आज है 13......18 की सगाई थी, और वो सब तैयारियों में लगा था, नये जूते खरीद लाया था, दो जोड़ी.....कोट तो पहले किसी शादी की तैयारी में बन चुका था, लेकिन जूते नये खरीदने पड़े थे। यार-दोस्तों को पक्का कर दिया था, अब्दुल ने अपनी कार देने का वादा कर दिया था, सगाई में जाने के लिए वो बस में नहीं बैठना चाहता था। सबसे हफ्ता पहले ही उस दिन उसके साथ जाने का वादा ले लिया था। लेकिन 12 की शाम को ही लड़की वालों के घर से फोन आया कि......कि कुछ प्राब्लम है......प्राब्लम क्या है, ये बाद में पता चला। गंगाराम के ही एक दोस्त ने बताया कि वो लड़की, किसी लड़के के चक्कर में थी, और लड़का उस लड़की के चक्कर में था। उसके घरवालों को भी ये बात पता थी, क्योंकि कॉलेज के जमाने से ही चक्कर चल रहा था। लेकिन जब लड़का नौकरी के चक्कर में दिल्ली चला गया, तो घरवालों ने सोचा कि चक्कर खत्म हुआ। लेकिन चक्कर खत्म नहीं हुआ था, उस लड़के ने लड़की को चोरी-चुपके फ्लाइट का टिकट भेज कर दिल्ली बुला लिया और आनन-फानन शादी कर ली। अब लड़की के मां-बाप जो ये नहीं चाहते थे कि लोग कहें कि लड़की भाग गई, उस लड़के के साथ समझौता करके अपने रिश्तेदारों को दिल्ली ही ले जा रहे हैं ताकि बिरादरी के सामने शादी हो सके, और उनकी जगहंसाई ना हो, ”उनकी जगहंसाई ना हो” और मेरी......सोचा गंगाराम ने। अरे अगर तुम्हारी लड़की का किसी से चक्कर है तो पहले पूछ तो लो उससे, कि वो चाहती क्या है। और लड़की.......जब वो लड़की देखने गया था तो पूरे एक घंटा वो उसके साथ एक कमरे में बैठा रहा था, हां उनके साथ लड़की का छोटा भाई भी था। लेकिन लड़की कम से कम उसे इशारा तो कर ही सकती थी, कि वो उससे शादी नहीं कर सकती। इस तरह उसकी भद् तो नहीं ही पिटती। 

अब वो क्या करे, क्या चौथी मंजिल से कूद जाए। खत्म करे ये किस्सा। सात बार, सात बार ऐसा हुआ कि उसकी शादी पक्की हुई और फिर होने से पहले टूट गई। ये साले रिश्तेदार इसे शादी पक्का होना क्यों कहते हैं, कच्ची शादी क्यों नहीं कहते, ताकि टूट जाए तो कम से कम ये तो कहा जा सके कि यार कच्ची शादी थी इसलिए टूट गई। पकी-पकाई शादी टूटने से तो कम ही मलाल होगा तब। पक्की शादी, हुहं। उसका दिल किया कि वो दीवार पर जोर-जोर से घूंसा मारे, कुछ कर दे। उसे गुस्सा आ रहा था, उस लड़की पर, लड़की के घरवालों पर, अपने घरवालों और रिश्तेदारों पर, और बनवारी मामा पर......ये रिश्ता वहीं लाए थे। अरे अगर रिश्ता लाने से पहले, लड़की की जांच-पड़ताल का सउर नहीं है तो क्यों दूसरों के साथ मजाक करते फिरते हैं। रिश्ता लाएंगे, अपनी तो कर नहीं पाए आज तक, हमारे लिए कोशिश कर रहे हैं। क्या जरूरत थी उन्हे उस गोरी, सुंदर और पढ़ी-लिखी लड़की का रिश्ता लाने की, जो पहले से किसी और से प्रेम करती है। कम से कम आस-पास से पता तो किया होता, किसी से तो पता किया होता। लेकिन उन्हे तो अपना रिश्ते लगाने का स्कोर बढ़ाने से मतलब है। इससे पिछली बार भी उन्होने यही किया था। 

इससे पिछली बार, यानी छठी बार जब उसकी शादी पक्की हुई थी तो यही बनवारी मामा उसके लिए रिश्ता लेकर आए थे। ”अरे लड़की वाले तो तैयार बैठे हैं, बस तुम्हारी हां की देर है...” उसके पिताजी से बात करते हुए कहा था बनवारी मामा ने। ”लेकिन लड़की देखने तो जाना ही होगा....” ” हां हां तो जाएंगे ना लड़की देखने.....अगले इतवार को चल दो।” पक्का हो गया कि इतवार को पिताजी और मां, मामा जी के साथ लड़की देखने जाएंगे। उसे नहीं जाना था, क्योंकि उसे किसी ने कहा ही नहीं था। क्या करना है लड़की देखकर, शादी हो गई तो जीवन भर उसे ही तो देखना होगा। यही सोच कर वो चुप रहा। मां पिताजी लड़की देख आए और अपनी तरफ से शगुन का सवा रुपया भी लड़की की झोली में डाल आए। लड़की वालों की तरफ से भी उसके लिए चांदी का कलदार आया था। मामा जी ने अपनी भूमिका निभाते हुए लेन-देन की बात भी पक्की कर ली थी। और उसने.....उसने अपने दोस्तों को बता दिया था कि इस बार तो हुई की हुई.....शादी की तारीख भी तय हो गई। बात ये हुई कि शादी का साया एक ही बचा था और उससे पहले सगाई होने की संभावना नहीं थी, इसलिए ये तय पाया गया कि शादी वाले दिन की सगाई हो जाएगी और उसी रात का भांवरे पड़ जाएंगे। पूरी तैयारियों के लिए सिर्फ एक हफ्ते का समय था। 

वो अपने ऑफिस में एक हफ्ते की छुट्टी की अर्जी देकर निकल रहा था जब एक आदमी ने उसके पास स्कूटर रोका। ”गंगाराम जी?” ” जी” उसके मुहं से निकला। ठीक-ठाक आदमी था। ”मैं सेवानगर....उसका जीजा हूं” ओ तेरी की.....सेवानगर से..उसने सोचा। फिर नमस्ते किया, भई अगर उसकी होने वाली बीवी का जीजा है तो इसे तो खुश करना होगा। वो खुद भी खुश था। वो दोनो जाकर सामने वाली अगरवाल की मिठाई वाले की दुकान पर बैठ गए। भला आदमी था जीजा। उसके साथ कुछ आधा ही घंटा बैठा। लेकिन जाने वापस जाकर अपनी सुसराल में उसने क्या कहा कि अगले ही दिन लड़की वालों ने सवा रुपया वापस भेज दिया और अपना कलदार वापस मांग लिया। वजह पूछी तो किसी ने बताई नहीं। तब भी उसका कोई दोस्त ही खबर लाया था। उसके मामा ने लड़की वालों को ये नहीं बताया था कि उसके एक हाथ में छः उंगलियां थीं। 

छः उंगलियां, छः उंगलियां होने के चलते कोई पक्की बातचीत थोड़े ही तोड़ता है। अरे भई विकलांग इंसान तब होता है जब उसके शरीर में सामान्य से कम अंग हों, या फिर कोई अंग विकल हो, ऐसा थोड़े ही था कि उसके हाथों में पांच की जगह चार उंगलियां थी, अरे भई एक उंगली ज्यादा ही तो थी, और ज्यादा तो सबको चाहिए। उसे विकलांगता का कोई सरकारी सर्टिफिकेट भी नहीं मिला था। सरकार छंगुले इंसान को विकलांग थोड़े ही मानती है, सरकार क्या कोई भी नहीं मानता। उसे तो भूल भी गया था कि उसके हाथों में छः उंगलियां हैं, छः उंगलियां देखकर कोई पक्का रिश्ता तोड़ लेगा, ये बात तो उसने आज तक सोची ही नहीं थी। इससे पहले भी वो पांच रिश्ते देख चुका था, हालांकि उन पांचो मंे से कोई भी सिरे नहीं चढ़ा था। लेकिन उन पांचों रिश्तों में उसकी छंगुली की बात को किसी को ध्यान भी नहीं आया था। या शायद हो सकता है ध्यान आया हो, लेकिन किसी ने इसके बारे में कोई बात नहीं की थी। लेकिन इस रिश्ते में उसकी छंगुली ही कयामत बनकर आयी थी। और मामा.....मामा को पहले ही बता देना चाहिए था कि लड़के की छः उंगलियां थीं, लेकिन मामा क्यों बताता....उसे तो अपने रिश्ते लगाने का स्कोर बढ़ाना था। चाहे जो भी हो, कहां तो वो सातवें दिन पति बनने वाला था, नई नवेली दुल्हन का खाविंद बनने वाला था, कहां उसकी छः उंगलियों ने उसे कुछ ना बनने दिया। बात सिर्फ इतनी ही नहीं थी कि उसकी छः उंगलियों की वजह से उसका रिश्ता टूटा था, ये छठी बार थी कि उसका पका-पकाया रिश्ता टूटा था, जबकि उसके दोस्त हरिया, यानी हरेन्द्र की पहली ही बार में शादी लगी, और हो गई। जिस दिन हरेन्द्र उसे अपनी शादी का कार्ड देने आया था, उसके मुहं से बोल तक नहीं फूटा था। हरेन्द्र उम्र में भी उससे कुछ 5-6 साल छोटा ही था, और नौकरी भी उससे कम ओहदे वाली करता था, फिर भी....। फिर उसे हरेन्द्र की शादी में जाना पड़ा....और उसकी तकलीफ दोबाला हो गई। हरेन्द्र की हो गई, और उसकी छठी बार भी टूट गई। गिनती क्या गिने..... क्योंकि गिनती तो उसने पांचवी बार के बाद से ही छोड़ दी थी। पांच बार किसी की शादी टूट जाए, तो क्या कोई गिनती कर सकता है। पांचवी बार शादी टूटी थी तो वो जैसे कभी शादी ना करने की कसम खाते-खाते रह गया था। इतना बुरा लगा था उसे कि क्या बताए। कमाल ये है कि इस लड़की का रिश्ता लेकर उसका बाप खुद उसके घर आया था। 

हुआ यूं था कि लखनउ वाली बुआ के भतीजे की शादी थी। उसके घर से अक्सर इस तरह की शादियों में उसके पिता ही जाते थे, लेकिन उस समय मामला कुछ ऐसा हुआ था कि उन्हे, एक दूर के रिश्तेदार की तेहरवीं के लिए गांव जाना पड़ गया था। अब बुआ के घर तो जाना ही हुआ, इसलिए ऑफिस से दो दिनों की छुट्टी लेकर वो अपनी बुआ के भतीजे की शादी में गया था। आमतौर पर वो शादियों में जाने से बचता था, रिश्तेदारों की सवाल पूछती निगाहों से बचने के लिए वो ऐसे किसी जमावड़े में नहीं जाता था, लेकिन कभी-कभी मजबूरी भी तो हो जाती है। वो तो खैर किसी तरह शादी निपटा कर वापस आ गया था, लेकिन अगले ही दिन, एक आदमी उसके घर आ गया था। वो आदमी असल में उसकी बुआ से उसके घर का पता पूछ कर उसके घर आया था, ताकि उसके पिताजी से उसके लिए अपनी लड़की का रिश्ता तय कर सके। 

पहली बार उसे लगा कि रिश्तेदारों की शादी में जाने का कोई फायदा भी हो सकता है। लड़की के पिता ने उसे जी भर के देख लिया था, जब वो घर के अंदर आए थे तो वो अपने बाथरूम से नहाकर निकला था, कमर में तौलिया लपेट कर वो बाल्टी उठाए घर के अंदर जा रहा था और वो आंगन में आ रहे थे। उन्होने उसे देखा और फिर दीवार के पास रखी खटिया पर बैठाए गए, जहां उसके पिताजी अखबार पढ़ रहे थे। जब तक वो तैयार होकर निकला तब तक वो उसके पिताजी से पूरी बातचीत कर चुके थे। चाय के कप खाली रखे थे और नाश्ते की प्लेट में से भी कुछ ना कुछ खाया ही गया था। उन्होने पिताजी को देखकर हाथ जोड़े तो, उसने झुक कर उनके पैर छू लिए। उन्होने उसे सिर पर हाथ रखकर आर्शिवाद दिया, और चले गए। ”चलो भई, शनीवार को लड़की देखने की बात तय हुई है, जरा अपनी मां को बता दो कि शनीवार के लिए कोई और कार्यक्रम ना बना लें।” 
शनीवार को मां-पिताजी और वो लड़की देखने के लिए गए, लड़की ठीक थी, उसके मुकाबले कद में थोड़ी लम्बी थी, लेकिन कद की क्या बात थी, उसने कई ऐसे जोड़े देखे थे जिनमें कद का फर्क था, भई फर्क अगर आदमी की तरफ ज्यादा वाला हो तो ठीक रहता है। लेकिन उसे इसमें भी कोई बुराई नहीं लगी। हो जाता है ऐसा, बल्कि अच्छा ही था। उसकी तरफ तो कद छोटा ही था, अगर उसकी बीवी का कद बड़ा होगा तो बच्चों का कद भी बड़ा ही होगा, जो कि अच्छी ही बात थी। उसकी मां ने उसकी तरफ देखा तो उसने आंखों ही आंखों में हामी भर दी थी। और मां ने, जैसा कि तय हुआ था, अपने पर्स में निकाल कर हल्दी लगे सवा रुपये लड़की के हाथ में रख दिए थे, और वो खुशी-खुशी घर वापस आ गए। 

मां ने आते ही अपनी तरफ से सभी रिश्तेदारों को फोन करके इस बात की सूचना दी, पिताजी इस मामले में चुप ही रहते थे। लेकिन खबर को दोस्तों तक भी पहुंचना था सो पहुंची। और उसने अपने दोस्तों को राजदारी में लेकर ये बात बता दी थी, हालांकि राजदारी की कोई जरूरत नहीं थी, क्योंकि जल्दी ही बात खुल जानी थी। जल्दी ही सबको ये बात पता चल गई कि उसकी शादी तय हो गई है और जल्दी ही होने वाली है। उसके बाद वो इंतजार करने लगे कि लड़की वालों की तरफ से कोई संदेस आए तो वो शादी की तारीख पक्की करें। लेकिन लड़की वालों की तरफ से कोई संदेश नहीं आया। आखिर उसके पिता ने ही फोन करके पूछा कि बात क्या है। वहां से जो जवाब मिला उसने उसके सपनों को चकनाचूर कर दिया। लड़की के पिता ने बताया कि लड़की को उसके कद पर एतराज़ है, लड़की को लगता है कि लड़के का कद कम से कम उससे तो ज्यादा होना चाहिए। 

जब उसके पिता उसे देखने आए थे तब उन्होने उसका कद नहीं देखा था, उसका सवाल था। लेकिन जवाब कौन देता। रिश्ता खत्म हो गया, ये पांचवी बार थी जब उसका दिल टूटा था, उसका रिश्ता टूटा था, उसका सपना टूटा था, और उसने अपने दोस्तों में बैठे हुए, भरे मन से कहा कि वो कसम खाता है कि वो.....हरिया ने उसका हाथ पकड़ लिया। ना गंगाराम, ऐसी कोई कसम मत खा, कि पछताना पड़े। अरे शादी का क्या है, यहां टूटी है कहीं और जुड़ जाएगी। किस्मत उस लड़की की खराब है जो कद के चक्कर में उसने इतना अच्छा पति गंवा दिया। ये रिश्ते तो जन्मों के होते हैं, और फिर शायद इसमें कोई अच्छाई ही छुपी हो कि ये रिश्ता ना हुआ हो। उसने कसम नहीं खाई.......

जब उसे पहली बार किसी लड़की की ”ना” सुनने को मिली थी, यानी जब चौथी बार उसके रिश्ते की बात चलाई गई थी। तब उसे लड़की पर थोड़ा बहुत गुस्सा आया था, उसने सोचा, भुगतेगी अपने आप उसे क्या, क्योंकि दहेज की मांग तो उसने कुछ खास नहीं की थी, एक अच्छे घर का, खाता-कमाता लड़का, पढ़ा-लिखा, और फिर उसे कोई ऐब भी नहीं था। ऐसा लड़का कोई रोज़-रोज़ तो मिलता नहीं। तो ये लड़की अगर उसे सिर्फ इसलिए मना कर रही है कि वो उससे कम पढ़ा-लिखा है तो ये लड़की की गलती है। लड़की ने एम. फिल किया हुआ था और वो सिर्फ बी ए पास था। फिर उन्हे कोई नौकरी तो करवानी नहीं थी। एम फिल करे या पी एच डी, रहना तो उसे घर में ही था। खाना बनाना था, चौका बर्तन करना था, इसमें अगर उसकी एम फिल को आड़े आना था, तो इससे भला यही था कि वो शादी टूट ही जाती। हालांकि एक बार को उसे ये भी लगा कि उसे और पढ़ाई करनी चाहिए थी, लेकिन ना तो आगे पढ़ने की उसकी इच्छा थी और ना ही उसमें उसे कोई फायदा नज़र आता था। बी एक के बाद सरकारी नौकरी मिल गई थी, रोज़ दफ्तर जाना, और वापस आना। जीवन ऐसे ही चलता है, ऐसे ही अच्छा लगता है। उसके पिता ने जीवन भर यही किया, और अब वो भी ठीक ठिकाने लग गया था। बल्कि थोड़ा सोचने के बाद उसे ये लगा कि अच्छा ही हुआ कि ये रिश्ता टूट गया, वरना वो लड़की घर आती और अपनी एम फिल की धौंस देती।  और वो संतुष्ट हो गया....

...वो फिर से सपने संजोने लगा, आखिर उसके घरवालों ने भी तो रिश्ते तोड़े थे। पहला रिश्ता उसकी मां की ज़िद की वजह से तोड़ा गया, कि उसकी मां के सभी रिश्तेदारों को सूट और साड़ियां मिलनी चाहिएं, हर एक बाराती के हाथ में सवा सौ रुपया मिलनी और सवा सौ रुपया विदाई देनी चाहिए, और खुद लड़के को मोटरसाइकिल मिलनी चाहिए। बाकी घर का सामान, और नगद की बात अलग से तय होनी चाहिए। लड़की का पिता इतना नहीं कर सकता था। बिचौलियों ने जितना कोशिश हो सकती थी की, लेकिन ना मां झुकीं ना ही लड़की का पिता कुछ कर पाया। खुद उसने भी सोचा कि आखिर उसने सैकिंड डिविजन से बी. ए. पास किया है। इतना हक तो उसका बनता ही है। वो चुप रह गया। दूसरे रिश्ते मंे उसके पिता को आपत्ति रही, लड़की का गोत्र उनके गोत्र के करीब भी कहीं नहीं था। उसके पिता इन संस्कारों में बहुत मानते थे, और मानना भी चाहिए। आखिर सदियों पुरानी रीत थी, उसे ऐसे ही तो छोड़ा नहीं जा सकता। उन्होने रिश्ता खत्म कर दिया। 

पहले और दूसरे रिश्ते के बीच में ज्यादा देर नहीं थी, कुछ एक ही महीने के अंतराल में दोनो रिश्ते आ गए थे। तीसरा रिश्ता चार महीने बाद दिसंबर में आया। गंगाराम, उसकी मां और पिताजी तीनो ही लड़की देखने के लिए गए थे। लड़की वालों का घर मुहल्ले के आखिरी सिरे पर था, लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए जिस गली से होकर वो गुजरे और जिस तरह का माहौल उन्होने देखा, उसमें कुछ कहने की जरूरत ही नहीं थी। तीनो ने वहीं लड़की के घर पर ही आंखों ही आंखों में फैसला कर लिया था, लड़की हालांकि बहुत अच्छी थी, सुंदर, सुशील और......जैसी वो चाहता था। दहेज के बारे में भी उसके पिता ने कहा कि वो दे ही देंगे, क्योंकि वो उनकी इकलौती लड़की थी। पिताजी की गोत्र वाली समस्या भी यहां नहीं थी। लेकिन मां को इस बात पर एतराज था कि बारात में जब उसके रिश्तेदार आएंगे तो क्या इस कचरे में आएंगे, और पिताजी अपने रिश्तेदारों को लेकर हिचकिचा रहे थे। खैर उन्होने ये रिश्ता भी मना कर दिया। 

इसके बाद रिश्ते आने बंद से हो गए थे। वो तो लड़की के लिए पूछने जा नहीं सकते थे, कैसे जाते, इज्जत की बात थी। लड़के वाले रिश्ते के लिए नहीं जाते, लड़की वाले आते हैं। चौथा रिश्ता तीसरे रिश्ते के एक साल बाद आया, जब उसकी आगरे वाली मौसी उसके घर आई थीं। उसकी मां के रिश्तेदारों में एक यही मौसी थी, जिसकी उसके पिता से अच्छी-खासी पटती थी। उन्होने ही बताया कि उनके मुहल्ले में एक सज्जन हैं जिनकी तीन लड़कियां हैं, अच्छे, खाते-पीते लोग हैं, और लड़का कोई है नहीं, इसलिए लड़कियों की शादी में अच्छा खासा खर्च करेंगे। बाकी सब चीजें ठीक-ठाक थीं, और रिश्ता पक्का हो गया था, दोनो तरफ से तैयारियां पूरी हो गईं थीं, सगाई वाले दिन जब वो लोग आगरे पहुंचे तो उनका काफी शानदार स्वागत किया गया। सब रस्में निपटीं और उसे यकीन हो गया, कि अब तो उसकी शादी हुई कि हुई, लेकिन विधि को कुछ और ही मंजूर था। सगाई के बाद उसके ससुर उसे और उसके पिता को एक तरफ ले गए और जेब से निकाल कर कुछ कागज़ात दिखाए। ये कागज़ात आगरे में एक घर के थे, ”वाह चुपड़ी और तीन-तीन, अच्छी लड़की, अच्छा दहेज और साथ में एक घर, अच्छा हुआ कि उसने इससे पहले शादी नहीं की।” लेकिन ऐसा नहीं था। वो चाहते थे कि शादी के बाद लड़का उनके यहां रहे, यानी!

यानी घर जमाई! घर जमाई, बस बात वहीं टूट गई। इस बार तो सभी रिश्तेदारों ने एक सुर में ना कर दिया था। आगरे वाली मौसी के साथ मां का खूब झगड़ा हुआ, जब पिताजी बीच में बोलने लगे तो, आगरे वाली मौसी से पिताजी का भी बहुत झगड़ा हुआ। फिर जो सामान दिया जा चुका था, उसके बारे में किट-किट हुई। लेकिन कुल मिलाकर ये हुआ कि रिश्ता खत्म हो गया, पकी-पकाई शादी टूट गई, और वो कुंआरा रह गया। 

और उसके बाद जितने भी रिश्ते आए, उसमें उसने हरचंद कोशिश की कि उसकी तरफ से रिश्ता ना टूटे, उसकी तरफ से कोई गड़बड़ ना हो, लेकिन अबकी तो जैसे सारी दुनिया की लड़कियां उससे बदला लेने की फिराक में थीं। पांचवी, छठी, और सातवीं लड़की ने पूरी बेदर्दी के साथ बात पक्की होने के बाद, उससे शादी के लिए मना कर दिया था। पहली शादी टूटने के बाद, दोस्तों ने गाना गाया, ”गंगाराम कुंआरा रह गया......” और वो मुस्कुरा दिया था। आज इस मॉल की चौथी मंजिल पर उसे यही गाना याद आ रहा था, और वो रो रहा था। 

वो मुंडेर के करीब पंहुचा, और नीचे झांका। नीचे लोग आ जा रहे थे, छज्जू कचौड़ी वाला एक हाथ से अपनी तोंद खुजाते हुए दूसरे हाथ से पकौड़ियां तल रहा था, सामने खड़े कुछ लोग पकौड़ी खा रहे थे, एक कुत्ता बड़ी हसरत से पकौड़ियां खाते लोगों को देख रहा था, कि किसी की कोई पकौड़ी गिरे तो वो खाएं। लोग बाग मॉल में जा रहे थे, मॉल से निकल रहे थे। किसी को पता नहीं था कि वो चौथी मंजिल की छत पर सातवीं बार अपनी शादी टूटने के गम में अपनी जान देने की बात सोच रहा है। दुनिया को उसकी फिक्र नहीं है, क्योंकि वो किसी की नज़र में नहीं है, लेकिन अगर उसे देख लें, तो पक्का गाएंगे, ”गंगाराम कुंआरा रह गया....” ये फिल्म वालों को और कोई नाम नहीं मिला था क्या, क्यों उसी के नाम को कुंआरा बनाया गया, क्या इसलिए कि फिल्म वालों को पता था कि वो कुंआरा रह जाएगा......सात बार.....क्या उन्हे पता था कि वो सात बार कुंआरा रह जाएगा।

8 टिप्‍पणियां:

  1. काफी बढ़िया कहानी है और शादी से जुड़े कई सामाजिक मान्यतों पर सवाल खड़ा करती है , शादी से जुडी कई ऐसी बाते हैं जो ना सिर्फ दकियानूसी हैं वरन कई बार शादी होना या न होना जीवन और मरण का प्रश्न हो जाता है। कपिल भाई आपकी कहानी काफी संवदनशील तरीके से गंगाराम के मन की व्यथा को उकेरता है , और शादी के आर्ड़ मे होने वाले कई कुरीतियों को उजागर करती है। बहुत बहुत धन्यवाद् शझा करने के लिए

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  2. sir ji ek kami h kahani me....apne chauthi shadi yani k jab gangaram ko pehli bar NA sunne ko mila tha uski wajh ladki ki taraf se btayi h M.Phil or B.A ka fark....lekin last para me jo ki teesre rishte k 1 saal bad rishta aya tha usme apne wajah btayi h ki ladke wale or rishtedaro ne mna kiya ghar jamayi banne ki maang ki wajh se....i think apne zyada soch liya thoda or fluency me likhte chale gaye...

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