बुधवार, 1 दिसंबर 2021

अब क्या देखना बाकी है



हार भी देख ली, और जीत को भी देख लिया

जिंदा नारों की तपिष, खुषबुएं, चारों सिम्त

ग़में दौरा, ख्वाहिषों की परवाज़

हाकिम को आज़मा के देख लिया


तुम आए ना आए, कोई रंज नहीं

हौंसला एक और जंग लड़ने का 

मेरे हर दिल अजीज़ साथी

तेरी आवाज़ मेरे साथ रही


मैने चाहा था किसी और वक्त

खेतों में जाउं, हंसू गाउं

सुब्ह फसलों को पानी लगाते हुए

गीली मिट्टी की ताज़ा गंध में 

बह जाउं

फैल जाउं हर दाने में, बस जाउं


पहाड़ों से समन्दर तक

जंगलों से मैदानो तक

गूंजती है लाखों आवाज़ें

इन्हीं आवाजों में मेरी 

आवाज़ भी शामिल है

तेरी आंखों में मेरे आसूं

तेरे होठों पे जज़्बा है मेरी हंसी


लड़के जीते हैं एक मंजिल

रास्ता और बाकी है अभी

चलना देखा है मैने खेतों का

फस्लों का, खून का, उम्रों का

अब क्या देखना बाकी है।


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